शिवाष्ट्कम्: जय शिवशंकर in Hindi/Sanskrit
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुख-सार हरे,
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर, जय जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय सगुण अनामय, निराकार, साकार हरे ,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ १ ॥
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेस्वर, भीमेश्वर, जगतार हरे,
काशीपति, श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय अघ-हार हरे,
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ, मृत्युंजय, अविकार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ २ ॥
जय महेश, जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु, तव महिमा अपार वर्णन हो,
जय भवकारक, तारक, हारक, पातक-दारक, शिव शम्भो,
दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर शिव शम्भो,
पार लगा दो भवसागर से, बनकर करुणाधार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ ३ ॥
जय मनभावन, जय अतिपावन, शोक-नशावन शिव शम्भो,
सहज वचन हर, जलज-नयन-वर, धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन, शिव शम्भो,
सहज वचन हर, जलज-नयन-वर, धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन हर-चरन मनन धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ ४ ॥
भोलानाथ कृपालु दयामय, औघड़दानी शिव योगी,
निमित्र मात्र में देते हैं, नवनिधि मनमानी शिव योगी,
सरल ह्रदय अतिकरुणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटा कर बने मसानी शिव योगी,
स्वयं अकिंचन, जनमन रंजन, पर शिव परम उदार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ ५॥
आशुतोष इस मोहमयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषय-वेदना से विषयों को माया-धीश छुड़ा देना,
रूप-सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान-भण्डार-युगल-चरणों में लगन लगा देना,
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ ६ ॥
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
पूर्ण ब्रह्म हो, दो तुम अपने रूप का सच्चा ज्ञान प्रभो,
स्वामी हो, निज सेवक की सुन लेना करुण पुकार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ ७ ॥
तुम बिन, व्याकुल हूँ प्राणेश्वर आ जाओ भगवंत हरे,
चरण-शरण की बांह गहो, हे उमा-रमण प्रियकंत हरे,
विरह व्यथित हूँ, दीन दुःखी हूँ, दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमन्त हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करो विचार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥ ८ ॥
Shivashtakam in English
Jai Shivshankar, Jai Gangadhar, Karunakar Kartar Hare,
Jai Kailashi, Jai Avinashi, Sukhrashi Sukhsar Hare,
Jai Shashi-Shekhar, Jai Damru-Dhar, Jai Jai Premagar Hare,
Jai Tripurari, Jai Madahari, Amit Anant Apar Hare,
Nirgun Jai Jai Sagun Anamay, Nirakar, Sakar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 1 ॥
Jai Rameshwar, Jai Nageshwar, Vaidyanath, Kedar Hare,
Mallikarjun, Somnath Jai, Mahakal Omkar Hare,
Trimbakeshwar, Jai Ghushmeshwar, Bhimeshwar, Jagatar Hare,
Kashipati, Shri Vishwanath Jai, Mangalmay Agh-Har Hare,
Neelkanth Jai, Bhootnath, Mrityunjay, Avikar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 2 ॥
Jai Mahesh, Jai Jai Bhavesh, Jai Adidev Mahadev Vibho,
Kis Mukh Se He Gunatit Prabhu, Tav Mahima Apar Varnan Ho,
Jai Bhavkarak, Tarak, Harak, Patak-Darak, Shiv Shambho,
Deen Dukhhar, Sarv Sukhakar, Prem Sudhakar Shiv Shambho,
Par Laga Do Bhavsagar Se, Bankar Karunadhar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 3 ॥
Jai Manbhavan, Jai Atipavan, Shok-Nashavan Shiv Shambho,
Sahaj Vachan Har, Jalaj-Nayan-Var, Dhaval-Varan-Tan Shiv Shambho,
Vipad Vidaran, Adham Ubharan, Satya Sanatan, Shiv Shambho,
Sahaj Vachan Har, Jalaj-Nayan-Var, Dhaval-Varan-Tan Shiv Shambho,
Madan-Kadan-Kar Pap Haran Har-Charan Manan Dhan Shiv Shambho,
Vivasan, Vishwaroop Pralayankar, Jag Ke Mooladhar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 4 ॥
Bholenath Kripalu Dayamay, Aughadani Shiv Yogi,
Nimitra Matra Mein Dete Hain, Navnidhi Manmani Shiv Yogi,
Saral Hriday Atikrunasagar, Akath Kahani Shiv Yogi,
Bhakton Par Sarvasva Luta Kar Bane Masani Shiv Yogi,
Swayam Akinchan, Janman Ranjan, Par Shiv Param Udar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 5 ॥
Ashutosh Is Mohamayi Nidra Se Mujhe Jaga Dena,
Vishay-Vedana Se Vishayon Ko Maya-Dheesh Chhuda Dena,
Roop-Sudha Ki Ek Boond Se Jeevan Mukt Bana Dena,
Divya-Gyan-Bhandar-Yugal-Charanon Mein Lagan Laga Dena,
Ek Baar Is Man Mandir Mein Kije Pad Sanchar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 6 ॥
Dani Ho, Do Bhiksha Mein Apni Anpayani Bhakti Prabho,
Shaktiman Ho, Do Tum Apne Charanon Mein Anurakti Prabho,
Poorn Brahm Ho, Do Tum Apne Roop Ka Sachcha Gyan Prabho,
Swami Ho, Nij Sevak Ki Sun Lena Karun Pukar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 7 ॥
Tum Bin, Vyakul Hoon Praneshwar Aa Jao Bhagwant Hare,
Charan-Sharan Ki Baanh Gaho, He Uma-Raman Priykanth Hare,
Virah Vyathit Hoon, Deen Dukhi Hoon, Deen Dayalu Anant Hare,
Aao Tum Mere Ho Jao, Aa Jao Shrimant Hare,
Meri Is Dayaniya Dasha Par, Kuch To Karo Vichar Hare,
Parvati Pati, Har Har Shambho, Pahi Pahi Datar Hare ॥ 8 ॥
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शिवाष्ट्कम् का अर्थ
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे
भगवान शिव के विभिन्न नामों की स्तुति इस श्लोक में की गई है। भगवान शिव हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं और उन्हें कई रूपों और नामों से जाना जाता है। इस श्लोक में उनके गुण, शक्तियां और अनंत करुणा का बखान किया गया है।
शिवशंकर और गंगाधर के नाम का महत्व
- जय शिवशंकर: शिव को शंकर कहा जाता है क्योंकि वह संहारक और मंगलकर्ता दोनों हैं। शंकर का अर्थ है ‘शुभ करने वाला’, इसलिए शिवशंकर का नारा उन लोगों के लिए एक आश्रय है जो जीवन में शांति और शुभता की कामना करते हैं।
- जय गंगाधर: शिव के सिर पर विराजमान गंगा नदी का प्रतीक है। शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समेटा था ताकि उसकी धारा पृथ्वी को नष्ट न कर सके। इसीलिए शिव को गंगाधर कहा जाता है।
करुणाकर करतार
- करुणाकर: शिव करुणा के सागर हैं। उनका ह्रदय भक्तों के प्रति दयाभाव से भरा रहता है। चाहे कोई भी भक्त हो, शिव सभी के कष्टों का नाश करने वाले हैं।
- करतार: शिव सृष्टि के कर्ता भी हैं। वह त्रिलोक के पालक और संहारक हैं, जिनके हाथों में पूरे ब्रह्मांड का संचालन है।
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुख-सार हरे
कैलाशी और अविनाशी
- कैलाशी: शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। यह पर्वत उन्हें शांति और अध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बनाता है। कैलाश पर्वत को हिंदू धर्म में मोक्ष और आत्मज्ञान की प्राप्ति का स्थान माना जाता है।
- अविनाशी: शिव को अविनाशी कहा जाता है क्योंकि वह अजर-अमर हैं। उनका कोई आरंभ और अंत नहीं है, वह सदा काल से परे हैं।
सुखराशी और सुख-सार
- सुखराशी: शिव समस्त सुखों की राशी हैं। उनके चरणों में समर्पण करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
- सुख-सार: शिव का स्वरूप ही सच्चे सुख का सार है। यह संसार के भौतिक सुखों से परे आत्मिक सुख की प्राप्ति का स्रोत है।
त्रिपुरारी और मदहारी
शिव के विभिन्न नामों और उनकी विशेषताओं की स्तुति का यह अंश बताता है कि वह त्रिपुरासुर का नाश करने वाले हैं और कामदेव (मद) का अंत करने वाले हैं।
त्रिपुरारी
- त्रिपुरारी: त्रिपुरासुर नामक राक्षस को मारने के कारण शिव को त्रिपुरारी कहा जाता है। त्रिपुरासुर ने तीन लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी, लेकिन शिव ने उसे अपने त्रिशूल से समाप्त किया।
मदहारी
- मदहारी: शिव कामदेव के विनाशक हैं। कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया था, लेकिन शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उसे भस्म कर दिया। इसी कारण उन्हें मदहारी कहा जाता है, जोकि माया और मोह के बंधनों को समाप्त करने वाले हैं।
शशि-शेखर और डमरू-धर
यहां शिव की विशेषताओं और उनके प्रतीक चिह्नों का वर्णन किया गया है।
शशि-शेखर
- शशि-शेखर: शिव के मस्तक पर चंद्रमा शोभित है, जिसे शशि-शेखर कहा जाता है। चंद्रमा का महत्व यह है कि वह काल का प्रतीक है और शिव काल के स्वामी हैं। उनके मस्तक पर चंद्रमा का वास उन्हें अमरता का प्रतीक बनाता है।
डमरू-धर
- डमरू-धर: शिव के हाथों में डमरू है। यह डमरू सृष्टि की ध्वनि का प्रतीक है। शिव की डमरू ध्वनि से संसार का आरंभ और अंत होता है। डमरू से उत्पन्न नाद को ‘ओम’ कहा जाता है, जो सृष्टि की मूल ध्वनि है।
पार्वती पति और हर हर शम्भो
शिव को पार्वती के पति के रूप में भी स्मरण किया जाता है। माता पार्वती, शक्ति का प्रतीक हैं और शिव की अर्धांगिनी हैं।
हर हर शम्भो
- हर हर शम्भो: यह शिव का आह्वान है, जिसमें ‘हर’ का अर्थ है संहारक और शम्भो का अर्थ है कल्याणकारी। शिव संहार और सृजन दोनों के प्रतीक हैं। वह संसार के दुखों को हरने वाले और भक्तों को कल्याण प्रदान करने वाले हैं।
पाहि पाहि दातार हरे
- पाहि पाहि: शिव को यहाँ रक्षा करने वाला कहा गया है। भक्त अपने कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करते हुए शिव से संरक्षण की याचना करते हैं।
- दातार हरे: शिव कृपा के दाता हैं। वह दयालु और उदार हैं, और अपने भक्तों को असीमित कृपा प्रदान करते हैं।
कैलाश के स्वामी शिव
शिव कैलाश पर्वत के स्वामी हैं, और उनके विभिन्न रूपों में महादेव, त्रयम्बक, और मृत्युंजय जैसे नाम शामिल हैं।
काशी के स्वामी
- काशीपति: शिव काशी के अधिपति हैं। काशी, जिसे वाराणसी भी कहा जाता है, शिव की प्रिय नगरी है और मोक्ष का स्थान मानी जाती है। शिव के आशीर्वाद से भक्त काशी में जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
त्रयम्बकेश्वर
- त्रयम्बकेश्वर: शिव को त्र्यंबक कहा जाता है क्योंकि उनके तीन नेत्र हैं। इन तीन नेत्रों का अर्थ है ज्ञान, आत्मिक दृष्टि, और भविष्य की दृष्टि। त्र्यंबक शिव का स्वरूप व्यक्ति को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाता है।
मृत्युंजय
- मृत्युंजय: शिव मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले देवता हैं। वह भक्तों को मृत्यु के भय से मुक्त करते हैं और उन्हें मोक्ष की ओर ले जाते हैं। मृत्युंजय मंत्र भी शिव को समर्पित है, जो जीवन को संकटों से मुक्त करने और आत्मिक उन्नति की कामना के लिए जपा जाता है।
शम्भो की करुणा और दया
शिव को भोलानाथ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है सरल और दयालु। शिव की सरलता और दया उनकी विशेषताओं में से एक है, जो उन्हें भक्तों का प्रिय देवता बनाती है।
कृपालु और दयालु शिव
- कृपालु दयामय: शिव असीम कृपा और दया के सागर हैं। उनका दिल करुणा से भरा हुआ है और वह अपने भक्तों के सभी कष्टों को हरते हैं। चाहे किसी ने कितने भी पाप किए हों, शिव अपने भक्तों को क्षमा करने वाले और उनके कष्टों को हरने वाले हैं।
औघड़दानी शिव योगी
शिव को औघड़ कहा जाता है क्योंकि वह सरल और सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। वह योगी हैं और संसार की मोह-माया से परे हैं, फिर भी भक्तों की हर इच्छा को पूरी करने वाले हैं।
- औघड़दानी: शिव औघड़ हैं, यानी वह किसी बंधन में नहीं हैं। वह साधारण और त्यागमयी जीवन जीते हैं। औघड़दानी का अर्थ है कि शिव अपने भक्तों को बिना किसी भेदभाव के वरदान देते हैं। वह उदार दाता हैं और जब भी कोई भक्त उनके सामने आता है, वह उसकी झोली खुशियों से भर देते हैं।
शिव का सरल और करुणामय ह्रदय
- सरल ह्रदय अतिकरुणा सागर: शिव का ह्रदय सरल और करुणा से भरा हुआ है। उनकी करुणा असीमित है, और वह हर जीव के प्रति प्रेम और दया से भरे होते हैं। शिव अपने भक्तों के दुखों को दूर करने वाले हैं और उनके जीवन को शांति और समृद्धि से भरने वाले हैं।
- अकथ कहानी शिव योगी: शिव की महिमा अकथनीय है। उनके कार्य और उनका जीवन इतने गूढ़ हैं कि उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वह योगी हैं और संसार की मोह माया से परे रहते हुए भी भक्तों के सभी दुखों को हरने वाले हैं।
शिव का भक्तों के प्रति स्नेह
- भक्तों पर सर्वस्व लुटा कर बने मसानी: शिव अपने भक्तों पर सर्वस्व लुटा देते हैं। वह उन्हें न केवल भौतिक संपत्ति, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करते हैं। शिव ने स्वयं को मसान (श्मशान) से जोड़ा है, जहां वह जीवन और मृत्यु के चक्र को नियंत्रित करते हैं और भक्तों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।
- स्वयं अकिंचन, जनमन रंजन: शिव स्वयं अकिंचन हैं, यानी उन्हें किसी भौतिक वस्तु की आवश्यकता नहीं है। वह संसार के सभी बंधनों से मुक्त हैं, फिर भी वह जन-मन को प्रसन्न करने वाले हैं। उनके साथ रहने से मनुष्य को आत्मिक संतोष और शांति प्राप्त होती है।
- परम उदार शिव: शिव परम उदार हैं। वह अपने भक्तों की भलाई के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उनकी उदारता इतनी विशाल है कि वह अपने भक्तों के लिए सर्वस्व त्याग सकते हैं।
शिव से मुक्ति की प्रार्थना
यहां शिव से मोहमयी संसार से मुक्ति पाने की प्रार्थना की जा रही है। भक्त शिव से प्रार्थना करता है कि वह उसे इस भौतिक संसार से उबार लें और दिव्य ज्ञान का मार्ग दिखाएं।
मोहमयी निद्रा से जागृति की याचना
- आशुतोष इस मोहमयी निद्रा से मुझे जगा देना: शिव आशुतोष हैं, यानी वह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त उनसे प्रार्थना करता है कि वह उसे इस मोह-माया के संसार की निद्रा से जगा दें, ताकि वह सत्य और ज्ञान का मार्ग देख सके।
- विषय-वेदना से मुक्त कर दो: संसार के विषयों से उत्पन्न कष्टों से शिव से मुक्ति की याचना की जा रही है। भक्त चाहता है कि शिव उसे इन भौतिक कष्टों से बचाएं और आत्मिक शांति प्रदान करें।
रूप-सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना
- रूप-सुधा की एक बूँद से: शिव के दिव्य रूप की सुधा की केवल एक बूँद भी व्यक्ति को अमृत के समान शांति और मोक्ष प्रदान कर सकती है। भक्त यहां प्रार्थना करता है कि शिव अपने दिव्य रूप की एक झलक दिखाकर उसे संसार के बंधनों से मुक्त कर दें।
- दिव्य-ज्ञान-भण्डार-युगल-चरणों में लगन लगा देना: भक्त शिव के चरणों में लगन लगाने की प्रार्थना करता है। शिव के चरणों में समर्पित होने से भक्त को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और वह संसार के मोह-माया से परे जा सकता है। शिव का चरणाश्रय उसे मोक्ष का मार्ग दिखाता है।
मन मंदिर में शिव का वास
- एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे: भक्त शिव से प्रार्थना करता है कि वह उसके मन मंदिर में अपना वास करें। शिव का वास मन में होने से व्यक्ति के विचार शुद्ध हो जाते हैं और वह सही मार्ग पर चलने लगता है। मन का मंदिर तब शांति, प्रेम और करुणा से भर जाता है।
शिव की भक्ति की प्रार्थना
यहां शिव से सच्ची और अनपायनि भक्ति की याचना की जा रही है। भक्त शिव से अनुरोध करता है कि वह उसे अपनी शरण में लेकर सच्चे ज्ञान और भक्ति का वरदान दें।
अनपायनि भक्ति की याचना
- दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो: शिव से भिक्षा में अनपायनि (अविचलित) भक्ति मांगी जा रही है। भक्त चाहता है कि उसकी भक्ति हमेशा शिव के चरणों में अडिग रहे और वह किसी भी परिस्थिति में शिव से विचलित न हो।
चरणों में अनुरक्ति की याचना
- शक्तिमान हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो: भक्त शिव से अनुरक्ति की प्रार्थना करता है। शिव के चरणों में अनुरक्ति अर्थात प्रेम और समर्पण प्राप्त करना ही सच्ची भक्ति का मार्ग है। शिव की शक्तिमान स्थिति भक्त को सभी बंधनों से मुक्त कर देती है।
- रूप का सच्चा ज्ञान: शिव से सच्चे रूप का ज्ञान पाने की याचना की जा रही है। भक्त चाहता है कि उसे शिव के रूप, गुण और शक्तियों का सच्चा और वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो, जिससे उसका जीवन उन्नत हो सके।
सेवक की पुकार
- स्वामी हो, निज सेवक की सुन लेना करुण पुकार हरे: भक्त अपनी करुण पुकार शिव तक पहुंचाना चाहता है। शिव अपने भक्तों की प्रार्थनाओं को सुनने वाले और उन पर दया करने वाले हैं। भक्त शिव से याचना करता है कि वह उसकी पुकार को सुनें और उसे कष्टों से मुक्त करें।
शिव की शरण में प्रार्थना
शिव की शरण में प्रार्थना करना इस श्लोक का अंतिम और महत्वपूर्ण भाग है। भक्त शिव से अपने दुखों और कष्टों से मुक्ति पाने की प्रार्थना करता है।
शिव के चरणों की शरण
- तुम बिन, व्याकुल हूँ प्राणेश्वर: शिव के बिना भक्त व्याकुल हो जाता है। वह शिव के चरणों की शरण पाने के लिए व्याकुल है, क्योंकि वह जानता है कि शिव ही उसे इस संसार के कष्टों से मुक्त कर सकते हैं।
- चरण-शरण की बांह गहो: भक्त शिव से अपने चरणों की शरण में लेने की प्रार्थना करता है। वह शिव से निवेदन करता है कि वह उसे अपने संरक्षण में लें और उसके कष्टों को हर लें।
विरह और व्यथा
- विरह व्यथित हूँ, दीन दुःखी हूँ: भक्त अपने जीवन में शिव के विरह में दुखी है। वह शिव से मिलने की व्यथा से पीड़ित है और दीन-दुखी होकर शिव से प्रार्थना करता है कि वह उसके जीवन में प्रवेश करें और उसकी पीड़ा को दूर करें।
शिव से मुक्ति की अंतिम याचना
- मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे: अंत में भक्त शिव से निवेदन करता है कि वह उसकी दयनीय दशा पर विचार करें। वह शिव से प्रार्थना करता है कि वे उसके जीवन में कृपा करें और उसे संसार के सभी बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करें।
शिव के नाम और उनके महत्व
भगवान शिव के हर नाम के पीछे एक गहरी आध्यात्मिक शक्ति और अर्थ छिपा है। यह नाम न केवल उनके स्वरूपों को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि भक्त किस रूप में उन्हें स्मरण कर सकता है।
- शिव: शिव का शाब्दिक अर्थ है ‘मंगलकारी’। वह सृष्टि के संहारक होने के बावजूद भी कल्याणकारी हैं। उनके संहार से भी सृजन होता है, क्योंकि हर अंत एक नई शुरुआत की ओर ले जाता है।
- महादेव: शिव को महादेव यानी देवों के देव कहा जाता है। वह सभी देवताओं के भी अधिपति हैं, जिनसे ब्रह्मांड की रचना और विनाश दोनों संचालित होते हैं।
- त्रिपुरारी: त्रिपुरारी रूप में शिव ने त्रिपुरासुर जैसे दुष्ट राक्षस का विनाश किया। यह नाम इस बात का प्रतीक है कि शिव अधर्म का अंत करने के लिए अवतरित होते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
शिव की भक्ति और सरलता
भगवान शिव की भक्ति बेहद सरल और निष्कपट मानी जाती है। वह भव्य पूजा-अर्चना की अपेक्षा नहीं रखते, बल्कि उन्हें तो सच्ची भक्ति और समर्पण प्रिय है।
- भोलानाथ: शिव को भोलानाथ कहा जाता है, जोकि उनकी सरलता और सहजता को दर्शाता है। वह भक्तों के प्रति बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और बिना किसी कठिनाई के उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। चाहे वह बैल (नंदी) हो या सांप (वासुकि), शिव सभी के साथ समान प्रेम का व्यवहार करते हैं।
- औघड़दानी: शिव औघड़दानी हैं, यानी वह बिना किसी भेदभाव के सभी को अपनी कृपा प्रदान करते हैं। वह न केवल बड़े से बड़े भक्त को, बल्कि छोटे से छोटे जीव को भी समान प्रेम और कृपा प्रदान करते हैं। उनकी दया अपरंपार है और वह कभी किसी की याचना को ठुकराते नहीं हैं।
शिव का श्मशान से संबंध
शिव का श्मशान से गहरा संबंध है, जिसे उनके अद्वितीय व्यक्तित्व का प्रतीक माना जाता है। वह श्मशान के देवता हैं, जो जीवन और मृत्यु के चक्र को नियंत्रित करते हैं।
- श्मशान वासी: शिव श्मशान वासी हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि वह जीवन के अंत से जुड़े हुए हैं। उनका श्मशान में निवास यह दर्शाता है कि वह मृत्यु के भय से मुक्त हैं और मृत्यु के बाद भी जीवन की अनंत यात्रा का मार्ग दिखाते हैं। श्मशान उनके लिए एक साधना स्थल है, जहां जीवन की अस्थिरता और मृत्यु की अनिवार्यता को समझा जा सकता है।
- मृत्युंजय: शिव को मृत्युंजय यानी मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले कहा जाता है। वह उन सभी को आशीर्वाद देते हैं जो जीवन और मृत्यु के भय से मुक्त होना चाहते हैं। मृत्युंजय मंत्र शिव की स्तुति में जपा जाता है, जो दीर्घायु और जीवन के संकटों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
शिव का तीसरा नेत्र
शिव का तीसरा नेत्र उनके गहरे और अद्वितीय ज्ञान का प्रतीक है। उनके तीसरे नेत्र का खुलना, विनाश और पुनःसृजन दोनों का संकेत देता है।
- त्रिनेत्रधारी: शिव त्रिनेत्रधारी हैं, यानी उनके तीन नेत्र हैं। उनके तीसरे नेत्र का खुलना विनाश का प्रतीक है, परंतु यह विनाश नकारात्मक नहीं है, बल्कि यह पुरानी और बुरी चीजों को समाप्त करके नई शुरुआत की दिशा में ले जाता है। तीसरा नेत्र ज्ञान, विवेक और आंतरिक दृष्टि का प्रतीक है।
- कामदेव का भस्म होना: कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की, जिसके कारण शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। यह घटना बताती है कि शिव भौतिक इच्छाओं से परे हैं और मोह-माया उन्हें प्रभावित नहीं कर सकती।