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श्रीविष्णुपञ्जरस्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit

॥ हरिरुवाच ॥
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम् ।
नमोनमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम् ॥ १॥

प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः ।
गदां कौमोदकीं गृह्ण पद्मनाभ नमोऽस्त ते ॥ २॥

याम्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः ।
हलमादाय सौनन्दे नमस्ते पुरुषोत्तम ॥ ३॥

प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो ! त्वामह शरणं गतः ।
मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम् ॥ ४॥

उत्तरस्यां जगन्नाथ ! भवन्तं शरणं गतः ।
खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे ! ॥ ५॥

नमस्ते रक्ष रक्षोघ्न ! ऐशान्यां शरणं गतः ।
पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम् ॥ ६॥

प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्न्येय्यां रक्ष सूकर ।
चन्द्रसूर्यं समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा ॥ ७॥

नैरृत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन् ।
वैजयन्तीं सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम् ॥ ८॥

वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोऽस्तु ते ।
वैनतेयं समारुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन ! ॥ ९॥

मां रक्षस्वाजित सदा नमस्तेऽस्त्वपराजित ।
विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां त्वं रसातले ॥ १०॥

अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोऽस्तु ते ।
करशीर्षाद्यङ्गुलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम् ॥ ११॥

कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम ।
एतदुक्तं शङ्कराय वैष्णवं पञ्जरं महत् ॥ १२॥

पुरा रक्षार्थमीशान्याः कात्यायन्या वृषध्वज ।
नाशायामास सा येन चामरान्महिषासुरम् ॥ १३॥

दानवं रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान् ।
एतज्जपन्नरो भक्त्या शत्रून्विजयते सदा ॥ १४॥

इति श्रीगारुडे पूर्वखण्डे प्रथमांशाख्ये आचारकाण्डे
विष्णुपञ्जरस्तोत्रं नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥

Shri Vishnu Panjar Stotram in English

|| Hariruvacha || Pravakshyamyadhuna hyetadvaishnavam panjaram shubham | Namonamaste Govinda chakram grihya Sudarshanam || 1 ||

Prachyam rakshasva mam Vishno! Tvamaham sharanam gatah | Gadam Kaumodakim grihna Padmanabha namo’sta te || 2 ||

Yamyam rakshasva mam Vishno! Tvamaham sharanam gatah | Halamadaya Saunande namaste Purushottama || 3 ||

Pratichyam raksha mam Vishno! Tvamaha sharanam gatah | Musalam shatanam grihya Pundarikaksha raksha mam || 4 ||

Uttarasyam Jagannatha! Bhavantam sharanam gatah | Khadgamadaya charmatha astrashastradikam Hare! || 5 ||

Namaste raksha rakshoghna! Aishanyam sharanam gatah | Panchajanyam Mahashankhamanughoshyam cha pankajam || 6 ||

Pragrihya raksha mam Vishno Agnyeyyam raksha Sukara | Chandrasuryam samagrihya khadgam chandramasam tatha || 7 ||

Nairrityam mam cha rakshasva divyamurte Nrikesarin | Vaijayantim sampragrihya Shrivatsam kanthabhushanam || 8 ||

Vayavyam raksha mam Deva Hayagriva namo’stu te | Vainateyam samaruhya tvantarikshe Janardana! || 9 ||

Mam rakshasvaji sada namaste’stvaparajita | Vishalaksham samaruhya raksha mam tvam rasatale || 10 ||

Akupara namastubhyam Mahamina namo’stu te | Karashirshadyangulishu satya tvam bahupanjaram || 11 ||

Kritva rakshasva mam Vishno namaste Purushottama | Etaduktam Shankaraya Vaishnavam panjaram mahat || 12 ||

Pura raksharthamishanyah Katyayanya Vrishadhvaja | Nashayamasa sa yena chamarannmahishasuram || 13 ||

Danavam Raktabijam cha anyamshcha surakantakan | Etajjapannaro bhaktya shatrunvijayate sada || 14 ||

Iti Shri Garude Purvakhande Prathamamshakhye Acharakande Vishnupanjara Stotram nama trayodasho’dhyayah ||

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हरि द्वारा कही गई कथा

हरिरुवाच

हरि भगवान् ने कहा – “मैं अब आपको वैष्णव पञ्जर का वर्णन करता हूँ, जो अत्यंत शुभ है। गोविन्द को बार-बार नमस्कार करते हुए, सुदर्शन चक्र को धारण करें।”

दिशाओं की रक्षा

पूर्व दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे पूर्व दिशा में उनकी रक्षा करें। गोविन्द को शरण में जाकर, सुदर्शन चक्र और कौमोदकी गदा को धारण करें।

श्लोक १:

नमोनमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम्।
प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः। 
गदां कौमोदकीं गृह्ण पद्मनाभ नमोऽस्त ते॥ १॥

दक्षिण दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे दक्षिण दिशा में उनकी रक्षा करें। सौनन्दे हल को धारण करें और पुरुषोत्तम को नमस्कार करें।

श्लोक २:

याम्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः।
हलमादाय सौनन्दे नमस्ते पुरुषोत्तम॥ २॥

पश्चिम दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे पश्चिम दिशा में उनकी रक्षा करें। मुसल (गदा) और शातन को धारण करें और पुण्डरीकाक्ष को नमस्कार करें।

श्लोक ३:

प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो ! त्वामह शरणं गतः।
मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्॥ ३॥

उत्तर दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे उत्तर दिशा में उनकी रक्षा करें। खड्ग और चर्म को धारण करें, अस्त्र-शस्त्रों को धारण कर हरे! रक्षा करें।

श्लोक ४:

उत्तरस्यां जगन्नाथ ! भवन्तं शरणं गतः।
खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे ! ॥ ४॥

अन्य दिशाओं की रक्षा

ईशान दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे ईशान दिशा में रक्षा करें। पाञ्चजन्य और महाशंख को धारण करें।

श्लोक ५:

नमस्ते रक्ष रक्षोघ्न ! ऐशान्यां शरणं गतः।
पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम् ॥ ५॥

आग्नेय दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे आग्नेय दिशा में रक्षा करें। चन्द्र और सूर्य को धारण करें, चन्द्रमास खड्ग को धारण करें।

श्लोक ६:

प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्न्येय्यां रक्ष सूकर।
चन्द्रसूर्यं समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा ॥ ६॥

नैऋत्य दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे नैऋत्य दिशा में रक्षा करें। वैजयन्ती माला धारण करें और श्रीवत्स कण्ठभूषण को धारण करें।

श्लोक ७:

नैरृत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन्।
वैजयन्तीं सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम् ॥ ७॥

वायव्य दिशा की रक्षा

भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि वे वायव्य दिशा में रक्षा करें। हयग्रीव को नमस्कार करें और वैनतेय (गरुड़) को धारण करें।

श्लोक ८:

वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोऽस्तु ते।
वैनतेयं समारुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन ! ॥ ८॥

अंत में भगवान विष्णु से प्रार्थना

भगवान विष्णु से समस्त दिशाओं में रक्षा की प्रार्थना करते हुए यह ध्यान दिया जाता है कि वे सभी शत्रुओं का नाश करें। इस स्तोत्र का उच्चारण करते हुए भक्त अपनी रक्षा की प्रार्थना करता है और इस प्रकार वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।

श्लोक ९:

मां रक्षस्वाजित सदा नमस्तेऽस्त्वपराजित।
विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां त्वं रसातले ॥ ९॥

श्लोक १०:

अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोऽस्तु ते।
करशीर्षाद्यङ्गुलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम् ॥ १०॥

श्लोक ११:

कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम।
एतदुक्तं शङ्कराय वैष्णवं पञ्जरं महत् ॥ ११॥

स्तोत्र का महात्म्य

इस वैष्णव पञ्जर स्तोत्र का उपदेश शंकर भगवान ने किया था। इसका पाठ करने से सभी संकटों का नाश होता है। देवी कात्यायनी ने इसी स्तोत्र का उच्चारण करके महिषासुर और रक्तबीज जैसे दानवों का नाश किया था।

श्लोक १२:

पुरा रक्षार्थमीशान्याः कात्यायन्या वृषध्वज।
नाशायामास सा येन चामरान्महिषासुरम् ॥ १२॥

श्लोक १३:

दानवं रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान्।
एतज्जपन्नरो भक्त्या शत्रून्विजयते सदा ॥ १३॥

समाप्ति:

इति श्रीगारुडे पूर्वखण्डे प्रथमांशाख्ये आचारकाण्डे
विष्णुपञ्जरस्तोत्रं नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥

वैष्णव पञ्जर स्तोत्र का महत्त्व

स्तोत्र का अर्थ और महत्व

वैष्णव पञ्जर स्तोत्र एक दिव्य प्रार्थना है जिसमें भगवान विष्णु की आठों दिशाओं में रक्षा की प्रार्थना की जाती है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों और आयुधों को समर्पित है और यह दर्शाता है कि हर दिशा में विष्णु ही रक्षा करने वाले हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी दिशाओं से आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है और वह सुरक्षित रहता है।

दिशाओं की प्रतीकात्मकता

प्राचीन भारतीय परंपरा में दिशाओं का विशेष महत्व है। हर दिशा एक विशेष शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक होती है। इस स्तोत्र में भगवान विष्णु से आठों दिशाओं में सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। हर दिशा में विष्णु के विभिन्न आयुधों को धारण कर उनसे रक्षा की कामना की जाती है।

पूर्व दिशा: इस दिशा में भगवान पद्मनाभ को समर्पित किया गया है। गदा और चक्र को धारण कर, भगवान से इस दिशा की रक्षा की प्रार्थना की जाती है।

दक्षिण दिशा: दक्षिण दिशा में भगवान को हल और गदा के साथ प्रार्थना की जाती है। यह दिशा सामान्यतः मृत्यु और नाश की दिशा मानी जाती है, इसलिए भगवान को शरण में जाकर उनसे रक्षा की प्रार्थना की जाती है।

पश्चिम दिशा: भगवान विष्णु से मुसल और शातन को धारण कर इस दिशा की रक्षा की प्रार्थना की जाती है।

उत्तर दिशा: यह दिशा ज्ञान और प्रकाश की दिशा मानी जाती है। भगवान विष्णु से खड्ग और चर्म के साथ उत्तर दिशा की रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है।

वैष्णव पञ्जर की संरचना

इस स्तोत्र में भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों और उनके आयुधों का उल्लेख किया गया है। यह स्तोत्र बताता है कि भगवान विष्णु हर दिशा में अलग-अलग रूपों में उपस्थित रहते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं।

शंख: भगवान विष्णु के हाथ में पाञ्चजन्य शंख का वर्णन है, जो बुरी शक्तियों को दूर भगाता है।

सुदर्शन चक्र: यह भगवान का प्रमुख आयुध है जो सभी प्रकार के संकटों और शत्रुओं का नाश करता है।

गदा (कौमोदकी): यह गदा शक्ति और साहस का प्रतीक है, जो भक्तों की रक्षा के लिए भगवान के हाथ में रहती है।

पद्म (कमल): भगवान विष्णु का यह प्रतीक सौंदर्य और शांति का प्रतीक है, जो भक्तों के जीवन में संतुलन और शांति लाता है।

वैष्णव पञ्जर स्तोत्र का लाभ

संकटों से मुक्ति

इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। यह शत्रु, रोग, और अन्य विपत्तियों से रक्षा करता है।

मानसिक शांति

यह स्तोत्र मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति को आत्मविश्वास और साहस प्राप्त होता है।

आध्यात्मिक उन्नति

भगवान विष्णु की प्रार्थना करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। यह उसे भौतिक बंधनों से मुक्त करता है और उसे ईश्वर के निकट ले जाता है।

वैष्णव पञ्जर स्तोत्र का धार्मिक और पौराणिक संदर्भ

शंकर द्वारा उपदेशित

इस स्तोत्र का उपदेश स्वयं शंकर भगवान ने किया था। उन्होंने इसे भक्तों को सुरक्षा प्रदान करने और उन्हें सभी प्रकार की विपत्तियों से बचाने के लिए दिया था।

देवी कात्यायनी की विजय

देवी कात्यायनी ने इसी स्तोत्र का पाठ कर महिषासुर, रक्तबीज और अन्य दानवों का नाश किया था। यह दर्शाता है कि यह स्तोत्र अति शक्तिशाली है और इसके पाठ से सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

वैष्णव पञ्जर स्तोत्र का पाठ कैसे करें

उचित समय और स्थान

इस स्तोत्र का पाठ सुबह या शाम के समय, स्वच्छ और शांत वातावरण में करना चाहिए। इसे एकाग्रता और भक्ति भाव से करना चाहिए।

पाठ की विधि

  1. सबसे पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें और उन्हें समर्पित होकर उनकी प्रार्थना करें।
  2. इस स्तोत्र का पाठ शांत मन से, बिना किसी जल्दबाजी के करें।
  3. हर श्लोक के बाद भगवान विष्णु के नाम का जाप करें और उनसे रक्षा की प्रार्थना करें।

पाठ के नियम

  1. पाठ करते समय शरीर और मन को पवित्र रखें।
  2. पाठ के बाद भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

निष्कर्ष

वैष्णव पञ्जर स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है और वह मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करता है। भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों और आयुधों का यह स्तोत्र उनके अनंत स्वरूप की ओर संकेत करता है और हमें यह सिखाता है कि ईश्वर सदैव हमारे साथ हैं, हमें केवल उन पर विश्वास करना चाहिए।

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