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तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया – भजन (Teri Surat Pe Jaun Balihari Rasiya)

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तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

ओड़ के आई मैं तो लाल चुनारिया,
मटकी उठा के मैं तो, बन गयी गुजरिया ।
मैं तो कर आई सोला श्रृंगार रसिया,
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

तेरे पीछे मैं तो आई हूँ अकेली,
बड़े गोप की नयी नवेली।
आई हूँ करने मनोहार रसिया,
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

जब से लगी है तेरी लगनवा,
बिसर गयो मोहे घर आंगनवा ।
मैं तो छोड़ आई सारा संसार रसिया,
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया
मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया ॥

तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया – गहन विश्लेषण और अर्थ

परिचय

यह भजन केवल भक्ति रस का सादृश्य नहीं है; यह एक भक्त की आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन है। भजन में प्रत्येक पंक्ति भक्त और भगवान के बीच के गहरे भावात्मक और दार्शनिक संबंध को उजागर करती है। यह भजन राधा-कृष्ण की दिव्य लीला का प्रतीक है, लेकिन इसके साथ-साथ यह एक भक्त के परमात्मा से मिलन की आकांक्षा को भी प्रकट करता है। आइए, इस भजन को गहराई से समझें।

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तेरी सूरत पे जाऊं बलिहार रसिया

गहरा अर्थ:
भक्त भगवान की सुंदरता और उनके दिव्य रूप पर मोहित हो जाती है।

  • तेरी सूरत: केवल भगवान का बाहरी स्वरूप नहीं, बल्कि उनकी आंतरिक सुंदरता, दया, और करूणा का प्रतिबिंब है।
  • बलिहार: यह त्याग और समर्पण का चरम रूप है। भक्त स्वयं को मिटाकर भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की बात करती है। यह पंक्ति दर्शाती है कि भक्त भगवान के हर रूप और हर कार्य के प्रति नतमस्तक है।
  • रसिया: भगवान के इस संबोधन में प्रेम और मस्ती का भाव है। यह नाम भगवान कृष्ण के मधुर और रसीले व्यक्तित्व का प्रतीक है।

मैं तो नाचूंगी तेरे दरवार रसिया

गहरा अर्थ:
भक्त का यह कथन आध्यात्मिक आनंद का प्रतीक है।

  • नाचना: भक्ति की चरम स्थिति है, जिसमें आत्मा और शरीर दोनों आनंद में लीन हो जाते हैं। नृत्य केवल बाहरी अभिव्यक्ति नहीं है, यह आत्मा की मुक्त अवस्था को दर्शाता है।
  • तेरे दरवार: यह पंक्ति उस अद्वितीय स्थान की ओर संकेत करती है जहां भक्त और भगवान का मिलन होता है। यह स्थान बाहरी मंदिर नहीं, बल्कि भक्त का अंतर्मन है।

ओड़ के आई मैं तो लाल चुनारिया, मटकी उठा के मैं तो, बन गयी गुजरिया

गहरा अर्थ:
यह पंक्ति राधा और गोपियों के माध्यम से भक्त के आध्यात्मिक प्रेम को दर्शाती है।

  • लाल चुनारिया: यह केवल वस्त्र नहीं, बल्कि प्रेम, ऊर्जा, और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। भक्त ने लाल चुनरिया पहनकर खुद को भगवान की प्रेमिका के रूप में तैयार किया है।
  • मटकी: मटकी यहाँ जीवन के दैनिक संघर्षों और उत्तरदायित्वों का प्रतीक है।
  • गुजरिया बनना: भगवान की गोपियों की तरह साधारण जीवन जीते हुए भी आध्यात्मिक प्रेम में रत रहना। यह पंक्ति सिखाती है कि सांसारिक कार्य करते हुए भी भक्ति में लीन रह सकते हैं।
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मैं तो कर आई सोला श्रृंगार रसिया

गहरा अर्थ:
“सोला श्रृंगार” का गूढ़ अर्थ भक्ति के विभिन्न रूपों और स्तरों से है।

  • श्रृंगार: बाहरी सजावट नहीं, बल्कि आत्मा का शुद्धिकरण और भगवान के प्रति सजगता का प्रतीक है।
  • भक्त ने अपने मन, बुद्धि, और आत्मा को भगवान के लिए तैयार किया है।

तेरे पीछे मैं तो आई हूँ अकेली, बड़े गोप की नयी नवेली

गहरा अर्थ:
यह पंक्ति आत्मा के स्वतंत्र रूप से भगवान की ओर यात्रा को व्यक्त करती है।

  • अकेली आना: भक्त के आत्मा की स्वतंत्रता। इस पंक्ति में इस बात पर बल दिया गया है कि सच्ची भक्ति के मार्ग में आत्मा अकेली होती है। यह यात्रा व्यक्तिगत और आंतरिक होती है।
  • नयी नवेली: यह केवल भौतिक विवाह का प्रतीक नहीं है, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का गूढ़ संकेत है।

आई हूँ करने मनोहार रसिया

गहरा अर्थ:
भक्त कहती है कि वह भगवान को प्रसन्न करने आई है।

  • मनोहार: मन को हरने वाली भक्ति। यह पंक्ति भगवान और भक्त के बीच के आपसी प्रेम को दर्शाती है, जहां भगवान भक्त को स्वीकार करते हैं और भक्त उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करती है।

जब से लगी है तेरी लगनवा, बिसर गयो मोहे घर आंगनवा

गहरा अर्थ:
यह पंक्ति भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाती है।

  • तेरी लगन: भगवान के प्रति लगन साधारण प्रेम नहीं है, यह आत्मा का अपने स्रोत की ओर खिंचाव है।
  • घर आंगन भूल जाना: सांसारिक बंधनों से मुक्ति। भक्त सांसारिक सुख-दुख को त्यागकर केवल भगवान की ओर बढ़ती है।

मैं तो छोड़ आई सारा संसार रसिया

गहरा अर्थ:
यह पंक्ति आत्मा के परमात्मा में विलय का प्रतीक है।

  • संसार छोड़ना: यह किसी भौतिक चीज़ का त्याग नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक बंधनों से मुक्ति है। यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति के लिए संसार का मोह त्यागना आवश्यक है।
  • यह पंक्ति बताती है कि जब भक्त अपने सभी मोह, अहंकार, और इच्छाओं को त्याग देता है, तभी वह भगवान के सच्चे प्रेम का अनुभव कर सकता है।
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समापन

यह भजन भक्त और भगवान के बीच के प्रेम का अद्वितीय वर्णन है। यह सिखाता है कि भक्ति का अर्थ केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि आत्मा का पूर्ण समर्पण है। भजन के हर शब्द में प्रेम, त्याग, और आनंद का भाव गहराई से छिपा है।
भजन हमें सिखाता है कि जब तक हम अपने अहंकार और मोह को त्यागकर भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण नहीं करते, तब तक सच्ची भक्ति का अनुभव संभव नहीं है।

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