विश्वकर्मा चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा ॥
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं,
चरणकमल धरिध्यान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,
दीजै दया निधान ॥
॥ चौपाई ॥
जय श्री विश्वकर्म भगवाना ।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी ।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर ।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥ ४ ॥
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं ।
कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥
एकानन पंचानन राजे ।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥ ८ ॥
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।
नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
दसवां हस्त बरद जग हेतु ।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥ १२ ॥
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।
अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।
तुम सबकी पूरण की आशा ॥
भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।
सतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥ १६ ॥
अमृत घट के तुम निर्माता ।
साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।
इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
खान-पान हित भाजन नाना ।
भवन विभिषत विविध विधाना ॥ २० ॥
विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।
विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।
विविध महा औषधि सविवेका ॥
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥ २४ ॥
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।
कियउ काज सब भये अशोका ॥
अद्भुत रचे यान मनहारी ।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।
विज्ञान कह अंतर नाही ॥
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥ २८ ॥
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।
तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
मंगल-मूल भगत भय हारी ।
शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
चारो युग परताप तुम्हारा ।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥ ३२ ॥
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।
सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।
हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।
विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥ ३६ ॥
इक सौ आठ जाप कर जोई ।
छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा ।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
मैं हूं सदा उमापति चेरा ।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस,
विश्वकर्मा शिवरूप ।
श्री शुभदा रचना सहित,
ह्रदय बसहु सूर भूप ॥
Vishwakarma Chalisa in English
॥ Doha ॥
Shree Vishwakarma Prabhu vandaoon,
Charankamal dharidyaan.
Shree, shubh, bal aru shilpagun,
Deejai daya nidhaan.
॥ Chaupai ॥
Jai Shree Vishwakarma Bhagwana.
Jai Vishwaeshwar kripa nidhaana.
Shilpaacharya param upakaari.
Bhuvana-putra naam chhavikaari.
Ashtambasu Prabhas-sut naagar.
Shilpajnaan jag kiyao ujagar.
Adbhut sakal srishti ke karta.
Satya gyaan shruti jag hit dharta. 4
Atul tej tumhto jag maahi.
Koi vishwa maanh jaanat naahi.
Vishwa srishti-karta Vishwesha.
Adbhut varan viraj suvesha.
Ekaanana panchanana raaje.
Dvibhuja chaturbhuja dashabhuja saaje.
Chakra Sudarshan dhaaran kinne.
Vaari kamandal var kar linhe. 8
Shilpashastra aru shankh anoopa.
Sohat sutra maap anuroopa.
Dhanush baan aru trishool sohe.
Nauvein haath kamal man mohe.
Dasavaan hast barad jag hetu.
Ati bhav sindhu maanh var setu.
Suraj tej haran tum kiyao.
Astra shastra jisse nirmayo. 12
Chakra shakti aru trishool eka.
Dand paalki shastra aneka.
Vishnuhin chakra shool Shankarhin.
Ajahin shakti dand Yamrajhin.
Indrahin vajra va Varunhin paasha.
Tum sabki pooran ki aasha.
Bhanti-bhanti ke astra rachaye.
Satpath ko Prabhu sada bachaye. 16
Amrit ghat ke tum nirmaata.
Sadhu sant bhaktan sur traata.
Lauh kasht taamr pashaana.
Swarn shilp ke param sajaana.
Vidyut agni pavan bhoo vaari.
Inse adbhut kaaj savaari.
Khaan-paan hit bhaajan naana.
Bhavan vibhishat vividha vidhana. 20
Vivid vast hit yatra apaar.
Virachehu tum samast sansaar.
Dravya sugandhit suman aneka.
Vivid maha aushadhi saviveka.
Shambhu viranchi Vishnu surpaala.
Varun Kuber Agni Yamakala.
Tumhare dhig sab milkar gayao.
Kari pramaan puni astuti thyao. 24
Bhe aatur Prabhu lakhi sur-shoka.
Kiyao kaaj sab bhaye ashoka.
Adbhut rache yaan manhaari.
Jal-thal-gagan maanh-samchaari.
Shiv aru Vishwakarma Prabhu maanh.
Vigyaan kah antar naahi.
Barnai kaun swaroop tumhaara.
Sakal srishti hai tav vistaara. 28
Rachet vishwa hit trividh shareera.
Tum bin harai kaun bhav haari.
Mangal-mool bhagat bhay haari.
Shok rahit trailok vihaari.
Charo yug pratap tumhaara.
Ahai prasiddha vishwa ujiyaara.
Riddhi Siddhi ke tum var daata.
Var vigyaan ved ke gyaata. 32
Manu May Tvashta shilpi taksha.
Sabki nit kartein hain raksha.
Panch putra nit jag hit dharma.
Havai nishkaam karai nij karma.
Prabhu tum sam kripal nahi koi.
Vipda harai jagat maanh joi.
Jai Jai Jai Bhavan Vishwakarma.
Karahu kripa Gurudev Sudharma. 36
Ik sau aath jaap kar joi.
Cheejai vipatti mahasukh hoi.
Padhaai jo Vishwakarma-chaaleesa.
Hoy siddh sakshi Gaurisha.
Vishwa Vishwakarma Prabhu mere.
Ho prasanna hum baalak tere.
Main hoon sada Umapati chera.
Sada karo Prabhu man maanh dera. 40
॥ Doha ॥
Karahu kripa Shankar saris,
Vishwakarma shivaroop.
Shree shubhda rachna sahit,
Hriday basahu soor bhoot.
श्री विश्वकर्मा चालीसा PDF Download
श्री विश्वकर्मा चालीसा का विस्तारपूर्वक अर्थ और व्याख्या
श्री विश्वकर्मा चालीसा एक दिव्य स्तुति है, जिसमें भगवान विश्वकर्मा की महिमा का गुणगान किया गया है। भगवान विश्वकर्मा सृष्टि के निर्माता और शिल्पकला के ज्ञाता हैं। वे ब्रह्मांड में हर वस्तु के सृजनकर्ता माने जाते हैं। उनकी कृपा से शिल्पकला और वास्तु के अद्भुत कौशल की प्राप्ति होती है। इस चालीसा का नियमित पाठ व्यक्ति को सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करता है। आइए, अब प्रत्येक दोहा और चौपाई का विस्तार से वर्णन करें।
दोहा
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं,
चरणकमल धरिध्यान।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,
दीजै दया निधान॥
इस दोहे में भगवान विश्वकर्मा की महिमा का बखान करते हुए भक्त उनके चरणकमलों में ध्यान लगाते हैं। भगवान विश्वकर्मा की कृपा से व्यक्ति को चार प्रमुख वरदान प्राप्त होते हैं:
- श्री: जो लक्ष्मी का रूप है, इसका तात्पर्य धन, वैभव, और संपन्नता से है।
- शुभ: यह जीवन में सुख-शांति, सफलता, और सौभाग्य को दर्शाता है।
- बल: शारीरिक और मानसिक शक्ति जो जीवन के कठिनाइयों को सहन करने में सहायक होती है।
- शिल्पगुण: निर्माण और सृजन की अद्वितीय कला और कौशल, जिससे व्यक्ति अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।
दया निधान भगवान विश्वकर्मा से यह सभी वरदान भक्त के जीवन में मांगता है ताकि उसका जीवन सुखद और सृजनात्मक हो सके।
चौपाई 1-4: भगवान विश्वकर्मा की स्तुति
जय श्री विश्वकर्म भगवाना।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना॥
यह चौपाई भगवान विश्वकर्मा की जय-जयकार करती है। उन्हें विश्वेश्वर कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे पूरे विश्व के स्वामी हैं। उन्हें कृपा निधाना कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे कृपा का भंडार हैं। भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से कोई भी कार्य कठिन नहीं होता, वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बरसाते हैं।
शिल्पाचार्य परम उपकारी।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी॥
इस पंक्ति में भगवान विश्वकर्मा को शिल्पाचार्य कहा गया है, जिसका अर्थ है शिल्पकला और वास्तुकला के महान आचार्य। वे परम उपकारी हैं, जो सदैव अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। उनके सृजन से संसार की सुंदरता बढ़ती है। यहां उनका परिचय एक भुवना-पुत्र (सृष्टि के पुत्र) के रूप में किया गया है, जिन्होंने अपने सृजन से संसार को सुंदरता और चमत्कार से भर दिया।
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर॥
यहां भगवान विश्वकर्मा को अष्टम बसु (आठवें वसु) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। वसु हिंदू धर्म में प्राकृतिक शक्तियों के देवता माने जाते हैं, और भगवान विश्वकर्मा का यहां वसु के रूप में उल्लेख उनकी अद्भुत शिल्पकला और निर्माण की क्षमताओं को दर्शाता है। शिल्पज्ञान का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उन्होंने अपने सृजन और शिल्पकला से पूरी दुनिया को प्रकाशित किया है, अर्थात उनके द्वारा बनाए गए निर्माण आज भी अद्वितीय माने जाते हैं।
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता॥
यह चौपाई भगवान विश्वकर्मा को अद्भुत सृष्टिकर्ता के रूप में वर्णित करती है। उन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया है, और वे सत्य ज्ञान के धारणकर्ता हैं। उनका ज्ञान वेदों (श्रुति) के रूप में संसार को मिला है, जो हर युग में मानवता का मार्गदर्शन करता है। वे न केवल निर्माणकर्ता हैं, बल्कि सत्य और ज्ञान के आधार पर सृष्टि को संचालित करने वाले भी हैं।
चौपाई 5-8: भगवान का अद्भुत स्वरूप
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं।
कोई विश्व मंह जानत नाही॥
इस चौपाई में भगवान विश्वकर्मा की अद्वितीय तेजस्विता की बात की गई है। उनका तेज इतना अपार है कि कोई भी इसे पूरी तरह से समझ नहीं सकता। उनके तेज से संपूर्ण जगत प्रकाशित होता है, लेकिन उनकी वास्तविक महिमा को कोई समझ नहीं पाता।
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा॥
यहां भगवान विश्वकर्मा को विश्व सृष्टिकर्ता कहा गया है, यानी वे पूरे संसार के निर्माता हैं। वे सृजन के महारथी हैं। उनके रूप की महिमा भी अद्भुत है। उनका स्वरूप ऐसा है जो सृष्टि को अद्भुत रूप से सुशोभित करता है। उनके वस्त्र, आभूषण और अस्त्र-शस्त्र उनके दैवीय स्वरूप को और अधिक चमकदार बनाते हैं।
एकानन पंचानन राजे।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे॥
भगवान विश्वकर्मा का स्वरूप बहुत विविध है। वे कई रूपों में प्रकट होते हैं, कभी एकानन (एक मुख), कभी पंचानन (पाँच मुख) होते हैं। इसी तरह उनके हाथों की संख्या भी बदलती रहती है, कभी द्विभुज (दो भुजाएँ), कभी चतुर्भुज (चार भुजाएँ), और कभी दशभुज (दस भुजाएँ)। हर रूप में वे विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए होते हैं, जो उनकी शक्ति और महिमा को दर्शाते हैं।
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे॥
भगवान विश्वकर्मा के हाथों में सुदर्शन चक्र और कमंडल धारण होते हैं। चक्र सुदर्शन का अर्थ है संसार का संचालन करना और कमंडल से वे जगत में अमृत की वर्षा करते हैं। ये दोनों वस्त्र उनकी दैवीय शक्तियों का प्रतीक हैं, जिनसे वे सृष्टि की रक्षा और पालन करते हैं।
चौपाई 9-12: भगवान की अनंत शक्तियाँ
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा॥
यहां भगवान विश्वकर्मा की शिल्पकला का बखान किया गया है। उनके पास अद्वितीय शिल्पशास्त्र का ज्ञान है और उनके हाथ में शंख धारण है, जो निर्माण और सृजन की पवित्रता को दर्शाता है। उनके पास मापने के सूत्र और यंत्र भी हैं, जिनसे वे निर्माण कार्य को सटीकता से संचालित करते हैं। उनके पास हर वस्त्र, यंत्र और औजार होते हैं, जो उनके निर्माण के कौशल का प्रमाण हैं।
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे।
नौवें हाथ कमल मन मोहे॥
भगवान के हाथों में विभिन्न प्रकार के शस्त्र होते हैं, जैसे धनुष, बाण, और त्रिशूल। इन शस्त्रों से वे सृष्टि की रक्षा करते हैं। उनके नौवें हाथ में कमल होता है, जो सौंदर्य, शांति और ज्ञान का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि वे शक्ति और सौंदर्य दोनों का समन्वय रखते हैं।
दसवां हस्त बरद जग हेतु।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु॥
उनके दसवें हाथ में वरदान देने की शक्ति है, जिससे वे संसार को जीवनदायिनी शक्तियाँ प्रदान करते हैं। वे भवसागर (जीवन के समुद्र) में सेतु के समान हैं, जो अपने भक्तों को विपत्तियों और कठिनाइयों से पार ले जाते हैं। उनके आशीर्वाद से भक्त जीवन की हर बाधा को आसानी से पार कर सकते हैं।
सूरज तेज हरण तुम कियऊ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ॥
भगवान विश्वकर्मा ने अपने कौशल से सूर्य के तेज को नियंत्रित किया है और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र बनाए हैं। उनके द्वारा बनाए गए शस्त्रों से देवता और अन्य दिव्य शक्तियाँ सृष्टि की रक्षा करती हैं। उन्होंने सभी प्रकार के शस्त्रों और अस्त्रों का निर्माण किया है, जो युद्ध और रक्षा में सहायक होते हैं।
चौपाई 13-16: विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका॥
भगवान विश्वकर्मा ने विविध प्रकार के शस्त्रों का निर्माण किया है, जिनमें चक्र, शक्ति, त्रिशूल, दण्ड, और पालकी शामिल हैं। इन शस्त्रों का निर्माण उन्होंने देवताओं की रक्षा और युद्ध में सहायता के लिए किया है।
चौपाई 17-20: विश्वकर्मा द्वारा किए गए निर्माण और आविष्कार
अमृत घट के तुम निर्माता।
साधु संत भक्तन सुर त्राता॥
भगवान विश्वकर्मा को अमृत के घट का निर्माता माना गया है। उन्होंने उस घट का निर्माण किया, जिसमें अमृत रखा गया था, जिससे देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि विश्वकर्मा न केवल भौतिक निर्माणकर्ता हैं, बल्कि दिव्य शक्तियों के धारक और पोषक भी हैं। वे देवताओं के साथ-साथ साधु, संत, और भक्तों की भी रक्षा करते हैं।
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना॥
भगवान विश्वकर्मा ने विभिन्न धातुओं और सामग्री जैसे लौह (लोहे), काष्ट (लकड़ी), ताम्र (तांबा), पाषाण (पत्थर), और स्वर्ण (सोना) का उपयोग करके अद्भुत निर्माण किए। वे सभी प्रकार की वस्तुएं—चाहे वह धातु से बनी हो या लकड़ी से—बनाने में सक्षम हैं। उनका ज्ञान और शिल्पकला इन सामग्रियों को सुंदर और उपयोगी वस्त्रों में परिवर्तित कर देती है।
विद्युत अग्नि पवन भू वारी।
इनसे अद्भुत काज सवारी॥
भगवान विश्वकर्मा ने विद्युत (बिजली), अग्नि (आग), पवन (हवा), भूमि (पृथ्वी), और वारी (जल) के तत्वों का भी उपयोग किया है। इन प्राकृतिक तत्वों से वे अद्भुत कार्य और निर्माण करते हैं। यह पंक्ति यह बताती है कि भगवान विश्वकर्मा का ज्ञान केवल भौतिक विज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि वे प्राकृतिक तत्वों का भी विशेषज्ञता से उपयोग करते हैं।
खान-पान हित भाजन नाना।
भवन विभिषत विविध विधाना॥
भगवान विश्वकर्मा ने खाने-पीने के लिए विभिन्न प्रकार के बर्तन, उपकरण, और आवास के निर्माण भी किए हैं। उन्होंने घरों, महलों, और मंदिरों का निर्माण किया है, जो उनकी निर्माण कला की महानता का प्रमाण हैं। इस पंक्ति में यह भी बताया गया है कि वे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक हर चीज़ को बनाने में सक्षम हैं, चाहे वह घरेलू उपयोग की वस्तुएं हों या बड़े-बड़े भवन।
चौपाई 21-24: दिव्य और भौतिक संसार में उनकी भूमिका
विविध वस्त्र हित यंत्रं अपारा।
विरचेहु तुम समस्त संसारा॥
भगवान विश्वकर्मा ने दुनिया में अनेकों प्रकार के वस्त्र और यंत्र बनाए हैं, जिनसे समस्त संसार की संरचना की गई है। उन्होंने यंत्रों के निर्माण से विज्ञान और तकनीकी प्रगति को भी गति दी है। वे पूरे संसार के सृजनकर्ता हैं और उनके द्वारा बनाए गए यंत्र आज भी विज्ञान और कला के विकास के प्रतीक हैं।
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका।
विविध महा औषधि सविवेका॥
भगवान विश्वकर्मा ने विविध प्रकार के सुगंधित द्रव्यों, फूलों, और औषधियों का निर्माण भी किया है। यह दर्शाता है कि वे केवल भौतिक वस्त्रों के निर्माण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि चिकित्सा और औषधि विज्ञान में भी उनका योगदान है। उनकी औषधियों का ज्ञान संसार को स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है।
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला॥
यहां भगवान विश्वकर्मा को प्रमुख देवताओं के साथ स्थान दिया गया है। शंभु (भगवान शिव), विरंचि (ब्रह्मा), और विष्णु (पालनहार) के साथ उनका भी नाम लिया गया है। इसके अलावा, वरुण, कुबेर, अग्नि, और यमराज भी उनके साथ जुड़ते हैं, जो उनके महत्व और सम्मान को दर्शाता है। यह पंक्ति यह बताती है कि सभी प्रमुख देवता भी उनके सामने नतमस्तक होते हैं और उनके द्वारा बनाए गए यंत्र और शस्त्रों का उपयोग करते हैं।
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ॥
यह चौपाई यह बताती है कि सभी देवता भगवान विश्वकर्मा के पास जाकर उनकी स्तुति करते हैं और उनके सृजन के लिए उन्हें नमन करते हैं। वे उनके निर्माण और शिल्पकला के अद्भुत कौशल की प्रशंसा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
चौपाई 25-28: भगवान के दिव्य और अविश्वसनीय निर्माण
अद्भुत रचे यान मनहारी।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी॥
भगवान विश्वकर्मा ने अद्भुत यान (वाहन) बनाए हैं, जो जल, थल, और गगन (आकाश) में समान रूप से चल सकते हैं। यह दर्शाता है कि वे केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि आकाश और जल में भी आवागमन के साधनों का निर्माण कर सकते हैं। उनके द्वारा बनाए गए यान और उपकरण आज भी विज्ञान और तकनीकी विकास के प्रतीक हैं।
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही।
विज्ञान कह अंतर नाही॥
यहां भगवान शिव और विश्वकर्मा को एक ही माना गया है। उनके बीच कोई अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों ही सृष्टि के निर्माता और विज्ञान के ज्ञाता हैं। यह पंक्ति यह दर्शाती है कि भगवान विश्वकर्मा के ज्ञान का स्तर भगवान शिव के समान है और वे विज्ञान और निर्माण की अद्वितीय शक्तियों के धारक हैं।
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा॥
इस चौपाई में कहा गया है कि भगवान विश्वकर्मा के स्वरूप का वर्णन करना असंभव है, क्योंकि उनकी सृष्टि इतनी विशाल और विस्तृत है कि उसे मापना कठिन है। उन्होंने समस्त सृष्टि का निर्माण किया है, और उनकी महिमा और स्वरूप का सही रूप से वर्णन करना किसी के लिए संभव नहीं है।
चौपाई 29-32: भगवान विश्वकर्मा के वरदान और शक्तियाँ
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा।
तुम बिन हरै कौन भव हारी॥
भगवान विश्वकर्मा ने तीन प्रकार के शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म और कारण) का निर्माण किया है, जो विश्व के कल्याण के लिए हैं। उन्होंने इन शरीरों को संसार के संचालन के लिए बनाया है और उनके बिना इस संसार को चलाना असंभव है। वे भवसागर से पार करने वाले हैं, और उनके बिना संसार का कल्याण नहीं हो सकता।
मंगल-मूल भगत भय हारी।
शोक रहित त्रैलोक विहारी॥
भगवान विश्वकर्मा मंगल-मूल हैं, यानी वे सभी प्रकार के शुभ कार्यों के मूल कारण हैं। वे अपने भक्तों के सभी भय और कष्टों को हरते हैं। वे त्रैलोक (तीनों लोक) में विहार करते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।
चारो युग परताप तुम्हारा।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा॥
भगवान विश्वकर्मा का पराक्रम और महिमा चारों युगों में प्रसिद्ध है। उनका यश और कीर्ति पूरे संसार में उजागर है। वे सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलियुग—चारों युगों में पूजनीय और विख्यात हैं।
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता॥
भगवान विश्वकर्मा ऋद्धि और सिद्धि के वरदाता हैं। वे अपने भक्तों को समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद देते हैं। उनके पास वेदों का पूर्ण ज्ञान है और वे विज्ञान के भी ज्ञाता हैं। उनके आशीर्वाद से भक्तों को ज्ञान, विज्ञान, और शिल्पकला की प्राप्ति होती है।
चौपाई 33-36: भगवान विश्वकर्मा की दिव्य शक्तियों का विस्तार
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा।
सबकी नित करतें हैं रक्षा॥
भगवान विश्वकर्मा को यहाँ “मनु मय” और “त्वष्टा” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे मनुष्यों और देवताओं के कारीगर हैं। उन्होंने प्रत्येक वस्त्र, यंत्र और अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया है। शिल्पी और तक्षा का मतलब यह है कि वे शिल्पकला के प्रमुख आचार्य और विशेषज्ञ हैं, जो न केवल कारीगरी में माहिर हैं, बल्कि हर प्रकार की निर्माण कला में निपुण हैं। वे सभी प्राणियों की रक्षा करते हैं और हर सृजनात्मक कार्य में योगदान देते हैं।
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा।
हवै निष्काम करै निज कर्मा॥
भगवान विश्वकर्मा के पांच पुत्र बताए गए हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं और सृष्टि के कल्याण के लिए काम करते हैं। वे सभी अपने-अपने कार्यों में निपुण हैं और भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से निरंतर जगत की सेवा में लगे रहते हैं। उनका कार्य निष्काम कर्म (निःस्वार्थ भाव से कर्म) के सिद्धांत पर आधारित होता है, यानी वे किसी फल की इच्छा किए बिना सृष्टि के निर्माण और कल्याण में जुटे रहते हैं।
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई।
विपदा हरै जगत मंह जोई॥
भगवान विश्वकर्मा को सबसे कृपालु देवता कहा गया है, जो अपने भक्तों की हर विपत्ति और दुखों को दूर करते हैं। उनके जैसा कोई और दयालु और कृपालु नहीं है। वे अपने आशीर्वाद से अपने भक्तों को विपत्तियों से मुक्त करते हैं और उन्हें जीवन में समृद्धि और सुख प्रदान करते हैं। भक्त इस पंक्ति के माध्यम से उन्हें अपनी समस्याओं से उबारने की प्रार्थना करते हैं।
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा॥
इस पंक्ति में भगवान विश्वकर्मा की विजय की घोषणा की गई है। भक्त उन्हें भौवन विश्वकर्मा (विश्व के कर्ता) के रूप में सम्बोधित करते हुए उनकी महिमा का गान करते हैं। वे उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे सदैव उनके जीवन में सुधर्मा (सही मार्ग और धर्म) का पालन करने में मदद करें। यहां पर गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि भगवान विश्वकर्मा को गुरु के रूप में मान्यता दी गई है, जो ज्ञान, विज्ञान, और शिल्पकला का पाठ पढ़ाते हैं।
भगवान विश्वकर्मा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
भगवान विश्वकर्मा को पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व दिया गया है। हिंदू धर्म की विभिन्न कथाओं में उनके अद्वितीय कार्यों का उल्लेख किया गया है:
- स्वर्ग लोक का निर्माण: भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग का निर्माण किया, जिसे देवताओं के रहने के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता है। स्वर्ग को इतना सुंदर और अद्भुत बनाया गया कि उसे आज भी आदर्श भवन के रूप में देखा जाता है।
- लंकापुरी का निर्माण: रावण की लंका, जिसे सोने की लंका कहा जाता है, का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। यह उनकी शिल्पकला और वास्तुकला के अद्वितीय कौशल का प्रतीक है।
- द्वारका का निर्माण: श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने किया था। द्वारका एक ऐसी नगरी थी, जिसे समुद्र के किनारे बनाया गया था और उसकी स्थापत्य कला को आज भी सराहा जाता है।
- अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण: भगवान विश्वकर्मा ने अनेक दिव्य अस्त्रों और शस्त्रों का निर्माण किया, जिनका उपयोग देवताओं ने असुरों के साथ युद्ध में किया। सुदर्शन चक्र, त्रिशूल, वज्र आदि शस्त्र उनके शिल्प कौशल के अद्वितीय नमूने हैं।
- हस्तशिल्प और तकनीकी विकास: भगवान विश्वकर्मा को आज के आधुनिक युग में भी इंजीनियरों, आर्किटेक्ट्स और तकनीकी विशेषज्ञों का संरक्षक माना जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से निर्माण, निर्माण सामग्री, तकनीकी विकास और औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े लोग करते हैं।
चौपाई 37-40: विश्वकर्मा चालीसा का आशीर्वाद और लाभ
इक सौ आठ जाप कर जोई।
छीजै विपत्ति महासुख होई॥
यहां भगवान विश्वकर्मा की चालीसा को जपने के लाभ का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि अगर कोई भक्त 108 बार इस चालीसा का जाप करता है, तो उसकी सभी विपत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं और उसे महान सुख की प्राप्ति होती है। यह संख्या हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाती है और इसके जप से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, और सफलता आती है।
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा॥
इस पंक्ति में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करता है, उसे हर कार्य में सफलता मिलती है। यहां भगवान शिव (गौरीशा) को इसका साक्षी माना गया है, जो स्वयं भगवान विश्वकर्मा के प्रति अपनी श्रद्धा रखते हैं। भगवान शिव के आशीर्वाद से ही भक्त को सिद्धि की प्राप्ति होती है।
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे॥
यह पंक्ति भक्त की भावनाओं को व्यक्त करती है, जिसमें वह भगवान विश्वकर्मा से प्रार्थना करता है कि वे उन पर प्रसन्न हों। भक्त स्वयं को भगवान का बालक मानता है और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करता है। वह भगवान विश्वकर्मा से सदा के लिए उनके जीवन में स्थान देने की प्रार्थना करता है।
मैं हूं सदा उमापति चेरा।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा॥
यह पंक्ति भक्त की समर्पण भावना को दर्शाती है। वह कहता है कि वह सदा भगवान शिव (उमापति) का चेरा (भक्त) रहेगा और भगवान विश्वकर्मा से प्रार्थना करता है कि वे हमेशा उसके मन में वास करें। यह समर्पण और भक्ति का प्रतीक है, जो भक्त भगवान के प्रति अपने पूर्ण समर्पण को दर्शाता है।
दोहा (समाप्ति)
करहु कृपा शंकर सरिस,
विश्वकर्मा शिवरूप।
श्री शुभदा रचना सहित,
ह्रदय बसहु सूर भूप॥
यह अंतिम दोहा भगवान विश्वकर्मा की कृपा की प्रार्थना करता है। भक्त भगवान शिव और विश्वकर्मा को एक ही मानकर उनसे कृपा की याचना करता है। वह उनसे प्रार्थना करता है कि वे उसके हृदय में हमेशा वास करें और उसे सुख, समृद्धि, और शुभता का आशीर्वाद दें। इस दोहे के माध्यम से भक्त भगवान विश्वकर्मा से जीवनभर सुख-शांति और ज्ञान की कामना करता है।