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नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो
दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌ ।
अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌ ॥

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌ ।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌ ॥

अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌ ।
कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌ ॥

गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर ।
सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय ॥

बेलपत्र / बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च

नमो बिल्ल्मिने च: यहां ‘बिल्ल्मिने’ का अर्थ होता है उस देवता के प्रति नमन या प्रणाम, जो सुरक्षा या रक्षा प्रदान करने वाला है। यह मंत्र शिव की स्तुति करता है, जिन्हें शत्रुओं से बचाने वाले और कठिनाईयों से रक्षा करने वाले के रूप में माना जाता है। शिव के इस स्वरूप को हम कवचधारी के रूप में भी देख सकते हैं।

नमो कवचिने च: ‘कवच’ का अर्थ होता है ‘रक्षा कवच’। इस वाक्यांश में शिव को रक्षा कवच पहनने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। यह शिव की एक विशेषता है कि वे अपने भक्तों को सभी प्रकार की आपदाओं और समस्याओं से बचाते हैं।

नमो वर्म्मिणे च: ‘वर्म’ का अर्थ होता है ढाल या सुरक्षा प्रदान करने वाला। शिव को यहां एक ऐसे भगवान के रूप में संबोधित किया गया है, जो ढाल की तरह अपने भक्तों को हर बुराई से बचाते हैं।

नमो वरूथिने च: ‘वरूथ’ का अर्थ होता है ‘सैनिक’ या ‘रक्षक’। शिव को यहां संसार के सभी जीवों के रक्षक और उन्हें हर विपत्ति से बचाने वाले के रूप में पहचाना गया है। शिव हर तरह के भय से मुक्ति दिलाने वाले हैं।

नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो

नमः श्रुताय च: ‘श्रुति’ का अर्थ होता है सुनना या ज्ञान। यहां शिव को ‘श्रुत’ के रूप में पूजित किया जा रहा है, जो सभी प्रकार के वेदों और उपनिषदों के ज्ञान के स्त्रोत हैं। शिव समस्त ज्ञान और बुद्धि के मालिक हैं।

श्रुतसेनाय च: ‘श्रुतसेन’ का अर्थ होता है वह जो ज्ञान के सेनापति हैं। शिव को यहां ज्ञान के संरक्षक और उसकी सेना का नेता कहा गया है, जो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाते हैं।

नमो दुन्दुभ्भ्याय चा हनन्न्याय च

नमो दुन्दुभ्भ्याय च: ‘दुन्दुभ’ का अर्थ होता है युद्ध का बिगुल या शंख। शिव को यहां शंखनाद करने वाले और युद्ध की स्थिति का उद्घोष करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। इसका मतलब है कि शिव वह हैं जो युद्ध के लिए आह्वान करते हैं, जहां धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष होता है।

हनन्न्याय च: ‘हन’ का अर्थ होता है विनाश करना। यहां शिव को विनाशकारी शक्ति के रूप में पूजा जाता है, जो अधर्म, पाप और अन्याय का नाश करते हैं। उनका रूप यहां एक नाश करने वाले और बुराई का अंत करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है।

नमो घृश्णवे

नमो घृश्णवे: ‘घृश्ण’ का अर्थ होता है क्रोध या गुस्सा। शिव को यहां क्रोधावान देवता के रूप में पूजा जाता है, जो अधर्म और पाप के प्रति अत्यधिक क्रोधित होते हैं और उनका अंत करते हैं। इस वाक्यांश में शिव के उस रूप की स्तुति है, जो बुराई को सहन नहीं करता और न्याय की स्थापना करता है।

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌

दर्शनं बिल्वपत्रस्य: बिल्वपत्र (बेलपत्र) शिव का अत्यंत प्रिय होता है। जब हम शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाते हैं या इसका दर्शन करते हैं, तो यह अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे भक्तों के पापों का नाश होता है।

स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌: बिल्वपत्र का केवल स्पर्श ही पापों को समाप्त करने वाला होता है। इसे छूने मात्र से ही व्यक्ति के जीवन के बड़े से बड़े पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌

अघोर पाप संहारं: ‘अघोर’ का अर्थ होता है वह पाप जो अत्यंत भयंकर और दुष्कर होता है। इस वाक्यांश में कहा गया है कि बिल्वपत्र के माध्यम से शिव की पूजा करने से व्यक्ति के अति भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌: बिल्वपत्र शिव को अर्पित करने से भक्त के समस्त कष्ट, परेशानियां और पाप समाप्त हो जाते हैं। इस वाक्य का मतलब है कि शिव के प्रति समर्पण का प्रतीक बिल्वपत्र है, जिसे अर्पण करके भक्त अपने पापों से मुक्ति पा सकता है।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌

त्रिदलं: ‘त्रिदल’ का अर्थ है तीन पत्तियों वाला। बिल्वपत्र की खासियत यह होती है कि उसमें तीन पत्तियां होती हैं, जो शिव के त्रिदेव स्वरूप (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक होती हैं।

त्रिगुणाकारं: यहां शिव के त्रिगुण स्वरूप का वर्णन किया गया है – सत, रज, और तम। शिव इन तीनों गुणों से परे हैं लेकिन संसार में इन तीनों गुणों के संचालक हैं।

त्रिनेत्रं: शिव के तीन नेत्र होते हैं – सूर्य, चंद्रमा और अग्नि। ये उनके ज्ञान, समय और शक्ति के प्रतीक हैं। शिव का त्रिनेत्र उनके भीतर के दिव्य दृष्टि और शक्ति को दर्शाता है।

त्रिधायुधम्‌: त्रिशूल शिव का प्रधान आयुध है, जो उनके त्रिविध स्वरूप – निर्माण, पालन, और संहार – का प्रतिनिधित्व करता है। त्रिशूल की तीन धाराएं उनके इस कार्य को दर्शाती हैं।

त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌

त्रिजन्मपापसंहारं: यह वाक्य बताता है कि बिल्वपत्र के द्वारा शिव की पूजा करने से तीन जन्मों के पापों का भी नाश होता है। इससे न केवल वर्तमान जन्म के पाप, बल्कि पिछले दो जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।

बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌: बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने का महत्व अत्यधिक होता है। यह न केवल पुण्यकारी होता है, बल्कि तीन जन्मों के पापों को समाप्त करने की क्षमता भी रखता है। यह शिव की कृपा पाने का सर्वोत्तम साधन माना गया है।

अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌

अखण्डै बिल्वपत्रैश्च: इसका अर्थ है कि बिना खंडित (अखंडित) बिल्वपत्र से शिव की पूजा की जाए। अखंडित बिल्वपत्र से पूजा करने से अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

पूजये शिव शंकरम्‌

पूजये शिव शंकरम्‌: यहां बताया गया है कि शिव शंकर की पूजा अखंड बिल्वपत्र से करने पर विशेष फल प्राप्त होता है। शिव शंकर, जो त्रिलोक के स्वामी हैं, उनकी पूजा से समस्त बाधाओं का नाश होता है और सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। यह पूजा आत्मा को शांति प्रदान करती है और ईश्वर की अनुकम्पा प्राप्त होती है।

कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌

कोटिकन्या महादानं: इस पंक्ति में कहा गया है कि जो पुण्य ‘कोटिकन्या महादान’ (एक करोड़ कन्याओं का दान) करने से प्राप्त होता है, वही पुण्य मात्र एक बिल्वपत्र को शिव को अर्पित करने से प्राप्त हो सकता है। हिन्दू धर्म में कन्यादान को महान पुण्यकारी माना जाता है, और यहां बिल्वपत्र की पूजा को भी उससे तुलना की गई है।

बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌: यहां फिर से यह दोहराया गया है कि बिल्वपत्र को शिव को अर्पण करने से असीमित पुण्य की प्राप्ति होती है। यह अर्पण उस महादान के समान माना गया है, जो एक करोड़ कन्याओं के दान से प्राप्त होता है। इसका मतलब यह है कि बिल्वपत्र द्वारा शिव की पूजा अत्यधिक फलदायी होती है और इसके अर्पण से भक्त के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।

गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर

गृहाण बिल्व पत्राणि: इस वाक्य का अर्थ है, ‘हे महेश्वर (शिव), कृपया इन बिल्वपत्रों को स्वीकार करें।’ यहां भक्त शिव से प्रार्थना कर रहा है कि वह अपनी भक्ति और प्रेम से अर्पित किए गए इन बिल्वपत्रों को स्वीकार करें।

सपुश्पाणि महेश्वर: इसमें कहा गया है कि बिल्वपत्र के साथ-साथ पुष्पों का भी अर्पण किया जाए। शिव को फूल चढ़ाना भी अति शुभ माना जाता है, क्योंकि फूल पवित्रता और सौंदर्य के प्रतीक होते हैं। जब पुष्पों और बिल्वपत्रों के साथ शिव की पूजा की जाती है, तो शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।

सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय

सुगन्धीनि: इसका अर्थ है ‘सुगंधित’। यहां पुष्पों का वर्णन किया जा रहा है जो सुगंधित होते हैं और शिव को अत्यधिक प्रिय होते हैं। शिव को जब सुगंधित फूल और बिल्वपत्र चढ़ाए जाते हैं, तो वह अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं और उनके जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता को दूर करते हैं।

भवानीश: ‘भवानीश’ का अर्थ है शिव, जो देवी पार्वती (भवानी) के पति हैं। इस वाक्य में शिव को उनकी पार्वती से संबंधित एक उपाधि से संबोधित किया गया है। शिव और पार्वती का संयुक्त पूजन, उनके दिव्य मिलन का प्रतीक है, और इस पूजन से भक्त को सांसारिक सुख और शांति प्राप्त होती है।

शिवत्वंकुसुम प्रिय: इसका अर्थ है ‘हे शिव, आपको फूल अत्यधिक प्रिय हैं।’ यहां यह बताया गया है कि शिव को फूल चढ़ाना अत्यधिक शुभ माना जाता है। फूल उनकी पूजा में पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक होते हैं, और जब भक्त उन्हें प्रेम और श्रद्धा के साथ फूल अर्पित करते हैं, तो शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

बिल्वपत्र के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

बिल्वपत्र का महत्व: बिल्वपत्र को हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है, विशेष रूप से शिव पूजा में। इसके तीन पत्ते त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक होते हैं, और इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से भक्त के तीन जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।

आध्यात्मिक फल: बिल्वपत्र का स्पर्श, दर्शन और अर्पण व्यक्ति के पापों का नाश करता है और उसे मोक्ष की ओर ले जाता है। शिव के प्रति समर्पण का यह प्रतीक आत्मिक शांति प्रदान करता है और जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रकृति से जुड़ाव: बिल्वपत्र का उपयोग शिव पूजा में प्राकृतिक तत्वों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करता है। यह ध्यान और भक्ति का एक साधन है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता के प्रति हमारे दृष्टिकोण को दर्शाता है।

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