धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र

प्रथम श्लोक का अर्थ

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

  • अर्थ: हे पर्वत की पुत्री (पार्वती), तुम्हारी कृपा से यह धरती (मेदिनी) प्रसन्न है। तुम विश्व को आनंद प्रदान करती हो और नंदी (शिव के वाहन) द्वारा वंदित हो।

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते

  • अर्थ: तुम विंध्य पर्वत के शिखर पर निवास करने वाली हो, विष्णु के साथ रमण करने वाली हो और विजयी योद्धाओं द्वारा पूजित हो।

भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

  • अर्थ: हे भगवती, तुम शंकर (शितिकण्ठ) के परिवार की रानी हो, तुम्हारा परिवार बहुत बड़ा है और तुमने महान कार्य किए हैं।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

द्वितीय श्लोक का अर्थ

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते

  • अर्थ: हे देवी, तुम देवताओं के लिए आशीर्वाद की वर्षा करने वाली हो, दुश्मनों को पराजित करने वाली हो, दुष्टों को सहन नहीं करने वाली हो, और आनंदित रहने वाली हो।

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते

  • अर्थ: तुम तीनों लोकों की रक्षा करती हो, शिव को संतुष्ट करती हो, पापों को नष्ट करती हो और संगीत का आनंद लेती हो।

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

  • अर्थ: दानवों और दिति के पुत्रों के क्रोध को नष्ट करने वाली हो, तुम अहंकार को खत्म करने वाली हो और सागर की पुत्री हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

तृतीय श्लोक का अर्थ

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते

  • अर्थ: हे जगत की माता, हे मेरी माता, तुम कदम्ब के वन में निवास करती हो और हमेशा हंसने-हंसाने में रमण करती हो।

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते

  • अर्थ: तुम हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर निवास करती हो, जो पर्वतों का मुकुट मणि है।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

  • अर्थ: तुम मधुर वाणी वाली हो, मधु और कैटभ का नाश करने वाली हो, और रास नृत्य में आनंदित हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

चतुर्थ श्लोक का अर्थ

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते

  • अर्थ: हे देवी, तुमने सौ टुकड़ों में कटे हुए हाथियों के मस्तक और उनके शरीर को नष्ट कर दिया है, तुम हाथियों की सेनाओं की प्रमुख हो।

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते

  • अर्थ: तुम शत्रुओं के हाथियों के मस्तक को फाड़ने वाली हो, अपने महान पराक्रम से तुमने दुश्मनों को कुचल दिया है।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

  • अर्थ: तुमने अपने बलशाली भुजाओं से शत्रुओं को मारकर उनके सिर को नष्ट कर दिया है, तुम योद्धाओं की नेता हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

पंचम श्लोक का अर्थ

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

  • अर्थ: हे देवी, तुम युद्ध में अति गर्वित शत्रुओं का संहार करने के लिए उत्पन्न हुई हो और अनियंत्रित शक्तियों को नियंत्रित करने वाली हो।

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते

  • अर्थ: तुम शिव के चतुर और महान विचारों की धुरी हो और शिव के दूतों की प्रमुख हो।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

  • अर्थ: तुम पापों को नष्ट करने वाली हो, बुरी योजनाओं और बुरे विचारों वाले दानवों का संहार करने वाली हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

षष्ठ श्लोक का अर्थ

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

  • अर्थ: हे देवी, जो भी शरण में आता है, तुम उसे अभय देती हो, तुम शत्रुओं की पत्नियों के लिए भी वरदान रूपी अभय हो।

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे

  • अर्थ: तुमने तीनों लोकों के शत्रुओं के सिर पर त्रिशूल का प्रहार किया है और शत्रुओं को नष्ट किया है।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

  • अर्थ: तुम्हारे युद्ध के नगाड़ों की गूंज से दिशाएँ गूँज उठती हैं।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

सप्तम श्लोक का अर्थ

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

  • अर्थ: हे देवी, तुमने अपनी मात्र हुंकार से धूम्रविलोचन (राक्षस) की सेना को ध्वस्त कर दिया था, उसकी आंखों से धुआं निकलता था और तुमने सैकड़ों ऐसे शत्रुओं को नष्ट कर दिया।

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते

  • अर्थ: तुमने युद्ध में शोणितबीज (राक्षस) को पराजित किया, जो अपने रक्त से फिर से उत्पन्न होता था। तुमने उसे जड़ से खत्म कर दिया।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

  • अर्थ: तुमने शुम्भ-निशुम्भ के साथ भीषण युद्ध किया और उन पिशाचों व भूतों को संतुष्ट किया, जो रक्त से तृप्त होते हैं।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

अष्टम श्लोक का अर्थ

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

  • अर्थ: हे देवी, तुम धनुष उठाए हुए युद्ध के समय, लगातार अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करती हो, और तुम्हारी कमर पर तलवार चमकती रहती है।

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके

  • अर्थ: तुमने सोने जैसे रंग के बाणों से शत्रुओं को भेद दिया है, युद्ध के मैदान में सभी शत्रु तुम्हारे पराक्रम के आगे पराजित हो गए हैं।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

  • अर्थ: तुमने चारों प्रकार की सेनाओं (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना) को युद्धभूमि में पराजित किया, और उनके प्रमुखों को धूल में मिला दिया।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

नवम श्लोक का अर्थ

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते

  • अर्थ: हे देवी, तुम देवकन्याओं के साथ नृत्य में मग्न हो और उनकी मुद्राओं और अभिनय को स्वीकार करती हो।

कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते

  • अर्थ: तुम उत्सुक होकर संगीत और नृत्य में लीन हो, और ताल वाद्यों की आवाज़ का आनंद लेती हो।

धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते

  • अर्थ: मृदंग की धीर-गंभीर ध्वनि और विभिन्न तालों की आवाज़ से तुम अत्यंत प्रसन्न होती हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

दशम श्लोक का अर्थ

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, तुम जप और स्तुति द्वारा पूजित हो, समस्त विश्व में तुम्हारी प्रशंसा गाई जाती है।

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते

  • अर्थ: तुम्हारे नूपुरों की मधुर झंकार से वातावरण गूंज उठता है और भूतों के अधिपति (शिव) भी उस ध्वनि से मोहित हो जाते हैं।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

  • अर्थ: तुम अर्धनारीश्वर रूप में नृत्य करती हो, और शिव, जो नट नायक हैं, तुम्हारे साथ नृत्य का आनंद लेते हैं।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

एकादश श्लोक का अर्थ

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

  • अर्थ: हे देवी, तुम सुंदर और मनमोहक पुष्पों से सुशोभित हो और तुम्हारी आभा बहुत ही मोहक है।

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते

  • अर्थ: तुम रात के समय में अपनी चमक से घिरे हुए हो और चंद्रमा की तरह अपनी आभा बिखेरती हो।

सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते

  • अर्थ: तुम्हारी आँखें भँवरे के समान सुंदर हैं, और तुम उनकी अधिपति हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

द्वादश श्लोक का अर्थ

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

  • अर्थ: तुम महान युद्ध में मल्ल युद्ध की शैली में शत्रुओं का विनाश करती हो, और योद्धाओं के साथ मुकाबला करती हो।

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते

  • अर्थ: तुमने बांसुरी और वीणा की मधुर ध्वनि के बीच मल्ल युद्ध किया, और झिल्लियों और भिल्लियों के समूह ने तुम्हारे चारों ओर रक्षा की।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

  • अर्थ: तुमने सुशोभित लाल पल्लव (कुश) से आच्छादित होकर अपने शत्रुओं का विनाश किया।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

त्रयोदश श्लोक का अर्थ

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते

  • अर्थ: तुम हाथियों के राजा हो, जिनके गंडस्थल (गाल) से लगातार मद की धारा बहती रहती है।

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते

  • अर्थ: तुम तीनों लोकों के आभूषण हो, तुम कला और सौंदर्य के अद्वितीय भंडार हो, और राजाओं की पुत्री हो।

अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते

  • अर्थ: तुम मन्मथराज की पुत्री हो, तुम्हारी सुंदरता और सौम्यता से सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

चतुर्दश श्लोक का अर्थ

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

  • अर्थ: हे देवी, तुम कमल के पत्ते के समान कोमल और शुद्ध आभा वाली हो। तुम्हारा मुख कमल के समान सुंदर और मधुर है, और तुम अपने ललाट पर कलाओं की शोभा धारण करती हो।

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले

  • अर्थ: तुम सभी कलाओं की निवासिनी हो और तुम्हारी उपस्थिति में हंसों का समूह भी उत्साह से भर जाता है। हंसों का समूह जैसे खेल में मग्न होता है, वैसे ही तुम अपने आनंद में रमण करती हो।

अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

  • अर्थ: तुम्हारे चारों ओर भ्रमर मंडराते हैं, जो नीले कमल के पुष्पों के ऊपर उड़ते रहते हैं। तुम उन पुष्पों के मंडल के मध्य में स्थित हो, और तुम्हारा सिर सुगंधित पुष्पों से सजा हुआ है।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

पञ्चदश श्लोक का अर्थ

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते

  • अर्थ: हे देवी, तुम्हारे करकमलों से निकली बांसुरी की ध्वनि इतनी मधुर होती है कि कोयल भी तुम्हारे संगीत के आगे लज्जित हो जाती है।

मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते

  • अर्थ: तुम पर्वतों की गुफाओं में विचरण करने वाली हो, जहाँ तुम्हारी मधुर वाणी और संगीत की ध्वनि से हर कोई मोहित हो जाता है, और तुम पुलिंदों (वनवासी जनों) के साथ आनंदित हो।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

  • अर्थ: तुम अपने भक्तों और भूत-प्रेतों के समूह के साथ रमण करती हो, और शबरी जैसी महाशक्ति को भी अपने साथ स्थान देती हो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

षोडश श्लोक का अर्थ

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे

  • अर्थ: हे देवी, तुम्हारा कमरबंद पीले रेशमी वस्त्र से सजा हुआ है, और उसकी अद्वितीय चमक चंद्रमा की आभा को भी धूमिल कर देती है।

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे

  • अर्थ: देवताओं और असुरों के सिर पर सजे मणियों की चमक से तुम्हारे नख भी दिपदिपाते हैं, जो चंद्रमा जैसी आभा बिखेरते हैं।

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

  • अर्थ: तुमने सोने के पर्वतों को भी पराजित कर दिया है, तुम्हारे कुचों का सौंदर्य अत्यधिक प्रबल और मनमोहक है, जैसे कोई शक्तिशाली हाथी।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

सप्तदश श्लोक का अर्थ

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

  • अर्थ: हे देवी, तुमने हजारों हाथों वाले शत्रुओं को पराजित किया है, और तुम हजारों हाथों द्वारा पूजित हो।

कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते

  • अर्थ: तुमने तारकासुर का वध किया है, और तुमने देवताओं की रक्षा की है। तुमने तारकासुर के पुत्रों का भी संहार किया है।

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते

  • अर्थ: तुमने राजा सुरथ और समाधि को समान सम्मान दिया है, और उन्हें ज्ञान की ऊंचाई पर पहुंचाया है।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

अष्टादश श्लोक का अर्थ

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

  • अर्थ: हे करुणामयी देवी, जो भी प्रतिदिन तुम्हारे चरणकमलों की वंदना करता है, उसे तुम विशेष कृपा प्रदान करती हो।

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्

  • अर्थ: हे कमल जैसी सौम्यता वाली देवी, जो तुम्हारे चरणों की शरण में आता है, वह कैसे प्रसन्न और संतुष्ट न होगा?

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

  • अर्थ: जब मैं तुम्हारे चरणों को ही परम धाम मानकर उनकी आराधना करता हूँ, तो क्यों न मुझे मोक्ष प्राप्त हो?

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

उन्नीसवां श्लोक का अर्थ

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

  • अर्थ: हे देवी, तुम्हारी गुणरूपी धारा से यह पृथ्वी सोने की तरह चमक उठती है, जैसे समुद्र का जल स्वर्णिम होता है।

भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्

  • अर्थ: क्या वह व्यक्ति शचि देवी के कंठ का सुख प्राप्त नहीं करेगा, जो तुम्हारी सेवा और भक्ति में लगा हो?

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

  • अर्थ: हे देवी, मैं तुम्हारे चरणों की शरण में आता हूँ। तुम समस्त अमर देवताओं के बीच वास करती हो, और तुम्हारी कृपा से शिवता प्राप्त होती है।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

विंशतितम श्लोक का अर्थ

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते

  • अर्थ: हे देवी, तुम्हारे मुख का सौंदर्य शुद्ध चंद्रमा जैसा है, जो सारी दिशाओं को अपनी चमक से शीतलता प्रदान करता है।

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते

  • अर्थ: क्या इन्द्र के समान कोई महान राजा भी तुम्हारी अनुपम सौंदर्यता से विमुख हो सकता है? तुम्हारा मुख सौंदर्य की पराकाष्ठा है।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

  • अर्थ: मेरे विचार में तो केवल शिव के नाम के धन से मुझे संतोष है। हे देवी, तुम्हारी कृपा से मुझे और क्या चाहिए?

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

एकविंशतितम श्लोक का अर्थ

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

  • अर्थ: हे देवी उमादेवी, तुम कृपामयी हो, और मुझ पर अपनी दया बनाए रखना ही तुम्हारा धर्म है।

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते

  • अर्थ: हे जगत की माता, तुम जैसी हो, कृपया वैसी ही रहो। तुम्हारी अनुकंपा सदा मेरे साथ रहे।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

  • अर्थ: जो भी उचित हो, तुम वही करो। कृपया मेरे दुखों और कष्टों को दूर करो।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते

  • अर्थ: जय हो, जय हो, हे महिषासुर का नाश करने वाली, सुंदर जटा धारण करने वाली, पर्वत की पुत्री।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र का यह विस्तृत अर्थ देवी दुर्गा के शक्ति और सौंदर्य की महिमा का वर्णन करता है, जिसमें उन्हें महिषासुर जैसे राक्षसों का विनाश करने वाली और भक्तों की रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *