छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
आगे चले गैया, पीछे चले ग्वाल,
आगे चले गैया, पीछे चले ग्वाल,
बीच में मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो, छोटो सो,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
घास खाए गैया, दूध पिए ग्वाल,
घास खाए गैया, दूध पिए ग्वाल,
माखन खाए मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो, छोटो सो,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी लकुटी, छोटे-छोटे हाथ,
छोटी-छोटी लकुटी, छोटे-छोटे हाथ,
बंसी बजाए मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो, छोटो सो,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी सखियाँ, यमुना के घाट,
छोटी-छोटी सखियाँ, यमुना के घाट,
रास रचाए मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो, छोटो सो,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
काली-काली गैया, गोरे-गोरे ग्वाल,
काली-काली गैया, गोरे-गोरे ग्वाल,
साँवरो सलोनो मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो, छोटो सो,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल – भावार्थ
यह भजन भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप का वर्णन करता है। इसमें कृष्ण को ग्वालबालों और गायों के साथ खेलते और मस्ती करते हुए दिखाया गया है। उनकी भोली भाली और सरल छवि से हर किसी का मन मोह लेता है। यह गीत उनके बालसखा, ग्वालों और गोपियों के साथ उनकी लीलाओं का वर्णन करता है।
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल, छोटो सो मेरो मदन गोपाल
छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल,
इस पंक्ति में श्रीकृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया गया है। यहाँ “गैया” और “ग्वाल” का उपयोग उन गायों और ग्वालों के लिए किया गया है जो बाल कृष्ण के साथी हैं।छोटो सो मेरो मदन गोपाल
“छोटा सा” कृष्ण एक प्यारा और मासूम बच्चा है, जो अपने दोस्तों के बीच में सबसे प्रिय है। उनके भोलेपन और आकर्षण के कारण उन्हें “मदन गोपाल” कहा गया है, जो प्रेम और सौंदर्य के देवता के रूप में उनकी छवि को दर्शाता है।
आगे चले गैया, पीछे चले ग्वाल
आगे चले गैया, पीछे चले ग्वाल,
इस पंक्ति में कृष्ण और उनके ग्वालबालों का गायों के साथ चलने का दृश्य है। गायें आगे चलती हैं, और उनके पीछे ग्वालबच्चे हैं। यह दृश्य गाँव के जीवन के उस नजारे को दिखाता है जहाँ बच्चे गायों के साथ खेलते और चरवाहे का कार्य करते हैं।बीच में मेरो मदन गोपाल
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण बीच में हैं, जो उनके प्रिय होने का संकेत देता है। वह अपने ग्वालों और गायों के बीच में रहना पसंद करते हैं, और यह उनकी सरलता और लोगों के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
घास खाए गैया, दूध पिए ग्वाल
घास खाए गैया, दूध पिए ग्वाल,
इस पंक्ति में गायों का चरना और ग्वालबालों का दूध पीना का वर्णन है। यह ग्रामीण जीवन की सरलता और भोलेपन को दर्शाता है, जहाँ जीवन प्रकृति से जुड़ा हुआ है।माखन खाए मेरो मदन गोपाल
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण का माखन प्रेम दर्शाया गया है। कृष्ण का माखन खाना उनकी बाल लीलाओं का प्रिय हिस्सा है। वे माखन चुराकर खाते हैं और इससे उनकी शरारती छवि उभरती है।
छोटी-छोटी लकुटी, छोटे-छोटे हाथ
छोटी-छोटी लकुटी, छोटे-छोटे हाथ,
इस पंक्ति में कृष्ण का चरवाहे रूप का वर्णन किया गया है। “लकुटी” का मतलब छोटी छड़ी से है, जिसे वे अपने नन्हें हाथों में लेकर चलते हैं। यह उनकी प्यारी और मासूम छवि को प्रदर्शित करता है।बंसी बजाए मेरो मदन गोपाल
यहाँ बांसुरी का उल्लेख किया गया है, जो कृष्ण का प्रिय वाद्य यंत्र है। उनके द्वारा बांसुरी बजाना गोपियों और ग्वालबालों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह उनके संगीत प्रेम और मस्ती भरे जीवन का प्रतीक है।
छोटी-छोटी सखियाँ, यमुना के घाट
छोटी-छोटी सखियाँ, यमुना के घाट,
यहाँ कृष्ण और उनकी सखियाँ (गोपियाँ) यमुना नदी के घाट पर रास रचाने का दृश्य है। गोपियाँ उनके चारों ओर घूमती हैं, नाचती और गाती हैं।रास रचाए मेरो मदन गोपाल
इस पंक्ति में रासलीला का वर्णन है, जिसमें कृष्ण और गोपियों के बीच प्रेम का आदान-प्रदान होता है। रासलीला में कृष्ण का हर गोपी के साथ नृत्य करना उनके अनंत प्रेम और उनके भगवान स्वरूप को दर्शाता है।
काली-काली गैया, गोरे-गोरे ग्वाल
काली-काली गैया, गोरे-गोरे ग्वाल,
इस पंक्ति में गायों के काले रंग और ग्वालबालों के गोरे रंग का वर्णन है। इससे उनकी विशिष्टता और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक मिलता है।साँवरो सलोनो मेरो मदन गोपाल
यहाँ कृष्ण का साँवला रंग और उनका आकर्षक रूप वर्णित है। “साँवरो सलोना” का मतलब है आकर्षक और मनोहारी, जो कृष्ण के सुंदर व्यक्तित्व को दर्शाता है।
निष्कर्ष
यह भजन भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप की भोली-भाली और मासूम छवि को सामने लाता है। इसमें उनके साथियों, गायों, और बांसुरी बजाने की लीलाओं का वर्णन है।