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॥ विनियोग मन्त्र ॥

ॐ अस्य श्रीबृहस्पति स्तोत्रस्य गृत्समद् ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः,
बृहस्पतिर्देवता, बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:

गुरुर्बृहस्पतिर्जीव: सुराचार्यो विदां वरः ।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा ॥1॥

सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः ।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः कुड्मलद्युतिः ॥2॥

लोकपूज्यो लोकगुरुः नीतिज्ञो नीतिकारकः ।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवेद्यः पितामहः ॥3॥

भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा नामान्येतानि यः पठेत् ।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः ॥4॥

जीवेद्दर्षशतं मत्यो पापं नश्यति ।
यः पूजयेत् गुरुदिने पीतगन्धाक्षताम्बरैः ॥5॥

पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम् ।
ब्रह्मणान् भोजयित्वा च पीडाशान्तिर्भवेत् गुरोः ॥6॥

॥ इति श्री स्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

बृहस्पति स्तोत्रं – स्कन्दपुराणे (Brihaspati Stotra – Skand Puran)

ॐ अस्य श्रीबृहस्पति स्तोत्रस्य गृत्समद् ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, बृहस्पतिर्देवता, बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।

इस मंत्र का उपयोग बृहस्पति की स्तुति करने के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र का ऋषि गृत्समद है, और इसका छंद अनुष्टुप है। बृहस्पति देवता हैं, और इस स्तोत्र का जाप बृहस्पति की प्रसन्नता के लिए किया जाता है।

श्लोक 1:

गुरुर्बृहस्पतिर्जीव: सुराचार्यो विदां वरः।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा॥

बृहस्पति गुरु हैं, जीव (जीवन दाता) हैं, सुराचार्य (देवताओं के आचार्य) हैं, विद्वानों में श्रेष्ठ हैं। वे वाणी के ईश्वर हैं, बुद्धिमान हैं, लम्बी दाढ़ी वाले हैं, पीले वस्त्र धारण करते हैं और सदा युवा रहते हैं।

श्लोक 2:

सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः कुड्मलद्युतिः॥

बृहस्पति अमृत दृष्टि वाले हैं, ग्रहों के स्वामी हैं, ग्रहों की पीड़ा को हरने वाले हैं। वे दयालु हैं, उनका स्वरूप सौम्य है, देवताओं द्वारा पूज्य हैं, और उनकी चमक कली के समान है।

यह भी जानें:  हनुमान द्वादश नाम स्तोत्रम - मंत्र (Hanuman Dwadash Naam Stotram)

श्लोक 3:

लोकपूज्यो लोकगुरुः नीतिज्ञो नीतिकारकः।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवेद्यः पितामहः॥

बृहस्पति समस्त लोकों में पूज्य हैं, लोकगुरु (सभी का गुरु) हैं, नीति (धर्म) के ज्ञाता हैं और नीति के पालन में सक्षम हैं। वे तारापति (तारा के स्वामी) हैं, अंगिरस ऋषि के वंशज हैं, वेदों के ज्ञाता हैं और पितामह (प्रथम पिता) हैं।

श्लोक 4:

भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा नामान्येतानि यः पठेत्।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः॥

जो व्यक्ति भक्तिभाव से बृहस्पति का स्मरण कर इन नामों का पाठ करता है, वह निरोगी, बलवान, समृद्ध और पुत्रवान होता है।

श्लोक 5:

जीवेद्दर्षशतं मत्यो पापं नश्यति।
यः पूजयेत् गुरुदिने पीतगन्धाक्षताम्बरैः॥

जो व्यक्ति गुरुवार के दिन पीले रंग के चन्दन, अक्षत (चावल) और वस्त्रों से बृहस्पति की पूजा करता है, वह सौ वर्षों तक जीता है और उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

श्लोक 6:

पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम्।
ब्रह्मणान् भोजयित्वा च पीडाशान्तिर्भवेत् गुरोः॥

बृहस्पति की पूजा फूल, दीपक और अन्य उपहारों के साथ करने पर और ब्राह्मणों को भोजन कराने पर, बृहस्पति की कृपा से जीवन की सभी पीड़ाएँ शांत हो जाती हैं।

॥ इति श्री स्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

यह बृहस्पति स्तोत्र स्कन्द पुराण से लिया गया है और यह पूर्ण हुआ। इस स्तोत्र का पाठ करके बृहस्पति की कृपा प्राप्त की जा सकती है, जिससे व्यक्ति की सभी समस्याएँ दूर हो सकती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

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