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ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु – शांति, समृद्धि और मंगल की कामना

यह मंत्र क्या है?

यह मंत्र एक प्रार्थना है जो सभी प्राणियों के लिए शांति, समृद्धि, पूर्णता और मंगल की कामना करता है। यह शांति और कल्याण की भावना को संचारित करता है और सभी के लिए अच्छाई की प्रार्थना करता है।

मंत्र का अर्थ

सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु

इसका अर्थ है कि “सभी के लिए शुभ हो।” इस वाक्य के माध्यम से हम यह प्रार्थना करते हैं कि संसार के सभी प्राणियों के लिए शुभ और कल्याणकारी परिस्थितियाँ हों।

सर्वेशां शान्तिर्भवतु

इसका अर्थ है “सभी के लिए शांति हो।” इस वाक्य में हम यह कामना करते हैं कि सभी के मन, शरीर और आत्मा में शांति बनी रहे।

सर्वेशां पुर्णंभवतु

इसका अर्थ है “सभी को पूर्णता प्राप्त हो।” इस वाक्य के माध्यम से हम यह प्रार्थना करते हैं कि सभी के जीवन में संतुष्टि और पूर्णता बनी रहे, कोई कमी न रहे।

सर्वेशां मङ्गलंभवतु

इसका अर्थ है “सभी के लिए मंगल हो।” इसमें हम सभी के लिए समृद्धि, सफलता और जीवन में सुखद घटनाओं की कामना करते हैं।

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शांति मंत्र का महत्व

आध्यात्मिक महत्व

इस मंत्र का जप करने से मन की अशांति दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।

सामाजिक महत्व

यह मंत्र हमें सिखाता है कि हमें केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि सभी प्राणियों के लिए भी शुभ, शांति, पूर्णता और मंगल की कामना करनी चाहिए। इससे समाज में सामंजस्य और भाईचारा बढ़ता है।

शांति का तीन बार उच्चारण – “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”

इसका अर्थ है कि हम तीनों लोकों (भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक) में शांति की स्थापना की प्रार्थना करते हैं। यह हमें संपूर्ण शांति की अनुभूति कराता है और सभी प्रकार की अशांति को दूर करने का आह्वान करता है।

निष्कर्ष

यह शांति मंत्र न केवल व्यक्तिगत शांति के लिए बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में शांति, समृद्धि और मंगल की कामना करता है। इसे नियमित रूप से जपने से मन और आत्मा की शुद्धि होती है, और व्यक्ति को आंतरिक बल और स्थिरता प्राप्त होती है। यह हमें सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा की भावना को बढ़ाने की प्रेरणा देता है।

ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु मंत्र की विस्तृत जानकारी

मंत्र का शाब्दिक अर्थ

“ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु। सर्वेशां शान्तिर्भवतु। सर्वेशां पुर्णंभवतु। सर्वेशां मङ्गलंभवतु। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”
इस मंत्र का अर्थ है कि हम सभी प्राणियों के लिए कल्याण, शांति, समृद्धि, और मंगल की प्रार्थना करते हैं। यह एक सार्वभौमिक प्रार्थना है जो सम्पूर्ण मानवता और प्रकृति के कल्याण के लिए है।

मंत्र के प्रत्येक शब्द का अर्थ

1. ॐ (ओम)

ॐ को ब्रह्मांड की ध्वनि और सभी ध्वनियों का मूल माना जाता है। यह शब्द पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतीक है और इसे सभी मंत्रों की शुरुआत में प्रयोग किया जाता है। यह जीवन की सकारात्मकता, शांति और संतुलन का प्रतीक है।

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2. सर्वेशां (सभी के लिए)

यह शब्द “सर्व” से बना है, जिसका अर्थ है सभी। यहां यह सभी प्राणियों के लिए प्रयुक्त किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह प्रार्थना किसी विशेष व्यक्ति या समूह के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सभी जीवों के लिए है।

3. स्वस्तिर्भवतु (शुभ हो)

स्वस्ति का अर्थ है शुभ और भवतु का अर्थ है हो। इस प्रकार, स्वस्तिर्भवतु का अर्थ है कि सभी के लिए शुभ और मंगलमय परिस्थितियाँ बनें।

4. शान्तिर्भवतु (शांति हो)

शांति का अर्थ है मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शांति। यह प्रार्थना है कि सभी के मन, शरीर और आत्मा में शांति बनी रहे और वे सभी प्रकार की अशांति से मुक्त रहें।

5. पुर्णंभवतु (पूर्णता हो)

पूर्ण का अर्थ है संपूर्णता या सम्पूर्णता। पुर्णंभवतु का अर्थ है कि सभी के जीवन में कोई कमी न हो, सभी को वह प्राप्त हो जिसकी उन्हें आवश्यकता है, और वे सभी प्रकार की असंतुष्टि से मुक्त रहें।

6. मङ्गलंभवतु (मंगल हो)

मंगल का अर्थ है सुखद और शुभ घटनाएँ। इस मंत्र के माध्यम से हम सभी के जीवन में खुशियों, सफलता और सकारात्मकता की प्रार्थना करते हैं।

7. ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

इस वाक्य में तीन बार ‘शांति’ का उच्चारण किया गया है, जिसका अर्थ है कि तीनों स्तरों – शारीरिक (आधिभौतिक), मानसिक (आधिदैविक), और आत्मिक (आधात्मिक) – पर शांति की प्रार्थना की जा रही है। यह शांति के सभी स्तरों पर समग्रता से संतुलन और शांति की कामना करता है।

ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु मंत्र का भावार्थ

1. सभी के लिए शुभ की कामना

यह मंत्र हमें सिखाता है कि हमें केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि सभी प्राणियों के लिए भी शुभ की कामना करनी चाहिए। यह सोच को व्यापक और परिपक्व बनाता है।

2. समस्त ब्रह्मांड के कल्याण की प्रार्थना

इस मंत्र में निहित भावना केवल मानव मात्र के लिए नहीं, बल्कि समस्त ब्रह्मांड के लिए है। यह हमें प्रकृति, पर्यावरण और अन्य प्राणियों के प्रति संवेदनशील बनने की प्रेरणा देता है।

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3. जीवन की संतुलित अवस्था

मंत्र का उद्देश्य जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखना है। जब हम सभी के लिए शुभ और शांति की प्रार्थना करते हैं, तो हम स्वयं के जीवन में भी संतुलन और शांति की स्थापना कर पाते हैं।

मंत्र का उपयोग और जप विधि

1. मंत्र का जप कब और कैसे करें?

इस मंत्र का जप प्रातःकाल, शाम, या किसी भी शांत समय में किया जा सकता है। इसे मन की शांति और सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। आप इसे बैठकर, ध्यान मुद्रा में, या चलते-फिरते भी जप सकते हैं।

2. मानसिक और आध्यात्मिक लाभ

इस मंत्र का नियमित जप करने से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है। यह तनाव, चिंता और नकारात्मकता को दूर करता है और आत्मिक उन्नति में सहायक होता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

1. सार्वभौमिकता की भावना

यह मंत्र हमें सार्वभौमिकता और एकता की भावना सिखाता है। जब हम सभी के लिए शुभ और शांति की कामना करते हैं, तो हम व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और संसार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं।

2. सांस्कृतिक धरोहर

यह मंत्र भारतीय संस्कृति और संस्कारों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समारोहों में शांति और समृद्धि की कामना के लिए प्रयोग किया जाता है।

निष्कर्ष

“ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु” मंत्र न केवल एक प्रार्थना है, बल्कि एक जीवनदर्शन भी है। यह हमें सभी के लिए शुभ, शांति, पूर्णता और मंगल की कामना करने की प्रेरणा देता है। इसे नियमित रूप से जपने से न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामूहिक स्तर पर भी शांति और समृद्धि की स्थापना होती है। यह मंत्र हमें सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, करुणा और सहानुभूति की भावना को जागृत करने की प्रेरणा देता है।

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