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भजन: सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला – Bhajan: Siya Ji Se Puch Rahe Anjani Ke Lala

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सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला,
मांग में सिंदूर मैया किस लिए डाला,
सिया जी से पूछ रहें अंजनी के लाला ॥
हनुमत की वाणी सुन सिया मुस्कुराई,
पीछा छुड़ाने की युक्ति बनायी,
खुश होंगे मेरे स्वामी इसलिए डाला,
सिया जी से पूछ रहें अंजनी के लाला,
मांग मे सिंदूर मैया किस लिए डाला ॥

हनुमत ने सोचा मैं भी राम को रिझाउंगा,
मैया ने लगाया मैं ज्यादा लगाऊंगा,
ऐसा कहके हनुमान ने पूरा तन रंग डाला,
सिया जी से पूछ रहें अंजनी के लाला,
मांग मे सिंदूर मैया किस लिए डाला ॥

मैया ने बताया वही रास्ता अपनाऊंगा,
राम जी के चरणों का दास बन जाऊंगा,
राम जी के नाम की जपूंगा मैं तो माला,
सिया जी से पूछ रहें अंजनी के लाला,
मांग मे सिंदूर मैया किस लिए डाला ॥

जब दरबार में बैठे श्री राम जी,
चरणों में शीश झुकाएं हनुमान जी,
अजर अमर तुम अंजनी के लाला,
ऐसा वरदान सीता माता ने दे डाला,
सिया जी से पूछ रहें अंजनी के लाला,
मांग मे सिंदूर मैया किस लिए डाला ॥

सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला,
मांग में सिंदूर मैया किस लिए डाला,
सिया जी से पूछ रहें अंजनी के लाला ॥

भजन: सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला

भजन का विस्तृत विश्लेषण

यह भजन भगवान हनुमान जी की भक्ति के माध्यम से समर्पण, जिज्ञासा और प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसकी प्रत्येक पंक्ति गहरे आध्यात्मिक अर्थ से ओतप्रोत है। इसमें भगवान हनुमान के सहज और निष्कपट स्वभाव को दर्शाया गया है, साथ ही यह भी दिखाया गया है कि भक्ति में बालसुलभ भाव कितना महत्वपूर्ण है। अब इस भजन की पंक्तियों के अर्थ को गहराई से समझते हैं।


सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला

सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला, मांग में सिंदूर मैया किस लिए डाला।

हनुमान जी का यह प्रश्न उनकी सहज जिज्ञासा का प्रतीक है। यह प्रश्न न केवल हनुमान जी की भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक सच्चा भक्त हमेशा भगवान की कृपा का अर्थ जानने की कोशिश करता है। यहां “सिया जी” भारतीय समाज में स्त्रियों द्वारा सिंदूर धारण करने की परंपरा को संदर्भित करती हैं, जो पति के प्रति समर्पण और उनकी लंबी उम्र की कामना का प्रतीक है। लेकिन हनुमान जी के दृष्टिकोण से यह एक अनजाना रहस्य है। उनका यह भोला सवाल उनकी सरलता और निश्चल भक्ति को प्रकट करता है।


हनुमत की वाणी सुन सिया मुस्कुराई

हनुमत की वाणी सुन सिया मुस्कुराई, पीछा छुड़ाने की युक्ति बनायी। खुश होंगे मेरे स्वामी इसलिए डाला।

हनुमान जी का मासूम प्रश्न सुनकर माता सीता मुस्कुराती हैं। यह मुस्कान उनकी मातृवत करुणा और प्रेम को दर्शाती है। माता सीता समझती हैं कि हनुमान जी के इस प्रश्न का उत्तर साधारण होना चाहिए ताकि उनकी सरल भक्ति और जिज्ञासा बनी रहे। इसलिए वह कहती हैं कि सिंदूर लगाने का कारण उनके स्वामी, भगवान राम, को प्रसन्न करना है। इस उत्तर में भारतीय भक्ति परंपरा की गहराई छिपी है। “खुश होंगे मेरे स्वामी” कहने के पीछे यह भाव है कि सच्ची भक्ति अपने आराध्य को प्रसन्न करने में निहित है।


हनुमत ने सोचा मैं भी राम को रिझाऊंगा

हनुमत ने सोचा मैं भी राम को रिझाऊंगा, मैया ने लगाया मैं ज्यादा लगाऊंगा। ऐसा कहके हनुमान ने पूरा तन रंग डाला।

माता सीता के उत्तर ने हनुमान जी के मन में एक नई प्रेरणा उत्पन्न की। उन्होंने सोचा कि यदि मांग में थोड़ा सा सिंदूर भगवान राम को प्रसन्न कर सकता है, तो पूरे शरीर को सिंदूर से रंगने से भगवान राम अत्यंत प्रसन्न होंगे। यह विचार उनकी भक्ति की असीम गहराई और उनकी बालसुलभ सरलता को दर्शाता है। हनुमान जी का संपूर्ण तन सिंदूर से रंगना उनके पूर्ण समर्पण और आराध्य के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक बन गया।

इस घटना का एक आध्यात्मिक पक्ष भी है। हनुमान जी का यह कृत्य हमें सिखाता है कि भक्ति केवल प्रतीकात्मक नहीं होती; यह पूर्ण आत्मसमर्पण का मार्ग है। जब भक्त अपने आराध्य के लिए अपनी सीमाओं को छोड़ देता है, तो यह भक्ति का सर्वोच्च रूप बन जाता है।


मैया ने बताया वही रास्ता अपनाऊंगा

मैया ने बताया वही रास्ता अपनाऊंगा, राम जी के चरणों का दास बन जाऊंगा। राम जी के नाम की जपूंगा मैं तो माला।

इस पंक्ति में हनुमान जी की सीखने की प्रवृत्ति और उनका गहरा समर्पण प्रकट होता है। माता सीता उन्हें बताती हैं कि भगवान राम को प्रसन्न करने का सबसे सरल और सच्चा मार्ग भक्ति और सेवा है। माता का यह कथन हनुमान जी के लिए जीवन का आदर्श बन गया। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने जीवन को भगवान राम की सेवा में समर्पित करेंगे।

यहां “राम जी के चरणों का दास बन जाऊंगा” केवल एक भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं है। यह भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और अहंकार के पूर्ण परित्याग का प्रतीक है। हनुमान जी का यह व्रत हमें यह सिखाता है कि भक्ति में अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं है।


जब दरबार में बैठे श्री राम जी

जब दरबार में बैठे श्री राम जी, चरणों में शीश झुकाएं हनुमान जी। अजर अमर तुम अंजनी के लाला, ऐसा वरदान सीता माता ने दे डाला।

हनुमान जी के इस कृत्य और समर्पण से भगवान राम और माता सीता अत्यंत प्रसन्न हुए। भगवान राम के दरबार में, जहां भक्तों का सम्मान होता है, हनुमान जी ने अपनी विनम्रता और भक्ति का प्रदर्शन किया। उन्होंने भगवान राम के चरणों में अपना शीश झुका दिया, जो उनकी दास्य भक्ति का उच्चतम स्तर दर्शाता है।

माता सीता ने उन्हें “अजर-अमर” रहने का वरदान दिया। यह वरदान केवल भौतिक अमरता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि जो भक्त पूर्ण भक्ति के मार्ग पर चलता है, उसकी भक्ति युगों तक जीवित रहती है। हनुमान जी का यह वरदान हमें यह सिखाता है कि सच्चे समर्पण से भक्त अपने आराध्य के दिल में स्थान बना लेता है।


निष्कर्ष

सिया जी से पूछ रहे अंजनी के लाला, मांग में सिंदूर मैया किस लिए डाला।

यह भजन हमें सिखाता है कि भक्ति में जिज्ञासा और सहजता का भी महत्वपूर्ण स्थान है। हनुमान जी के प्रश्न से लेकर उनके समर्पण तक की यात्रा इस बात का प्रतीक है कि सच्चा भक्त अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण से ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।

भजन के हर हिस्से में न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक संदर्भ छिपे हैं। माता सीता और भगवान राम के साथ हनुमान जी का यह संवाद भक्ति के मार्ग पर चलने वालों के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

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