- – यह गीत भगवान शिव के प्रति गहरे भक्ति और श्रद्धा को दर्शाता है, जिसमें भक्त दर्शन की तीव्र इच्छा रखता है।
- – भक्त अपने मन की प्यास और आशा लेकर कैलाश पर्वत के वासी भोलेनाथ के दर पर आता है।
- – जीवन की कठिनाइयों और सूखेपन के बीच, भक्त भगवान से निर्मल छाया और मार्गदर्शन की प्रार्थना करता है।
- – भक्त अपने सारे बंधन तोड़कर केवल भगवान से जुड़ने की इच्छा रखता है और पूर्ण विश्वास के साथ अरदास करता है।
- – गीत में भगवान शिव को “कैलाशी घट के वासी” और “भोले रे” के रूप में पुकारा गया है, जो उनकी सरलता और करुणा को दर्शाता है।
मेरे नैना बरस गए,
दर्शन को तरस गए।
तर्ज – कभी बंधन जुड़ा लिया।
श्लोक – आया हूँ मैं तेरे दर पे,
खाली झोली लेके,
कर दे पूरी आशा मेरी,
दाता दरश दिखा के।
मेरे नैना बरस गए,
दर्शन को तरस गए,
ओ भोले रे,
कब से बैठा हूँ दर्शन की,
मन में आस लिए,
हे कैलाशी घट के वासी,
हे कैलाशी घट के वासी,
ओ भोले रे,
दर पे आया हूँ दर्शन की,
मन में प्यास लिए।।
मैं तुझको कैसे रिझाऊं,
तू ही बता दे मुझको,
मुझे ना कुछ भी सूझे,
दिखा दे राह तू मुझको,
तेरी चौखट पे आया हूँ,
बड़ा मन में विश्वास लिए,
हे कैलाशी घट के वासी,
हे कैलाशी घट के वासी,
ओ भोले रे,
दर पे आया हूँ दर्शन की,
मन में प्यास लिए।।
तोड़ के सबसे नाता,
तुम्ही से नाता जोड़ा,
तेरे दर पे आया हूँ,
मैं भोला दौड़ा दौड़ा,
मेरे मन मंदिर में जलते है,
तेरे नाम के नाथ दिये,
हे कैलाशी घट के वासी,
हे कैलाशी घट के वासी,
ओ भोले रे,
दर पे आया हूँ दर्शन की,
मन में प्यास लिए।।
है रुखा रुखा जीवन,
प्रभु दो निर्मल छाया,
मुरादे लेकर मन की,
शरण में तेरी आया,
खड़ा हूँ मैं अरदास लिए,
बड़ा मन में विश्वास लिए,
खड़ा हूँ मैं अरदास लिए,
बड़ा मन में विश्वास लिए,
हे कैलाशी घट के वासी,
हे कैलाशी घट के वासी,
ओ भोले रे,
दर पे आया हूँ दर्शन की,
मन में प्यास लिए।।
मेरे नैना बरस गए,
दर्शन को तरस गए,
ओ भोले रे,
कब से बैठा हूँ दर्शन की,
मन में आस लिए,
हे कैलाशी घट के वासी,
हे कैलाशी घट के वासी,
ओ भोले रे,
दर पे आया हूँ दर्शन की,
मन में प्यास लिए।।