भगवान अय्यप्पन अष्टोत्तर शतनामावली in Hindi/Sanskrit
ॐ महाशास्त्रे नमः।
ॐ महादेवाय नमः।
ॐ महादेवसुताय नमः।
ॐ अव्याय नमः।
ॐ लोककर्त्रे नमः।
ॐ लोकभर्त्रे नमः।
ॐ लोकहर्त्रे नमः।
ॐ परात्पराय नमः।
ॐ त्रिलोकरक्षकाय नमः।
ॐ धन्विने नमः।
ॐ तपस्विने नमः।
ॐ भूतसैनिकाय नमः।
ॐ मन्त्रवेदिने नमः।
ॐ महावेदिने नमः।
ॐ मारुताय नमः।
ॐ जगदीश्वराय नमः।
ॐ लोकाध्यक्षाय नमः।
ॐ अग्रण्ये नमः।
ॐ श्रीमते नमः।
ॐ अप्रमेयपराक्रमाय नमः।
ॐ सिम्हारूढाय नमः।
ॐ गजारूढाय नमः।
ॐ हयारूढाय नमः।
ॐ महेश्वराय नमः।
ॐ नानाशस्त्रधराय नमः।
ॐ अनर्घाय नमः।
ॐ नानाविद्या विशारदाय नमः।
ॐ नानारूपधराय नमः।
ॐ वीराय नमः।
ॐ नानाप्राणिनिवेषिताय नमः।
ॐ भूतेशाय नमः।
ॐ भूतिदाय नमः।
ॐ भृत्याय नमः।
ॐ भुजङ्गाभरणोज्वलाय नमः।
ॐ इक्षुधन्विने नमः।
ॐ पुष्पबाणाय नमः।
ॐ महारूपाय नमः।
ॐ महाप्रभवे नमः।
ॐ मायादेवीसुताय नमः।
ॐ मान्याय नमः।
ॐ महनीयाय नमः।
ॐ महागुणाय नमः।
ॐ महाशैवाय नमः।
ॐ महारुद्राय नमः।
ॐ वैष्णवाय नमः।
ॐ विष्णुपूजकाय नमः।
ॐ विघ्नेशाय नमः।
ॐ वीरभद्रेशाय नमः।
ॐ भैरवाय नमः।
ॐ षण्मुखप्रियाय नमः।
ॐ मेरुशृङ्गसमासीनाय नमः।
ॐ मुनिसङ्घनिषेविताय नमः।
ॐ देवाय नमः।
ॐ भद्राय नमः।
ॐ जगन्नाथाय नमः।
ॐ गणनाथाय नमः।
ॐ गणेश्वराय नमः।
ॐ महायोगिने नमः।
ॐ महामायिने नमः।
ॐ महाज्ञानिने नमः।
ॐ महास्थिराय नमः।
ॐ देवशास्त्रे नमः।
ॐ भूतशास्त्रे नमः।
ॐ भीमहासपराक्रमाय नमः।
ॐ नागहाराय नमः।
ॐ नागकेशाय नमः।
ॐ व्योमकेशाय नमः।
ॐ सनातनाय नमः।
ॐ सगुणाय नमः।
ॐ निर्गुणाय नमः।
ॐ नित्याय नमः।
ॐ नित्यतृप्ताय नमः।
ॐ निराश्रयाय नमः।
ॐ लोकाश्रयाय नमः।
ॐ गणाधीशाय नमः।
ॐ चतुःषष्टिकलामयाय नमः।
ॐ ऋग्यजुःसामाथर्वात्मने नमः।
ॐ मल्लकासुरभञ्जनाय नमः।
ॐ त्रिमूर्तये नमः।
ॐ दैत्यमथनाय नमः।
ॐ प्रकृतये नमः।
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः।
ॐ कालज्ञानिने नमः।
ॐ महाज्ञानिने नमः।
ॐ कामदाय नमः।
ॐ कमलेक्षणाय नमः।
ॐ कल्पवृक्षाय नमः।
ॐ महावृक्षाय नमः।
ॐ विद्यावृक्षाय नमः।
ॐ विभूतिदाय नमः।
ॐ संसारतापविच्छेत्रे नमः।
ॐ पशुलोकभयङ्कराय नमः।
ॐ रोगहन्त्रे नमः।
ॐ प्राणदात्रे नमः।
ॐ परगर्वविभञ्जनाय नमः।
ॐ सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञाय नमः।
ॐ नीतिमते नमः।
ॐ पापभञ्जनाय नमः।
ॐ पुष्कलापूर्णासंयुक्ताय नमः।
ॐ परमात्मने नमः।
ॐ सताङ्गतये नमः।
ॐ अनन्तादित्यसङ्काशाय नमः।
ॐ सुब्रह्मण्यानुजाय नमः।
ॐ बलिने नमः।
ॐ भक्तानुकम्पिने नमः।
ॐ देवेशाय नमः।
ॐ भगवते नमः।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
Ayyappan Ashtottara Shatnamavali in English
Om Mahashastre Namah
Om Mahadevaya Namah
Om Mahadevasutaya Namah
Om Avyay Namah
Om Lokakartre Namah
Om Lokabhartre Namah
Om Lokahartre Namah
Om Paratparaya Namah
Om Trilokarakshakaya Namah
Om Dhanvine Namah
Om Tapasvine Namah
Om Bhutasainikaya Namah
Om Mantravedine Namah
Om Mahavedine Namah
Om Marutaya Namah
Om Jagadishvaraya Namah
Om Lokadhyakshaya Namah
Om Agranye Namah
Om Shrimate Namah
Om Aprameyaparakramaya Namah
Om Simharudhaya Namah
Om Gajarudhaya Namah
Om Hayarudhaya Namah
Om Maheshvaraya Namah
Om Nanashastradharaya Namah
Om Anarghaya Namah
Om Nanavidya Visharadaya Namah
Om Nanarupadharaya Namah
Om Viraya Namah
Om Nanapraniniveshitaya Namah
Om Bhuteshaya Namah
Om Bhutidaya Namah
Om Bhrityaya Namah
Om Bhujangabharanojjvalaya Namah
Om Ikshudhanvine Namah
Om Pushpabanaya Namah
Om Maharupaya Namah
Om Mahaprabhave Namah
Om Mayadevisutaya Namah
Om Manya Namah
Om Mahaniyaya Namah
Om Mahagunaya Namah
Om Mahashaivaya Namah
Om Maharudraya Namah
Om Vaishnavaya Namah
Om Vishnupujakaya Namah
Om Vighneshaya Namah
Om Virabhadreshaya Namah
Om Bhairavaya Namah
Om Shanmukhapriyaya Namah
Om Merushringasamasinaya Namah
Om Munisanghanishevitaya Namah
Om Devaya Namah
Om Bhadraya Namah
Om Jagannathaya Namah
Om Gananathaya Namah
Om Ganesvaraya Namah
Om Mahayogine Namah
Om Mahamayine Namah
Om Mahajnanine Namah
Om Mahasthiraya Namah
Om Devashastre Namah
Om Bhutashastre Namah
Om Bhimahasaparakramaya Namah
Om Nagaharaya Namah
Om Nagakeshaya Namah
Om Vyomakeshaya Namah
Om Sanatanaya Namah
Om Sagunaya Namah
Om Nirgunaya Namah
Om Nityaya Namah
Om Nityatriptaya Namah
Om Nirashrayaya Namah
Om Lokashrayaya Namah
Om Ganadhishaya Namah
Om Chatushashtikalamayaya Namah
Om Rigyajuhsamatharvatmane Namah
Om Mallakasurabhanjanaya Namah
Om Trimurtaye Namah
Om Daityamathanaya Namah
Om Prakritaye Namah
Om Purushottamaya Namah
Om Kalajnanine Namah
Om Mahajnanine Namah
Om Kamadaya Namah
Om Kamalekshanaya Namah
Om Kalpavrikshaya Namah
Om Mahavrikshaya Namah
Om Vidyavrikshaya Namah
Om Vibhutidaya Namah
Om Samsaratapavichchhetre Namah
Om Pashulokabhayankaraya Namah
Om Rogahantraya Namah
Om Pranadatraya Namah
Om Paragarvibhanjanaya Namah
Om Sarvashastrartha Tatvajnaya Namah
Om Neetimate Namah
Om Papabhanjanaya Namah
Om Pushkalapurnasamyuktaya Namah
Om Paramatmane Namah
Om Satangataye Namah
Om Anantadityasankashaya Namah
Om Subrahmanyanujaya Namah
Om Baline Namah
Om Bhaktanukampine Namah
Om Deveshaya Namah
Om Bhagavate Namah
Om Bhaktavatsalaya Namah
भगवान अय्यप्पन अष्टोत्तर शतनामावली PDF Download
भगवान अय्यप्पन अष्टोत्तर शतनामावली का अर्थ
ॐ महाशास्त्रे नमः।
इस मंत्र में महाशास्त्र का अर्थ महान शास्त्रों के ज्ञाता या धारण करने वाले से है। यह भगवान की सर्वज्ञानता को दर्शाता है, जो समस्त वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान रखते हैं। इस वंदना के माध्यम से हम उन्हें नमन करते हैं, जो संसार के समस्त गूढ़ ज्ञान और रहस्यों को जानते हैं।
महाशास्त्र का महत्व
भगवान को महाशास्त्र के रूप में आदर देने का कारण यह है कि वे केवल बाहरी दुनिया के ही नहीं, बल्कि आत्मा के भी ज्ञान का भंडार हैं। उन्हें सभी नियमों और सिद्धांतों का ज्ञाता माना जाता है, और वे स्वयं ही संसार के महानतम शास्त्रों का आधार हैं।
ॐ महादेवाय नमः।
यह मंत्र भगवान शिव की महिमा को दर्शाता है। महादेव का अर्थ होता है “महान देव,” अर्थात देवताओं के देवता। भगवान शिव को महादेव के रूप में पूजा जाता है क्योंकि वे संहारक और सृष्टि के पुनर्निर्माणकर्ता माने जाते हैं।
महादेव का अर्थ और महत्व
महादेव के रूप में शिव परमशक्ति के स्रोत माने जाते हैं, जो हर प्रकार के जीवन और सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के जिम्मेदार हैं। उनके आदर में यह मंत्र समर्पित किया जाता है, जो हमें इस ब्रह्मांड की अनंतता और भगवान की महानता का अनुभव कराता है।
ॐ महादेवसुताय नमः।
इस मंत्र में महादेवसुत का अर्थ महादेव के पुत्र, अर्थात् भगवान गणेश से है। भगवान गणेश को इस संसार के पहले पूज्य देवता के रूप में माना जाता है, जो हर शुभ कार्य की शुरुआत में पूजा जाते हैं।
महादेवसुत का महत्व
भगवान गणेश को महादेव का पुत्र मानकर उनकी पूजा की जाती है, क्योंकि वे बाधाओं को दूर करने वाले, बुद्धि के दाता और सफलता के कारक माने जाते हैं। इस मंत्र के माध्यम से हम उन्हें नमन करते हैं, जो जीवन के हर क्षेत्र में हमारी सहायता करते हैं।
ॐ अव्याय नमः।
अव्यय का अर्थ होता है “अविनाशी”। यह भगवान की उस शक्ति को दर्शाता है जो सदा एक समान रहती है, जो समय, परिवर्तन या विनाश से प्रभावित नहीं होती। भगवान अव्यय हैं, यानी उनका अस्तित्व हमेशा बना रहता है और वे नित्य और अपरिवर्तनीय हैं।
अव्यय का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची शक्ति वह है जो कभी समाप्त नहीं होती। वह हमेशा अस्तित्व में रहती है और सृष्टि के हर परिवर्तन के बावजूद अचल रहती है। इस मंत्र के माध्यम से हम भगवान को नमन करते हैं, जो इस संसार के सभी अस्थायी वस्त्रों से परे हैं।
ॐ लोककर्त्रे नमः।
लोककर्ता का अर्थ है “संसार का निर्माता”। यह भगवान की उस भूमिका को बताता है जिसमें वे इस समस्त सृष्टि के रचयिता माने जाते हैं। वे ही इस संसार की उत्पत्ति का कारण हैं और वही इसे संरचना और रूप प्रदान करते हैं।
लोककर्ता का महत्व
भगवान को लोककर्ता के रूप में मानकर हम उन्हें इस सृष्टि की हर चीज़ का मूल कारण मानते हैं। संसार के हर प्राणी, वस्तु और घटना उनकी शक्ति से उत्पन्न हुई है, और वे इस सृष्टि के शाश्वत निर्माता हैं।
ॐ लोकभर्त्रे नमः।
लोकभर्ता का अर्थ है “संसार का पालनकर्ता”। भगवान न केवल इस संसार की रचना करते हैं, बल्कि वे इसकी रक्षा और पालन भी करते हैं। यह भगवान की पालन करने वाली और संरक्षण देने वाली भूमिका को दर्शाता है।
लोकभर्ता का महत्व
भगवान को लोकभर्ता के रूप में पूजने का अर्थ है कि वे सृष्टि के हर हिस्से का ध्यान रखते हैं और उसकी देखरेख करते हैं। वे जीवों को जीवन देने के साथ-साथ उन्हें जीवन में आवश्यक संसाधन और शक्ति भी प्रदान करते हैं।
ॐ लोकहर्त्रे नमः।
लोकहर्ता का अर्थ होता है “संसार का संहारकर्ता”। भगवान को इस रूप में देखा जाता है जब वे इस संसार के अस्थायी तत्वों का विनाश करते हैं। यह संसार का चक्र है, जिसमें सृष्टि, पालन और संहार तीनों की महत्वपूर्ण भूमिकाएं होती हैं।
लोकहर्ता का महत्व
संहारक के रूप में भगवान का यह रूप हमें जीवन की अस्थिरता और परिवर्तनशीलता की याद दिलाता है। हर उत्पत्ति का अंत होना तय है, और भगवान इस संहार के कारक हैं, जो नई सृष्टि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
ॐ परात्पराय नमः।
परात्पर का अर्थ होता है “जो सबसे श्रेष्ठ है”। भगवान को परात्पर के रूप में मानकर उन्हें सर्वोच्च शक्ति माना जाता है, जो सभी देवताओं और शक्तियों से भी ऊपर है। वे इस ब्रह्मांड के सबसे बड़े अधिपति और सर्वोच्च शासक हैं।
परात्पर का महत्व
परात्पर भगवान की सर्वश्रेष्ठता और अनंतता को व्यक्त करता है। इसका अर्थ यह है कि वे सबसे उच्च और आदरणीय हैं, और उनकी शक्ति, ज्ञान और अस्तित्व किसी से भी कम नहीं है।
ॐ त्रिलोकरक्षकाय नमः।
त्रिलोकरक्षक का अर्थ है “तीनों लोकों के रक्षक”। हिंदू धर्म में तीन प्रमुख लोक माने जाते हैं – स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक। भगवान को त्रिलोकरक्षक के रूप में इस सृष्टि के तीनों लोकों की रक्षा करने वाला माना जाता है।
त्रिलोकरक्षक का महत्व
भगवान की इस भूमिका का उद्देश्य तीनों लोकों के संतुलन और सुरक्षा को बनाए रखना है। वे इन तीनों लोकों के जीवों को संकटों से बचाते हैं और उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। त्रिलोकरक्षक के रूप में उनकी पूजा हमें जीवन में सुरक्षा और शांति का आशीर्वाद देती है।
ॐ धन्विने नमः।
धन्विन का अर्थ होता है “धनुषधारी”। इस वंदना में भगवान को धनुषधारी के रूप में नमन किया जाता है, जो कि उनकी योद्धा और रक्षक स्वरूप को दर्शाता है। धनुष भगवान की उन क्षमताओं को व्यक्त करता है जिससे वे अधर्म और अन्याय का नाश करते हैं।
धन्विन का महत्व
भगवान का यह रूप हमें संघर्ष और संकटों के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है। वे केवल सृजनकर्ता और पालक ही नहीं, बल्कि आवश्यक होने पर विनाशकारी भी हो सकते हैं, जो असत्य और अधर्म का अंत करने के लिए तैयार रहते हैं।
ॐ तपस्विने नमः।
तपस्वी का अर्थ होता है “तपस्या करने वाला”। यह भगवान की उस शक्ति को दर्शाता है जो वे अपनी तपस्या और योग साधना से प्राप्त करते हैं। वे सबसे बड़े तपस्वी माने जाते हैं, जिनकी साधना से संपूर्ण संसार को ऊर्जा और शक्ति प्राप्त होती है।
तपस्वी का महत्व
भगवान का तपस्वी रूप यह सिखाता है कि आत्म-अनुशासन, ध्यान और तपस्या से व्यक्ति अपार शक्ति प्राप्त कर सकता है। यह रूप हमें ध्यान और आत्म-संयम के महत्व की ओर इशारा करता है, जो आत्मिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
ॐ भूतसैनिकाय नमः।
भूतसैनिक का अर्थ है “भूतों की सेना का नेतृत्व करने वाला”। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को भूतों और प्रेतों का सेनापति माना जाता है। यह उनके उन असामान्य और अलौकिक शक्तियों को व्यक्त करता है, जो परलोक से जुड़े हैं।
भूतसैनिक का महत्व
भगवान का यह रूप उनकी शक्तियों की असीम सीमा को दर्शाता है। वे सजीवों और मृत आत्माओं दोनों के अधिपति हैं, और वे भूत-प्रेतों पर नियंत्रण रखते हैं। यह रूप यह भी बताता है कि भगवान का सामर्थ्य हर प्रकार के जीवन पर समान रूप से लागू होता है।
ॐ मन्त्रवेदिने नमः।
मंत्रवेदि का अर्थ होता है “मंत्रों के ज्ञाता”। भगवान को इस रूप में उन सभी पवित्र मंत्रों का ज्ञान है, जिनसे सृष्टि और जीवन का संचालन होता है। मंत्र वे पवित्र शब्द होते हैं, जिनके माध्यम से भगवान की स्तुति की जाती है।
मन्त्रवेदि का महत्व
भगवान का मंत्रवेदि रूप हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और शक्ति मंत्रों में निहित होती है। ये मंत्र हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते हैं। भगवान इन मंत्रों के अर्थ और शक्ति को समझते हैं और उनका सर्वोत्तम प्रयोग करते हैं।
ॐ महावेदिने नमः।
महावेदि का अर्थ है “महान वेदों का ज्ञाता”। भगवान को महावेदि के रूप में चारों वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद – का महान ज्ञाता माना जाता है। वे वेदों के समस्त ज्ञान के धनी हैं।
महावेदि का महत्व
वेद संसार के सबसे प्राचीन और महान धार्मिक ग्रंथ हैं, जिनमें सृष्टि, धर्म और अध्यात्म का सार भरा हुआ है। भगवान महावेदि के रूप में वे सभी वेदों का ज्ञान रखते हैं और उनके माध्यम से जीवों को धर्म और आध्यात्म का मार्ग दिखाते हैं।
ॐ मारुताय नमः।
मारुत का अर्थ होता है “वायु”। इस वंदना में भगवान को वायु तत्व के रूप में पूजा जाता है। मारुत देवता वायु के अधिपति होते हैं और भगवान को वायु रूप में इस संसार की शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है।
मारुत का महत्व
वायु सृष्टि के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है, जो जीवन के लिए आवश्यक है। भगवान का यह रूप हमें वायु की शक्ति और उसके महत्व की याद दिलाता है। यह भी दर्शाता है कि वे संसार की सभी ऊर्जा और शक्तियों के नियंत्रक हैं।
ॐ जगदीश्वराय नमः।
जगदीश्वर का अर्थ है “संपूर्ण जगत के ईश्वर”। भगवान को जगदीश्वर के रूप में सभी लोकों और सृष्टियों के शासक के रूप में पूजा जाता है। वे इस समस्त ब्रह्मांड के निर्माता, पालक और संहारक हैं।
जगदीश्वर का महत्व
भगवान का यह रूप उनकी सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी सत्ता को दर्शाता है। वे इस पूरे जगत के स्वामी और शासक हैं, और उनका शासन हर चीज पर समान रूप से होता है। उनके आदेश से ही सृष्टि की समस्त गतिविधियां संचालित होती हैं।
ॐ लोकाध्यक्षाय नमः।
लोकाध्यक्ष का अर्थ होता है “संपूर्ण लोकों का अध्यक्ष”। भगवान को इस रूप में समस्त लोकों के अध्यक्ष के रूप में माना जाता है, जो कि सृष्टि की प्रत्येक घटना और क्रिया का संचालन करते हैं।
लोकाध्यक्ष का महत्व
भगवान का यह रूप हमें इस बात का आभास कराता है कि वे समस्त लोकों और जीवों की प्रत्येक गतिविधि का निरीक्षण और संचालन करते हैं। वे इस ब्रह्मांड के सभी नियमों के निर्माता और उन पर निगरानी रखने वाले हैं।
ॐ अग्रण्ये नमः।
अग्रण्य का अर्थ होता है “सर्वोत्तम और अग्रणी”। भगवान को इस रूप में सभी देवताओं और प्राणियों से सबसे महान और अग्रणी माना जाता है। वे सभी कार्यों में सबसे आगे हैं, चाहे वह सृष्टि का निर्माण हो या संहार।
अग्रण्य का महत्व
भगवान का अग्रण्य रूप यह दर्शाता है कि वे हर कार्य में पहले स्थान पर होते हैं। उनकी श्रेष्ठता और अगुवाई इस ब्रह्मांड के हर पहलू में स्पष्ट होती है। यह रूप हमें प्रेरित करता है कि हमें भी जीवन में अग्रणी और श्रेष्ठ बनने का प्रयास करना चाहिए।
ॐ श्रीमते नमः।
श्रीमत का अर्थ है “समृद्ध और सम्पन्न”। भगवान को श्रीमत के रूप में धन, ऐश्वर्य और वैभव का स्रोत माना जाता है। वे समस्त संपत्तियों के दाता हैं और उनकी पूजा करने से जीवन में समृद्धि और शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्रीमत का महत्व
भगवान का यह रूप हमें जीवन में धन और ऐश्वर्य के महत्व का बोध कराता है, परन्तु यह भी सिखाता है कि यह ऐश्वर्य केवल भगवान की कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। उनके बिना संसार की कोई भी संपत्ति टिकाऊ नहीं होती।
ॐ अप्रमेयपराक्रमाय नमः।
अप्रमेयपराक्रम का अर्थ होता है “असीम और अप्रमेय पराक्रम वाले”। भगवान की शक्ति, पराक्रम और वीरता की कोई सीमा नहीं होती। वे अजेय और अनंत पराक्रम के धनी हैं, जिन्हें मापना असंभव है।
अप्रमेयपराक्रम का महत्व
भगवान का यह रूप हमें बताता है कि उनकी शक्ति को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। उनका पराक्रम और वीरता इस ब्रह्मांड की हर शक्ति से बढ़कर है। यह रूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची शक्ति वही होती है, जिसे मापा न जा सके।
ॐ सिम्हारूढाय नमः।
सिंहारूढ़ का अर्थ है “सिंह पर सवार”। भगवान को सिंह पर सवार दिखाया जाता है, जो उनकी वीरता, शक्ति और सत्ता का प्रतीक है। सिंह, शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है, और भगवान को इस रूप में शक्तिशाली योद्धा के रूप में देखा जाता है।
सिंहारूढ़ का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे साहस, शक्ति और अनंत ऊर्जा के धनी हैं। सिंह की सवारी उनकी इस अपरिमित शक्ति का प्रतीक है, जो संसार की हर चुनौती का सामना करने की क्षमता रखता है।
ॐ गजारूढाय नमः।
गजारूढ़ का अर्थ होता है “हाथी पर सवार”। भगवान को हाथी पर सवार दिखाया जाता है, जो उनकी विशालता, स्थिरता और बेजोड़ बल को दर्शाता है। हाथी स्थिरता और शक्ति का प्रतीक होता है, और भगवान का यह रूप उनके अपार धैर्य और साहस को इंगित करता है।
गजारूढ़ का महत्व
भगवान का यह रूप हमें धैर्य और स्थिरता का महत्व सिखाता है। हाथी के समान, भगवान स्थिर और शक्तिशाली होते हैं, जो किसी भी बाधा को धैर्यपूर्वक और दृढ़ता से पार करते हैं। यह रूप हमें जीवन में स्थिरता और धैर्य के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
ॐ हयारूढाय नमः।
हयारूढ़ का अर्थ है “घोड़े पर सवार”। भगवान को इस रूप में घोड़े पर सवार दिखाया जाता है, जो गति, ऊर्जा और त्वरित क्रिया का प्रतीक है। घोड़ा हमेशा गति और तेजी से कार्य करने की शक्ति का प्रतीक होता है।
हयारूढ़ का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि जीवन में गति और क्रिया आवश्यक हैं। भगवान हर कार्य में गति लाते हैं और संसार की हर प्रक्रिया को तेजी से संचालित करते हैं। उनका यह रूप हमें यह संदेश देता है कि हमें जीवन में सक्रिय और गतिशील रहना चाहिए।
ॐ महेश्वराय नमः।
महेश्वर का अर्थ होता है “महान ईश्वर”। भगवान शिव को महेश्वर के रूप में पूजा जाता है, जो सृष्टि, पालन और संहार के तीनों कार्यों के अधिपति हैं। वे संपूर्ण ब्रह्मांड के महान स्वामी और संरक्षक हैं।
महेश्वर का महत्व
भगवान शिव का महेश्वर रूप उनकी महानता और सर्वशक्तिमानता का प्रतीक है। वे इस संसार की समस्त क्रियाओं के नियंत्रक हैं और उनकी कृपा से ही संसार का संचालन होता है। उनका यह रूप हमें संसार के प्रति उनकी असीम कृपा और प्रेम का अनुभव कराता है।
ॐ नानाशस्त्रधराय नमः।
नानाशस्त्रधारी का अर्थ है “अनेकों शस्त्रों को धारण करने वाला”। भगवान को इस रूप में विविध शस्त्रों का धारणकर्ता माना जाता है, जो उनकी युद्ध कौशल और रक्षक रूप को दर्शाता है। वे अधर्म और असत्य के नाश के लिए अनेकों प्रकार के शस्त्रों का प्रयोग करते हैं।
नानाशस्त्रधारी का महत्व
भगवान का यह रूप उनकी विविध शक्तियों और युद्धकौशल को दर्शाता है। वे इस संसार के हर संकट का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें भी अपने जीवन में संघर्षों का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
ॐ अनर्घाय नमः।
अनर्घ का अर्थ है “अनमोल”। भगवान को अनमोल के रूप में माना जाता है, क्योंकि उनकी कृपा, ज्ञान और प्रेम का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता। उनका अस्तित्व और उनका प्रेम इस संसार के हर भौतिक मूल्य से परे है।
अनर्घ का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि उनका प्रेम और कृपा अनमोल हैं। इसे किसी भी भौतिक मूल्य से नहीं आंका जा सकता। उनका यह रूप हमें यह भी सिखाता है कि हमें जीवन में उन चीजों की कद्र करनी चाहिए, जो वास्तव में अनमोल होती हैं, जैसे प्रेम, विश्वास और भक्ति।
ॐ नानाविद्या विशारदाय नमः।
नानाविद्या विशारद का अर्थ होता है “अनेक विद्याओं में निपुण”। भगवान को इस रूप में समस्त विद्याओं का ज्ञाता और उनमें निपुण माना जाता है। वे सभी प्रकार के ज्ञान, विद्या और कला में पारंगत हैं और समस्त सृष्टि के ज्ञान के स्रोत हैं।
नानाविद्या विशारद का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे हर प्रकार के ज्ञान के स्रोत हैं, चाहे वह वेदों का ज्ञान हो, शास्त्रों का या सांसारिक कला और विज्ञान का। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में विविधता का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है और प्रत्येक विद्या का सम्मान करना चाहिए।
ॐ नानारूपधराय नमः।
नानारूपधारी का अर्थ होता है “अनेक रूप धारण करने वाला”। भगवान को इस रूप में इस संसार के हर रूप में देखा जाता है। वे हर प्राणी, वस्तु और घटना में व्याप्त होते हैं और अनगिनत रूपों में प्रकट होते हैं।
नानारूपधारी का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे हर स्थान, हर जीव और हर वस्तु में मौजूद हैं। वे इस संसार के हर रूप में छिपे हुए हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें सभी रूपों में भगवान को देखना चाहिए और उनके प्रति आदर और सम्मान बनाए रखना चाहिए।
ॐ वीराय नमः।
वीर का अर्थ होता है “वीरता से भरपूर” या “शूरवीर”। भगवान को इस रूप में महान योद्धा और साहसिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वे न केवल युद्धकौशल में निपुण हैं, बल्कि असत्य और अधर्म के खिलाफ हमेशा खड़े रहते हैं।
वीर का महत्व
भगवान का वीर रूप हमें यह सिखाता है कि हमें हर परिस्थिति में साहस और दृढ़ता का प्रदर्शन करना चाहिए। चाहे वह व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष हों या आध्यात्मिक चुनौतियाँ, वीरता का भाव जीवन में बहुत आवश्यक है। भगवान का यह रूप हमें साहस और शक्ति के प्रति प्रेरित करता है।
ॐ नानाप्राणिनिवेषिताय नमः।
नानाप्राणिनिवेषित का अर्थ होता है “अनेक जीवों में स्थित”। भगवान को इस रूप में हर प्रकार के जीवों में व्याप्त माना जाता है। वे हर प्राणी के भीतर निवास करते हैं और सभी के जीवन का आधार हैं।
नानाप्राणिनिवेषित का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे केवल एक विशिष्ट स्थान या रूप तक सीमित नहीं हैं। वे सभी जीवों के भीतर समाहित हैं, चाहे वह छोटा कीट हो या महान मानव। यह हमें सभी प्राणियों के प्रति सम्मान और दया की भावना रखने के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि उनमें भी भगवान का वास होता है।
ॐ भूतेशाय नमः।
भूतेश का अर्थ है “सभी भूतों (जीवों) के स्वामी”। भगवान को इस रूप में समस्त जीव-जंतुओं और प्राणियों के स्वामी के रूप में माना जाता है। वे प्रत्येक जीव की जीवन शक्ति का स्रोत हैं और उन सभी का संरक्षण करते हैं।
भूतेश का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि हर जीव का जीवन भगवान की इच्छा और शक्ति पर निर्भर करता है। वे इस ब्रह्मांड के प्रत्येक जीव के रक्षक और स्वामी हैं। इस रूप से हम यह सीखते हैं कि हमें सभी जीवों के प्रति करुणा और जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करना चाहिए।
ॐ भूतिदाय नमः।
भूतिदाय का अर्थ होता है “समृद्धि और ऐश्वर्य देने वाला”। भगवान को इस रूप में समस्त प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का दाता माना जाता है। वे अपने भक्तों को आशीर्वाद स्वरूप समृद्धि प्रदान करते हैं, चाहे वह धन-संपत्ति हो या आध्यात्मिक उन्नति।
भूतिदाय का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे समस्त सुख, संपत्ति और उन्नति के स्रोत हैं। इस संसार की समृद्धि और ऐश्वर्य उन्हीं के कृपा से प्राप्त होते हैं। उनके इस रूप से हम यह सिखते हैं कि भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि के लिए भगवान की शरण में जाना आवश्यक है।
ॐ भृत्याय नमः।
भृत्य का अर्थ होता है “सेवक”। भगवान को इस रूप में अपने भक्तों के सेवक के रूप में माना जाता है, जो अपने भक्तों के हर कार्य में उनकी सहायता करते हैं और उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे भक्तवत्सल हैं और सदा अपने भक्तों की सेवा में रहते हैं।
भृत्य का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वे अपने भक्तों के सेवक बनकर उनके कल्याण के लिए कार्य करते हैं। यह हमें भक्ति की महिमा और भगवान की करुणा का अनुभव कराता है।
ॐ भुजङ्गाभरणोज्वलाय नमः।
भुजंगाभरणोज्ज्वल का अर्थ होता है “सर्प के आभूषण से सुशोभित”। भगवान शिव को विशेष रूप से उनके कंठ में वासुकि नाग के आभूषण के रूप में सुशोभित माना जाता है। यह उनकी शक्ति, निर्भयता और उनके तंत्र का प्रतीक है।
भुजंगाभरणोज्ज्वल का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे निर्भयता और शक्ति के प्रतीक हैं। सर्प को आभूषण के रूप में धारण करना यह दिखाता है कि भगवान ने हर प्रकार के भय और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें अपने भय को जीतने के लिए भगवान की शरण में जाना चाहिए।
ॐ इक्षुधन्विने नमः।
इक्षुधन्विन का अर्थ होता है “गन्ने के धनुष धारण करने वाला”। यह भगवान कामदेव का प्रतीकात्मक चित्रण है, जिनके धनुष को गन्ने का बना हुआ बताया गया है। यह प्रेम और आकर्षण का प्रतीक है, जो सभी जीवों के बीच की ऊर्जा है।
इक्षुधन्विन का महत्व
भगवान का यह रूप हमें प्रेम और आकर्षण की महत्ता की याद दिलाता है। प्रेम इस संसार को बांधने वाली सबसे बड़ी शक्ति है और इसका स्रोत भगवान ही हैं। यह रूप यह भी दर्शाता है कि प्रेम और करुणा से संसार का संचालन होता है।
ॐ पुष्पबाणाय नमः।
पुष्पबाण का अर्थ होता है “फूलों के बाण चलाने वाला”। यह भी कामदेव का प्रतीकात्मक चित्रण है, जो अपने पुष्पबाणों से प्रेम का संचार करते हैं। भगवान को इस रूप में प्रेम और सुंदरता का स्रोत माना जाता है।
पुष्पबाण का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि प्रेम और सौंदर्य जीवन में सबसे महान शक्तियाँ हैं। पुष्पबाण प्रेम और आकर्षण के प्रतीक होते हैं, जो हमारे जीवन को समृद्ध और आनंदमय बनाते हैं। भगवान का यह रूप हमें प्रेम की शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है।
ॐ महारूपाय नमः।
महारूप का अर्थ है “महान और अद्भुत रूप वाला”। भगवान का यह रूप उनके असीम, अनंत और अद्वितीय स्वरूप को दर्शाता है, जो सभी रूपों से परे है और अनंत आकाश जितना विशाल है।
महारूप का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि उनका रूप इस संसार के सभी सीमाओं से परे है। वे अनंत और असीमित हैं, और उनकी महिमा का कोई अंत नहीं है। इस रूप में भगवान की पूजा हमें उनके अनंत स्वरूप का स्मरण कराती है, जो हर चीज में व्याप्त है।
ॐ महाप्रभवे नमः।
महाप्रभु का अर्थ होता है “महान प्रभु”। भगवान को इस रूप में सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ माना जाता है। वे इस संसार के सबसे बड़े स्वामी और संचालक हैं, जिनके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
महाप्रभु का महत्व
भगवान का यह रूप हमें उनकी असीम शक्ति और अधिकार का स्मरण कराता है। वे इस समस्त सृष्टि के स्वामी हैं और उनकी कृपा से ही जीवन का संचालन होता है। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें जीवन के हर पहलू में भगवान की शरण लेनी चाहिए और उनकी महानता का आदर करना चाहिए।
ॐ मायादेवीसुताय नमः।
मायादेवीसुत का अर्थ है “माया देवी के पुत्र”। भगवान को इस रूप में माया के स्वामी के रूप में पूजा जाता है। माया वह शक्ति है जो इस संसार को भ्रमित करती है और उसे वास्तविकता से दूर रखती है। भगवान इस माया के पार जाते हैं और इसे नियंत्रित करते हैं।
मायादेवीसुत का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि यह संसार माया से भरा हुआ है, लेकिन भगवान इस माया के पार हैं। वे ही हमें इस माया के जाल से मुक्त कर सकते हैं और सत्य का मार्ग दिखा सकते हैं। उनका यह रूप हमें वास्तविकता की ओर प्रेरित करता है।
ॐ मान्याय नमः।
मान्य का अर्थ होता है “आदरणीय” या “सम्माननीय”। भगवान को इस रूप में महान और सम्माननीय माना जाता है। उनका आदर और सम्मान सभी जीवों द्वारा किया जाता है, क्योंकि वे समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं।
मान्य का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे हर प्राणी द्वारा आदरणीय हैं। उनके प्रति सम्मान जीवन में धर्म और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अनिवार्य माना जाता है। यह रूप हमें यह सिखाता है कि भगवान का आदर और भक्ति हमें सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
ॐ महनीयाय नमः।
महनीय का अर्थ है “महान” या “महत्वपूर्ण”। भगवान को इस रूप में सर्वश्रेष्ठ और अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। वे इस ब्रह्मांड के सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख शक्ति हैं, जिनके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
महनीय का महत्व
भगवान का यह रूप हमें उनकी महानता और सर्वोत्कृष्टता का बोध कराता है। वे इस संसार के हर पहलू में महान हैं, चाहे वह सृजन हो, पालन हो, या संहार। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में महानता और श्रेष्ठता केवल भगवान की कृपा से प्राप्त हो सकती है।
ॐ महागुणाय नमः।
महागुण का अर्थ होता है “महान गुणों से युक्त”। भगवान को इस रूप में अनंत और महान गुणों का स्वामी माना जाता है। वे करुणा, दया, प्रेम, शौर्य, और ज्ञान के सागर हैं। उनके गुण अनंत और असीम हैं, जो जीवन के हर पहलू में हमें मार्गदर्शन करते हैं।
महागुण का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि उनके गुणों का कोई अंत नहीं है। वे सभी अच्छे गुणों के स्रोत हैं और उनका अनुसरण करके हम भी इन महान गुणों को अपने जीवन में धारण कर सकते हैं। भगवान के इस रूप की पूजा हमें जीवन में श्रेष्ठता और शुद्धता की ओर प्रेरित करती है।
ॐ महाशैवाय नमः।
महाशैव का अर्थ है “महान शिवभक्त”। भगवान शिव के भक्तों के लिए यह एक विशेष मान्यता है कि वे भी शिव के साथ एक गहरे और आध्यात्मिक संबंध में हैं। भगवान को इस रूप में शिव के प्रति अपार भक्ति और समर्पण के प्रतीक रूप में पूजा जाता है।
महाशैव का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि शिव की भक्ति में ही वास्तविक मुक्ति और शांति निहित है। शिव के प्रति अपार प्रेम और श्रद्धा हमें जीवन के सभी कष्टों से मुक्त कर सकती है। उनका यह रूप हमें शिव की भक्ति की शक्ति का स्मरण कराता है और हमें भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
ॐ महारुद्राय नमः।
महारुद्र का अर्थ है “महान रुद्र”। रुद्र भगवान शिव का एक उग्र और विनाशकारी रूप है, जो संहार और विनाश का प्रतीक है। भगवान को इस रूप में संहारक और सृष्टि के पुनर्निर्माणकर्ता के रूप में पूजा जाता है।
महारुद्र का महत्व
भगवान शिव का महारुद्र रूप यह दर्शाता है कि वे केवल सृजन और पालन ही नहीं, बल्कि संहार भी करते हैं। संहार जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, जिससे नए सृजन की शुरुआत होती है। भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि हर अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है और हमें जीवन के बदलावों को स्वीकार करना चाहिए।
ॐ वैष्णवाय नमः।
वैष्णव का अर्थ है “भगवान विष्णु का अनुयायी”। भगवान को इस रूप में विष्णु के प्रति भक्त के रूप में माना जाता है। शिव और विष्णु का संबंध एक अद्वितीय है, जिसमें दोनों एक-दूसरे के प्रति अपार सम्मान और भक्ति रखते हैं।
वैष्णव का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे सभी देवी-देवताओं के प्रति समान आदर और भक्ति रखते हैं। यह रूप हमें यह सिखाता है कि भगवान की पूजा में विभाजन नहीं होना चाहिए और सभी देवताओं के प्रति समान श्रद्धा रखनी चाहिए। विष्णु और शिव का यह आपसी प्रेम और भक्ति का संबंध हमें एकता और सामंजस्य का संदेश देता है।
ॐ विष्णुपूजकाय नमः।
विष्णुपूजक का अर्थ है “विष्णु की पूजा करने वाला”। भगवान शिव को विष्णु की पूजा करने वाले के रूप में भी मान्यता प्राप्त है, जो यह दर्शाता है कि शिव और विष्णु के बीच आपसी प्रेम और भक्ति का एक अनोखा संबंध है। यह दोनों देवताओं की एकता और सृजन, पालन, और संहार के त्रिदेविक रूप को दर्शाता है।
विष्णुपूजक का महत्व
भगवान का यह रूप हमें सिखाता है कि धर्म में विभाजन का कोई स्थान नहीं है। शिव स्वयं विष्णु के पूजक हैं, जो यह सिखाता है कि सभी देवताओं की पूजा एक समान होनी चाहिए। विष्णुपूजक रूप यह भी दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में कोई भेदभाव नहीं होता, और सभी देवी-देवताओं के प्रति समान प्रेम और श्रद्धा होनी चाहिए।
ॐ विघ्नेशाय नमः।
विघ्नेश का अर्थ होता है “विघ्नों के नाशक”। भगवान गणेश को विघ्नेश के रूप में पूजा जाता है क्योंकि वे हर प्रकार की बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करने वाले माने जाते हैं। उन्हें हर शुभ कार्य से पहले पूजने की परंपरा है ताकि जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकें।
विघ्नेश का महत्व
भगवान गणेश का यह रूप यह सिखाता है कि जीवन में आने वाली बाधाएं और कठिनाइयां केवल उनकी कृपा से दूर हो सकती हैं। उनके इस रूप की पूजा हमें यह विश्वास दिलाती है कि भगवान गणेश हर संकट में हमारे साथ हैं और हमें हर मुश्किल से उबारने की क्षमता रखते हैं।
ॐ वीरभद्रेशाय नमः।
वीरभद्रेश का अर्थ है “वीरभद्र का स्वामी”। भगवान शिव को वीरभद्र का निर्माता और स्वामी माना जाता है, जो कि उनका उग्र और युद्धशील रूप है। वीरभद्र भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे, जब सती के यज्ञ में उनका अपमान हुआ था।
वीरभद्रेश का महत्व
भगवान शिव का यह रूप उनकी न्यायप्रियता और असत्य के खिलाफ उनकी उग्रता का प्रतीक है। वीरभद्र को अधर्म और असत्य का नाश करने वाला माना जाता है, जो शिव की न्याय की भावना को दर्शाता है। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी उग्रता भी आवश्यक हो जाती है।
ॐ भैरवाय नमः।
भैरव का अर्थ होता है “भयानक” या “भयावह”। भगवान शिव को भैरव के रूप में उनके उग्र और भयानक रूप में पूजा जाता है। यह रूप उनके संहारक रूप का प्रतीक है, जिसमें वे अधर्म, अन्याय और असत्य का अंत करते हैं। भैरव को संसार के सभी पापों और बुराइयों को नष्ट करने वाला माना जाता है।
भैरव का महत्व
भगवान का भैरव रूप यह दर्शाता है कि अधर्म और अन्याय के विनाश के लिए उग्रता आवश्यक है। वे संसार के बुराई और अंधकार को समाप्त करते हैं, ताकि सृष्टि में संतुलन और शांति बनी रहे। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें जीवन में अन्याय और अधर्म का विरोध करना चाहिए और इसके लिए दृढ़ और साहसी होना चाहिए।
ॐ षण्मुखप्रियाय नमः।
षण्मुखप्रिय का अर्थ होता है “षण्मुख (कार्तिकेय) के प्रिय”। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को षण्मुख के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उनके छह मुख हैं। भगवान शिव को इस रूप में अपने पुत्र कार्तिकेय के प्रति उनके प्रेम और स्नेह के रूप में पूजा जाता है।
षण्मुखप्रिय का महत्व
भगवान शिव का यह रूप पिता और पुत्र के प्रेम के महत्व को दर्शाता है। कार्तिकेय के प्रति उनका स्नेह और प्रेम अद्वितीय है। यह रूप हमें यह सिखाता है कि पारिवारिक संबंधों में प्रेम और सम्मान का कितना महत्व है, और हमें अपने परिवार के प्रति प्रेम और स्नेह का प्रदर्शन करना चाहिए।
ॐ मेरुशृङ्गसमासीनाय नमः।
मेरुशृंगसमासीन का अर्थ है “मेरु पर्वत की चोटी पर विराजमान”। भगवान शिव को इस रूप में पर्वतों के राजा, मेरु पर्वत की चोटी पर विराजमान माना जाता है। यह रूप उनकी महानता और ऊंचाई को दर्शाता है, क्योंकि मेरु पर्वत हिंदू धर्म में दिव्यता और स्थिरता का प्रतीक है।
मेरुशृंगसमासीन का महत्व
भगवान का यह रूप हमें स्थिरता, ऊंचाई और शाश्वत शक्ति का प्रतीक दिखाता है। मेरु पर्वत की तरह, भगवान शिव भी अडिग और अचल हैं। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में ऊंचाई और स्थिरता प्राप्त करना महत्वपूर्ण है और इसके लिए धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है।
ॐ मुनिसङ्घनिषेविताय नमः।
मुनिसंघनिषेवित का अर्थ है “मुनियों के संघ द्वारा सेवा किए जाने वाले”। भगवान शिव को इस रूप में महान संतों और ऋषियों द्वारा पूज्य माना जाता है। मुनियों का संघ भगवान की भक्ति और ध्यान में लीन रहता है, और वे शिव की पूजा और सेवा करते हैं।
मुनिसंघनिषेवित का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि महान संत और ऋषि भी भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। मुनियों के संघ द्वारा भगवान की पूजा यह सिखाती है कि भक्ति और ध्यान के माध्यम से ही भगवान तक पहुंचा जा सकता है। यह रूप हमें आध्यात्मिकता और साधना का महत्व सिखाता है।
ॐ देवाय नमः।
देव का अर्थ होता है “दिव्य” या “ईश्वर”। भगवान शिव को इस रूप में सर्वोच्च देवता के रूप में माना जाता है, जो सभी देवताओं के स्वामी और सृष्टि के परम नियंत्रक हैं। देव रूप में भगवान शिव की पूजा उनके दिव्य स्वरूप और शक्ति को दर्शाती है।
देव का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे इस संसार के परम देवता हैं। उनकी दिव्यता और शक्ति सर्वव्यापी है और उनके बिना संसार का संचालन असंभव है। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें भगवान के दिव्य स्वरूप का आदर करना चाहिए और उनकी भक्ति में अपना जीवन समर्पित करना चाहिए।
ॐ भद्राय नमः।
भद्र का अर्थ होता है “मंगलमय” या “शुभ”। भगवान शिव को इस रूप में मंगलमय और शुभकारी माना जाता है। वे अपने भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाते हैं और उन्हें हर प्रकार के अनिष्टों से बचाते हैं।
भद्र का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे सदा अपने भक्तों की मंगलमय और शुभकारी भावनाओं की रक्षा करते हैं। वे हमारे जीवन में सुख और शांति लाते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान की कृपा प्राप्त होती है और हमारा जीवन सुखमय होता है।
ॐ जगन्नाथाय नमः।
जगन्नाथ का अर्थ है “संपूर्ण जगत के स्वामी”। भगवान को जगन्नाथ के रूप में समस्त ब्रह्मांड के स्वामी और नियंत्रक माना जाता है। वे इस संसार की समस्त गतिविधियों और प्रक्रियाओं का संचालन करते हैं और इस जगत के प्रत्येक प्राणी का मार्गदर्शन करते हैं।
जगन्नाथ का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस समस्त ब्रह्मांड के सर्वोच्च शासक और स्वामी हैं। उनका यह रूप हमें जीवन में भगवान के प्रति समर्पण और विश्वास का महत्व सिखाता है, क्योंकि वे ही हमारी हर गतिविधि का संचालन करते हैं और हमें सही मार्ग दिखाते हैं।
ॐ गणनाथाय नमः।
गणनाथ का अर्थ है “गणों के स्वामी”। भगवान शिव को गणों का स्वामी माना जाता है, जो कि उनकी सेवा करने वाले दिव्य प्राणी होते हैं। गणों का यह संघ भगवान की सेवा और उनकी इच्छाओं का पालन करने के लिए सदैव तत्पर रहता है।
गणनाथ का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे सभी गणों के स्वामी हैं, जो सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और भगवान की सेवा में अपना जीवन समर्पित करना चाहिए।
ॐ गणेश्वराय नमः।
गणेश्वर का अर्थ होता है “गणों के ईश्वर”। भगवान गणेश को इस रूप में गणों का परम देवता और नेता माना जाता है। उन्हें प्रथम पूज्य देवता के रूप में माना जाता है, जो सभी कार्यों में अग्रणी होते हैं और बाधाओं को दूर करते हैं।
गणेश्वर का महत्व
भगवान गणेश का यह रूप हमें यह सिखाता है कि हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश की पूजा से होनी चाहिए। वे हर बाधा को दूर करते हैं और हमें जीवन में सफलता का मार्ग दिखाते हैं। उनका यह रूप हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने जीवन के हर क्षेत्र में भगवान की कृपा और आशीर्वाद का महत्व समझना चाहिए।
ॐ महायोगिने नमः।
महायोगी का अर्थ है “महान योगी”। भगवान शिव को महायोगी के रूप में पूजनीय माना जाता है, क्योंकि वे ध्यान और योग की सर्वोच्च अवस्था में स्थित हैं। शिव को सभी योगों के अधिपति माना जाता है, जो साधना और आत्म-संयम के प्रतीक हैं।
महायोगी का महत्व
भगवान शिव का महायोगी रूप यह सिखाता है कि आत्म-संयम, ध्यान, और साधना ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है। योग का अर्थ केवल शारीरिक अभ्यास नहीं है, बल्कि आत्मा की शुद्धि और आत्मिक उन्नति भी है। भगवान शिव इस मार्ग के सबसे बड़े ज्ञाता और प्रेरक हैं। उनका यह रूप हमें अपने जीवन में ध्यान और साधना को महत्व देने के लिए प्रेरित करता है।
ॐ महामायिने नमः।
महामायी का अर्थ है “महान माया का स्वामी”। भगवान को इस रूप में संसार की माया या भ्रम के स्वामी के रूप में पूजा जाता है। माया वह शक्ति है जो जीवों को संसार के भौतिक मोह में बांधती है। भगवान शिव इस माया के पार हैं और वे इसे नियंत्रित करते हैं।
महामायी का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि यह संसार एक माया या भ्रम है, और सच्ची वास्तविकता से दूर है। भगवान शिव ही वह शक्ति हैं, जो इस माया से मुक्ति प्रदान कर सकते हैं। उनका यह रूप हमें आध्यात्मिक दृष्टि से जागरूक होने और भौतिक मोह से दूर रहने का संदेश देता है।
ॐ महाज्ञानिने नमः।
महाज्ञानी का अर्थ होता है “महान ज्ञान रखने वाला”। भगवान शिव को इस रूप में संपूर्ण ज्ञान का स्वामी माना जाता है। वे सृष्टि के हर रहस्य, विज्ञान, और अध्यात्म का गहन ज्ञान रखते हैं।
महाज्ञानी का महत्व
भगवान शिव का महाज्ञानी रूप हमें सिखाता है कि ज्ञान ही शक्ति है। वे संपूर्ण सृष्टि के ज्ञाता हैं और उनके पास हर प्रश्न का उत्तर है। इस रूप की पूजा हमें यह संदेश देती है कि हमें ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में सतत प्रयास करना चाहिए और आत्मज्ञान ही सच्चा धन है।
ॐ महास्थिराय नमः।
महास्थिर का अर्थ है “महान स्थिरता वाला”। भगवान को इस रूप में अचल और स्थिर माने जाते हैं। वे हर परिस्थिति में स्थिर और अडिग रहते हैं। यह रूप उनकी स्थिरता और संयम का प्रतीक है, जो जीवन के हर उतार-चढ़ाव में हमें धैर्य और स्थिरता बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
महास्थिर का महत्व
भगवान का यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में स्थिरता का बहुत महत्व है। चाहे जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएं, हमें अपनी स्थिरता और धैर्य नहीं खोना चाहिए। भगवान शिव का यह रूप हमें मानसिक और भावनात्मक स्थिरता का महत्व समझाता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक है।
ॐ देवशास्त्रे नमः।
देवशास्त्र का अर्थ है “देवताओं के शास्त्र”। भगवान को इस रूप में सभी देवताओं के शास्त्रों और विधानों के ज्ञाता और पालनकर्ता माना जाता है। वे देवताओं के नियम और अनुशासन के आधार हैं और वे ही देवताओं को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
देवशास्त्र का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे न केवल मानव जीवन के बल्कि देवताओं के भी शास्त्रों और नियमों के ज्ञाता हैं। उनकी इस महत्ता का अर्थ है कि वे जीवन के सभी नियमों का पालन और संचालन करते हैं। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि शास्त्रों का अनुसरण और सम्मान करना आवश्यक है।
ॐ भूतशास्त्रे नमः।
भूतशास्त्र का अर्थ है “भूतों (जीवों) का शास्त्र”। भगवान शिव को इस रूप में समस्त जीवों, चाहे वह भूत, प्रेत या अन्य अलौकिक जीव हों, उनके शास्त्रों का ज्ञाता माना जाता है। वे सभी जीवों के नियमों और सिद्धांतों के भी पालनकर्ता हैं।
भूतशास्त्र का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे केवल इस संसार के जीवों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सभी अलौकिक और परलौकिक प्राणियों के शास्त्रों के भी अधिपति हैं। वे हर प्रकार के जीवों का संचालन करते हैं और उनके नियमों का पालन कराते हैं। यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन के हर पहलू का एक शास्त्रीय नियम होता है, जिसे पालन करना आवश्यक है।
ॐ भीमहासपराक्रमाय नमः।
भीमहासपराक्रम का अर्थ होता है “महान और भयंकर पराक्रम वाला”। भगवान को इस रूप में अपार शक्ति और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। उनका पराक्रम असाधारण और अजेय है, जो हर प्रकार की बुराई और अन्याय का अंत करने में सक्षम है।
भीमहासपराक्रम का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि उनकी शक्ति असीमित और अजेय है। वे किसी भी संकट या युद्ध में अपराजेय हैं और उनके सामने कोई टिक नहीं सकता। यह रूप हमें साहस और शक्ति का महत्व सिखाता है, और यह प्रेरणा देता है कि हमें अपने जीवन के हर संघर्ष में दृढ़ और साहसी बने रहना चाहिए।
ॐ नागहाराय नमः।
नागहार का अर्थ है “सर्पों का हार धारण करने वाला”। भगवान शिव को इस रूप में उनके गले में सर्पों का हार धारण किए हुए दिखाया जाता है। यह उनके निर्भयता और उनकी शक्ति का प्रतीक है, जो जीवन और मृत्यु के बीच संतुलन बनाए रखता है।
नागहार का महत्व
भगवान शिव का यह रूप उनकी शक्ति और मृत्यु के प्रति उनके अडिग स्वरूप को दर्शाता है। सर्प, जो भय और मृत्यु का प्रतीक होते हैं, भगवान के गले में आभूषण के रूप में धारण किए जाते हैं। यह हमें सिखाता है कि भगवान के शरण में जाकर हम किसी भी भय और मृत्यु से मुक्त हो सकते हैं।
ॐ नागकेशाय नमः।
नागकेश का अर्थ होता है “सर्पों से अलंकृत केशों वाला”। भगवान शिव के सिर पर सर्पों को धारण करने का यह रूप उनकी उग्रता और साहस का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि वे मृत्यु और भय पर नियंत्रण रखते हैं।
नागकेश का महत्व
भगवान का यह रूप हमें सिखाता है कि वे जीवन और मृत्यु दोनों के अधिपति हैं। उनके इस रूप से यह समझा जा सकता है कि सर्प जैसे भयावह प्रतीक भी भगवान की शक्ति के सामने नतमस्तक होते हैं। यह रूप हमें जीवन में साहस और निर्भयता के साथ जीने की प्रेरणा देता है।
ॐ व्योमकेशाय नमः।
व्योमकेश का अर्थ होता है “आकाश के समान केशों वाला”। भगवान शिव के केशों को इस रूप में आकाश के समान अनंत और विस्तारित माना जाता है। यह उनकी व्यापकता और सर्वव्यापकता का प्रतीक है, जो इस संसार के हर कोने में व्याप्त है।
व्योमकेश का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि उनकी शक्ति और उपस्थिति आकाश के समान व्यापक है। वे हर दिशा, हर कोने और हर तत्व में समाहित हैं। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि भगवान की व्यापकता को समझने के लिए हमें अपने दृष्टिकोण को विस्तारित करना होगा और उनकी सर्वव्यापकता का अनुभव करना होगा।
ॐ सनातनाय नमः।
सनातन का अर्थ होता है “शाश्वत” या “अविनाशी”। भगवान को इस रूप में शाश्वत और अनंत माना जाता है, जो कालचक्र से परे हैं। वे सृष्टि के प्रारंभ से ही अस्तित्व में हैं और सृष्टि के अंत के बाद भी बने रहेंगे।
सनातन का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे समय और स्थान के बंधनों से परे हैं। वे नित्य और अपरिवर्तनीय हैं, जिनका कोई प्रारंभ और अंत नहीं है। यह रूप हमें जीवन की अस्थिरता और परिवर्तनशीलता की याद दिलाता है, जबकि भगवान की उपस्थिति अटल और शाश्वत है। हमें इस संसार की नश्वरता के बीच शाश्वत सत्य को पहचानने की आवश्यकता है।
ॐ सगुणाय नमः।
सगुण का अर्थ होता है “गुणों से युक्त”। भगवान को इस रूप में गुणों से संपन्न माना जाता है, जो हर जीव को दिशा और उद्देश्य प्रदान करते हैं। सगुण रूप में भगवान के पास सभी भौतिक और आध्यात्मिक गुण होते हैं, जो जीवन को सुंदर और सार्थक बनाते हैं।
सगुण का महत्व
भगवान का सगुण रूप यह सिखाता है कि भगवान के पास अनेकों गुण होते हैं, जिनमें प्रेम, करुणा, दया, शक्ति, और ज्ञान प्रमुख हैं। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि हमें भी जीवन में इन गुणों को धारण करना चाहिए। सगुण भगवान हमें इस संसार में अपना मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते हैं, जिससे हम अपने जीवन को उच्चतम उद्देश्यों तक ले जा सकते हैं।
ॐ निर्गुणाय नमः।
निर्गुण का अर्थ है “गुणों से परे”। भगवान का निर्गुण रूप उन सभी भौतिक गुणों से परे होता है, जो इस संसार के नियमों और सीमाओं में आते हैं। वे असीम, निराकार और अनंत हैं, जो किसी विशेष गुण या रूप में बंधे हुए नहीं हैं।
निर्गुण का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि उनका वास्तविक स्वरूप सभी भौतिक गुणों से परे है। वे शुद्ध चेतना के रूप में व्याप्त हैं, जो किसी भी भौतिक बंधनों में बंधे नहीं हैं। यह रूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची आध्यात्मिकता वह है, जिसमें हम भगवान के निर्गुण रूप को समझते हैं और उससे जुड़ते हैं। यह हमें संसार के अस्थायी गुणों से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है।
ॐ नित्याय नमः।
नित्य का अर्थ होता है “नित्य और शाश्वत”। भगवान को इस रूप में सदा रहने वाला, नित्य और कभी नष्ट न होने वाला माना जाता है। वे समय और स्थान की सीमाओं से परे हैं और हमेशा अस्तित्व में रहते हैं।
नित्य का महत्व
भगवान का नित्य रूप यह सिखाता है कि वे इस सृष्टि की हर प्रक्रिया के बावजूद अटल और शाश्वत रहते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में अस्थायी चीजों के पीछे भागने की बजाय शाश्वत सत्य की ओर ध्यान देना चाहिए। भगवान की पूजा हमें यह सिखाती है कि वे नित्य हैं और उनकी कृपा से ही हमें शाश्वत शांति प्राप्त हो सकती है।
ॐ नित्यतृप्ताय नमः।
नित्यतृप्त का अर्थ है “सदैव तृप्त”। भगवान को इस रूप में सदैव संतुष्ट और तृप्त माना जाता है। वे हर स्थिति में संतुष्ट रहते हैं और किसी भी बाहरी वस्तु या परिस्थिति से प्रभावित नहीं होते।
नित्यतृप्त का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची संतुष्टि और तृप्ति भीतर से आती है। भौतिक सुख-सुविधाएं और संसाधन अस्थायी होते हैं, लेकिन भगवान नित्यतृप्त हैं, जो आत्मिक शांति और संतुष्टि के प्रतीक हैं। उनका यह रूप हमें यह संदेश देता है कि हमें अपने भीतर की संतुष्टि को खोजना चाहिए, जो केवल आध्यात्मिक उन्नति से प्राप्त हो सकती है।
ॐ निराश्रयाय नमः।
निराश्रय का अर्थ होता है “जिसे किसी का आश्रय नहीं चाहिए”। भगवान को इस रूप में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र माना जाता है। वे किसी भी बाहरी समर्थन या सहायता पर निर्भर नहीं होते, बल्कि स्वयं ही संपूर्ण सृष्टि के आधार हैं।
निराश्रय का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस सृष्टि की सभी सीमाओं से परे हैं और उन्हें किसी भी प्रकार के सहारे की आवश्यकता नहीं होती। वे स्वयंसिद्ध और स्वावलंबी हैं। उनका यह रूप हमें आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाता है, जिसमें हम अपनी शक्तियों और क्षमताओं पर भरोसा करके आगे बढ़ सकते हैं।
ॐ लोकाश्रयाय नमः।
लोकाश्रय का अर्थ होता है “संपूर्ण लोकों का आश्रय”। भगवान को इस रूप में सभी जीवों और लोकों का आधार माना जाता है। वे सभी को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करते हैं और संसार के सभी प्राणियों का पालन-पोषण करते हैं।
लोकाश्रय का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस संसार के सभी जीवों के आश्रयदाता हैं। चाहे कोई कितना भी कमजोर या शक्तिहीन क्यों न हो, भगवान हमेशा उनके संरक्षण के लिए उपस्थित रहते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें भगवान की शरण में जाना चाहिए और उनके आश्रय को स्वीकार करना चाहिए, जो हमें हर संकट से बचाते हैं।
ॐ गणाधीशाय नमः।
गणाधीश का अर्थ होता है “गणों के अधिपति”। भगवान गणेश को इस रूप में पूजा जाता है, जो सभी गणों का नेता और अधिपति हैं। वे सबसे पहले पूजनीय देवता हैं और हर शुभ कार्य की शुरुआत उनकी पूजा से होती है।
गणाधीश का महत्व
भगवान गणेश का यह रूप यह दर्शाता है कि वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले और मार्गदर्शक हैं। वे गणों के प्रमुख हैं और उनके नेतृत्व में सभी कार्य सफल होते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें हर कार्य में शुरुआत से ही सही दिशा और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, जो हमें भगवान गणेश की पूजा से प्राप्त होती है।
ॐ चतुःषष्टिकलामयाय नमः।
चतुःषष्टिकलामय का अर्थ होता है “चौंसठ कलाओं से युक्त”। भगवान को इस रूप में सभी प्रकार की कलाओं और विधाओं का ज्ञाता माना जाता है। वे संगीत, नृत्य, कला, विज्ञान और अन्य सभी कलाओं में निपुण हैं।
चतुःषष्टिकलामय का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस सृष्टि की हर कला और विद्या के स्रोत हैं। उनकी कृपा से ही हम कलाओं में निपुणता प्राप्त कर सकते हैं। यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें भगवान की पूजा और ध्यान से जीवन के हर क्षेत्र में ज्ञान और कुशलता प्राप्त करनी चाहिए।
ॐ ऋग्यजुःसामाथर्वात्मने नमः।
ऋग्यजुःसामाथर्वात्मा का अर्थ है “ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का आत्मा”। भगवान को इस रूप में चारों वेदों का आधार और आत्मा माना जाता है। वेदों को हिंदू धर्म में सृष्टि का मूल ज्ञान माना जाता है, और भगवान इन सभी वेदों के ज्ञाता और पालक हैं।
ऋग्यजुःसामाथर्वात्मा का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वेदों का समस्त ज्ञान भगवान से उत्पन्न हुआ है। वे इन चारों वेदों का सार हैं और उनकी कृपा से ही हमें वेदों का गूढ़ ज्ञान प्राप्त हो सकता है। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि वेदों का अध्ययन और पालन जीवन में उन्नति और मुक्ति का मार्ग है।
ॐ मल्लकासुरभञ्जनाय नमः।
मल्लकासुरभञ्जन का अर्थ है “मल्लकासुर (राक्षस) का नाश करने वाला”। भगवान को इस रूप में अधर्म और बुराई के नाशक के रूप में पूजा जाता है। मल्लकासुर एक राक्षस था, जिसने अत्याचार किए थे, और भगवान ने उसका विनाश किया था।
मल्लकासुरभञ्जन का महत्व
भगवान का यह रूप दर्शाता है कि वे बुराई और अन्याय को समाप्त करने के लिए हर संभव कदम उठाते हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर संकट का अंत करते हैं। यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुए हमें अपने अंदर की बुराइयों का नाश करना चाहिए, ताकि हम शुद्ध और उन्नत हो सकें।
ॐ त्रिमूर्तये नमः।
त्रिमूर्ति का अर्थ है “तीनों रूपों में विद्यमान”। भगवान को इस रूप में सृष्टि के तीन मुख्य देवताओं – ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) – के रूप में पूजा जाता है। ये तीनों देवता सृष्टि, पालन और संहार के तीन महत्वपूर्ण कार्यों का संचालन करते हैं।
त्रिमूर्ति का महत्व
भगवान का त्रिमूर्ति रूप यह सिखाता है कि सृष्टि, पालन और संहार जीवन के अनिवार्य चक्र हैं। ब्रह्मा सृष्टि के जनक, विष्णु पालक, और शिव संहारक के रूप में पूजनीय हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में सृजन, पालन और विनाश तीनों प्रक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं और इनका सम्मान करना चाहिए।
ॐ दैत्यमथनाय नमः।
दैत्यमथन का अर्थ है “राक्षसों का विनाश करने वाला”। भगवान को इस रूप में दैत्यों (राक्षसों) का संहारक माना जाता है। वे उन सभी दैत्यों और असुरों का नाश करते हैं, जो अधर्म और अत्याचार फैलाते हैं।
दैत्यमथन का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे इस संसार के सभी राक्षसों, चाहे वे बाहरी हों या हमारे अंदर के नकारात्मक गुण, उनका नाश करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें अपने भीतर के दैत्यों, जैसे क्रोध, लोभ और ईर्ष्या का अंत करना चाहिए और भगवान की शरण में आना चाहिए।
ॐ प्रकृतये नमः।
प्रकृति का अर्थ है “संपूर्ण प्रकृति का स्वरूप”। भगवान को इस रूप में प्रकृति का मूल कारण माना जाता है। वे इस सृष्टि की समस्त प्राकृतिक प्रक्रियाओं के स्रोत हैं, और वे ही इस संसार की संतुलन और स्थिरता को बनाए रखते हैं।
प्रकृति का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे इस संसार की समस्त प्राकृतिक शक्तियों का आधार हैं। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश – ये सभी तत्व भगवान की शक्तियों का ही स्वरूप हैं। यह रूप हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है, और यह सिखाता है कि हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना चाहिए।
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः।
पुरुषोत्तम का अर्थ है “सर्वोत्तम पुरुष”। भगवान को इस रूप में सबसे उत्तम और श्रेष्ठ पुरुष माना जाता है। वे आदर्श मानवता और पूर्णता का प्रतीक हैं, जो हर गुण और शक्ति में सर्वोच्च हैं।
पुरुषोत्तम का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे हर प्रकार की श्रेष्ठता का प्रतीक हैं। वे आदर्श पुरुष हैं, जो सत्य, धर्म, न्याय, और करुणा के प्रतीक हैं। उनका यह रूप हमें जीवन में पूर्णता और आदर्श की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है और यह सिखाता है कि हमें भगवान के गुणों को अपनाना चाहिए।
ॐ कालज्ञानिने नमः।
कालज्ञानी का अर्थ है “समय का ज्ञाता”। भगवान को इस रूप में समय का महान ज्ञाता माना जाता है। वे समय के हर पहलू को समझते हैं और उसके अनुसार सृष्टि का संचालन करते हैं।
कालज्ञानी का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे समय के सभी रहस्यों को जानते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि समय की शक्ति को समझना और उसका सम्मान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान काल के अधिपति हैं, और उनके माध्यम से ही हम सही समय पर सही निर्णय ले सकते हैं।
ॐ महाज्ञानिने नमः।
महाज्ञानी का अर्थ होता है “महान ज्ञान रखने वाला”। भगवान को इस रूप में सभी प्रकार के ज्ञान का स्रोत माना जाता है। वे सृष्टि के हर रहस्य, विज्ञान, और अध्यात्म का गहन ज्ञान रखते हैं।
महाज्ञानी का महत्व
भगवान शिव का महाज्ञानी रूप हमें सिखाता है कि ज्ञान ही शक्ति है। वे संपूर्ण सृष्टि के ज्ञाता हैं और उनके पास हर प्रश्न का उत्तर है। इस रूप की पूजा हमें यह संदेश देती है कि हमें ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में सतत प्रयास करना चाहिए और आत्मज्ञान ही सच्चा धन है।
ॐ कामदाय नमः।
कामद का अर्थ होता है “इच्छाओं को पूर्ण करने वाला”। भगवान को इस रूप में इच्छाओं और कामनाओं का पूर्तिकर्ता माना जाता है। वे अपने भक्तों की सभी इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और उन्हें सुख और शांति प्रदान करते हैं।
कामद का महत्व
भगवान का यह रूप यह दर्शाता है कि वे भक्तों की हर सच्ची और शुद्ध इच्छा को पूरा करने में सक्षम हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि जब हम भगवान की शरण में जाते हैं, तो वे हमारी सभी इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करते हैं। यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें अपनी इच्छाओं को भगवान की भक्ति और श्रद्धा के साथ जोड़ना चाहिए।
ॐ कमलेक्षणाय नमः।
कमलेक्षण का अर्थ है “कमल के समान नेत्रों वाला”। भगवान को इस रूप में सुंदर और दिव्य नेत्रों वाला माना जाता है, जो कि कमल के फूल के समान कोमल और शांत होते हैं। उनके नेत्रों में प्रेम, करुणा, और शांति की असीम झलक होती है।
कमलेक्षण का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि उनका दृष्टिकोण प्रेम और करुणा से भरा हुआ है। उनके नेत्रों की शांति और सौम्यता यह दर्शाती है कि भगवान सभी जीवों के प्रति करुणा और प्रेम का भाव रखते हैं। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें भी अपने जीवन में करुणा और प्रेम के भावों को अपनाना चाहिए।
ॐ कल्पवृक्षाय नमः।
कल्पवृक्ष का अर्थ है “इच्छाओं को पूर्ण करने वाला वृक्ष”। भगवान को इस रूप में कल्पवृक्ष की तरह माना जाता है, जो अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा करने वाला है। वे अपने भक्तों की सभी आवश्यकताओं को समझते हैं और उनकी इच्छाओं को साकार करते हैं।
कल्पवृक्ष का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे जीवन के हर क्षेत्र में हमारे सहायक और समर्थक हैं। कल्पवृक्ष की तरह, वे हमें न केवल भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी प्रेरित करते हैं। उनका यह रूप हमें विश्वास दिलाता है कि भगवान की कृपा से हमारी सभी इच्छाएँ पूरी हो सकती हैं, बशर्ते वे सच्ची और शुद्ध हों।
ॐ महावृक्षाय नमः।
महावृक्ष का अर्थ है “विशाल वृक्ष”। भगवान को इस रूप में विशाल और स्थिर वृक्ष की तरह माना जाता है, जो सृष्टि को छाया और संरक्षण प्रदान करता है। वे अपने भक्तों को हर प्रकार की सुरक्षा और आश्रय देते हैं, जैसे एक बड़ा वृक्ष अपने नीचे जीवों को शरण देता है।
महावृक्ष का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे हमारे जीवन के हर संकट और कठिनाई में हमारी रक्षा करते हैं। महावृक्ष की तरह, वे हमें शरण और सुरक्षा प्रदान करते हैं और हमें जीवन के हर संघर्ष से बचाते हैं। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि हमें भगवान की शरण में रहकर जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करना चाहिए, क्योंकि वे सदा हमारे साथ होते हैं।
ॐ विद्यावृक्षाय नमः।
विद्यावृक्ष का अर्थ होता है “ज्ञान का वृक्ष”। भगवान को इस रूप में ज्ञान का स्रोत माना जाता है, जो अपने भक्तों को शिक्षा, विद्या और ज्ञान प्रदान करते हैं। वे हर प्रकार के ज्ञान का भंडार हैं और उनकी कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
विद्यावृक्ष का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस सृष्टि के समस्त ज्ञान का मूल स्रोत हैं। उनके आशीर्वाद से हम जीवन में शिक्षा और विद्या की प्राप्ति कर सकते हैं। उनका यह रूप हमें प्रेरित करता है कि हमें जीवन में ज्ञान के प्रति हमेशा जागरूक और प्रेरित रहना चाहिए, क्योंकि ज्ञान ही सच्ची शक्ति है।
ॐ विभूतिदाय नमः।
विभूतिदा का अर्थ है “विभूति (धन, समृद्धि) प्रदान करने वाला”। भगवान को इस रूप में समृद्धि और ऐश्वर्य का दाता माना जाता है। वे अपने भक्तों को न केवल भौतिक संपत्ति, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करते हैं।
विभूतिदा का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे समस्त प्रकार की समृद्धि और ऐश्वर्य के स्रोत हैं। उनकी कृपा से ही हमें जीवन में सुख, धन, और संतुष्टि प्राप्त हो सकती है। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें भगवान की शरण में जाना चाहिए, ताकि वे हमें जीवन के हर क्षेत्र में समृद्ध और सफल बना सकें।
ॐ संसारतापविच्छेत्रे नमः।
संसारतापविच्छेत्रे का अर्थ होता है “संसार के कष्टों को समाप्त करने वाला”। भगवान को इस रूप में इस भौतिक संसार के सभी कष्टों और पीड़ाओं को दूर करने वाला माना जाता है। वे इस संसार के दुखों को समाप्त करते हैं और अपने भक्तों को शांति प्रदान करते हैं।
संसारतापविच्छेत्रे का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस संसार के कष्टों और दुखों से हमें मुक्त करने वाले हैं। चाहे वह मानसिक पीड़ा हो, शारीरिक कष्ट हो, या किसी भी प्रकार का दुख हो, भगवान की कृपा से हम सभी से मुक्त हो सकते हैं। उनका यह रूप हमें यह विश्वास दिलाता है कि भगवान हमारे जीवन में शांति और आनंद लाते हैं और हमें हर प्रकार के दुखों से बचाते हैं।
ॐ पशुलोकभयङ्कराय नमः।
पशुलोकभयङ्कर का अर्थ होता है “पशुओं और प्राणियों के लिए भयंकर”। भगवान को इस रूप में उन शक्तियों के रूप में पूजा जाता है जो संसार के सभी प्राणियों पर उनका नियंत्रण और प्रभाव रखते हैं। वे संसार के सभी जीवों के लिए अपने रूप में शक्ति और अनुशासन का प्रतीक हैं।
पशुलोकभयङ्कर का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि उनकी शक्ति और शासन सभी जीवों पर लागू होती है। वे न केवल मानवों, बल्कि इस संसार के हर प्राणी के रक्षक और संचालक हैं। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि भगवान की शक्ति सर्वव्यापी है और उनके आदेश से ही इस संसार के सभी प्राणी जीवित रहते हैं।
ॐ रोगहन्त्रे नमः।
रोगहन्त्र का अर्थ है “रोगों का नाश करने वाला”। भगवान को इस रूप में सभी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रोगों का नाश करने वाला माना जाता है। वे अपने भक्तों को रोगों से मुक्ति प्रदान करते हैं और उन्हें स्वस्थ और सशक्त बनाते हैं।
रोगहन्त्र का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे सभी प्रकार के रोगों से हमें बचाने और मुक्ति देने वाले हैं। उनके आशीर्वाद से ही हमें स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि भगवान की पूजा और ध्यान से हम शारीरिक और मानसिक बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
ॐ प्राणदात्रे नमः।
प्राणदाता का अर्थ है “जीवन और प्राणों का दाता”। भगवान को इस रूप में सभी जीवों को जीवन और प्राण देने वाला माना जाता है। वे इस संसार के हर जीव के लिए जीवन शक्ति का स्रोत हैं और उनके बिना जीवन असंभव है।
प्राणदाता का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे सभी जीवों के जीवन का आधार हैं। उनकी कृपा से ही हम जीवित हैं और सांस ले रहे हैं। उनका यह रूप हमें जीवन के मूल्य और भगवान के प्रति कृतज्ञता का पाठ पढ़ाता है, क्योंकि भगवान ही हमें यह जीवन प्रदान करते हैं।
ॐ परगर्वविभञ्जनाय नमः।
परगर्वविभञ्जन का अर्थ होता है “दूसरों के अहंकार को तोड़ने वाला”। भगवान को इस रूप में सभी अहंकारी और गर्व से भरे व्यक्तियों के अहंकार का नाश करने वाला माना जाता है। वे उन सभी को दंडित करते हैं जो अन्याय और अहंकार के मार्ग पर चलते हैं।
परगर्वविभञ्जन का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि अहंकार और गर्व का अंत निश्चित है। भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें जीवन में विनम्र और सरल होना चाहिए, क्योंकि अहंकार और गर्व भगवान की दृष्टि में सबसे बड़ी बुराइयाँ हैं। उनका यह रूप हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची भक्ति और आध्यात्मिकता में विनम्रता का होना आवश्यक है।
ॐ सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञाय नमः।
सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञ का अर्थ है “सभी शास्त्रों और उनके सार का ज्ञाता”। भगवान को इस रूप में सभी धार्मिक और आध्यात्मिक शास्त्रों के मर्म और तत्व का ज्ञाता माना जाता है। वे समस्त शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों और उनके अर्थ को समझते हैं और उसका मार्गदर्शन अपने भक्तों को प्रदान करते हैं।
सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञ का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे ज्ञान के सर्वोच्च स्रोत हैं। वे सभी शास्त्रों के अर्थ और तत्व का पूरा ज्ञान रखते हैं और उनका पालन कराते हैं। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें शास्त्रों का अध्ययन और पालन करना चाहिए, ताकि हम जीवन के सच्चे अर्थ को समझ सकें और भगवान की कृपा प्राप्त कर सकें।
ॐ नीतिमते नमः।
नीतिमत का अर्थ होता है “नीति और धर्म का पालन करने वाला”। भगवान को इस रूप में सत्य, धर्म और न्याय के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। वे सदैव नीति के मार्ग पर चलते हैं और अपने भक्तों को भी न्याय और सत्य का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं।
नीतिमत का महत्व
भगवान का यह रूप हमें सिखाता है कि सत्य, धर्म और न्याय ही सच्चे मार्ग हैं। भगवान स्वयं इन गुणों का पालन करते हैं और अपने भक्तों को भी इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। यह रूप हमें जीवन में न्याय, सत्य और नैतिकता का पालन करने के लिए प्रेरित करता है, ताकि हम भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
ॐ पापभञ्जनाय नमः।
पापभञ्जन का अर्थ है “पापों का नाश करने वाला”। भगवान को इस रूप में सभी प्रकार के पापों और अधर्म का नाश करने वाला माना जाता है। वे अपने भक्तों के पापों को समाप्त करते हैं और उन्हें शुद्ध और पवित्र बनाते हैं।
पापभञ्जन का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे अपने भक्तों के सभी पापों को समाप्त कर सकते हैं, चाहे वे कितने ही बड़े क्यों न हों। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें अपने पापों का पश्चाताप करना चाहिए और भगवान की शरण में जाना चाहिए, ताकि वे हमारे जीवन को शुद्ध और पवित्र बना सकें।
ॐ पुष्कलापूर्णासंयुक्ताय नमः।
पुष्कलापूर्णासंयुक्त का अर्थ होता है “पुष्कला (धन-समृद्धि) और पूर्णा (पूर्णता) के साथ युक्त”। भगवान को इस रूप में संपन्नता और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। वे समृद्धि और पूर्णता के दाता हैं, जो अपने भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं।
पुष्कलापूर्णासंयुक्त का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे समृद्धि और पूर्णता के स्रोत हैं। उनकी कृपा से ही हमें जीवन में हर प्रकार की समृद्धि और संतुष्टि प्राप्त होती है। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें भगवान की पूजा और भक्ति में अपने जीवन को समर्पित करना चाहिए, ताकि हम भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्राप्त कर सकें।
ॐ परमात्मने नमः।
परमात्मा का अर्थ होता है “सर्वोच्च आत्मा”। भगवान को इस रूप में समस्त आत्माओं के स्रोत और आधार के रूप में पूजा जाता है। वे सभी जीवों के भीतर विद्यमान परमात्मा हैं और इस संसार की सर्वोच्च चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं।
परमात्मा का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस संसार के हर जीव के भीतर स्थित हैं और उनकी चेतना का स्रोत हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हर जीव में भगवान का वास होता है, और हमें सभी जीवों के प्रति आदर और प्रेम का भाव रखना चाहिए। यह रूप हमें आत्मज्ञान और परमात्मा की खोज की प्रेरणा देता है।
ॐ सताङ्गतये नमः।
सताङ्गति का अर्थ है “सत् (सत्य) के मार्ग पर चलने वाला”। भगवान को इस रूप में सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला माना जाता है। वे सदैव सत्य के मार्ग का पालन करते हैं और अपने भक्तों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
सताङ्गति का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि सत्य और धर्म का पालन ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें हर परिस्थिति में सत्य और धर्म का पालन करना चाहिए, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर हम भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ अनन्तादित्यसङ्काशाय नमः।
अनन्तादित्यसङ्काश का अर्थ है “अनंत सूर्य के समान तेजस्वी”। भगवान को इस रूप में अनंत सूर्य के समान प्रकाशवान और तेजस्वी माना जाता है। उनका प्रकाश और तेज अनंत है, जो इस समस्त सृष्टि को आलोकित करता है।
अनन्तादित्यसङ्काश का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि उनका प्रकाश और तेज इस ब्रह्मांड में हर स्थान पर विद्यमान है। वे अज्ञान और अंधकार को समाप्त करके ज्ञान और प्रकाश का मार्ग दिखाते हैं। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि हमें जीवन में भगवान की ओर से प्राप्त प्रकाश का अनुसरण करना चाहिए, ताकि हम अज्ञान और अंधकार से मुक्त हो सकें और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कर सकें।
ॐ सुब्रह्मण्यानुजाय नमः।
सुब्रह्मण्यानुज का अर्थ है “सुब्रह्मण्य के छोटे भाई”। भगवान को इस रूप में भगवान सुब्रह्मण्य (भगवान कार्तिकेय) के छोटे भाई के रूप में माना जाता है। सुब्रह्मण्य हिंदू धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं, और भगवान गणेश उनके छोटे भाई के रूप में पूजे जाते हैं।
सुब्रह्मण्यानुज का महत्व
भगवान गणेश का यह रूप हमें यह सिखाता है कि परिवार में भाइयों के बीच आपसी प्रेम और सम्मान का कितना महत्व है। भगवान गणेश और सुब्रह्मण्य के बीच आपसी प्रेम और समर्पण का संबंध हमारे लिए एक आदर्श है। यह रूप हमें पारिवारिक संबंधों की महत्ता को समझने और भाइयों के प्रति आदरभाव रखने की प्रेरणा देता है।
ॐ बलिने नमः।
बलि का अर्थ है “बलवान” या “शक्तिशाली”। भगवान को इस रूप में महान शक्ति और बल का प्रतीक माना जाता है। वे हर प्रकार की शक्ति के स्रोत हैं और अपनी शक्ति से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
बलि का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे अजेय और अपराजेय हैं। उनकी शक्ति इस ब्रह्मांड में सर्वोच्च है और उनकी कृपा से उनके भक्त भी हर कठिनाई का सामना करने में सक्षम होते हैं। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन में साहस और शक्ति का होना आवश्यक है और भगवान की भक्ति से हमें यह बल प्राप्त हो सकता है।
ॐ भक्तानुकम्पिने नमः।
भक्तानुकम्पी का अर्थ होता है “भक्तों पर दया करने वाला”। भगवान को इस रूप में अपने भक्तों के प्रति करुणामय और दयालु माना जाता है। वे अपने भक्तों की परेशानियों को समझते हैं और उन पर अपनी करुणा और दया की वर्षा करते हैं।
भक्तानुकम्पी का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे सदा अपने भक्तों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। उनकी करुणा और दया अनंत है, और वे अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए सदा तैयार रहते हैं। यह रूप हमें यह विश्वास दिलाता है कि भगवान सदा हमारे साथ हैं, और उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा हमें हर संकट से उबार सकती है।
ॐ देवेशाय नमः।
देवेश का अर्थ होता है “देवताओं के स्वामी”। भगवान को इस रूप में समस्त देवताओं के अधिपति और उनके मार्गदर्शक के रूप में पूजा जाता है। वे सभी देवताओं के नेतृत्वकर्ता हैं और उनकी सहायता से इस संसार का संचालन करते हैं।
देवेश का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे इस सृष्टि के समस्त देवताओं के अधिपति हैं और उनकी शक्ति के बिना देवताओं का कार्य भी असंभव है। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण करना चाहिए, क्योंकि वे इस ब्रह्मांड के सर्वोच्च शासक और मार्गदर्शक हैं।
ॐ भगवते नमः।
भगवन् का अर्थ है “संपूर्ण गुणों से युक्त”। भगवान को इस रूप में वेदों में वर्णित संपूर्ण गुणों और शक्तियों के स्वामी माना जाता है। वे अनंत, सर्वशक्तिमान, और सर्वज्ञानी हैं, जिनके पास सभी श्रेष्ठ गुण और शक्ति हैं।
भगवन् का महत्व
भगवान का यह रूप हमें यह सिखाता है कि वे अनंत गुणों और शक्तियों के स्वामी हैं। उनका यह रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें भगवान के गुणों का अनुसरण करना चाहिए और अपने जीवन में शुद्धता, सत्य, और करुणा के गुणों को अपनाना चाहिए। भगवान की पूजा हमें जीवन में उन्नति और सफलता की ओर ले जाती है।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
भक्तवत्सल का अर्थ होता है “भक्तों से प्रेम करने वाला”। भगवान को इस रूप में अपने भक्तों के प्रति अपार प्रेम और स्नेह रखने वाला माना जाता है। वे अपने भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं और उन्हें हर प्रकार की परेशानियों से बचाते हैं।
भक्तवत्सल का महत्व
भगवान का यह रूप यह सिखाता है कि वे अपने भक्तों के प्रति कितने प्रेमपूर्ण और स्नेहशील हैं। वे सदा अपने भक्तों के साथ रहते हैं और उनकी हर प्रकार से रक्षा करते हैं। उनका यह रूप हमें यह विश्वास दिलाता है कि भगवान सदा हमारे साथ हैं और उनके प्रति हमारी भक्ति और श्रद्धा हमें हर संकट से बचा सकती है।