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- – यह कविता पद्मिनी की सुंदरता और उसकी महत्ता को दर्शाती है, जिसे “नव सौ बालद री थाने” कहा गया है।
- – पद्मिनी का रूप चाँद जैसा उज्जवल और आकर्षक बताया गया है, जो सभी का ध्यान अपनी ओर खींचता है।
- – कविता में धन और माया के प्रति चेतावनी दी गई है, कि धन और जाति पर गर्व नहीं करना चाहिए।
- – धर्म और मति को महत्व देने की बात कही गई है, और अहंकार से बचने की सलाह दी गई है।
- – यह गीत संत गोविन्ददास कवराडा द्वारा लिखा गया है और बाबुदासजी महाराज कवराडा द्वारा गाया गया है।

नव सौ बालद री थाने,
करूं नैकोणी पद्मिनी,
राजी बाजी होने सामु भालो हाजी।।
सोनो रूपो मूनदी पेरति बनजारा,
मरती मोतिदे भारो हा जी।।
थारे सारिका मारे पोलिया बनजारा,
लोकता घोड़ो ने वाली लाडो हाजी।।
धन रे सत वनती वांका राजवी पियाजी,
बोडेलिनी पण्डा री पाजो।।
धर्म कीड़ो पोचे पांडव गलिया,
हिमालय रा हाड़ो धन वनती,
मति करो धन रो गरबों,
मति करो पूतो रो अहंकारों हाजी।।
धन जोवन माया पोमणि,
जातो नी लागे वारो हा जी।।
नव सौ बालद री थाने,
करूं नैकोणी पद्मिनी,
राजी बाजी होने सामु भालो हाजी।।
गायक – बाबुदासजी महाराज कवराडा।
प्रेषक – संत गोविन्ददास कवराडा।
9829041995
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