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श्री दशावतार स्तोत्र in Hindi/Sanskrit

प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदम्
विहित वहित्र-चरित्रम् अखेदम्
केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे
क्षितिर् इह विपुलतरे तिष्ठति तव पृष्ठे
धरणि- धारण-किण चक्र-गरिष्ठे
केशव धृत-कूर्म-शरीर जय जगदीश हरे

वसति दशन शिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनि कलंक कलेव निमग्ना
केशव धृत शूकर रूप जय जगदीश हरे

तव कर-कमल-वरे नखम् अद्भुत शृंगम्
दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंगम्
केशव धृत-नरहरि रूप जय जगदीश हरे

छलयसि विक्रमणे बलिम् अद्भुत-वामन
पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन
केशव धृत-वामन रूप जय जगदीश हरे

क्षत्रिय-रुधिर-मये जगद् -अपगत-पापम्
स्नपयसि पयसि शमित-भव-तापम्
केशव धृत-भृगुपति रूप जय जगदीश हरे

वितरसि दिक्षु रणे दिक्-पति-कमनीयम्
दश-मुख-मौलि-बलिम् रमणीयम्
केशव धृत-राम-शरीर जय जगदीश हरे

वहसि वपुशि विसदे वसनम् जलदाभम्
हल-हति-भीति-मिलित-यमुनाभम्
केशव धृत-हलधर रूप जय जगदीश हरे

नंदसि यज्ञ- विधेर् अहः श्रुति जातम्
सदय-हृदय-दर्शित-पशु-घातम्
केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे

म्लेच्छ-निवह-निधने कलयसि करवालम्
धूमकेतुम् इव किम् अपि करालम्
केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे

श्री-जयदेव-कवेर् इदम् उदितम् उदारम्
शृणु सुख-दम् शुभ-दम् भव-सारम्
केशव धृत-दश-विध-रूप जय जगदीश हरे

वेदान् उद्धरते जगंति वहते भू-गोलम् उद्बिभ्रते
दैत्यम् दारयते बलिम् छलयते क्षत्र-क्षयम् कुर्वते
पौलस्त्यम् जयते हलम् कलयते कारुण्यम् आतन्वते
म्लेच्छान् मूर्छयते दशाकृति-कृते कृष्णाय तुभ्यम् नमः

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम ।
विहितवहित्रचरित्रम खेदम ।
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥1॥

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।
केशव धृतकच्छपरुप जय जगदीश हरे ॥2॥

वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलंकलेव निमग्ना ।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥3॥

तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम ।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृगंम ।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ॥4॥

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ।
केशव धृतवामनरुप जय जगदीश हरे ॥5॥

क्षत्रिययरुधिरमये जगदपगतपापम ।
सनपयसि पयसि शमितभवतापम ।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ॥6॥

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम ।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम ।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ॥7॥

वहसि वपुषे विशदे वसनं जलदाभम ।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम ।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ॥8॥

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम ।
सदयहृदयदर्शितपशुघातम ।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ॥9॥

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम ।
धूमकेतुमिव किमपि करालम ।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ॥10॥

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम ।
श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम ।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ॥11॥

Dashavtar Stotram in English

(1)
pralaya-payodhi-jale dhritavan asi vedam
vihita-vahitra-caritram akhedam
kesava dhrita-mina-sarira jaya jagadisa hare

(2)
kshitir iha vipulatare tishthati tava prishthe
dharani-dharana-kina-cakra-garishthe
kesava dhrita-kurma-sarira jaya jagadisa hare

(3)
vasati dasana-sikhare dharani tava lagna
sasini kalanka-kaleva nimagna
kesava dhrita-sukara-rupa jaya jagadisa hare

(4)
tava kara-kamala-vare nakham adbhuta-sringam
dalita-hiranyakasipu-tanu-bhringam
kesava dhrita-narahari-rupa jaya jagadisa hare

(5)
chalayasi vikramane balim adbhuta-vamana
pada-nakha-nira-janita-jana-pavana
kesava dhrita-vamana-rupa jaya jagadisa hare

(6)
kshatriya-rudhira-maye jagad-apagata-papam
snapayasi payasi samita-bhava-tapam
kesava dhrita-bhrigupati-rupa jaya jagadisa hare

(7)
vitarasi dikshu rane dik-pati-kamaniyam
dasa-mukha-mauli-balim ramaniyam
kesava dhrita-rama-sarira jaya jagadisa hare

(8)
vahasi vapushi visade vasanam jaladabham
hala-hati-bhiti-milita-yamunabham
kesava dhrita-haladhara-rupa jaya jagadisa hare

(9)
nindasi yajna-vidher ahaha sruti-jatam
sadaya-hridaya darsita-pasu-ghatam
kesava dhrita-buddha-sarira jaya jagadisa hare

(10)
mleccha-nivaha-nidhane kalayasi karavalam
dhumaketum iva kim api karalam
kesava dhrita-kalki-sarira jaya jagadisa hare

(11)
sri-jayedeva-kaver idam uditam udaram
srinu sukha-dam subha-dam bhava-saram
kesava dhrita-dasa-vidha-rupa jaya jagadisa hare

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श्री दशावतार स्तोत्र का अर्थ

यह अष्टपदी “जयदेव” द्वारा रचित प्रसिद्ध गीत गोविंद से ली गई है, जिसमें भगवान विष्णु के दस अवतारों का वर्णन है। यहाँ प्रत्येक अवतार का विस्तृत वर्णन है:

  1. मत्स्य अवतार (मछली रूप):
    • प्रलय के समय जब संसार जलमग्न हो गया था, भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण करके वेदों को सुरक्षित रखा। इस रूप में, उन्होंने नाव का किरदार निभाया और बिना किसी थकान के इस कार्य को पूर्ण किया।
    • “केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे।”
  2. कूर्म अवतार (कछुआ रूप):
    • समुद्र मंथन के समय, भगवान विष्णु ने विशाल कछुआ का रूप धारण किया और अपनी पीठ पर विशाल पर्वत मंदराचल को सहारा दिया।
    • “केशव धृत-कूर्म-शरीर जय जगदीश हरे।”
  3. वराह अवतार (सूअर रूप):
    • भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण करके धरती को दैत्यों के कब्जे से मुक्त किया और उसे अपने दांतों पर उठाकर सुरक्षित किया।
    • “केशव धृत-शूकर रूप जय जगदीश हरे।”
  4. नरसिंह अवतार (अर्ध-सिंह, अर्ध-मनुष्य रूप):
    • भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण करके हिरण्यकशिपु का वध किया, जो भक्त प्रह्लाद को मारने की कोशिश कर रहा था।
    • “केशव धृत-नरहरि रूप जय जगदीश हरे।”
  5. वामन अवतार (बौना रूप):
    • भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके बलि राजा से तीन पग भूमि मांगकर समस्त त्रिलोक्य को अपने अधिकार में ले लिया।
    • “केशव धृत-वामन रूप जय जगदीश हरे।”
  6. परशुराम अवतार:
    • भगवान विष्णु ने परशुराम रूप धारण करके क्षत्रियों का संहार किया और पृथ्वी को उनके पापों से मुक्त किया।
    • “केशव धृत-भृगुपति रूप जय जगदीश हरे।”
  7. राम अवतार:
    • भगवान विष्णु ने राम रूप धारण करके रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की।
    • “केशव धृत-राम-शरीर जय जगदीश हरे।”
  8. बलराम अवतार:
    • भगवान विष्णु ने बलराम रूप धारण करके यमुना नदी को अपनी हल से नियंत्रित किया और कृषक समाज की रक्षा की।
    • “केशव धृत-हलधर रूप जय जगदीश हरे।”
  9. बुद्ध अवतार:
    • भगवान विष्णु ने बुद्ध रूप धारण करके अहिंसा और धर्म का प्रचार किया और यज्ञों में पशु बलि की कुप्रथा को समाप्त किया।
    • “केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे।”
  10. कल्कि अवतार:
    • कल्कि अवतार के रूप में, भगवान विष्णु काली युग के अंत में प्रकट होंगे और अधर्म का नाश करेंगे।
    • “केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे।”

समापन:

  • यह अष्टपदी जयदेव कवि द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु के इन दस रूपों का गुणगान किया है और उनकी महिमा का बखान किया है।
  • “श्री-जयदेव-कवेर् इदम् उदितम् उदारम्, शृणु सुख-दम् शुभ-दम् भव-सारम्, केशव धृत-दश-विध-रूप जय जगदीश हरे।”

अंत में, इस अष्टपदी के माध्यम से भगवान विष्णु के दस अवतारों के माध्यम से उनके द्वारा किए गए कार्यों का सम्मान और प्रशंसा की जाती है, और सभी को उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

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