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देवउठनी एकादशी के फल

देवउठनी एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं और देवतागण पुनः सक्रिय हो जाते हैं।

देवउठनी एकादशी व्रत के कुछ फल:

  • पुण्य प्राप्ति: इस व्रत को करने से हजारों अश्वमेघ यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
  • मोक्ष प्राप्ति: यह व्रत मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • पापों का नाश: इस व्रत को करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है।
  • मनोकामना पूर्ण: इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • पितृदोष से मुक्ति: यह व्रत पितृदोष से मुक्ति दिलाता है।
  • विवाह में बाधा दूर: विवाह में बाधा आ रही हो तो यह व्रत विवाह योग्य जीवनसाथी प्राप्ति में सहायक होता है।
  • संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों के लिए यह व्रत लाभकारी होता है।
  • धन-धान्य वृद्धि: यह व्रत धन-धान्य और समृद्धि में वृद्धि लाता है।
  • स्वास्थ्य लाभ: यह व्रत स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।

देवउठनी एकादशी व्रत का महत्त्व

धार्मिक दृष्टिकोण:

  • भगवान विष्णु की योगनिद्रा से जागरण: यह एकादशी भगवान विष्णु के चार मास (इस वर्ष पांच मास) की योगनिद्रा से जागरण का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं।
  • देवताओं का जागरण: इस दिन सभी देवता भी अपनी योगनिद्रा से जागते हैं।
  • पापों का नाश: इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से अनेक पापों का नाश होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: देवउठनी एकादशी व्रत मोक्ष प्राप्ति का द्वार खोलता है।
  • विवाह और संतान प्राप्ति: यह व्रत विवाह और संतान प्राप्ति की कामनाओं को भी पूर्ण करता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण:

  • तुला राशि में सूर्य का प्रवेश: इस दिन सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश करते हैं।
  • देवताओं का शुभ प्रभाव: इस दिन देवताओं का शुभ प्रभाव पृथ्वी पर बढ़ जाता है।
  • शुभ कार्यों की शुरुआत: यह दिन शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए भी उत्तम माना जाता है।

सामाजिक दृष्टिकोण:

  • दान-पुण्य का महत्व: इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है।
  • परोपकार का भाव: यह व्रत परोपकार और सेवा भावना को बढ़ावा देता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार: इस दिन व्रत और पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।

देवउठनी एकादशी कथा

एक राज्य में, एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न ग्रहण नहीं करता था।

एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी का भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए।

राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा।

स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है। राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो।

श्रीहरि ने ली राजा की परीक्षा

सुंदर स्त्री ने राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा।

राजा ने शर्त मान ली। अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया।

मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी।

राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं।

रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी

राजा के सामने धर्म संकट

राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई।

बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई।

राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए।

सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए।

विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम परीक्षा में पास हुए, कहो क्या वरदान चाहिए।

राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए।

राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ लोक को चला गया।

इस कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव धर्म का पालन करना चाहिए, चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो।

पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देवउठनी एकादशी पूजाविधि

सामग्री:

  • गंगा जल
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  • तुलसी दल
  • फल
  • फूल
  • दीप
  • धूप
  • अगरबत्ती
  • चंदन
  • रोली
  • मौली
  • सुपारी
  • नारियल
  • पान
  • कपूर
  • मिठाई
  • दान-दक्षिणा

पूजा विधि:

  1. स्नान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थान: घर के मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और दीप प्रज्वलित करें।
  3. आह्वान: भगवान विष्णु, तुलसी जी और शिव जी का आह्वान करें।
  4. स्नान: भगवान विष्णु को गंगा जल से स्नान कराएं।
  5. पंचामृत स्नान: पंचामृत से भगवान विष्णु का स्नान कराएं।
  6. वस्त्र और आभूषण: भगवान विष्णु को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  7. पुष्प और तुलसी: भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  8. फल: भगवान विष्णु को फल अर्पित करें।
  9. नैवेद्य: भगवान विष्णु को प्रसाद (भोग) अर्पित करें।
  10. आरती: भगवान विष्णु की आरती करें।
  11. प्रार्थना: भगवान विष्णु से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।
  12. पारण: अगले दिन दशमी तिथि के दिन, सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

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