अन्नदा एकादशी कथा in Hindi
प्राचीन काल में एक चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र शासन करते थे। वह अत्यंत वीर और सत्यवादी थे। एक वचन को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया और स्वयं एक चांडाल का सेवक बन गए।
चांडाल के यहां उन्होंने कफन देने का काम किया, परंतु इस कठिन परिस्थिति में भी उन्होंने सत्य का साथ नहीं छोड़ा। जब वर्षों बीत गए तो उन्हें अपने इस नीच कर्म पर दुःख हुआ और वह इससे मुक्ति पाने का उपाय ढूंढने लगे। वह निरंतर इसी चिंता में लगे रहते थे।
एक दिन जब वह चिंतित थे, तब गौतम ऋषि वहां आए। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपना दुःख सुनाया। महर्षि ने राजा की व्यथा सुनकर कहा, “हे राजन्! भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और रात्रि में जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।” ऐसा कहकर गौतम ऋषि चले गए।
अजा एकादशी आने पर राजा ने मुनि के अनुसार विधिपूर्वक व्रत और रात्रि जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप नष्ट हो गए। उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने और पुष्प वर्षा होने लगी। राजा ने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और महादेव को खड़ा देखा। उनका मृत पुत्र जीवित हो गया और पत्नी वस्त्राभूषणों से सज्जित दिखाई दी।
व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः राज्य मिला और अंत में वह परिवार सहित स्वर्ग गए। यह सब अजा एकादशी व्रत का प्रभाव था। जो लोग इस व्रत को विधिपूर्वक करते और रात्रि जागरण करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वे अंततः स्वर्ग जाते हैं। इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
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Ananda Ekadashi Vrat Katha in English
In ancient times, there was a mighty emperor named King Harishchandra. He was extremely brave and a steadfast follower of truth. To fulfill a promise, he went so far as to sell his wife and son, and he himself became a servant to a chandala (a person of low caste in ancient society).
In the chandala’s service, his job was to provide burial shrouds for the dead. However, even in this difficult situation, he never wavered from his commitment to truth. After many years passed, he began to feel remorse over this lowly work and sought a way to be freed from it. His mind was constantly preoccupied with this sorrow.
One day, while he was deeply distressed, Sage Gautama came to him. The king greeted him respectfully and shared his troubles. Hearing his woes, Sage Gautama said, “O King! The Ekadashi that falls in the Krishna Paksha (waning phase) of the month of Bhadrapada is known as Aja Ekadashi. Observe this Ekadashi fast with full dedication, and stay awake in worship throughout the night. By doing this, all your sins will be absolved.” Saying this, Sage Gautama left.
When Aja Ekadashi arrived, the king observed the fast and stayed awake at night, as per the sage’s instructions. Due to the power of this fast, all his sins were washed away. Drums began to beat in the heavens, and flowers started showering down. The king saw Lord Brahma, Vishnu, Indra, and Mahadeva standing before him. His deceased son was revived, and his wife appeared adorned with beautiful clothes and ornaments.
Through the power of this fast, the king regained his kingdom and, in the end, went to heaven with his family. Such is the power of Aja Ekadashi. Those who observe this fast with devotion and stay awake during the night have all their sins destroyed and ultimately attain heaven. Merely listening to the story of this Ekadashi bestows benefits equivalent to performing an Ashwamedha Yajna (a grand Vedic sacrifice).
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अन्नदा एकादशी व्रत कब है
अन्नदा एकादशी, जिसे अजा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, 2025 में 19 अगस्त, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत का विशेष महत्व है, जिससे समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अन्नदा एकादशी व्रत का पारण कब है
अन्नदा एकादशी, जिसे अजा एकादशी भी कहा जाता है, वर्ष 2025 में 19 अगस्त, मंगलवार को मनाई जाएगी। इस व्रत का पारण (व्रत तोड़ने का समय) 20 अगस्त को प्रातः 5:52 से 8:29 बजे तक है।
अन्नदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है और इसे करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं और अगले दिन द्वादशी तिथि को पारण करते हैं।
अन्नदा एकादशी के फल
अन्नदा एकादशी, जिसे अजा एकादशी भी कहा जाता है, भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह एकादशी कृष्ण पक्ष में भाद्रपद मास में आती है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से अनेक फल प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख फल इस प्रकार हैं:
पापों का नाश: अन्नदा एकादशी व्रत करने से जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों का नाश होता है।
मोक्ष की प्राप्ति: इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सुख-समृद्धि: अन्नदा एकादशी व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है।
मनोकामनाओं की पूर्ति: इस व्रत को करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।
अन्न की प्राप्ति: अन्नदा एकादशी का नाम ही अन्नदा है। इस व्रत को करने से अन्न की प्राप्ति होती है और जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती है।
रोगों से मुक्ति: अन्नदा एकादशी व्रत करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य अच्छा होता है।
पितृ ऋण से मुक्ति: अन्नदा एकादशी व्रत करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
हजार गौदान का फल: अन्नदा एकादशी व्रत करने से हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।
अन्य फल: अन्नदा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सद्भावना, दया, क्षमा, और करुणा जैसे गुणों की प्राप्ति होती है।
अन्नदा एकादशी व्रत का महत्त्व
अन्नदा एकादशी, जिसे अजा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
अन्नदा एकादशी व्रत के महत्त्व के कुछ प्रमुख बिंदु:
- पापों का नाश: यह व्रत समस्त प्रकार के पापों का नाश करने वाला माना जाता है।
- मोक्ष प्राप्ति: इस व्रत को करने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है।
- मनोकामना पूर्ति: भगवान विष्णु की कृपा से इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- भाग्य में वृद्धि: यह व्रत भाग्य में वृद्धि लाता है और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
- पितृ ऋण से मुक्ति: इस व्रत को करने से पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
- अन्नपूर्णा देवी की कृपा: इस व्रत को करने से अन्नपूर्णा देवी की कृपा प्राप्त होती है और घर में अन्न-धन की कमी नहीं होती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
अन्नदा एकादशी पूजाविधि
- दशमी तिथि के दिन:
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर को साफ करके, तुलसीदल और दीप प्रज्वलित करें।
- भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।
- फल, मिठाई, और दान-दक्षिणा का सामग्री तैयार करें।
- एकादशी तिथि के दिन:
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर में भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) से स्नान कराएं।
- चंदन, फूल, फल, मिठाई, और तुलसी अर्पित करें।
- दीप प्रज्वलित करें और आरती करें।
- भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की स्तुति और मंत्रों का जाप करें।
- दिन भर व्रत रखें और भगवान का ध्यान करें।
- रात्रि में भगवान विष्णु की जागरण करें।
- द्वादशी तिथि के दिन:
- सूर्योदय से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
- द्वादशी तिथि में पारण का समय देखकर व्रत खोलें।