पापांकुशा एकादशी कथा in Hindi
एक समय की बात है, विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक शिकारी रहता था। वह बहुत ही क्रूर था और उसका पूरा जीवन पाप कर्मों में बीता। जब उसकी मृत्यु का समय निकट आया, तो वह भय से कांपते हुए महर्षि अंगिरा के आश्रम पहुंचा और विनती करने लगा, “हे ऋषिवर, मैंने अपना सारा जीवन पाप कर्मों में बिताया है। कृपया मुझे ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे मेरे सारे पाप धुल जाएं और मुझे मोक्ष मिल जाए।” महर्षि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा। शिकारी ने पूर्ण श्रद्धा के साथ व्रत किया और अपने सारे पापों से मुक्ति पा ली।
एक दिन राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे भगवान, आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है? कृपया इसकी विधि और फल के बारे में बताएं।” श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर, इस एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं क्योंकि यह पापों का नाश करती है। इस दिन मनुष्य को विधिवत भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी मनुष्य को मनचाहा फल देकर स्वर्ग प्राप्ति कराती है।”
“कठोर तपस्या से जो फल कई दिनों में मिलता है, वह भगवान विष्णु को नमन करने से तुरंत मिल जाता है। जो लोग अज्ञानवश पाप करते हैं लेकिन भगवान का नाम स्मरण करते हैं, वे नरक नहीं जाते। केवल विष्णु नाम के कीर्तन से ही सभी तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है। विष्णु की शरण में जाने वाले को यमराज की यातना नहीं भोगनी पड़ती। हजारों अश्वमेध यज्ञ का फल भी एकादशी व्रत के सोलहवें हिस्से के बराबर नहीं होता। एकादशी से बढ़कर कोई पवित्र व्रत नहीं है।”
“हे राजन, बचपन, जवानी या बुढ़ापे में भी इस व्रत को करने से पापी भी सद्गति पाता है। जो लोग आश्विन मास की पापांकुशा एकादशी का व्रत करते हैं, वे अंत में भगवान के धाम को प्राप्त होते हैं और सारे पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, जमीन, गाय, अनाज, पानी, छाता, जूते आदि का दान करने वाला यमराज को नहीं देखता।”
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Papankusha Ekadashi Vrat Katha in English
Once upon a time, there lived a hunter named Krodhan on the Vindhya mountain. He was very cruel, and his entire life was spent in sinful deeds. When his death approached, he became fearful and trembling, he went to the ashram of Sage Angira, pleading, “O Sage, I have spent my entire life in sin. Please show me a way by which all my sins may be washed away, and I may attain salvation.” Sage Angira advised him to observe the fast of Papankusha Ekadashi. The hunter observed this fast with full devotion and was liberated from all his sins.
One day, King Yudhishthira asked Lord Shri Krishna, “O Lord, what is the significance of the Ekadashi in the Shukla Paksha (waxing phase) of the month of Ashwin? Please tell me about its method and benefits.” Lord Krishna replied, “O Yudhishthira, this Ekadashi is called Papankusha Ekadashi because it destroys sins. On this day, a person should worship Lord Vishnu with proper rituals. This Ekadashi grants people their desired results and leads them to heaven.”
“The reward of performing rigorous penance over several days is instantly gained by bowing to Lord Vishnu. Those who unknowingly commit sins but remember the name of the Lord do not go to hell. Simply by chanting the name of Vishnu, one attains the merit of all holy places. Those who take refuge in Vishnu do not have to endure the suffering of Yama (the god of death). The reward of a thousand Ashvamedha Yagnas (horse sacrifices) is not equal to even one-sixteenth of the merit of observing an Ekadashi fast. There is no more sacred fast than Ekadashi.”
“O King, whether in childhood, youth, or old age, even a sinner attains the right path by observing this fast. Those who observe the Papankusha Ekadashi fast in the month of Ashwin ultimately attain the abode of the Lord and are freed from all sins. Those who donate gold, sesame seeds, land, cows, grains, water, umbrellas, shoes, etc., do not see Yama.”
This katha highlights the immense power of Papankusha Ekadashi, which offers liberation, freedom from sins, and ensures divine blessings through the worship of Lord Vishnu and the practice of charitable deeds.
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पापांकुशा एकादशी व्रत कब है
पापांकुशा एकादशी, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह व्रत शुक्रवार, 3 अक्टूबर को रखा जाएगा।
पापांकुशा एकादशी 2025 की तिथि:
तिथि समाप्त: 3 अक्टूबर 2025 को शाम 6:32 बजे
तिथि प्रारंभ: 2 अक्टूबर 2025 को शाम 7:10 बजे
पापांकुशा एकादशी व्रत का पारण कब है
पापांकुशा एकादशी व्रत 2025 में 2 अक्टूबर, गुरुवार को मनाई जाएगी।
व्रत पारण (व्रत तोड़ने का समय):
- पारण तिथि: 4 अक्टूबर 2025
- पारण का समय: प्रातः 6:22 बजे से 8:40 बजे तक
ध्यान दें कि पारण का समय स्थान और पंचांग के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है, इसलिए अपने स्थानीय पंचांग या ज्योतिषी से परामर्श करना उचित होगा।
पापांकुशा एकादशी के फल
पापों से मुक्ति:
- इस एकादशी का नाम ही “पापांकुशा” है, जिसका अर्थ है “पापों का नाश करने वाली”।
- धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है।
पुण्य फल:
- पापांकुशा एकादशी का व्रत 1000 अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्रदान करता है।
- इस व्रत से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और स्वर्ग में स्थान मिलता है।
अन्य फल:
- पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
- इस व्रत से मनुष्य को धन, धान्य, और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
- यह व्रत रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
पापांकुशा एकादशी व्रत का महत्त्व
धार्मिक महत्व:
- पापांकुशा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है।
- इस व्रत को रखने से सभी तरह के पापों का नाश होता है।
- यह व्रत मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति का द्वार खोलता है।
- इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- यह व्रत सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त करने के लिए भी लाभदायक है।
पौराणिक महत्व:
- पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने कुंभकर्ण को मोक्ष प्रदान किया था।
- इस व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त होती है।
- इस व्रत के दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।
व्रत की विधि:
- इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि की रात से ही सात्विक भोजन करना चाहिए।
- एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और उनकी पूजा करें।
- व्रत के दौरान भगवान विष्णु के नाम का मंत्र जपें।
- रात में भगवान विष्णु की आरती करें और सोने से पहले भगवान से प्रार्थना करें।
- द्वादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर व्रत का पारण करें।
पापांकुशा एकादशी पूजाविधि
पूजा सामग्री:
- भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर
- फल, फूल, अक्षत, चंदन, मोली, दीपक, घी
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)
- तुलसी के पत्ते
- सुपारी
- दक्षिणा
- एकादशी व्रत कथा की पुस्तक
पूजा विधि:
- स्नान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान: घर में एक साफ और पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- आसन: आसन बिछाकर उस पर बैठें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- आचमन: जल से आचमन करें।
- संकल्प: एकादशी व्रत का संकल्प लें।
- पंचामृत स्नान: भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
- वस्त्र अर्पित करें: भगवान विष्णु को वस्त्र अर्पित करें।
- आभूषण अर्पित करें: भगवान विष्णु को आभूषण अर्पित करें।
- फूल अर्पित करें: भगवान विष्णु को फूल अर्पित करें।
- दीप प्रज्वलित करें: दीप प्रज्वलित करें और आरती करें।
- भोग लगाएं: भगवान विष्णु को भोग लगाएं।
- मंत्र जाप: “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
- कथा: एकादशी व्रत कथा सुनें।
- कीर्तन: भगवान विष्णु के भजन गाएं।
- आरती: भगवान विष्णु की आरती करें।
- प्रार्थना: भगवान विष्णु से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
- ब्राह्मण भोजन: ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।