Devshayani Ekadashi Vrat Katha: देवशयनी एकादशी व्रत कथा

देवशयनी एकादशी के फल

धार्मिक फल

  • पापों का नाश: देवशयनी एकादशी व्रत करने से जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: इस दिन पूरे मन और नियम से पूजा करने से महिलाओं की मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति: ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • सौभाग्य वृद्धि: देवशयनी एकादशी को सौभाग्य की एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • भगवान विष्णु की कृपा: देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

वैज्ञानिक फल

  • शरीर को स्वस्थ रखता है: चातुर्मास में व्रत रखने से शरीर को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है।
  • रोगों से बचाता है: इस दौरान व्रत रखने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है।
  • मन को शांत करता है: व्रत रखने से मन शांत और एकाग्र होता है।
  • आत्म-संयम में वृद्धि: व्रत रखने से आत्म-संयम और इच्छाशक्ति में वृद्धि होती है।

दान का महत्व

देवशयनी एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। दान की कुछ वस्तुएं इस प्रकार हैं:

  • फल: फल, जैसे कि आम, केला, सेब, आदि।
  • सब्जियां: सब्जियां, जैसे कि आलू, टमाटर, प्याज, आदि।
  • अनाज: अनाज, जैसे कि चावल, गेहूं, दाल, आदि।
  • वस्त्र: वस्त्र, जैसे कि कपड़े, चादर, आदि।
  • धन: धन, जैसे कि रुपये, सोना, चांदी, आदि।

देवशयनी एकादशी व्रत का महत्त्व

देवशयनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व इस प्रकार है:

  1. चातुर्मास का प्रारंभ: देवशयनी एकादशी से चार महीने का पवित्र चातुर्मास काल शुरू होता है। इस दौरान विष्णु भगवान योग निद्रा में चले जाते हैं। यह समय आत्म-चिंतन और अध्यात्म साधना का समय माना जाता है।
  2. पापों से मुक्ति: इस व्रत को करने से सभी पापों से छुटकारा मिलने और मोक्ष की प्राप्ति होने की मान्यता है।
  3. जीवन में समृद्धि: ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को श्रद्धा और निष्ठा से करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. पितरों का उद्धार: इस दिन पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए दान-पुण्य किया जाता है।
  5. पुण्य कर्मों का समय: देवशयनी एकादशी से लेकर चार माह तक पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व होता है। दान, जप, तप, तीर्थ यात्रा आदि का विशेष फल मिलता है।
  6. गीता का श्रवण: कुछ क्षेत्रों में देवशयनी एकादशी के दिन भगवद् गीता का पाठ व श्रवण करने की परंपरा है। ऐसा करने से ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति मानी जाती है।
  7. वैष्णव परंपरा का त्योहार: यह व्रत वैष्णव सम्प्रदाय में विशेष रूप से मनाया जाता है और भगवान विष्णु की आराधना का दिन माना जाता है।

देवशयनी एकादशी कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, इसे कैसे रखा जाता है, और किस देवता का पूजन किया जाता है।

श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर, मैं तुम्हें वह कथा सुनाऊंगा जो ब्रह्माजी ने नारदजी को सुनाई थी।”

एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के बारे में जानना चाहा। तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया:

“सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। लेकिन एक दिन, उनके राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई, और भयंकर अकाल पड़ गया।”

प्रजा ने राजा से मदद की गुहार लगाई। राजा भी चिंतित थे और उन्होंने इस कष्ट से मुक्ति पाने का उपाय खोजने का फैसला किया।

वे सेना को लेकर जंगल में गए, जहां वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। ऋषि ने उनका स्वागत किया और उनसे पूछा कि वे जंगल में क्यों आए हैं।

राजा ने कहा, “मैंने सभी प्रकार से धर्म का पालन किया है, फिर भी मेरे राज्य में दुर्भिक्ष क्यों पड़ा है?”

ऋषि ने कहा, “हे राजन, इस सतयुग में छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है, जो कि धर्म के विरुद्ध है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह तपस्वी मर नहीं जाएगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा।”

राजा ने कहा, “मैं उस निरपराध शूद्र को मार नहीं सकता। क्या कोई और उपाय नहीं है?”

ऋषि ने कहा, “आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।”

राजा ने अपने राज्य में पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव धर्म का पालन करना चाहिए और किसी भी प्राणी को बिना कारण नहीं मारना चाहिए।

देवशयनी एकादशी पूजाविधि

देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने की विधि इस प्रकार है:

  1. प्रातः स्नान करके पवित्र हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल को साफ करके वहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. पूजा थाली में अक्षत (चावल), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (फल या मिठाई) और गंगाजल आदि रखें।
  4. भगवान श्री विष्णु के सामने आसन पर बैठ जाएं और ध्यान लगाएं।
  5. गायत्री मंत्र और विष्णु गायत्री मंत्र का जाप करें।
  6. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  7. भगवान विष्णु को अक्षत, पुष्प, तुलसी के पत्ते और गंगाजल अर्पित करें। धूप, दीप दिखाएं।
  8. भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पित करें और आरती करें।
  9. प्रसाद वितरण करें और कुछ प्रसाद ग्रहण करें।
  10. व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें। पद्म पुराण में वर्णित एकादशी की कथा का पाठ लाभदायक माना जाता है।
  11. अंत में श्री विष्णु सहस्रनाम या विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली जैसे स्तोत्र का पाठ करें और भगवान विष्णु से व्रत के शुभ फलों के लिए प्रार्थना करें।
  12. इस दिन दान-पुण्य करने, भगवद् गीता पढ़ने और तुलसी पूजन करने का भी महत्व है।

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