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कहन लागे मोहन मैया मैया,
पिता नंद महर सों बाबा बाबा,
और हलधर सों भैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,

ऊँचे चढ़ चढ़ कहती जशोदा,
लै लै नाम कन्हैया,
ले ले नाम कन्हैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,

दूर खेलन जन जाहूं लाल रे,
मारैगी काहूँ की गैयाँ,
मारेगी काहू की गैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,

गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैयाँ,
घर घर बजती बधैया,
घर घर बजती बधैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,

मणि खमबन प्रति बिन बिलोकत
हो नाचत कुवर निज कन्हियाँ
कहन लागे मोहन मैया मैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैयाँ,
चरननि की बलि जैया, बलि जैया
कहन लागे मोहन मैया मैया,
कहन लागे मोहन मैया मैया,

कहन लागे मोहन मैया मैया ।
नंद महर सों बाबा बाबा अरु हलधर सों भैया ॥

ऊंच चढ़ि चढ़ि कहति जशोदा लै लै नाम कन्हैया ।
दूरि खेलन जनि जाहु लाला रे! मारैगी काहू की गैया ॥

गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैया ।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया ॥
– सूरदास जी

कहन लागे मोहन मैया मैया – भजन का गहन अर्थ

सूरदास जी द्वारा रचित यह भजन न केवल भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करता है, बल्कि इसमें उनकी दिव्यता, प्रेम और मानव-जीवन के आदर्शों का गूढ़ संदेश छिपा हुआ है। यह भजन मानवीय भावनाओं, रिश्तों और भगवान के प्रति निष्ठा का एक अद्भुत मिश्रण है। आइए, प्रत्येक पंक्ति के गहरे अर्थ को समझते हैं।


कहन लागे मोहन मैया मैया

गहराई से अर्थ:
यह वाक्यांश श्रीकृष्ण की बालसुलभ प्रेमपूर्ण पुकार को दर्शाता है।

  • “कहन लागे मोहन मैया मैया”: श्रीकृष्ण की यह पुकार उनके मासूम और दिव्य स्वरूप का प्रतीक है। “मैया” शब्द केवल माता यशोदा के लिए नहीं, बल्कि संसार की हर माता के प्रति सम्मान है। यह रिश्तों की आधारशिला है, जो निस्वार्थ प्रेम पर टिकी है।
  • “पिता नंद महर सों बाबा बाबा”: यहाँ नंद बाबा के प्रति श्रीकृष्ण की निष्ठा और आदर झलकता है। यह पंक्ति माता-पिता के प्रति कृतज्ञता और दायित्व को दर्शाती है।
  • “और हलधर सों भैया”: बलराम (हलधर) के प्रति उनका भाईचारा, सहयोग और स्नेह दर्शाता है कि पारिवारिक संबंधों का आदान-प्रदान जीवन को पूर्णता देता है।

ऊंचे चढ़ चढ़ कहती जशोदा, लै लै नाम कन्हैया

गहराई से अर्थ:
यशोदा माँ का अपने पुत्र के प्रति असीम प्रेम और कर्तव्य यहाँ उजागर होता है।

  • “ऊंचे चढ़ चढ़ कहती जशोदा”: “ऊंचे चढ़ चढ़” यशोदा माता के उस उत्साह को दर्शाता है, जब वे बालकृष्ण को पुकारती हैं। यह पंक्ति माँ के अपने बच्चे के लिए असमर्थता और उसकी सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त करती है।
  • “लै लै नाम कन्हैया”: बार-बार कन्हैया का नाम लेना यह संकेत करता है कि माता का हर पल अपने बच्चे में ही रमा रहता है। यह अटूट स्नेह का परिचायक है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

इस पंक्ति में, यशोदा का श्रीकृष्ण के प्रति व्यवहार यह सिखाता है कि भक्त को भी अपने भगवान को इतनी ही श्रद्धा और प्रेम से पुकारना चाहिए। जैसे यशोदा उन्हें बार-बार पुकारती हैं, वैसे ही भक्त को भी भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए।


दूर खेलन जन जाहूं लाल रे, मारैगी काहूं की गैयाँ

गहराई से अर्थ:
यशोदा यहाँ अपने पुत्र को अनुशासन में रखते हुए सिखा रही हैं कि जिम्मेदारी का अर्थ क्या होता है।

  • “दूर खेलन जन जाहूं लाल रे”: यशोदा श्रीकृष्ण को सलाह देती हैं कि वे दूर जाकर खेलें, ताकि अनजाने में कोई गलती न हो। यह माँ का अपने बच्चे के प्रति रक्षात्मक दृष्टिकोण है।
  • “मारैगी काहूं की गैया”: इस पंक्ति में एक सांस्कृतिक संदेश है। गाय को भारतीय संस्कृति में पवित्र माना गया है। यशोदा के माध्यम से यह बताया गया है कि दूसरों की संपत्ति और भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

व्यावहारिक दृष्टिकोण

यह जीवन की वह शिक्षा है जो बताती है कि हर कार्य का परिणाम होता है। यदि हम अपनी सीमाओं का उल्लंघन करेंगे, तो किसी को हानि पहुँच सकती है। यह वाक्य जागरूकता का प्रतीक है।


गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैयाँ

गहराई से अर्थ:
श्रीकृष्ण की लीलाएँ उनके आसपास के लोगों के जीवन को आनंदमय बना देती हैं।

  • “गोपी ग्वाल करत कौतूहल”: गोपियाँ और ग्वाल-बाल श्रीकृष्ण की हर गतिविधि को उत्सुकता और प्रेम से देखते हैं। यह दर्शाता है कि भगवान की लीलाएँ हर किसी को मोह लेती हैं।
  • “घर घर बजति बधैया”: कृष्ण की लीलाओं से पूरे गाँव में उत्सव का माहौल बन जाता है। यह उनके जीवनदायी स्वरूप को दर्शाता है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि जब भगवान का नाम या उनकी लीलाओं का स्मरण होता है, तो पूरे वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


मणि खमबन प्रति बिन बिलोकत हो नाचत कुवर निज कन्हियाँ

गहराई से अर्थ:
यहाँ श्रीकृष्ण की सौंदर्य और बालसुलभ क्रीड़ाओं का बखान है।

  • “मणि खमबन प्रति बिन बिलोकत”: श्रीकृष्ण को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई चमचमाती मणि खंभे पर चमक रही हो। यह उनके दिव्य रूप का संकेत है।
  • “हो नाचत कुवर निज कन्हियाँ”: कृष्ण का नृत्य केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि उनकी दिव्यता और आनंद का प्रतीक है।

सांस्कृतिक संदेश

यह हमें सिखाता है कि जीवन में सौंदर्य और आनंद को आत्मसात करना चाहिए। हर कर्म को प्रेम और उमंग से करना ही जीवन का उद्देश्य है।


सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैयाँ

गहराई से अर्थ:
सूरदास जी यहाँ अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं।

  • “सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों”: यह प्रार्थना इस तथ्य को उजागर करती है कि भक्त का परम लक्ष्य भगवान के दर्शन करना और उनकी कृपा प्राप्त करना है।
  • “चरननि की बलि जैयाँ”: यहाँ सूरदास जी भगवान के चरणों में समर्पण को अपने जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य बताते हैं।

आध्यात्मिक शिक्षा

यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति में अहंकार का स्थान नहीं होता। अपने भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण ही सच्चा धर्म है।


भजन का गहन संदेश

यह भजन केवल बाल कृष्ण की लीलाओं का वर्णन नहीं है, बल्कि यह जीवन को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है। इसमें छिपे संदेश निम्नलिखित हैं:

  1. प्रेम और कृतज्ञता: माता-पिता, परिवार और समाज के प्रति प्रेम और कृतज्ञता का भाव।
  2. आनंद और उल्लास: भगवान की लीलाएँ हर किसी के जीवन को खुशी और उल्लास से भर देती हैं।
  3. समर्पण: पूर्ण समर्पण और भक्ति ही मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्य तक पहुँचाती है।
  4. जिम्मेदारी: हर व्यक्ति को अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और दूसरों की संपत्ति और भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

यह भजन न केवल एक सुंदर रचना है, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाला अद्वितीय संदेश भी है।

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