- – कविता में कसमे, वादे, प्यार और वफ़ा को केवल बातों का दिखावा बताया गया है, जो अक्सर झूठे होते हैं।
- – रिश्तों और नातों की असलियत पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि कोई भी सच्चा नहीं होता, और अपने ही लोग नुकसान पहुंचाते हैं।
- – सुख-दुःख में साथ निभाने का दावा करने वाले लोग मुश्किल समय में साथ छोड़ देते हैं।
- – धार्मिक भेदभाव और हिंसा की निंदा करते हुए कहा गया है कि जो भी धर्म हो, अगर उसमें अन्याय है तो वह धर्म झूठा है।
- – यह भजन समाज में व्याप्त धोखे, विश्वासघात और धार्मिक असहिष्णुता पर एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करता है।

कसमे वादे प्यार वफ़ा सब,
बाते हैं बातों का क्या?
कोई किसी का नहीं ये झूठे,
नाते हैं नातों का क्या?
कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब,
बाते हैं बातों का क्या।।
तर्ज – कसमे वादे प्यार वफ़ा।
होगा मसीहा सामने तेरे,
फिर भी न तू बच पायेगा,
तेरा अपना खून ही आखिर,
तुझको आग लगायेगा,
आसमान में उड़ने वाले,
मिट्टी में मिल जायेगा,
कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब,
बाते हैं बातों का क्या।।
सुख में तेरे साथ चलेंगे,
दुःख में सब मुख मोड़ेंगे,
दुनिया वाले तेरे बनकर,
तेरा ही दिल तोड़ेंगे,
देते हैं भगवान को धोखा,
इन्सां को क्या छोड़ेंगे,
कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब,
बाते हैं बातों का क्या।।
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब,
बाते हैं बातों का क्या?
कोई किसी का नहीं ये झूठे,
नाते हैं नातों का क्या?
कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब,
बाते हैं बातों का क्या।।
(काम अगर ये हिन्दू का है,
मंदिर किसने लूटा है ?
मुस्लिम का है काम अगर ये,
खुदा का घर क्यों टूटा है ?
जिस मज़हब में जायज़ है ये,
वो मज़हब तो झूठा है।)
Singer : Jaya Kishori Ji
भजन प्रेषक :- पवन शर्मा,
उदयरामसर (बीकानेर )
सम्पर्क :- 9694768800
