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कटती गाया री पुकार सांभलजो बीरा भजन लिरिक्स – Katti Gaya Ri Pukar Sambhaljo Beera Bhajan Lyrics – Hinduism FAQ

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  • – यह गीत गायों की कटाई और उनके प्रति हो रहे अत्याचारों की पुकार है, जो धर्म और संस्कृति के पतन का संकेत देता है।
  • – गाय को केवल पशु नहीं बल्कि देवताओं का निवास स्थान और माता के रूप में पूजा जाता है, इसलिए उनकी रक्षा आवश्यक है।
  • – वर्तमान समय को कलयुग और कसाई काल बताया गया है, जहां इंसान राक्षस बनकर गौ माता का मांस खाने लगा है।
  • – गायों की भूख और प्यास की व्यथा को दर्शाते हुए समाज से उनकी सुरक्षा और संरक्षण की अपील की गई है।
  • – हिंदुओं से जागरूक होने और गायों की रक्षा के लिए खुद आगे आने का आग्रह किया गया है।
  • – लेखक उदय सिंह राजपुरोहित ने इस गीत के माध्यम से गायों की हत्या को रोकने और राष्ट्रमाता के सम्मान की बात कही है।

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कटती गाया री पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया री पुकार,
जद सु ए गाया कट रही,
धर्म ध्वजा थारी झुक गई,
नीची निज़रा सु मत भाल,
कटती गाया रीं पुकार।।



पढ़ लो रे वेद पुराण,

बतलायों संतो,
पाँच माता रो प्रमाण,
पहली तो जननी माता,
दुजी आ धरती माता,
गउ गंगा और अंबा माँ,
कटती गाया रीं पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार।।



पशु नहीं है गौ मां,

बतलाए संतो,
पशु नहीं रे गउ माँ,
देवों रो वास इनमे,
तारे भव त्रास पल में,
पूज्या वैतरणी कर दे पार,
कटती गाया रीं पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार।।



कलयुग कसाई काल,

बिलखे हैं गाया,
सुन लीज नर-नारी,
चारा पानी ने तरसे,
भूखी प्यासी आ भटके,
कोई ना लेवे संभाल,
कटती गाया रीं पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार।।

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राक्षस बणयो रे इंसान,

खावड़ा ने लागो गो मातारो मास,
बलबलतो पानी डोले,
ऊबी आडी ने चीरे,
आरा चाले हाड मास,
कटती गाया रीं पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार।।



जाग हिन्दु अब जाग,

कई जोवे बाटा,
कद होसी अवतार,
करना हो तो खुद ही कर लो,
गाया के खातिर मरना,
करो कोई शुरुआत,
कटती गाया रीं पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार।।



ब्राह्मण कन्या ने गौ माता,

हत्या रो लागे,
घोर नरक कुंभी पाक,
‘उदय सिंह’ भजन बनाया,
भारत में गाय सुनायों,
राष्ट्रमाता रो मिलजो मान,
कटती गाया रीं पुकार,
सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार।।



कटती गाया री पुकार,

सांभलजो बीरा,
कटती गाया रीं पुकार,
जद सु ए गाया कट रही,
धर्म ध्वजा थारी झुक गई,
नीची निज़रा सु मत भाल,
कटती गाया रीं पुकार।।

लेखक / गायक और प्रेषक – उदय सिंह जी राजपुरोहित।


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