- – कविता में “किरपा” यानी दया और कृपा की महत्ता को दर्शाया गया है, जिसे गाने वाले ने अपनी खुशकिस्मती माना है।
- – कवि ने अपने जीवन में मिले दुखों और तकलीफों के बावजूद, जो दया मिली है, उसे स्वीकार कर उसकी प्रशंसा की है।
- – भावों के माध्यम से कवि ने यह बताया है कि जिसने उसे उठाया और सजाया, उसी की कृपा में वह डूबा हुआ है।
- – कविता में यह संदेश भी है कि जो बीज दूसरों ने बोए, उसका फल कवि खुद खा रहा है, यानी कर्मों का फल भुगतना पड़ता है।
- – “किरपा” का वर्णन इतना गहरा और अनमोल है कि उसे ग्रंथों में भी पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता।
- – कुल मिलाकर, यह कविता जीवन में दया और कृपा की अहमियत और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है।

किरपा को क्या मैं गाऊं,
किरपा से गा रहा हूँ,
खुशकिस्मती है मेरी,
खुशकिस्मती है मेरी,
इनको रिझा रहा हूँ,
किरपा को क्या मैं गाऊँ,
किरपा से गा रहा हूँ।।
तर्ज – दुनिया ने दिल दुखाया।
भावों के समुंदर में,
जिसने मुझे तिराया,
उनके दिए ही भावों में,
उनके दिए ही भावों में,
उनको डूबा रहा हूँ,
किरपा को क्या मैं गाऊँ,
किरपा से गा रहा हूँ।।
थोड़ा सा क्या सजाया,
मन में गुमान आ गया,
जिसने मुझे सजाया,
जिसने मुझे सजाया,
मैं उसको सजा रहा हूँ,
किरपा को क्या मैं गाऊँ,
किरपा से गा रहा हूँ।।
सुनलो ऐ दुनिया वालो,
अंदर की बात है ये,
वो बीज बो रहा है,
वो बीज बो रहा है,
और फल मैं खा रहा हूँ,
किरपा को क्या मैं गाऊँ,
किरपा से गा रहा हूँ।।
इनकी कृपा का वर्णन,
ग्रंथो मे भी ना हो सका,
‘शुभम रूपम’ जो भी सुना,
‘शुभम रूपम’ जो भी सुना,
वो गुनगुना रहा हूँ,
किरपा को क्या मैं गाऊँ,
किरपा से गा रहा हूँ।।
किरपा को क्या मैं गाऊं,
किरपा से गा रहा हूँ,
खुशकिस्मती है मेरी,
खुशकिस्मती है मेरी,
इनको रिझा रहा हूँ,
किरपा को क्या मैं गाऊँ,
किरपा से गा रहा हूँ।।
Singer / Lyrics – Shubham Rupam
