चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी,
जग को तारो भोली माँ
जन को तारो भोली माँ,
काली दा पुत्र पवन दा घोड़ा ॥
॥ भोली माँ ॥
सिन्हा पर भाई असवार,
भोली माँ, चिंतपूर्णी चिंता दूर ॥
॥ भोली माँ ॥
एक हाथ खड़ग दूजे में खांडा,
तीजे त्रिशूल सम्भालो ॥
॥ भोली माँ ॥
चौथे हाथ चक्कर गदा,
पाँचवे-छठे मुण्ड़ो की माला ॥
॥ भोली माँ ॥
सातवे से रुण्ड मुण्ड बिदारे,
आठवे से असुर संहारो ॥
॥ भोली माँ ॥
चम्पे का बाग़ लगा अति सुन्दर,
बैठी दीवान लगाये ॥
॥ भोली माँ ॥
हरी ब्रम्हा तेरे भवन विराजे,
लाल चंदोया बैठी तान ॥
॥ भोली माँ ॥
औखी घाटी विकटा पैंडा,
तले बहे दरिया ॥
॥ भोली माँ ॥
सुमन चरण ध्यानु जस गावे,
भक्तां दी पज निभाओ ॥
॥ भोली माँ ॥
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी,
जग को तारो भोली माँ
श्री चिंतपूर्णी देवी की आरती
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी, जग को तारो भोली माँ
इस पंक्ति का अर्थ है कि श्री चिंतपूर्णी देवी सभी भक्तों की चिंताओं और कठिनाइयों को दूर करती हैं। इस प्रार्थना में भक्त देवी माँ से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे संसार में सबका उद्धार करें। “भोली माँ” के रूप में उन्हें संबोधित किया गया है, जो देवी की सादगी, दयालुता और सौम्यता को प्रकट करता है।
जन को तारो भोली माँ, काली दा पुत्र पवन दा घोड़ा
यह पंक्ति बताती है कि माँ केवल भक्तों की नहीं, बल्कि समस्त मानव जाति की रक्षा और उद्धार के लिए यहां हैं। “काली दा पुत्र” का अर्थ है कि देवी दुर्गा के शक्तिशाली रूप का एक विस्तार हैं, और “पवन दा घोड़ा” उनकी गतिशीलता और शक्ति को दर्शाता है, जो हवा की गति से संकटों को समाप्त कर देती हैं।
सिन्हा पर भाई असवार, भोली माँ, चिंतपूर्णी चिंता दूर
इसका अर्थ है कि माता सिंह पर सवार हैं, जो उनके साहस और वीरता का प्रतीक है। सिंह उनके शक्ति स्वरूप को दर्शाता है, जिससे वे सभी प्रकार की चिंताओं और कष्टों को दूर करती हैं।
एक हाथ खड़ग दूजे में खांडा, तीजे त्रिशूल सम्भालो
इस पंक्ति में माँ के विभिन्न हथियारों का वर्णन है। “एक हाथ खड़ग” का अर्थ है कि एक हाथ में तलवार है, “दूजे में खांडा” यानी दूसरे हाथ में खांडा (एक प्रकार का शस्त्र) है, और “तीजे त्रिशूल” का मतलब है कि तीसरे हाथ में त्रिशूल है। ये सभी हथियार उनके युद्ध कौशल और उनके शत्रु-संहारक रूप को प्रदर्शित करते हैं।
चौथे हाथ चक्कर गदा, पाँचवे-छठे मुण्डो की माला
यहाँ चौथे हाथ में चक्र और गदा का वर्णन है, जो उनके शक्ति स्वरूप को और अधिक प्रकट करता है। चक्र उनकी बुद्धि और विवेक का प्रतीक है, जबकि गदा शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है। पाँचवे और छठे हाथ में मुंडों की माला है, जो उनके विजय और असुरों पर प्रबलता को दर्शाती है।
सातवे से रुण्ड मुण्ड बिदारे, आठवे से असुर संहारो
यह पंक्ति देवी के असुरों का संहारक रूप दर्शाती है। “सातवे हाथ से रुण्ड मुण्ड बिदारे” यानी रुण्ड-मुण्ड जैसे असुरों का नाश करने में सक्षम हैं। आठवे हाथ से असुरों का संहार करती हैं। यह उनके न्याय और विनाशकारी शक्ति का प्रतीक है, जो बुराई का अंत करने में तत्पर रहती हैं।
चम्पे का बाग़ लगा अति सुन्दर, बैठी दीवान लगाये
इस पंक्ति में देवी का दिव्य और सौम्य रूप दर्शाया गया है। चम्पे के फूलों का बाग देवी की सुंदरता और पवित्रता का प्रतीक है। “बैठी दीवान लगाये” का अर्थ है कि वे अपने दिव्य आसन पर विराजमान हैं, जो भक्तों के लिए उनका दिव्य स्वरूप प्रदर्शित करता है।
हरी ब्रम्हा तेरे भवन विराजे, लाल चंदोया बैठी तान
यहाँ “हरी ब्रह्मा” का अर्थ है कि भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी उनके भवन में विराजमान हैं। इसका तात्पर्य यह है कि देवी के दरबार में त्रिदेव भी उपस्थित रहते हैं। “लाल चंदोया” का अर्थ है कि वे लाल रंग के शाही वस्त्र और आभूषण पहनकर विराजमान हैं, जो उनकी शाही उपस्थिति को दर्शाता है।
औखी घाटी विकटा पैंडा, तले बहे दरिया
यह पंक्ति बताती है कि देवी का स्थान पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, जहाँ पहुँचना कठिन है। “औखी घाटी” का अर्थ है कि यह एक दुर्गम स्थान है और “तले बहे दरिया” यानी नीचे की ओर एक नदी बहती है। यह देवी का स्थान एक दिव्य और शांतिपूर्ण वातावरण का प्रतीक है।
सुमन चरण ध्यानु जस गावे, भक्तां दी पज निभाओ
यह पंक्ति देवी की भक्तिपूर्ण सेवा को प्रकट करती है। “सुमन चरण ध्यानु जस गावे” का अर्थ है कि जो भक्त माता की स्तुति करते हैं और उनके चरणों में समर्पित होते हैं, उनके प्रति माँ अपनी कृपा बरसाती हैं। “भक्तां दी पज निभाओ” का अर्थ है कि माता अपने भक्तों की रक्षा और सम्मान को बनाए रखती हैं।
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी, जग को तारो भोली माँ
इस अंतिम पंक्ति में भक्त एक बार फिर से माँ से प्रार्थना करते हैं कि वे सभी चिंताओं को दूर करें और संसार का उद्धार करें। यह एक बार फिर से उनके उद्धारकर्ता और संकट निवारक स्वरूप को प्रकट करता है।