- – गीत में नंद कुमार (श्री कृष्ण) के प्रति गहरी प्रेम और भक्ति व्यक्त की गई है।
- – वृंदावन के कुंज गलियों का वर्णन है, जहां होली खेलते नंदलाल की मोहिनी छाई हुई है।
- – गायक का मन पूरी तरह से नंद कुमार के प्रेम में लीन हो गया है, जिससे उसकी सारी सुध-बुध खो गई है।
- – प्रेम की इस अनुभूति ने गायक को पागलपन की स्थिति तक पहुंचा दिया है।
- – गीत में कृष्ण के प्रति अनजानी और अपार प्रेम की भावना को सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।
- – यह भक्ति और प्रेम गीत वृंदावन की पावन और रमणीय छवि को उजागर करता है।

मेरो मन ले गयो नन्द कुमार,
वृंदावन कुंज गलिन में,
वृंदावन कुंज गलिन में।।
तर्ज – होली खेल रहे नन्दलाल।
जाने कैसे मोहनी डाली,
मेरी सुधबुध बिगड़ी सारी,
मेरी मैं तो लुट गई बीच बाजार,
वृंदावन कुंज गलिन में,
मेरो मन ले गयो नंदकुमार,
वृंदावन कुंज गलिन में।।
ये नन्द राय को छोना,
जाने कैसो डारयो टोना,
हेरि मेरो छुटो कुल संसार,
वृंदावन कुंज गलिन में,
मेरो मन ले गयो नंदकुमार,
वृंदावन कुंज गलिन में।।
मैं तो श्याम की भई दीवानी,
कर बैठी प्रीत अंजानी,
भर गयो मन में प्रेम अपार,
वृंदावन कुंज गलिन में,
मेरो मन ले गयो नंदकुमार,
वृंदावन कुंज गलिन में।।
ऐसो प्रेम को नातो जोड़यो,
मोहे पागल करके छोड्यो,
जावे ‘चित्र विचित्र’ बलिहार,
वृंदावन कुंज गलिन में,
मेरो मन ले गयो नंदकुमार,
वृंदावन कुंज गलिन में।।
मेरो मन ले गयो नन्द कुमार,
वृंदावन कुंज गलिन में,
वृंदावन कुंज गलिन में।।
Singer : Chitra Vichitra Ji
