धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

मोहे होरी में कर गयो तंग ये रसिया माने ना मेरी,
माने ना मेरी माने ना मेरी,
मोहे होली में कर गयो तंग ॥

ग्वाल बालन संग घेर लई मोहे इकली जान के,
भर भर मारे रंग पिचकारी मेरे सन्मुख तान के,
या ने ऐसो,
या ने ऐसो या ने ऐसो मचायो हुरदंग,
ये रसिया माने ना मेरी ॥

जित जाऊँ मेरे पीछे डोले जान जान के अटके,
ना माने होरी में कहूं की ये तो गलिन गलिन में मटके,
ना ऐ होरी,
ना ऐ होरी ना ऐ होरी खेलन को ढंग,
ये रसिया माने ना मेरी ॥

रंग बिरंगे चित्र विचित्र बनाए दिए होरी में,
पिचकारी में रंग रीत गयो भर ले कमोरी ते,
पागल ने,
पागल ने पागल ने छनाए दई भंग,
ये रसिया माने ना मेरी ॥

मोहे होरी में कर गयो तंग ये रसिया माने ना मेरी: होली भजन का गहन अर्थ

यह भजन केवल राधा-कृष्ण की नटखट लीलाओं का वर्णन भर नहीं है, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भाव छिपे हैं। यह रचना प्रेम, भक्ति, और आनंद के स्वरूप को दर्शाती है, जिसमें होली केवल एक माध्यम है। हर पंक्ति में प्रेम का अल्हड़पन और राधा-कृष्ण के रिश्ते की जटिलताएं उजागर होती हैं। इसे गहराई से समझने के लिए, हर पंक्ति को सूक्ष्मता से विश्लेषित करना आवश्यक है।


पहला श्लोक:

मोहे होरी में कर गयो तंग ये रसिया माने ना मेरी,
माने ना मेरी माने ना मेरी,
मोहे होली में कर गयो तंग।

गहन अर्थ:

  1. “मोहे होरी में कर गयो तंग”:
    यहाँ राधा की शिकायत केवल शाब्दिक नहीं है। यह प्रेम की उस स्थिति को दर्शाती है जहाँ प्रिय की छेड़खानी से शिकायत भी प्रेम का ही रूप है। “तंग करना” का अर्थ है कि कृष्ण उन्हें हर क्षण व्यस्त रखे हुए हैं, जिससे उनका ध्यान कहीं और नहीं जा सकता। यह संकेत देता है कि सच्चा प्रेम किसी को पूरी तरह अपने में समेट लेता है।
  2. “माने ना मेरी”:
    इस पंक्ति का दोहरा अर्थ है। पहला, कृष्ण उनकी बातें नहीं मानते, और दूसरा, राधा स्वयं भी चाहती हैं कि कृष्ण ऐसा ही करें। यह प्रेम का विरोधाभास है—जहाँ शिकायत भी आनंद का रूप है।

आध्यात्मिक संदर्भ:

भक्त और भगवान के रिश्ते में यह स्थिति देखी जा सकती है। भक्त अपने भगवान से शिकायत करता है कि वह उसे “परेशान” कर रहा है, लेकिन यही प्रेम का आधार है। यह आत्मा की परमात्मा के प्रति खिंचाव की स्थिति को दर्शाता है।


दूसरा श्लोक:

ग्वाल बालन संग घेर लई मोहे इकली जान के,
भर भर मारे रंग पिचकारी मेरे सन्मुख तान के,
या ने ऐसो,
या ने ऐसो या ने ऐसो मचायो हुरदंग,
ये रसिया माने ना मेरी।

गहन अर्थ:

  1. “ग्वाल बालन संग घेर लई मोहे इकली जान के”:
    राधा यहाँ अपने अकेलेपन की बात करती हैं। यह अकेलापन केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि एक आंतरिक भाव है जहाँ कृष्ण ने राधा को पूरी तरह घेर लिया है। अकेलेपन का यह भाव प्रेम की उस अवस्था को दर्शाता है जहाँ प्रियतम के बिना सब व्यर्थ लगता है।
  2. “भर भर मारे रंग पिचकारी मेरे सन्मुख तान के”:
    पिचकारी का रंग जीवन के विविध रंगों का प्रतीक है। कृष्ण राधा को इन रंगों में सराबोर कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि जब भगवान का प्रेम मिलता है, तो वह जीवन को पूरी तरह से रंगीन और अर्थपूर्ण बना देता है।
  3. “या ने ऐसो मचायो हुरदंग”:
    हुरदंग केवल शाब्दिक मस्ती नहीं है। यह कृष्ण की लीला का प्रतीक है, जहाँ संसार की सारी घटनाएँ केवल उनकी माया हैं। भक्त इसे “हुरदंग” की तरह देखता है, लेकिन इसमें आनंद की अनुभूति होती है।

आध्यात्मिक संदर्भ:

यह श्लोक दर्शाता है कि भगवान का प्रेम पूरी तरह से आत्मा को घेर लेता है, उसे कहीं और जाने का अवसर नहीं देता। यह “अहंकार” को समाप्त कर देता है और प्रेम की पवित्र स्थिति में ले जाता है।


तीसरा श्लोक:

जित जाऊँ मेरे पीछे डोले जान जान के अटके,
ना माने होरी में कहूं की ये तो गलिन गलिन में मटके,
ना ऐ होरी,
ना ऐ होरी ना ऐ होरी खेलन को ढंग,
ये रसिया माने ना मेरी।

गहन अर्थ:

  1. “जित जाऊँ मेरे पीछे डोले जान जान के अटके”:
    राधा कहती हैं कि कृष्ण हर जगह उनका पीछा करते हैं। यह भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुसरण है। भगवान हर क्षण अपने भक्त के साथ रहते हैं, चाहे भक्त उन्हें देख पाए या नहीं।
  2. “ना माने होरी में कहूं की ये तो गलिन गलिन में मटके”:
    कृष्ण का हर जगह “मटकना” उनके सर्वव्यापी होने का संकेत है। वह हर गली और हर कोने में मौजूद हैं। यह जीवन के हर पहलू में भगवान की उपस्थिति को दर्शाता है।
  3. “ना ऐ होरी खेलन को ढंग”:
    राधा शिकायत करती हैं कि कृष्ण होली ठीक से नहीं खेलते। यह प्रेम का वह रूप है जहाँ प्रिय के दोष भी प्रिय लगते हैं।

आध्यात्मिक संदर्भ:

यहाँ “गलियों में मटकना” भगवान के सर्वव्यापी रूप का प्रतीक है। भक्त चाहे कहीं भी जाए, भगवान हर जगह उसके साथ हैं। यह आत्मा और परमात्मा के अटूट संबंध को दर्शाता है।


चौथा श्लोक:

रंग बिरंगे चित्र विचित्र बनाए दिए होरी में,
पिचकारी में रंग रीत गयो भर ले कमोरी ते,
पागल ने,
पागल ने पागल ने छनाए दई भंग,
ये रसिया माने ना मेरी।

गहन अर्थ:

  1. “रंग बिरंगे चित्र विचित्र बनाए दिए होरी में”:
    होली के रंग जीवन के विविध अनुभवों का प्रतीक हैं। कृष्ण ने इन रंगों से राधा के जीवन को भर दिया है। यह प्रेम के द्वारा जीवन को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाने की बात करता है।
  2. “पिचकारी में रंग रीत गयो भर ले कमोरी ते”:
    यहाँ “पिचकारी” जीवन का स्रोत है, जो भगवान के प्रेम से भरपूर है। यह प्रेम किसी विशेष पात्र (कमोरी) में सीमित नहीं रह सकता, बल्कि हर ओर फैलता है।
  3. “पागल ने छनाए दई भंग”:
    कृष्ण की हरकतें “पागलपन” लग सकती हैं, लेकिन यह पागलपन आत्मा के उच्चतम आनंद की स्थिति है। यह “भंग” (जो माया या भ्रम को तोड़ता है) का प्रतीक है, जो भक्त को भगवान के करीब लाती है।

आध्यात्मिक संदर्भ:

यहाँ कृष्ण का “पागलपन” उनके प्रेम की गहराई और विशुद्धता को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि भगवान के प्रेम में समर्पण से ही जीवन का सच्चा आनंद मिलता है।


निष्कर्ष

यह भजन केवल राधा-कृष्ण की होली की मस्ती को नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिक एकता के गहरे अर्थ को प्रकट करता है। इसमें जीवन की कठिनाइयों, प्रिय के साथ की शिकायतों और आनंद को एक सुंदर संतुलन में रखा गया है। राधा और कृष्ण का प्रेम भक्त और भगवान के बीच की आत्मीयता का प्रतीक है, जहाँ हर अनुभव में केवल प्रेम और आनंद है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *