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- – गीत में राम रतन (भगवान राम का नाम) को अमूल्य धन बताया गया है, जिसे पाने का सौभाग्य मिला है।
- – सतगुरु की कृपा से जीवन की सच्ची पूंजी प्राप्त हुई है, जो जन्म-जन्मांतर की कमाई है।
- – यह धन न खर्च होता है, न चोरी होता है, बल्कि दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहता है।
- – सतगुरु को नाविक बताया गया है, जिसने भवसागर (जन्म-मरण के सागर) को पार कराया।
- – मीरा भक्ति और प्रभु गिरधर नागर के प्रति गहरी श्रद्धा और आनंद व्यक्त किया गया है।

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो॥
वस्तु अमोलक दीनी मेरे सतगुरु,
वस्तु अमोलक दीनी मेरे सतगुरु,
किरपा कर अपनायो॥॥
जनम जनम की पूंजी पाई,
जनम जनम की पूंजी पाई,
जग में सभी खोवायो॥॥
खरच न खुटे, चोर न लुटे,
खरच न खुटे, चोर न लुटे,
दिन-दिन बढ़त सवायो॥॥
सत की नाव खेवटिया सतगुरु,
सत की नाव खेवटिया सतगुरु,
भवसागर तर आयो॥॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
हरस हरस जश गायो॥॥
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
