रङ्गपुर विहार in Hindi/Sanskrit
पल्लवि:
रङ्गपुर विहार जय कोदण्ड रामावतार रघुवीर श्री
अनुपल्लवि:
अङ्गज जनक देव बृन्दावन सारङ्गेन्द्र वरद रमान्तरङ्ग
मध्यम कालम्
श्यामळाङ्ग विहङ्ग तुरङ्ग सदयापाङ्ग सत्सङ्ग
चरणम्:
पङ्कजाप्तकुल जलनिधि सोम वर पङ्कज मुख
पट्टाभिराम पदपङ्कज जितकाम रघुराम वामाङ्ग
गत सीतावरवेष शेषाङ्ग शयन भक्त सन्तोष एणाङ्क
रवि नयन मृदुतरभाष अकळङ्क दर्पण कपोल विशेष मुनि
मध्यम कालम्
सङ्कटहरण गोविन्द वेङ्कट रमण मुकुन्द
सङ्कर्षण मूल कन्द शन्कर गुरुगुहानन्द
Rangapura Vihara in English
Here is the text in English words without added meaning:
Pallavi:
Rangapura Vihaara Jaya Kodanda Raamaavataara Raghuveera Shree
Anupallavi:
Angaja Janaka Deva Vrindaavana Saarangendra Varada Ramaantaranga
Madhyama Kaala:
Shyaamalaanga Vihanga Turanga Sdayapaanga Satsanga
Charanam:
Pankajaaptakula Jalanidhi Soma Vara Pankaja Mukha
Pattaabhiraama Padapankaja Jitakarma Raghuraama Vaamaanga
Gata Sitaavaravesha Sheshaanga Shayana Bhakta Santosha Enaanka
Ravi Nayana Mridutarabhasha Akalanka Darpana Kapola Vishesha Muni
Madhyama Kaala:
Sankataharana Govinda Venkata Ramana Mukunda
Sankarshana Moola Kanda Shankara Guruguhaananda
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रङ्गपुर विहार का अर्थ
पल्लवी
रङ्गपुर विहार जय कोदण्ड रामावतार रघुवीर श्री
इस भाग में श्रीराम के रङ्गपुर (अर्थात रंगमंच या स्थान) में विराजमान होने की स्तुति की जा रही है। कोदण्ड धारण करने वाले अर्थात धनुष धारण करने वाले श्रीराम को ‘रघुवीर’ और ‘रामावतार’ के रूप में वर्णित किया गया है। यह उनके पराक्रमी और महान योद्धा स्वरूप का बखान है, जिनका नाम लेते ही सारे संकट दूर हो जाते हैं।
अनुपल्लवि
अङ्गज जनक देव बृन्दावन सारङ्गेन्द्र वरद रमान्तरङ्ग
यहाँ अङ्गज अर्थात कामदेव के पिता, बृन्दावन के सारङ्ग (मृग) का शिकार करने वाले श्रीराम को सम्बोधित किया गया है। ‘वरद’ अर्थात् वरदान देने वाले और ‘रमान्तरङ्ग’ यानी माता सीता के हृदय में विराजने वाले श्रीराम की महिमा का बखान किया गया है। वे देवताओं को सुख और शांति देने वाले हैं।
मध्यम कालम्
श्यामळाङ्ग विहङ्ग तुरङ्ग सदयापाङ्ग सत्सङ्ग
श्यामल शरीर वाले श्रीराम जो विहंग (पक्षी) और तुरंग (घोड़े) पर सवारी करते हैं, उनका सौम्य और करुणापूर्ण दृष्टि (सदयापाङ्ग) वाले स्वरूप का वर्णन किया गया है। उनके साथ सत्संग करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
चरणम्
पङ्कजाप्तकुल जलनिधि सोम वर पङ्कज मुख
कमल के समान मुख वाले श्रीराम, जो जलनिधि (समुद्र) और सोम (चंद्रमा) के कुल से संबंधित हैं, उनकी वंदना की जा रही है। उनकी पवित्रता और शांतिपूर्ण स्वरूप को दर्शाते हुए उनके गुणों का गान किया गया है।
पट्टाभिराम पदपङ्कज जितकाम रघुराम वामाङ्ग
पट्टाभिराम अर्थात राज्याभिषेक के समय के श्रीराम, जिनके चरण कमल से कामदेव भी हार मानते हैं। रघुकुल के नायक श्रीराम, जिनके वाम भाग में माता सीता विराजमान हैं, उनकी महिमा का वर्णन किया गया है।
गत सीतावरवेष शेषाङ्ग शयन भक्त सन्तोष एणाङ्क
माता सीता का आश्रय लेने वाले, शेषनाग की शय्या पर विराजमान, और भक्तों को संतोष देने वाले श्रीराम की उपासना की गई है। श्रीराम के माथे पर चंदन का तिलक और उनके नयन सूरज के समान तेजस्वी हैं।
रवि नयन मृदुतरभाष अकळङ्क दर्पण कपोल विशेष मुनि
सूर्य के समान नयन, मृदु भाषा, कलंक रहित, दर्पण के समान साफ कपोल (गाल) और विशेष मुनि के रूप में श्रीराम का वर्णन किया गया है। वे सत्य और न्याय के प्रतीक हैं और उनके गुणों का गान सभी भक्तों के लिए प्रेरणादायक है।
मध्यम कालम्
सङ्कटहरण गोविन्द वेङ्कट रमण मुकुन्द
श्रीराम, संकटों को हरने वाले, गोविन्द, वेङ्कट रमण और मुकुन्द के रूप में उपासना योग्य हैं। वे सभी देवताओं में प्रमुख हैं और उनके नाम का जाप करने से सभी कष्टों का नाश हो जाता है।
सङ्कर्षण मूल कन्द शन्कर गुरुगुहानन्द
संकर्षण (बलराम) और शंकर (शिव) के मूल कारण, गुरुगुहानन्द (स्वामी सुब्रह्मण्य के प्रति प्रेम) के रूप में श्रीराम की उपासना की जाती है। वे ब्रह्मांड के संरक्षक और सबके लिए सुखदायक हैं। उनके नाम का स्मरण करने से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
पल्लवि का विस्तार
रङ्गपुर विहार का अर्थ
रङ्गपुर का अर्थ है ऐसा स्थान जहाँ श्रीराम अपनी लीला करते हैं, अर्थात् वह पवित्र स्थान जहाँ भगवान राम के विविध रूपों और लीलाओं का प्रदर्शन होता है। यह उनके जीवन की अद्भुत घटनाओं और कृत्यों का प्रतीक है। ‘विहार’ शब्द उनके विहार या विचरण करने को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि भगवान राम अपने भक्तों के हृदय में निवास करते हैं और अपने दिव्य चरित्र से सभी को मोहित करते हैं।
जय कोदण्ड रामावतार रघुवीर श्री
यहाँ ‘कोदण्ड’ उनके धनुष का नाम है, जो उनके युद्ध कौशल और शौर्य का प्रतीक है। रामावतार का अर्थ है राम का अवतार, अर्थात् वे स्वयं विष्णु के अवतार हैं, जो पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए अवतरित हुए हैं। ‘रघुवीर’ उन्हें रघुकुल के महान वीर के रूप में दर्शाता है। ‘श्री’ शब्द उनका दिव्य और सौम्य स्वरूप प्रकट करता है, जिससे सभी को शांति और सुख प्राप्त होता है।
अनुपल्लवि का विस्तार
अङ्गज जनक देव का वर्णन
अङ्गज का अर्थ है कामदेव, जो कि शिव द्वारा भस्म किए गए थे। कामदेव को पुनर्जीवित करने वाले और उनके पिता के रूप में प्रसिद्ध श्रीराम का यह विशेषण है। इसके अलावा, वे देवताओं के नायक हैं और सभी देवताओं के लिए पूजनीय हैं।
बृन्दावन सारङ्गेन्द्र वरद रमान्तरङ्ग
बृन्दावन के सारङ्गेन्द्र, अर्थात् मृग को मारने वाले राम को ‘वरद’ कहा गया है, जो सबको वरदान देने वाले हैं। ‘रमान्तरङ्ग’ का अर्थ है माता सीता (रमा) के हृदय में बसे हुए। वे सीता जी के जीवन के आधार हैं और सभी को आनंदित करने वाले हैं।
मध्यम कालम् का विस्तार
श्यामळाङ्ग और सदयापाङ्ग
श्यामल अर्थात गहरे सांवले रंग के शरीर वाले श्रीराम का वर्णन यहाँ किया गया है। वे सुंदर और मोहक हैं। ‘सदयापाङ्ग’ का अर्थ है करुणा से भरी दृष्टि, जो उनकी कृपा को दर्शाती है। उनकी दृष्टि मात्र से भक्तों के सारे पाप धुल जाते हैं और वे मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।
सत्सङ्ग का महत्त्व
श्रीराम का सत्संग, अर्थात् उनके साथ जुड़ना, उनकी भक्ति में लीन होना, जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य माना जाता है। यह मन, वचन और कर्म को पवित्र बनाता है और मनुष्य को सच्चे अर्थों में सुख और शांति प्रदान करता है।
चरणम् का विस्तार
पङ्कजाप्तकुल जलनिधि सोम वर पङ्कज मुख
‘पङ्कज’ का अर्थ है कमल, और ‘पङ्कजाप्तकुल’ का अर्थ है कमल के समान उज्जवल और पवित्र कुल। ‘जलनिधि’ और ‘सोम’ के कुल में उत्पन्न श्रीराम को ‘पङ्कज मुख’ कहा गया है, जो कि उनके कोमल और सुंदर मुख का वर्णन करता है। उनका मुख चंद्रमा के समान शीतलता प्रदान करने वाला और कमल के समान पवित्र है।
पट्टाभिराम पदपङ्कज
‘पट्टाभिराम’ का अर्थ है राज्याभिषेक के समय के श्रीराम, जो अपने पदपङ्कज (चरण कमल) से भक्तों के हृदय में निवास करते हैं। उनके चरण कमलों की वंदना करने से सभी प्रकार की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जितकाम रघुराम वामाङ्ग
जितकाम का अर्थ है, जिन्होंने कामदेव को भी अपने वश में कर लिया है। रघुराम, रघुकुल के नायक, जिनका वाम अंग माता सीता के लिए समर्पित है। वे आदर्श पति और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
गत सीतावरवेष शेषाङ्ग शयन
यहाँ श्रीराम को सीता जी का आश्रयदाता बताया गया है। ‘शेषाङ्ग शयन’ का अर्थ है शेषनाग की शय्या पर शयन करने वाले भगवान विष्णु का स्वरूप। यह दर्शाता है कि श्रीराम सभी देवताओं के आराध्य हैं और भक्तों को सुख, शांति और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
भक्त सन्तोष एणाङ्क
भक्तों को संतोष देने वाले श्रीराम के माथे पर एणाङ्क, अर्थात् चंदन का तिलक, उनके दिव्य स्वरूप को प्रकट करता है। उनके दर्शन मात्र से भक्तों को असीम सुख और संतोष की अनुभूति होती है।
रवि नयन मृदुतरभाष
रवि नयन का अर्थ है सूर्य के समान तेजस्वी नेत्र। मृदुतरभाष का अर्थ है कोमल और मधुर वाणी, जो सबके मन को शांति और आनंद प्रदान करती है।
अकळङ्क दर्पण कपोल विशेष मुनि
अकळङ्क का अर्थ है निष्कलंक, दर्पण के समान स्वच्छ कपोल (गाल) और विशेष मुनि अर्थात् तपस्वी और ज्ञानी। श्रीराम का यह स्वरूप सभी मुनियों और भक्तों को प्रेरणा और मार्गदर्शन देता है। वे सभी दोषों से परे हैं और उनके मुख पर दिव्यता की आभा है।
मध्यम कालम् का विस्तार
सङ्कटहरण गोविन्द
सङ्कटों का हरण करने वाले गोविन्द श्रीराम, जो भक्तों के जीवन से सभी बाधाओं को दूर कर उन्हें सुख और शांति प्रदान करते हैं।
वेङ्कट रमण मुकुन्द
वेङ्कट रमण तिरुपति के वेंकटेश्वर के रूप में पूजनीय हैं। मुकुन्द का अर्थ है मोक्ष देने वाले। श्रीराम मोक्ष और शांति के दाता हैं।
सङ्कर्षण मूल कन्द
सङ्कर्षण बलराम का एक नाम है, जो कि श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण का अवतार माने जाते हैं। वे मूल कंद, अर्थात् समस्त ब्रह्मांड के मूल कारण हैं।
शन्कर गुरुगुहानन्द
शन्कर अर्थात् शिव और गुरुगुहानन्द, स्वामी सुब्रह्मण्य के रूप में पूजनीय श्रीराम सभी के लिए आनंद और शांति के स्रोत हैं। वे संसार के समस्त दुखों और समस्याओं का समाधान हैं और उनके नाम का जाप करने से जीवन के सारे संकट दूर हो जाते हैं।