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- – कविता में तुंबडिया नामक व्यक्ति की धार्मिक आस्था और भक्ति का वर्णन है, जो अनेक तीर्थों की यात्रा कर चुकी है।
- – गंगा, गोमती और अड़सठ तीर्थों का उल्लेख करते हुए उसकी तीर्थयात्रा की महत्ता बताई गई है।
- – सतगुरु और संतों की नजर में तुंबडिया की आत्मा को शुद्ध करने की प्रक्रिया का वर्णन है, जिसमें काट-छांट कर राख मिलाई गई।
- – राख मिलाकर तुंबडिया ने अमृत जल प्राप्त किया, जिससे संतों के मन को प्रसन्न किया।
- – यह कविता सत्य और भक्ति की महिमा को दर्शाती है, जिसमें तुंबडिया की धार्मिक श्रद्धा और सत्संग की महत्ता उजागर होती है।

सब तीरथ कर आई तुम्बडिया,
गंगा नाई गोमती नाई,
अडसठ तीरथ धाई,
नित नित उठ मंदिर में आई,
तो भी ना गई कडवाई, तुम्बडिया,
सब तीरथ कर आई तुम्बडिया।।
सतगुरु संत के नज़र चढ़ी जब,
अपने पास मंगाई,
काट कुट कर साफ़ बनाई,
अंदर राख मिलाई, तुम्बडिया,
सब तीरथ कर आई तुम्बडिया।।
राख मिलाकर पाक बनाई,
तबतो गई कडवाई,
अमृत जल भर लाई तुंबडीया,
संतन के मन भाई, तुम्बडिया,
सब तीरथ कर आई तुम्बडिया।।
ये बाता सब सत्य सुनाई,
झूठ नहीँ रे मेरे भाई,
‘दास सतार’ तुंबडीया फिर तो,
करती फ़िरे ठकुराई, तुम्बडिया,
सब तीरथ कर आई तुम्बडिया।।
सब तीरथ कर आई तुम्बडिया,
गंगा नाई गोमती नाई,
अडसठ तीरथ धाई,
नित नित उठ मंदिर में आई,
तो भी ना गई कडवाई, तुम्बडिया,
सब तीरथ कर आई तुम्बडिया।।
Sent By – Parvin Pilowani
8056787300
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