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शोभाराम जी की जीवनी लिखित में – Shobharam Ji Ki Jeevani Likhit Mein – Hinduism FAQ

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  • – शोभाराम जी मांडावाड़ा, मेवाड़ में 1910 विक्रम संवत में जन्मे एक महान संत और भक्त थे।
  • – वे जांगिड़ सुथार जाति से थे और विश्वकर्मा जी के पुत्र माने जाते हैं।
  • – उनके गुरु समुंदर ऋषि हिमाचल से आए थे, जिन्होंने उन्हें दीक्षा दी और जगत को शिक्षा दी।
  • – शोभाराम जी ने द्वारिका के नाथ के चमत्कारिक अनुभव किए और राणा ने उनकी भक्ति और सत्यता को मान्यता दी।
  • – उन्हें कर्म की विशेष गति और उच्च सम्मान प्राप्त हुआ, और उन्होंने अटल समाधि ली।
  • – उनकी जीवनी और महिमा का वर्णन भगवत जी सुथार द्वारा किया गया है, जिसे कृष्णा कांत जांगिड़ ने प्रसारित किया।

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शोभाराम जी की जीवनी,

दोहा – कठे देवगढ़ कठे द्वारका,
कटे भगत भगवान,
बळता बागा ने जाय बुझावे,
पाछा पहुंचे ठाण ठिकाण।
जय जय विश्वकर्मा जी का पुत्र लाडला,
आप री महिमा अपरंपार,
म्हारा शोभाराम जी महाराज,
आपने वंदन बारंबार।



देवगढ़ में मांडावाडा में,

शोभाराम जी नाम,
प्रगटिया संत बड़ा
जनमिया भक्त बड़ा।।



विक्रम संवत माही 1910 में,

भादवा रा महीना माही,
आनंद चवदस ने,
मेवाड़ मुलक रे माय,
आप रो मांडावाड़ा रे माय,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।



पिता दाऊ रामजी और,

माँ शायर बाई,
जांगिड़ सुथार जाति,
ब्राह्मण केवाई,
श्री विश्वकर्मा रा पूत,
हिवडे द्वारिका रो रूप,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।



गुरुवर समुंदर रिषी,

हिमाचल से आया,
सरवर का भोपा रा,
आसन जमाया,
पाई गुरुवर सु अब दीक्षा,
चाल्या जगत देवण ने शिक्षा,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।



द्वारिका रा नाथ रो,

बागो बळतो देख्यो,
पल में बुझवाय बैठ्या,
अचरज देख्यो,
होग्या काळा हाथ,
राणाे पूछे बताओ बात,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।

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खबर मंगाई राणो,

द्वारिका सु सारी,
भगता या बात साची,
बोले पुजारी,
राणाै जोड़े दोनों हाथ,
कर दी सब बेगारी माफ,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।



कर्मा री गत न्यारी,

पगल्या पूजावे,
उड़ जावे हंस पर,
भूल नहीं पावे,
पावे यश कीर्ति सम्मान,
पावे परम पद बहूमान,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।



अटल समाधि पाई,

मघसर छट ने,
भगता रा भाग जाग्या,
मेट्या संकट ने,
भागवत गावे चरणा माय,
सुरेश यो ध्यावे अंतर माय,
जनमिया संत बड़ा,
प्रकटिया संत बड़ा।।

शोभाराम जी की जीवनी,

गायक – भगवत जी सुथार।
प्रेषक – कृष्णा कांत जांगिड़।
96806 17837


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