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श्री गणेशपञ्चरत्नम् – मुदाकरात्तमोदकं in Hindi/Sanskrit

मुदाकरात्तमोदकं एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जिसे आदि शंकराचार्य ने लिखा है। यह भगवान गणेश की स्तुति में लिखा गया है। यहां प्रत्येक श्लोक का हिंदी अनुवाद और व्याख्या दी गई है:

श्लोक 1:

मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

अनुवाद: जो हाथ में मोदक लिए हुए हैं, सदा मुक्ति का साधन हैं, जिनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है और जो समस्त लोकों की रक्षा करते हैं। जो अनायकों के एकमात्र नायक हैं, जो गजासुर जैसे दैत्यों का विनाश करते हैं और जो अपने भक्तों के समस्त अशुभों को शीघ्र ही नष्ट कर देते हैं, ऐसे विनायक (गणेश) को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्लोक 2:

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

अनुवाद: जो दुर्जनों को अत्यंत भयंकर प्रतीत होते हैं, जो नवोदित सूर्य के समान तेजस्वी हैं, जो देवताओं के शत्रुओं का नाश करते हैं, जो नतमस्तक भक्तों की विपत्तियों को हर लेते हैं। जो देवताओं के ईश्वर, निधियों के स्वामी, गजों के अधिपति और गणों के स्वामी हैं, ऐसे परात्पर (सर्वोच्च) महेश्वर गणेश की मैं निरंतर शरण लेता हूँ।

श्लोक 3:

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

अनुवाद: जो समस्त लोकों के कल्याणकारी हैं, जिन्होंने दैत्यकुञ्जर (गजासुर) का नाश किया, जिनका उदर विशाल है, जो वरदान देने वाले हैं, जिनका मुख हाथी के समान है और जो अक्षर (अनंत) हैं। जो कृपा और क्षमा के सागर हैं, जो आनंद और यश देने वाले हैं, जो भक्तों के मन को प्रसन्न करते हैं, ऐसे तेजस्वी गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्लोक 4:

अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

अनुवाद: जो निर्धनों के दुःखों का हरण करते हैं, जो प्राचीन संतों द्वारा प्रशंसित हैं, जो शिव (पुरारि) के प्रिय पुत्र हैं और जो देवताओं के शत्रुओं के गर्व का नाश करते हैं। जो संसार के नाश के समय भयानक रूप धारण करते हैं, जो अर्जुन आदि के भूषण हैं, जिनकी कपोलों (गालों) की शोभा अपरंपार है, ऐसे प्राचीन हाथी स्वरूप गणेश की मैं भक्ति करता हूँ।

श्लोक 5:

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

अनुवाद: जो अत्यंत सुंदर दंत (दाँत) वाले हैं, जो यमराज (मृत्यु के देवता) के भी विनाशक शिव के पुत्र हैं, जिनका रूप अचिंत्य (अकल्पनीय) है, जो अनंत हैं और जो विघ्नों का नाश करते हैं। जो योगियों के हृदय में निरंतर वास करते हैं, ऐसे एकदंत गणेश को मैं सदा चिंतन करता हूँ।

श्लोक 6:

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

अनुवाद: जो व्यक्ति महागणेश के इन पाँच रत्नों (श्लोकों) का प्रति दिन प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक जाप करता है, हृदय में गणेश का स्मरण करते हुए, वह शीघ्र ही रोगों और दोषों से मुक्त हो जाता है, उसे उत्तम संतति प्राप्त होती है, वह दीर्घायु, संपन्न और अष्टभूतियों से युक्त हो जाता है।

यह स्तोत्र भगवान गणेश की महानता और दिव्यता का वर्णन करता है। इसके नियमित पाठ से भक्तों को समस्त विघ्नों से मुक्ति मिलती है और वे सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त करते हैं।

Shri Ganesha Pancharatnam – Mudakaratta in English

mudākarātta mōdakaṁ sadā vimuktisādhakaṁ
kalādharāvataṁsakaṁ vilāsilōkarakṣakam |
anāyakaikanāyakaṁ vināśitēbhadaityakaṁ
natāśubhāśunāśakaṁ namāmi taṁ vināyakam || 1 || 

natētarātibhīkaraṁ navōditārkabhāsvaraṁ
namatsurārinirjaraṁ natādhikāpaduddharam |
surēśvaraṁ nidhīśvaraṁ gajēśvaraṁ gaṇēśvaraṁ
mahēśvaraṁ tamāśrayē parātparaṁ nirantaram || 2 || 

samastalōkaśaṅkaraṁ nirastadaityakuñjaraṁ
darētarōdaraṁ varaṁ varēbhavaktramakṣaram |
kr̥pākaraṁ kṣamākaraṁ mudākaraṁ yaśaskaraṁ
manaskaraṁ namaskr̥tāṁ namaskarōmi bhāsvaram || 3 || 

akiñcanārtimārjanaṁ cirantanōktibhājanaṁ
purāripūrvanandanaṁ surārigarvacarvaṇam |
prapañcanāśabhīṣaṇaṁ dhanañjayādibhūṣaṇaṁ
kapōladānavāraṇaṁ bhajē purāṇavāraṇam || 4 || 

nitāntakāntadantakāntimantakāntakātmajaṁ
acintyarūpamantahīnamantarāyakr̥ntanam |
hr̥dantarē nirantaraṁ vasantamēva yōgināṁ
tamēkadantamēva taṁ vicintayāmi santatam || 5 || 

mahāgaṇēśa pañcaratna mādarēṇa yō:’nvahaṁ
prajalpati prabhātakē hr̥di smarangaṇēśvaram |
arōgatāmadōṣatāṁ susāhitīṁ suputratāṁ
samāhitāyuraṣṭabhūtimabhyupaiti sō:’cirāt || 6 || 

श्री गणेशपञ्चरत्नम् – मुदाकरात्तमोदकं PDF Download

भगवान गणेश की स्तुति का महत्व

  1. विघ्नहर्ता: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। वे सभी प्रकार के विघ्न और बाधाओं को दूर करने वाले देवता माने जाते हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में उनकी पूजा करने की परंपरा है ताकि कार्य बिना किसी बाधा के संपन्न हो सके।
  2. बुद्धि और ज्ञान: गणेश जी को बुद्धि, ज्ञान और समृद्धि का देवता भी माना जाता है। उन्हें “विद्या का देवता” भी कहा जाता है। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति की बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
  3. आदि देवता: गणेश जी को प्रथम पूज्य कहा जाता है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। यह मान्यता है कि गणेश जी की पूजा के बिना कोई भी धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं माना जाता।

स्तोत्र के पाठ का फल

  1. आरोग्य: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति आरोग्य (स्वास्थ्य) प्राप्त करता है। यह श्लोकों में वर्णित है कि जो व्यक्ति इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ता है, वह रोगों से मुक्त हो जाता है।
  2. समृद्धि: गणेश पंचरत्न का पाठ करने से व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य और समृद्धि प्राप्त होती है। गणेश जी की कृपा से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।
  3. मन की शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन की शांति मिलती है। व्यक्ति के जीवन में तनाव और चिंता कम होती है और वह मानसिक शांति का अनुभव करता है।
  4. सफलता: गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। वे जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्रदान करते हैं, चाहे वह शिक्षा हो, व्यवसाय हो, या कोई अन्य क्षेत्र।

गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ कैसे करें

  1. समय: प्रातःकाल का समय इस स्तोत्र के पाठ के लिए सबसे शुभ माना जाता है। सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर इसका पाठ करें।
  2. मंत्र: पाठ करने से पहले गणेश जी के मूल मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करें। इससे मन एकाग्र होता है और स्तोत्र के पाठ का पूर्ण लाभ मिलता है।
  3. भक्ति और श्रद्धा: सबसे महत्वपूर्ण है कि इस स्तोत्र का पाठ पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाए। केवल शाब्दिक पाठ करने से उतना लाभ नहीं मिलता जितना भक्ति और श्रद्धा के साथ करने से मिलता है।

विशेष अवसर

  1. गणेश चतुर्थी: गणेश चतुर्थी के अवसर पर इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा और व्रत रखा जाता है।
  2. शुभ कार्यों की शुरुआत: किसी भी नए कार्य की शुरुआत से पहले गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है। इससे कार्य में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।

निष्कर्ष

गणेश पंचरत्न स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करने वाला अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है। इसका पाठ व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सफलता लाता है। नियमित रूप से इसका पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार की विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है।

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