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श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

॥ स्तोत्र पाठ ॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥1॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वान-
राऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः॥2॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥3॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥4॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥5॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥6॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥7॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता
महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥8॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥9॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्॥10॥

Shri Hanumat Tandava Stotram in English

Vande sindooravarnaabham lohitaambarabhooshitam।
Raktaangaraagashobhaadhyam shonaapuchchham kapeeshwaram॥

॥ Stotra Paath ॥
Bhae sameeranandanam, subhaktachittaranjanam,
Dinesharoopabhakshakam, samastabhaktarakshakam।
Sukanthakaryasaadhakam, vipakshapakshabaadhakam,
Samudrapaaragaaminam, namaami siddhakaaminam॥1॥

Sushankitam sukanthabhuktavaan hi yo hitam
Vachastvamaashu dhairyamaashrayaatra vo bhayam kadaapi na।
Iti plavanganathabhaashitam nishamya vaan-
Raadhinatha aapa sham tadaa, sa ramadoota aashrayah॥2॥

Sudirghabaahulochanena, puchchhaguchchhashobhina,
Bhujadvayena sodareem nijaamsayugmamaasthitau।
Kritau hi kosalaadhipau, kapeesharaajasannidhau,
Vidahajeshalakshmanau, sa me shivam karotvaram॥3॥

Sushabdashaastrapaaragam, vilokya raamachandramaah,
Kapeesha naathasevakam, samastaneetimaargagam।
Prashasya lakshmanam prati, pralambabaahubhooshitah
Kapeendrasakhyamaakarot, swakaryasaadhakah prabhuh॥4॥

Prachandavegadhaarinaam, nagendragarvahaarinaam,
Phaneeshamaatrigarvahriddrishaasyavaasanaashakrit।
Vibheeshanena sakhyakridvideha jaatitaapahrit,
Sukanthakaryasaadhakam, namaami yaatudhatakam॥5॥

Namaami pushpamaulinam, suvarnavarnadhaarinaam
Gadaayudhena bhooshitam, kireetakundalaanvitam।
Supuchchhaguchchatuchchhalankadaahakam sunaayakam
Vipakshapaksharaakshasendra-sarvavamshanaashakam॥6॥

Raghoottamasya sevakam namaami lakshmanapriyam
Dineshavamshabhooshanasya mudreekapradarshakam।
Videhajaatisokataapahaarinam prahaarinam
Susookshmaroopadhaarinem namaami deergharoopinam॥7॥

Nabhasvadaatmajena bhaasvataa tvayaa kritaa
Mahasahaa yataa yayaa dvayorhitam hyabhootsvakrityatah।
Sukantha aapa taarakaam raghoottamo videhajaam
Nipaatya vaalinam prabhustato dashaananam khalam॥8॥

Imam stavam kuje’hni yah pathetsuchetasaa narah
Kapeeshanaathasevako bhunaktisarvasampadah।
Plavangaraajasatkripaakataakshabhaajanas sadaa
Na shatruto bhayam bhavetkadaapi tasya nustviha॥9॥

Netraanganandadharaneevatsare’nangavaasare।
Lokeshwaraakhyabhattena hanumattaandavam kritam॥10॥

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श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् का अर्थ

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्

हनुमान जी की स्तुति में यह श्लोक उनकी विशिष्ट रूप और रूपरेखा का वर्णन करता है। इस श्लोक का उद्देश्य हनुमान जी के रूप को श्रद्धापूर्वक निहारना है।

हनुमान जी का शरीर सिन्दूर जैसे गहरे लाल रंग का है, जो उनकी ताकत और ऊर्जा को दर्शाता है। वह लाल वस्त्र धारण किए हुए हैं, जो उनकी भक्ति और त्याग की भावना को प्रकट करता है। उनके अंग अत्यधिक शक्ति और ओज से भरे हुए हैं, और उनका शरीर रक्तमय प्रकाश से दमकता है। उनका पूंछ शोण रंग की है, और वह कपियों के राजा के रूप में प्रसिद्ध हैं।

स्तोत्र पाठ

हनुमान जी की स्तुति में यह स्तोत्र उनके विभिन्न रूपों और कार्यों की प्रशंसा करता है। यह उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों और उनके भक्तों के प्रति अनन्य सेवा का वर्णन करता है।

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं

यह श्लोक हनुमान जी के गुणों की स्तुति करता है। वह समीर, यानी पवन देवता के पुत्र हैं। उनके गुणों में यह विशेषता है कि वह अपने भक्तों के चित्त को हर्षित करते हैं और उन्हें शांति प्रदान करते हैं।
इसके अलावा, वह सूर्य के समान तेजस्वी हैं, जो अज्ञान और अंधकार को भक्षण करते हैं। उनका जीवन का मुख्य उद्देश्य अपने भक्तों की रक्षा करना और उन्हें संबल प्रदान करना है। हनुमान जी संकटों को हरने वाले और हर प्रकार के विघ्नों का नाश करने वाले हैं।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं

यह श्लोक यह दर्शाता है कि हनुमान जी उन लोगों के लिए अद्वितीय मददगार हैं, जिनकी वाणी मधुर और पवित्र होती है।
हनुमान जी विपक्षियों को हराने में सक्षम हैं और उनके मार्ग में आने वाले सभी अवरोधों को नष्ट कर देते हैं। यह उनकी महानता और शक्ति का प्रतीक है, जो समुद्र पार कर जाने और असंभव कार्यों को सरलता से कर दिखाने में सक्षम हैं।

समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्

हनुमान जी ने समुद्र को पार किया, जो एक असंभव कार्य माना जाता था, यह दर्शाता है कि वह असंभव को भी संभव बना सकते हैं। वह भक्तों की सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाले हैं। उनकी पूजा करने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं

यह श्लोक बताता है कि जब कोई भी भयभीत होता है और हनुमान जी का स्मरण करता है, तो वह निर्भीक हो जाता है। उनके धैर्य और बल से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं। हनुमान जी की कृपा से भक्त किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना कर सकता है।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य

हनुमान जी की भाषा और उनके द्वारा कही गई बातें सुनकर, अन्य सभी वानर निश्चिंत हो जाते हैं। हनुमान जी का संचार शक्ति और सामर्थ्य का अद्वितीय स्रोत है।

स रामदूत आश्रयः

हनुमान जी रामजी के दूत हैं, और वह राम की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं। उनकी भूमिका रामायण में अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने भगवान राम और सीता माता के बीच संदेश वाहक का कार्य किया।

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना

यह श्लोक हनुमान जी के शारीरिक स्वरूप का वर्णन करता है। उनके लंबे और बलशाली हाथ, जो सभी प्रकार की चुनौतियों को सहजता से संभाल सकते हैं, उनकी शक्ति का प्रतीक हैं। उनका पूंछ भी उनकी महानता और शक्ति का संकेत देता है।

भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ

हनुमान जी के दोनों हाथों में शक्ति है और वे अत्यधिक कार्यकुशल हैं। उनका शरीर भक्तों के लिए सहारा और समर्थन का प्रतीक है।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ

हनुमान जी की सेवा में रहकर राम और लक्ष्मण ने अनेक कठिनाइयों को पार किया। उनकी सहायता और समर्थन के बिना यह कार्य संभव नहीं था। हनुमान जी का संग साथ अत्यधिक शक्तिशाली और लाभकारी होता है।

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः

हनुमान जी सुशब्द और शास्त्रों के ज्ञाता हैं। उनकी बुद्धिमत्ता और विवेकशीलता अतुलनीय है। उन्होंने रामचन्द्र के सामने अपनी महानता और विद्वत्ता का प्रदर्शन किया।

कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्

हनुमान जी कपीश नाथ, यानी वानरों के स्वामी की सेवा में हमेशा तत्पर रहते हैं। उनका जीवन नीतिपूर्ण और धर्म के मार्ग का अनुसरण करता है। उनका प्रत्येक कार्य न्याय और धर्म से प्रेरित होता है।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः

हनुमान जी की बांहें लंबी और बलशाली हैं, जो उनकी अनंत शक्ति का प्रतीक हैं। उन्होंने लक्ष्मण की सेवा और उनके प्रति अपनी भक्ति से महान कार्य सिद्ध किए हैं।

कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः

हनुमान जी ने वानरराज सुग्रीव के साथ मित्रता की और उनकी सहायता से अपने कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया। वह अपने कार्यों में अत्यंत निपुण और समर्थ हैं।

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं

हनुमान जी अत्यधिक वेगवान और तीव्रगति से कार्य करने वाले हैं। उन्होंने पर्वतों के गर्व को हराया और अपने अद्वितीय पराक्रम से कठिन कार्यों को सरल बना दिया।

फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्

हनुमान जी ने फणीश यानी नागों और राक्षसों के गर्व को भी हराया। उनका पराक्रम और साहस उन्हें अविनाशी बनाता है।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्

हनुमान जी ने विभीषण से मित्रता कर उसे राजा बना दिया। उन्होंने सीता माता के दुख और कष्टों को दूर किया और उनके उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया।

सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्

हनुमान जी सभी बाधाओं को दूर करने में सक्षम हैं, और उनके स्मरण मात्र से विपत्ति दूर हो जाती है। वह सभी विपरीत शक्तियों और राक्षसों का नाश करने वाले हैं।

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं

हनुमान जी का पूजन पुष्प और सुवर्ण जैसे महंगे वस्त्रों से किया जाता है। उनका रूप अत्यंत मनोहर और तेजस्वी है, और उनके शरीर पर स्वर्णिम आभा है।

गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्

हनुमान जी गदा धारण किए हुए हैं, जो उनके पराक्रम और शक्ति का प्रतीक है। उनके सिर पर मुकुट और कानों में कुंडल हैं, जो उनकी महिमा को दर्शाते हैं।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं

हनुमान जी का पूंछ ही उनकी पहचान का अद्वितीय हिस्सा है। उनकी पूंछ ने लंका को जलाकर राख कर दिया था, जो उनकी अजेय शक्ति का प्रमाण है। वह विपत्तियों के विनाशक हैं और सभी राक्षसों का संहार करने वाले हैं।

विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्

हनुमान जी सभी विरोधियों और राक्षसों का नाश करने वाले हैं।

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं

हनुमान जी भगवान राम, जो रघुवंश के उत्तम पुरुष हैं, के अनन्य सेवक हैं। वे लक्ष्मण जी के भी प्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने लक्ष्मण के जीवन की रक्षा की थी। हनुमान जी की सेवा और भक्ति को देखकर लक्ष्मण जी के हृदय में उनके प्रति अपार प्रेम और आदर है।

हनुमान जी की भक्ति उनके निस्वार्थ सेवा के रूप में प्रकट होती है। उनका हर कार्य भगवान राम और उनके परिवार के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण से प्रेरित होता है।

दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्

हनुमान जी वह हैं जिन्होंने भगवान राम की मुद्रिका (अंगूठी) को सीता माता को प्रस्तुत किया, जिससे माता सीता को आश्वासन मिला कि रामजी उन्हें ढूंढ रहे हैं। राम के वंश को चमकाने वाले हनुमान जी ने इस कार्य से राम के प्रेम और समर्पण को साबित किया।

यह श्लोक बताता है कि हनुमान जी ने रामायण के महत्वपूर्ण घटनाओं में मुख्य भूमिका निभाई और राम वंश की प्रतिष्ठा को बनाए रखा।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्

हनुमान जी ने माता सीता के दुःख और कष्टों का नाश किया, जो विदेह राज जनक की पुत्री थीं। उनके कार्यों ने सीता माता को राहत दी और उनके जीवन में नया प्रकाश लाया। हनुमान जी का अद्वितीय पराक्रम और समर्पण ही उन्हें राम और सीता के प्रति इतना महत्वपूर्ण बनाता है।

सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्

हनुमान जी के पास वह शक्ति है कि वे अपने शरीर का रूप छोटा या बड़ा कर सकते हैं। उन्होंने अपने सुसूक्ष्म रूप में लंका में प्रवेश किया और वहां सीता माता को ढूंढ निकाला। दूसरी ओर, अपने दीर्घ रूप में उन्होंने पर्वतों को हिला दिया और असंभव कार्यों को संभव बना दिया। उनकी यह विशेषता उनकी अद्वितीय शक्ति का परिचायक है।

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता

यह श्लोक बताता है कि हनुमान जी, जो पवन के पुत्र हैं, ने अपने अद्वितीय तेज से हर कार्य को संपन्न किया। उनकी महानता और साहस के आगे सभी असंभव कार्य भी सरल हो जाते हैं।

महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः

हनुमान जी ने अपने पराक्रम से न केवल राम और लक्ष्मण की रक्षा की, बल्कि समस्त संसार के लिए उपकार किया। उनके कार्य केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानवता के हित के लिए होते हैं।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां

हनुमान जी ने तारका और अन्य राक्षसों का नाश किया, जो उनके मार्ग में बाधा डाल रहे थे। रामजी और सीता माता के मिलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी सेवा से संसार में धर्म की स्थापना की।

निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्

हनुमान जी ने वानरराज बालि का नाश कर सुग्रीव को राजा बनाया, जिससे रामजी की सेना को शक्ति मिली। इसके बाद उन्होंने रावण, जो दस सिरों वाला खलनायक था, का संहार किया। यह श्लोक हनुमान जी की महानता और उनके असाधारण साहस को दर्शाता है।

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः

यह श्लोक यह बताता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह हनुमान जी की कृपा से सभी संपदाओं को प्राप्त करता है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति को धन, सुख, समृद्धि, और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।

कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः

हनुमान जी के भक्तों को हर प्रकार की संपत्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। उनके स्मरण मात्र से व्यक्ति हर प्रकार की विपत्तियों से बचा रहता है।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा

जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सदैव हनुमान जी की कृपा और उनके दिव्य आशीर्वाद का पात्र बनता है। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और विजय प्राप्त होती है।

न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह

यह श्लोक यह सुनिश्चित करता है कि हनुमान जी की भक्ति और स्मरण से व्यक्ति को कभी भी शत्रुओं से भय नहीं होता। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति का जीवन निर्भय और सुरक्षित रहता है।

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे

यह श्लोक बताता है कि जब व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ अनंगवासर (कामदेव के दिन) या किसी पवित्र पर्व के दिन करता है, तो उसे अद्वितीय फल प्राप्त होते हैं। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति का जीवन शत्रुओं से मुक्त और सफल होता है।

लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्

यह श्लोक हनुमान जी के तांडव का वर्णन करता है, जिसे लोकेश्वर नामक महान विद्वान ने रचा था। हनुमान जी का तांडव उनके अपार बल और पराक्रम का प्रतीक है, जिससे संसार में हर प्रकार की बुरी शक्तियों का नाश होता है।

हनुमान जी का रूप और शक्तियाँ

सिन्दूरवर्ण और लोहिताम्बर भूषित

हनुमान जी का रूप सिन्दूरवर्णीय है, जो उनकी भक्ति और शौर्य को दर्शाता है। सिन्दूर का रंग शुभता और शक्ति का प्रतीक होता है, और हनुमान जी का यह स्वरूप उनके बल और भक्ति के प्रति समर्पण को दर्शाता है। उनका लोहित (लाल) वस्त्र धारण करना उनकी दिव्यता और वैराग्य का प्रतीक है। वह पूर्णत: त्याग और सेवा के मार्ग पर अग्रसर हैं, और उनका यह रूप उनके भक्तों के मन में भक्ति और शक्ति की भावना उत्पन्न करता है।

शोणापुच्छं कपीश्वरम्

हनुमान जी की पूंछ का लाल रंग विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब उन्होंने लंका को जलाने के लिए अपने पूंछ का उपयोग किया। वह वानरों के स्वामी हैं और उनकी पूंछ में अपार शक्ति और ऊर्जा है। यह पूंछ न केवल शक्ति का प्रतीक है, बल्कि उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को भी दर्शाती है, जैसे लंका का दहन।

हनुमान जी की कार्यकुशलता

समस्तभक्तरक्षकम्

हनुमान जी सभी भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। यह गुण उन्हें अत्यधिक प्रिय और सभी संकटों को दूर करने वाला देवता बनाता है। उनका जीवन भक्ति और सेवा में समर्पित है, और उनकी कृपा से उनके भक्त कभी भी संकट में नहीं पड़ते।

विपक्षपक्षबाधकं

यहां पर बताया गया है कि हनुमान जी विपक्षियों को हराने में सक्षम हैं। उनका पराक्रम और बुद्धिमत्ता उनके शत्रुओं को पराजित करने में मदद करता है। वह न्याय के पक्षधर हैं और उनके भक्तों की विजय सुनिश्चित करते हैं।

हनुमान जी का पराक्रम और सेवा

सुदीर्घबाहुलोचनेन

हनुमान जी की लंबी भुजाएं और बड़ी आंखें उनकी अद्वितीय शक्ति और बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं। उनकी भुजाएं हर प्रकार के दुर्जनों का नाश करने में सक्षम हैं और उनकी दृष्टि बहुत दूर तक की समस्याओं को भी भांप लेती है। उनकी सेवा का प्रमुख उद्देश्य राम और लक्ष्मण की सेवा करना था, जिसमें वह अत्यंत निपुण और समर्पित थे।

प्रचण्डवेगधारिणं

हनुमान जी की गति असीमित है। वह अत्यधिक वेगवान हैं और किसी भी कार्य को तीव्रता से कर सकते हैं। उनके प्रचंड वेग ने ही समुद्र को पार करने और लंका में सीता माता की खोज करने जैसे असंभव कार्यों को संभव बनाया। उनका यह गुण उन्हें अन्य देवताओं से अलग और अत्यंत शक्तिशाली बनाता है।

नगेन्द्रगर्वहारिणं

हनुमान जी ने पर्वतों के गर्व को भी हराया। उन्होंने कई बार अपने कार्यों से पर्वतों और पहाड़ों को झुका दिया, जैसे संजीवनी पर्वत को उठाकर लाना। यह उनकी अपार शक्ति और साहस का प्रतीक है।

हनुमान जी और भक्तों के प्रति करुणा

सुकण्ठकार्यसाधकं

हनुमान जी ने न केवल बड़े-बड़े कार्य किए, बल्कि उन्होंने भक्तों के साधारण कार्यों को भी साधा। उनके लिए कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं है, वह अपने भक्तों के हर कार्य को सिद्ध करते हैं। यह उन्हें अत्यंत प्रिय और भक्तों के प्रति करुणामयी बनाता है।

सुसूक्ष्मरूपधारिणं

हनुमान जी ने अपने शरीर को बहुत छोटा कर लिया जब उन्हें लंका में प्रवेश करना था। यह दर्शाता है कि वह अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने शरीर का रूप बदल सकते हैं। उनका यह रूप उनकी बुद्धिमत्ता और अद्वितीय कार्यकुशलता का प्रतीक है।

दीर्घरूपिणम्

जहां आवश्यकता हो, हनुमान जी ने अपने शरीर का आकार भी बढ़ाया। उनके विशाल रूप से उनके शत्रु भयभीत हो जाते हैं और वह हर प्रकार के संकट का नाश कर सकते हैं। उनका दीर्घरूप उनकी अपार शक्ति और अजेयता का प्रतीक है।

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