आरती श्री गुरुदेव जी की गाऊँ ।
बार-बार चरणन सिर नाऊँ ॥
त्रिभुवन महिमा गुरु जी की भारी ।
ब्रह्मा विष्णु जपे त्रिपुरारी ॥
राम कृष्ण भी बने पुजारी ।
आशीर्वाद में गुरु जी को पाऊं ॥
भव निधि तारण हार खिवैया ।
भक्तों के प्रभु पार लगैया ॥
भंवर बीच घूमे मेरी नैया ।
बार बार प्रभु शीष नवाऊँ ॥
ज्ञान दृष्टि प्रभु मो को दीजै ।
माया जनित दुख हर लीजै ॥
ज्ञान भानु प्रकाश करीजै ।
आवागमन को दुख नहीं पाऊं ॥
राम नाम प्रभु मोहि लखायो ।
रूप चतुर्भुज हिय दर्शायो ॥
नाद बिंदु पुनि ज्योति लखायो ।
अखंड ध्यान में गुरु जी को पाऊँ ॥
जय जयकार गुरु उपनायों ।
भव मोचन गुरु नाम कहायो ॥
श्री माताजी ने अमृत पायो ।
श्री नंगली निवासी सतगुरु आरती का अर्थ और महत्व
आरती श्री गुरुदेव जी की गाऊँ
इस पंक्ति में भक्त अपने सतगुरु के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त कर रहा है। वह कहता है कि वह अपने गुरु की आरती गा रहा है, जो उनके प्रति श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।
बार-बार चरणन सिर नाऊँ
यहाँ भक्त अपने गुरु के चरणों में बार-बार शीश झुकाने का प्रण कर रहा है। इस पंक्ति में भक्त का भाव दर्शाता है कि वह गुरु के प्रति विनम्रता और आदर से भरा है।
त्रिभुवन महिमा गुरु जी की भारी
इस पंक्ति में “त्रिभुवन” का अर्थ तीनों लोकों से है—स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल। भक्त कहता है कि उनके गुरु की महिमा तीनों लोकों में फैली हुई है। यहाँ गुरु को सभी लोकों में पूजनीय और महान बताया गया है।
ब्रह्मा विष्णु जपे त्रिपुरारी
इस पंक्ति में ब्रह्मा, विष्णु और त्रिपुरारी (शिव) का उल्लेख है। ये सभी देवता भी गुरु की महिमा का जाप करते हैं। इसका अर्थ यह है कि सतगुरु की महत्ता इतनी बड़ी है कि स्वयं देवता भी उनकी पूजा करते हैं।
राम कृष्ण भी बने पुजारी
यहाँ राम और कृष्ण जैसे महान अवतारों को भी गुरु का पुजारी बताया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि गुरु की भक्ति में सभी परमात्मा भी समर्पित हैं और वे भी गुरु की महिमा का गान करते हैं।
आशीर्वाद में गुरु जी को पाऊं
भक्त यहाँ गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहा है ताकि उसे उनके सान्निध्य और कृपा का अनुभव हो सके। यह आशीर्वाद उसे सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगा।
भव निधि तारण हार खिवैया
भवसागर (जीवन के संघर्ष) से पार लगाने वाला एकमात्र सहारा सतगुरु को बताया गया है। यहाँ भक्त कहता है कि गुरु ही उसे इस संसार के दुखों से पार लगाएंगे।
भक्तों के प्रभु पार लगैया
इस पंक्ति में सतगुरु को भक्तों के प्रभु के रूप में संबोधित किया गया है, जो अपने अनुयायियों को संसार के बंधनों से मुक्ति दिलाने में सक्षम हैं।
भंवर बीच घूमे मेरी नैया
भक्त कहता है कि वह जीवन के कठिनाइयों के भंवर में फंसा हुआ है और उसकी नैया (जीवन की नैया) बीच में अटक गई है। यहाँ, भक्त गुरु से अपनी नैया को सही दिशा में ले जाने की प्रार्थना कर रहा है।
बार बार प्रभु शीष नवाऊँ
यह पंक्ति बताती है कि भक्त बार-बार अपने गुरु को प्रणाम कर रहा है और उनके प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा व्यक्त कर रहा है।
ज्ञान दृष्टि प्रभु मो को दीजै
यहाँ भक्त गुरु से ज्ञान की दृष्टि प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहा है ताकि वह संसार के माया-जाल से बाहर निकल सके और सत्य का अनुभव कर सके।
माया जनित दुख हर लीजै
भक्त गुरु से प्रार्थना करता है कि वह माया से उत्पन्न दुखों को हर लें, जिससे उसे जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति हो सके।
ज्ञान भानु प्रकाश करीजै
इस पंक्ति में गुरु से ज्ञान के सूर्य का प्रकाश देने की प्रार्थना की जा रही है। ज्ञान का प्रकाश अज्ञान के अंधकार को मिटा देता है और सच्चाई का मार्ग दिखाता है।
आवागमन को दुख नहीं पाऊं
भक्त यह कामना करता है कि गुरु की कृपा से उसे पुनर्जन्म के दुखों से मुक्ति मिले और वह इस संसार के चक्रव्यूह से मुक्त हो सके।
राम नाम प्रभु मोहि लखायो
यहाँ भक्त कहता है कि गुरु ने उसे राम का नाम दिखाया है, जो भक्ति और ज्ञान का प्रतीक है। राम का नाम उसका मार्गदर्शक बन गया है।
रूप चतुर्भुज हिय दर्शायो
गुरु ने भक्त को चतुर्भुज रूप (जो विष्णु का स्वरूप है) का दर्शन कराया, जो परमात्मा की अनंतता और अद्वितीयता को दर्शाता है।
नाद बिंदु पुनि ज्योति लखायो
यहाँ नाद (ध्वनि) और बिंदु (प्रकाश) का उल्लेख है। गुरु ने भक्त को इस सृष्टि की अद्वितीय ध्वनि और प्रकाश का अनुभव कराया है, जो ध्यान का अद्वितीय अनुभव है।
अखंड ध्यान में गुरु जी को पाऊँ
भक्त यहाँ गुरु को अखंड ध्यान में अनुभव करने की कामना करता है।