॥ शतानीक उवाच ॥
महामते महाप्राज्ञसर्वशास्त्रविशारद।
अक्षीणकर्मबन्धस्तुपुरुषो द्विजसत्तम॥1॥
मरणे यज्जोपेज्जाप्यंयं च भावमनुस्मरन्।
परं पदमवाप्नोतितन्मे ब्रूहि महामुने॥2॥
॥ शौनक उवाच ॥
इदमेव महाराजपृष्टवांस्ते पितामहः।
भीष्मं धर्मविदां श्रेष्ठंधर्मपुत्रो युधिष्ठिरः॥3॥
॥ युधिष्ठिर उवाच ॥
पितामह महाप्राज्ञसर्वशास्त्रविशारदः।
बृहस्पतिस्तुता देवीवागीशेन महात्मना।
आत्मायं दर्शयामासंसूर्य कोटिसमप्रभम्॥4॥
॥ सरस्वत्युवाच ॥
वरं वृणीष्व भद्रंते यत्ते मनसि विद्यते।
॥ बृहस्पतिरूवाच ॥
यदि मे वरदा देविदिव्यज्ञानं प्रयच्छ नः॥5॥
॥ देव्युवाच ॥
हन्त ते निर्मलज्ञानंकुमतिध्वंसकारणम्।
स्तोत्रणानेन यो भक्तयामां स्तुवन्ति मनीषिण॥6॥
॥ बृहस्पतिरूवाच ॥
लभते परमं ज्ञानंयतपरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यंमहामाया प्रसादतः॥7॥
॥ सरस्वत्युवाच ॥
त्रिसन्ध्यं प्रयतो नित्यंपठेदष्टकमुत्तमम्।
तस्य कण्ठे सदा वासंकरिष्यामि न संशयः॥8॥
॥ इति श्रीपद्मपुराणे सरस्वती अष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सरस्वती अष्टकम्
शतानीक का प्रश्न
शतानीक उवाच:
महामते महाप्राज्ञसर्वशास्त्रविशारद। अक्षीणकर्मबन्धस्तुपुरुषो द्विजसत्तम॥1॥
अर्थ:
हे महामति (बुद्धिमान) और महाप्राज्ञ (महान ज्ञानी), जो समस्त शास्त्रों के ज्ञाता हैं। तुम ऐसे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ हो जिनके कर्म बंधन समाप्त नहीं हुए हैं। यानी जो अभी तक कर्म के चक्र से मुक्त नहीं हुए हैं।
शतानीक उवाच (जारी):
मरणे यज्जोपेज्जाप्यंयं च भावमनुस्मरन्। परं पदमवाप्नोतितन्मे ब्रूहि महामुने॥2॥
अर्थ:
हे महामुनि! मृत्यु के समय किस जप या स्मरण से कोई व्यक्ति परम् पद (मोक्ष या सर्वोच्च स्थान) प्राप्त कर सकता है? कृपया मुझे बताएं।
शौनक का उत्तर
शौनक उवाच:
इदमेव महाराजपृष्टवांस्ते पितामहः। भीष्मं धर्मविदां श्रेष्ठंधर्मपुत्रो युधिष्ठिरः॥3॥
अर्थ:
हे महाराज! तुम्हारे पितामह (दादा), धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने भी धर्म के महान ज्ञाता भीष्म से यही प्रश्न पूछा था।
युधिष्ठिर का प्रश्न
युधिष्ठिर उवाच:
पितामह महाप्राज्ञसर्वशास्त्रविशारदः। बृहस्पतिस्तुता देवीवागीशेन महात्मना। आत्मायं दर्शयामासंसूर्य कोटिसमप्रभम्॥4॥
अर्थ:
युधिष्ठिर ने कहा: हे पितामह! आप महाप्राज्ञ (महान ज्ञानी) हैं, और समस्त शास्त्रों के विशेषज्ञ हैं। आपने देवी सरस्वती की स्तुति की, जिनकी महिमा स्वयं बृहस्पति जैसे महान ज्ञानी ने की है। वह देवी, जो सूर्य के समान कोटि-कोटि प्रभा वाली है, ने स्वयं अपने तेजस्वी रूप का दर्शन कराया।
सरस्वती देवी का आशीर्वाद
सरस्वती उवाच:
वरं वृणीष्व भद्रंते यत्ते मनसि विद्यते।
अर्थ:
देवी सरस्वती ने कहा: हे महात्मा, जो भी तुम्हारे मन में है, वह वर मांगो। तुम्हें शुभ हो।
बृहस्पति का उत्तर
बृहस्पतिरूवाच: यदि मे वरदा देविदिव्यज्ञानं प्रयच्छ नः॥5॥
अर्थ:
बृहस्पति ने कहा: हे देवी! यदि आप मुझे वरदान देना चाहती हैं, तो कृपया मुझे दिव्य ज्ञान प्रदान करें।
देवी सरस्वती का ज्ञान का उपदेश
देव्युवाच:
हन्त ते निर्मलज्ञानंकुमतिध्वंसकारणम्। स्तोत्रणानेन यो भक्तयामां स्तुवन्ति मनीषिण॥6॥
अर्थ:
देवी सरस्वती ने कहा: देखो, मैं तुम्हें निर्मल (शुद्ध) ज्ञान प्रदान करती हूँ, जो बुरी बुद्धि का नाश करने वाला है। जो मनीषी (ज्ञानी) भक्त इस स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, वे इस ज्ञान को प्राप्त करते हैं।
बृहस्पति का आशीर्वचन
बृहस्पतिरूवाच: लभते परमं ज्ञानंयतपरैरपि दुर्लभम्। प्राप्नोति पुरुषो नित्यंमहामाया प्रसादतः॥7॥
अर्थ:
बृहस्पति ने कहा: जो व्यक्ति इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, उसे वह परम ज्ञान प्राप्त होता है जो अत्यंत दुर्लभ है। देवी महामाया (सरस्वती) की कृपा से उसे नित्यकाल (सदैव) यह ज्ञान प्राप्त होता है।
सरस्वती देवी की प्रार्थना
सरस्वत्युवाच:
त्रिसन्ध्यं प्रयतो नित्यंपठेदष्टकमुत्तमम्। तस्य कण्ठे सदा वासंकरिष्यामि न संशयः॥8॥
अर्थ:
देवी सरस्वती ने कहा: जो व्यक्ति त्रिकाल (सुबह, दोपहर, शाम) में इस उत्तम अष्टक का नियमित पाठ करता है, मैं सदैव उसके गले में निवास करूंगी। इसमें कोई संदेह नहीं है।
उपसंहार
इति श्रीपद्मपुराणे सरस्वती अष्टकम् सम्पूर्णम्
अर्थ:
इस प्रकार श्री पद्मपुराण में सरस्वती अष्टक का पाठ समाप्त होता है।