- – कविता में श्यामा से जीवन की नैया पार लगाने की प्रार्थना की गई है, जो साथी और सहारा बनकर साथ निभाने का आग्रह करती है।
- – संकट और झंझटों के समय में श्यामा से सुरक्षा और बचाव की उम्मीद जताई गई है।
- – भुलावे और कठिनाइयों में भी एक-दूसरे को याद रखने और न भूलने का संदेश दिया गया है।
- – श्यामा और कवि के बीच गहरे प्रेम और आध्यात्मिक संबंध को प्रकृति के रूपकों जैसे मोर, पपीहा, और स्वाति बूंद के माध्यम से दर्शाया गया है।
- – कविता में भक्ति और समर्पण की भावना प्रबल है, जहाँ श्यामा को देवता और कवि को पुजारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- – अंत में पुनः श्यामा से जीवन की नैया पार लगाने और साथ निभाने का निवेदन दोहराया गया है, जो स्थिरता और विश्वास का प्रतीक है।
श्यामा जु मेरी नैया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाई है,
आगे भी निभा देना।।
दल बल के साथ माया,
घेरे जो मुझे आकर,
दल बल के साथ माया,
घेरे जो मुझे आकर,
तुम देखती ना रहना,
मुझे आ के बचा लेना।।
सम्भव है झंझटो में,
मैं तुमको भूल जाऊँ,
सम्भव है झंझटो में,
मैं तुमको भूल जाऊँ,
मेरी श्यामा कही तुम भी,
मुझको ना भुला देना।।
बन कर के मोर श्यामा,
वन वन में नाचा करेंगे,
बन कर के मोर श्यामा,
वन वन में नाचा करेंगे,
तुम श्याम रूप बनकर,
उस वन में डटा करना।।
बनकर के पपीहा हम,
पीहू पीहू रटा करेंगे,
बनकर के पपीहा हम,
पीहू पीहू रटा करेंगे,
तुम स्वाति बून्द बनकर,
प्यासो पे दया करना।।
तुम इष्ट में उपासक,
तुम देव मैं पुजारी,
तुम इष्ट में उपासक,
तुम देव मैं पुजारी,
ये बात अगर सच है,
सच करके दिखा देना।।
श्यामा जु मेरी नैया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाई है,
आगे भी निभा देना।।