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आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोSस्तु ते ॥1॥

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥

बृंहितं तेज:पु़ञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज:प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम् ।

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥

सूर्य अष्टकम

यह एक प्रार्थना है जो सूर्य देव की स्तुति और प्रार्थना के रूप में कही जाती है। इसे सूर्याष्टक कहा जाता है, जिसका अर्थ है सूर्य की आठ स्तुतियाँ। प्रत्येक श्लोक सूर्य देव के विभिन्न रूपों, गुणों और महिमा का वर्णन करता है। इस प्रार्थना का पाठ ग्रहों की पीड़ा को दूर करने और अन्य लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। आइए प्रत्येक श्लोक का अर्थ विस्तार से समझते हैं:

श्लोक 1:

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥

हे आदिदेव, आपको नमस्कार है। हे भास्कर (प्रकाश देने वाले), कृपया मुझ पर प्रसन्न हों। हे दिवाकर (दिन को प्रकाशित करने वाले), आपको प्रणाम है। हे प्रभाकर (प्रभा यानी रोशनी को धारण करने वाले), आपको नमस्कार है।

श्लोक 2:

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्। श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस तेजस्वी सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जो सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं, जो कश्यप ऋषि के पुत्र हैं और जिन्होंने अपने हाथ में श्वेत कमल धारण किया हुआ है।

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श्लोक 3:

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जो लाल रंग के रथ पर सवार हैं, जो समस्त लोकों के पितामह हैं और जो महापापों का नाश करने वाले हैं।

श्लोक 4:

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जो तीनों गुणों (सत्व, रज, तम) के स्वामी हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हैं और जो महापापों का नाश करने वाले हैं।

श्लोक 5:

बृंहितं तेज:पु़ञ्जं च वायुमाकाशमेव च। प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जो तेज का विशाल पुंज हैं, जो वायु और आकाश की तरह सर्वत्र फैले हुए हैं और जो समस्त लोकों के स्वामी हैं।

श्लोक 6:

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम्। एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जिनका रंग बन्धूक (गुलाबी) फूल के समान है, जो हार और कुंडल से विभूषित हैं और जो एक चक्र (रथ) को धारण किए हुए हैं।

श्लोक 7:

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज:प्रदीपनम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जो इस जगत के कर्ता (सृष्टि के रचयिता) हैं, जो महान तेज से प्रकाशित हैं और जो महापापों का नाश करने वाले हैं।

श्लोक 8:

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

मैं उस सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ जो इस संसार के नाथ (स्वामी) हैं, जो ज्ञान, विज्ञान और मोक्ष प्रदान करते हैं और जो महापापों का नाश करने वाले हैं।

समापन:

इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम्।

यहाँ श्री शिव द्वारा कहा गया सूर्याष्टक सम्पूर्ण होता है।

फलश्रुति:

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम्। अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥

जो व्यक्ति प्रतिदिन सूर्याष्टक का पाठ करता है, उसकी ग्रह पीड़ा समाप्त हो जाती है। निसंतान व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है और निर्धन व्यक्ति धनवान हो जाता है।

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने। सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥

जो व्यक्ति सूर्यदेव के दिन (रविवार) को मांस और मदिरा का सेवन करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और जन्म-जन्मांतर तक दरिद्र रहता है।

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स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने। न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥

जो व्यक्ति रविवार के दिन स्त्री संग, तेल, शहद और मांस का त्याग करता है, वह रोग, शोक और दरिद्रता से मुक्त होकर सूर्य लोक को प्राप्त करता है।

इस प्रकार यह सूर्य देव की स्तुति और उनसे कृपा प्राप्त करने का एक मार्गदर्शक स्तोत्र है।

सूर्य अष्टकम का महत्व

सूर्याष्टक का पाठ सनातन धर्म में सूर्य उपासना का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र माना जाता है। इसे भगवान शिव ने बताया था, और यह हमारे जीवन में सूर्य देव के महत्व और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन करता है। इस स्तोत्र में सूर्य देव की महिमा, उनके अलग-अलग स्वरूप, और उनकी कृपा से प्राप्त होने वाले लाभों का विस्तार से वर्णन किया गया है। आइए इस स्तोत्र के विभिन्न पहलुओं पर और अधिक विस्तार से जानें:

1. सूर्य की पूजा का महत्व:

  • हिन्दू धर्म में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है, क्योंकि वे सभी को दिखाई देते हैं और साक्षात ऊर्जा और प्रकाश के स्रोत हैं।
  • सूर्य की पूजा से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त होता है। यह भी माना जाता है कि सूर्य उपासना से रोग, दोष और दरिद्रता दूर होती है।

2. सूर्य के अलग-अलग नाम और उनके अर्थ:

  • आदिदेव: आदिदेव का अर्थ है सभी देवताओं के पहले, अर्थात जो प्रारंभ से ही विद्यमान हैं।
  • भास्कर: भास्कर का अर्थ है प्रकाश देने वाले, जो अंधकार को दूर करते हैं।
  • दिवाकर: दिवाकर का अर्थ है दिन का निर्माता, अर्थात जो दिन को प्रकाशमय करते हैं।
  • प्रभाकर: प्रभा यानी रोशनी, और प्रभाकर का अर्थ है जो रोशनी को धारण करने वाले हैं।

3. सप्ताश्वरथ का महत्व:

  • सूर्य देव का रथ सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है, जो सात दिनों और सात रंगों का प्रतीक है। यह सात घोड़े सृष्टि की सात अवस्थाओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

4. सूर्य के विभिन्न रूप:

  • सूर्य देव को लाल रंग में (लोहित) चित्रित किया गया है, जो ऊर्जा और जोश का प्रतीक है।
  • वे कश्यप ऋषि के पुत्र माने जाते हैं, जो उनके दिव्य वंश को दर्शाता है।

5. त्रिगुणात्मक स्वरूप:

  • सूर्य देव को सत्व, रज और तम, इन तीनों गुणों का स्वामी माना गया है। ये तीन गुण सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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6. ज्ञान और मोक्ष दायक:

  • सूर्य को ज्ञान, विज्ञान और मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को सत्य का ज्ञान प्राप्त होता है और जीवन के रहस्यों को समझने की शक्ति मिलती है।

7. पाठ करने का लाभ:

  • सूर्याष्टक का नियमित पाठ करने से ग्रहों की अशुभता समाप्त होती है।
  • जिन्हें संतान सुख नहीं है, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
  • आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और दरिद्रता दूर होती है।
  • यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति रविवार को मांस, मदिरा, तेल, शहद और स्त्री संग से दूर रहता है, उसे न तो कोई बीमारी होती है और न ही वह शोक और दरिद्रता का अनुभव करता है।

8. रविवार के दिन विशेष नियम:

  • इस स्तोत्र में रविवार के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करने का भी उल्लेख किया गया है। जैसे मांस, मदिरा, तेल, शहद आदि का सेवन न करना। इससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और सुख-समृद्धि आती है।

9. पाठ का सही समय:

  • सूर्य उपासना का सर्वोत्तम समय प्रातः काल का होता है। इस समय सूर्य नमस्कार और सूर्याष्टक का पाठ करने से सूर्य देव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

10. धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • धार्मिक दृष्टिकोण से सूर्य देव की उपासना हमें आत्मिक बल और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य की किरणें हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होती हैं। सूर्य नमस्कार करने से हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

11. शिव का उल्लेख:

  • इस स्तोत्र के अंत में शिव द्वारा इसे बताया गया माना जाता है, जिससे यह ज्ञात होता है कि शिव स्वयं सूर्य उपासना की महत्ता को स्वीकार करते हैं।

सूर्याष्टक के इन पहलुओं को समझकर, हम यह जान सकते हैं कि यह केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है जो हमें सूर्य देव की उपासना के माध्यम से अपने जीवन को सुधारने और संवारने का मार्ग दिखाता है। इस स्तोत्र का पाठ हमें केवल धार्मिक लाभ ही नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और संतुलन भी प्रदान करता है।

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