ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
इसका अर्थ: इन्द्र, जो वृद्धश्रवाः (असीम यशस्वी) हैं, हमारे लिए शुभ और कल्याणकारी हों।
विस्तृत विवरण:
इन्द्र देवता को यहां वृद्धश्रवाः के रूप में संबोधित किया गया है, जिसका अर्थ है कि उनकी महिमा और यश अनंत है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में इन्द्र को वर्षा, शक्ति और स्वर्ग के देवता माना गया है। इस श्लोक में उनसे प्रार्थना की जा रही है कि वह हमारे जीवन में कल्याण और समृद्धि लाएं।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
इसका अर्थ: पूषा, जो विश्ववेदाः (सर्वज्ञ) हैं, हमारे लिए शुभ और कल्याणकारी हों।
विस्तृत विवरण:
पूषा देवता को सर्वज्ञता का प्रतीक माना जाता है। वह सूर्य के एक रूप हैं और सभी जीवों के पालनकर्ता हैं। यहाँ प्रार्थना की जा रही है कि पूषा देव हमारे लिए समृद्धि और जीवन की पूर्णता लाएं, क्योंकि वह सब कुछ जानते हैं और संसार के कल्याण की कामना करते हैं।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
इसका अर्थ: तक्षक, जिनके रथ की धुरी अजेय है, वे हमारे लिए शुभ और कल्याणकारी हों।
विस्तृत विवरण:
यहां तक्षक को अरिष्टनेमि कहा गया है, जिसका अर्थ है वह जिनकी धुरी अजेय है। वह एक दिव्य पक्षी है जिसे गरुड़ भी कहा जाता है, जो विष्णु भगवान का वाहन है। यहाँ प्रार्थना है कि तक्षक देव हमारे जीवन के संकटों और बाधाओं को दूर करें और हमारी रक्षा करें।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
इसका अर्थ: बृहस्पति, जो देवताओं के गुरु हैं, हमारे लिए शुभ और कल्याणकारी हों।
विस्तृत विवरण:
बृहस्पति को देवताओं का गुरु और ज्ञान का स्रोत माना जाता है। वह बुद्धि, विवेक और शिक्षा के देवता हैं। यहाँ उनसे प्रार्थना की गई है कि वे हमें सही मार्गदर्शन दें, ताकि हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सकें और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कर सकें।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
इसका अर्थ: ओम, हम तीनों स्तरों (शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक) पर शांति की प्रार्थना करते हैं।
विस्तृत विवरण:
यह श्लोक का अंतिम भाग है, जहां ‘ॐ’ का उच्चारण करते हुए तीन बार ‘शांति’ की प्रार्थना की जाती है। यह शांति शारीरिक (आधिभौतिक), मानसिक (आधिदैविक), और आत्मिक (आध्यमिक) स्तर पर की जाती है, ताकि सभी प्रकार के कष्टों और विघ्नों से मुक्ति प्राप्त हो और जीवन में समृद्धि और शांति बनी रहे।
समग्र व्याख्या
यह मंत्र वैदिक काल से लिया गया है, जिसका उपयोग शांति, समृद्धि और कल्याण की प्रार्थना के लिए किया जाता है। इस मंत्र में चार प्रमुख देवताओं—इन्द्र, पूषा, तक्षक (गरुड़), और बृहस्पति—की स्तुति की गई है। इन देवताओं से जीवन में सुख-शांति और आशीर्वाद की कामना की जाती है।
मंत्र का अंत तीन बार “शांति” उच्चारण के साथ होता है, जो कि हमारे मन, शरीर, और आत्मा के संतुलन की प्रार्थना को दर्शाता है। इस मंत्र का जाप करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और हम सभी प्रकार की नकारात्मकता से मुक्त होते हैं।
वैदिक मंत्रों की महिमा
वैदिक मंत्रों का महत्व
वैदिक मंत्र भारतीय सभ्यता के प्राचीनतम धार्मिक और दार्शनिक स्रोतों में से एक हैं। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं, बल्कि व्यक्ति और समाज की भौतिक और मानसिक कल्याण के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यह मंत्र ध्वनि की शक्ति पर आधारित होते हैं, जो हमारे मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक तंतु को सक्रिय करते हैं।
ॐ स्वस्ति मंत्र की विशेषताएँ
स्वस्ति का अर्थ
“स्वस्ति” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ “कल्याण” या “शुभता” है। यह मंत्र ऐसी स्थिति की प्रार्थना करता है जहां व्यक्ति या समाज में किसी भी प्रकार की बाधा न हो और सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहे। वैदिक परंपरा में, स्वस्ति मंत्र का उच्चारण किसी भी कार्य के शुभारंभ से पहले किया जाता है ताकि कार्य में सफलता और शुभता बनी रहे।
देवताओं का आह्वान
इस मंत्र में चार प्रमुख देवताओं का आह्वान किया गया है। यह देवता हमारे चार प्रमुख क्षेत्रों को नियंत्रित करते हैं:
- इन्द्र: जो शक्ति और विजय के प्रतीक हैं।
- पूषा: जो पालन और समृद्धि के देवता हैं।
- तक्षक (तार्क्ष्य): जो संकट से रक्षा करते हैं।
- बृहस्पति: जो ज्ञान और बुद्धि के स्रोत हैं।
मंत्र का दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ
इन्द्र देव की भूमिका
इन्द्र को यहां “वृद्धश्रवाः” कहा गया है, जो दर्शाता है कि उनकी कीर्ति और यश अनंत है। वे न केवल वर्षा और बिजली के देवता हैं, बल्कि उनके रूप में शक्ति, साहस और उत्साह का भी आह्वान किया गया है। इन्द्र की कृपा से हम जीवन में चुनौतियों को पार कर सकते हैं और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
पूषा देव की सर्वज्ञता
पूषा देव को “विश्ववेदाः” कहा गया है, जिसका अर्थ है वह सभी को जानते हैं। उनकी सर्वज्ञता हमें यह संदेश देती है कि हम हर परिस्थिति में पूषा की मदद से सही दिशा पा सकते हैं और हर स्थिति में समृद्धि की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
तक्षक (तार्क्ष्य) की अजेयता
तार्क्ष्य यानी गरुड़, जो विष्णु भगवान के वाहन हैं, उनकी अजेयता को “अरिष्टनेमिः” कहा गया है। यह दर्शाता है कि उनका रथ कभी विघ्नों से घिरा नहीं हो सकता। यह हमारे जीवन में संकटों को पार करने का प्रतीक है। उनकी कृपा से व्यक्ति संकटों और बाधाओं से मुक्त हो सकता है।
बृहस्पति का ज्ञान और बुद्धिमत्ता
बृहस्पति, जो देवताओं के गुरु हैं, उनके आशीर्वाद से व्यक्ति जीवन में ज्ञान, शिक्षा और विवेक प्राप्त करता है। उनके मार्गदर्शन से हमें सही और गलत का भेद पता चलता है और हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पा सकते हैं।
तीन बार शांति का उच्चारण
शांति का तात्पर्य
मंत्र के अंत में तीन बार “शांति” शब्द का उच्चारण किया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपने जीवन के तीनों स्तरों—शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक—पर पूर्ण शांति प्राप्त करे। इस प्राचीन प्रार्थना में यह विश्वास है कि जब इन तीनों स्तरों पर शांति होती है, तभी व्यक्ति सच्चे सुख और समृद्धि का अनुभव कर सकता है।
शांति के तीन स्तर
- आधिभौतिक शांति: जो हमारे बाहरी भौतिक जीवन से संबंधित है, जैसे प्राकृतिक आपदाओं, रोगों, और सामाजिक अशांति से मुक्ति।
- आधिदैविक शांति: जो दिव्य शक्तियों और प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की बात करती है।
- आध्यात्मिक शांति: जो आत्मा की शांति है और हमारे आंतरिक संसार को शुद्ध और शांत करती है।
स्वस्ति मंत्र का आध्यात्मिक लाभ
मानसिक और भावनात्मक शांति
इस मंत्र का नियमित उच्चारण व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक संतुलन को स्थिर करता है। यह नकारात्मक विचारों और भावनाओं को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
यह मंत्र शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। इसे सुनने या उच्चारित करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे हमारी शारीरिक तंदुरुस्ती बढ़ती है।
आध्यात्मिक उत्थान
स्वस्ति मंत्र व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए भी उपयोगी है। यह मंत्र हमारी आत्मा को शुद्ध करता है और हमें ईश्वर की ओर प्रेरित करता है। इससे हमारा आत्मिक संबंध मजबूत होता है और हमें सच्ची शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
स्वस्ति मंत्र भारतीय संस्कृति और वैदिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मंत्र न केवल शांति और कल्याण की प्रार्थना करता है, बल्कि हमें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता, समृद्धि और संतुलन प्रदान करता है। इसका नियमित उच्चारण व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।