- – यह कविता पित्रों (पूर्वजों) के प्रति सम्मान और भक्ति को दर्शाती है, जो घर के मालिक माने जाते हैं।
- – पित्रों की पूजा और उनका आशीर्वाद घर में समृद्धि, शांति और बरकत लाता है।
- – कविता में पित्रों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनके सम्मान और सेवा का वर्णन किया गया है, जैसे उनकी पूजा करना, उनके लिए साफ-सफाई करना और उनकी याद में त्यौहार मनाना।
- – पित्रों की रक्षा और उनकी कृपा से ही परिवार में खुशहाली और सफलता संभव होती है।
- – लेखक ने अपने पूर्वजों के प्रति गहरी भक्ति और आदर व्यक्त किया है, जो परिवार की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का पालन करता है।

तु महारे घर का मालिक स,
कोनया तन्नै नाराज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।।
जिस घर में सम्मान तेरा तुं,
उड़ै दड़ाके ठावः स,
दुध पुत में बरकत हो स,
सुथरा काम चलावः स,
सुबह शाम तेरी जोत जगाऊँ,
बंध लहसण और प्याज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।
हो तुं महारे घर का मालिक स,
कोनया तन्नै नाराज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।।
मावस के दिन कपड़े पहरादुँ,
तन्नै असनान करा क ने,
घर में थान बणादुँ पंडत,
ने जलपान करा क ने,
बारों मास तेरा गहणा घर में,
मैं तेरे ऊपर नाज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।
हो तुं महारे घर का मालिक स,
कोनया तन्नै नाराज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।।
तेरा पहरा जब बणया रह तो,
हवा ओपरी आवः ना,
जिसका पित्र बंधज्या तो,
भोग उड़ै तक जावः ना,
दो रोटी तेरे ना की काढुँ,
ये पुरी रीति रीवाज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।
हो तुं महारे घर का मालिक स,
कोनया तन्नै नाराज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।।
कृष्ण जुए आले की दादा,
तेरे हाथ में डोरी स,
तेरी दया त तेरे बेटे की,
हवा कसुती होरी स,
धनसिँह भक्त पाणीपत के महां,
तेरी दया तं राज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।
हो तुं महारे घर का मालिक स,
कोनया तन्नै नाराज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।।
तु महारे घर का मालिक स,
कोनया तन्नै नाराज करूं,
हाथ जोड़ क पूजा थारी,
पित्र महाराज करूंं।।
प्रेषक –
राकेश कुमार खरक जाटान(रोहतक)
9992976579
