- – यह कविता मुरली वाले (कृष्ण) से मिलने की तीव्र इच्छा और प्रेम को दर्शाती है।
- – कवि अपने दिल की बेचैनी और अरमानों के मचलने की भावना व्यक्त करता है।
- – कृष्ण के प्रति गहरा लगाव और उनसे जुड़ने की पुरानी भावना का उल्लेख है।
- – प्रेम में पड़ने के बावजूद समाज के तानों और आलोचनाओं को सहने की बात कही गई है।
- – मछली के जल के बिना तड़पने की तरह, कवि भी कृष्ण से मिलने को बेचैन है।
तुमसे मिलने को ऐ मुरली वाले,
दिल के अरमा मचलने लगे हैं,
जैसे जल के बिना तड़पे मछली,
हम भी वैसे तड़पने लगे हैं।।
बात कुछ तो है तुझमे बिहारी,
दिल ही बस में नहीं है हमारे,
होश हमको नहीं है कन्हैया,
खोये खोये से रहने लगे हैं,
तुमसे मिलने को ए मुरली वाले,
दिल के अरमा मचलने लगे हैं।।
तुमको देखा नहीं हमने अब तक,
रिश्ता लगता है सदियों पुराना,
हाल ऐसा हुआ है कन्हैया,
लोग पागल सा कहने लगे हैं,
तुमसे मिलने को ए मुरली वाले,
दिल के अरमा मचलने लगे हैं।।
प्रेम तुमसे अगर जो किया है,
तो बताओ गलत क्या किया है,
ताने सारे जगत के कन्हैया,
हम तो हँस हँस सहने लगे हैं,
तुमसे मिलने को ए मुरली वाले,
दिल के अरमा मचलने लगे हैं।।
तुमसे मिलने को ऐ मुरली वाले,
दिल के अरमा मचलने लगे हैं,
जैसे जल के बिना तड़पे मछली,
हम भी वैसे तड़पने लगे हैं।।
https://youtu.be/_44kwr7I7Tw
