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वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताःयजुर्वेद ९:२३

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः यह यजुर्वेद का एक मंत्र है, जो ९वें अध्याय के २३वें श्लोक में पाया जाता है।

इस मंत्र का हिंदी में अर्थ निम्नलिखित है:

हम राष्ट्र के पुरोहित (नेता, मार्गदर्शक) जागरूक रहें।

इस श्लोक में ‘पुरोहिताः’ का अर्थ वे लोग हैं जो समाज में अग्रणी भूमिका निभाते हैं, जैसे कि नेता, गुरु, या मार्गदर्शक। ‘जागृयाम’ का अर्थ है जागरूक रहना या जागते रहना। ‘राष्ट्रे’ का अर्थ है राष्ट्र या देश।

इस प्रकार, इस मंत्र में कहा गया है कि जो लोग समाज में नेतृत्व करते हैं, उन्हें सदैव जागरूक और सतर्क रहना चाहिए, ताकि वे राष्ट्र को सही दिशा में ले जा सकें। इस मंत्र में देश के प्रति समर्पण और सेवा का भाव निहित है। इसका उद्देश्य समाज के नेताओं को यह याद दिलाना है कि उनकी जिम्मेदारी है कि वे देश के कल्याण के लिए सतत जागरूक रहें और सही मार्ग पर चलें।

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः मंत्र का विशेष महत्त्व यजुर्वेद में इसलिए है क्योंकि यह न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक संदर्भ में बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस मंत्र में दिए गए शब्दों का गहन अर्थ है, जो हमें एक आदर्श समाज और राष्ट्र के निर्माण की ओर प्रेरित करता है। यहाँ इस मंत्र के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई है:

  1. पुरोहित की भूमिका: ‘पुरोहित’ शब्द संस्कृत से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘आगे खड़ा हुआ व्यक्ति’ है। परंपरागत रूप से, पुरोहित वह व्यक्ति होता है जो यज्ञ, पूजा और अन्य धार्मिक कृत्यों का संचालन करता है। लेकिन इस मंत्र में ‘पुरोहित’ का अर्थ समाज के उन अग्रणियों से भी है, जो राष्ट्र को मार्गदर्शन देते हैं। ये नेता, शिक्षक, और विचारशील व्यक्ति होते हैं, जो समाज को सही दिशा में ले जाते हैं।
  2. जागृयाम का महत्व: ‘जागृयाम’ शब्द का अर्थ है जागरूक रहना, सतर्क रहना। इसका यह संदेश है कि जो लोग समाज में नेतृत्व करते हैं, उन्हें हमेशा सजग और सतर्क रहना चाहिए। उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए और उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए।
  3. राष्ट्र का कल्याण: इस मंत्र का मूल उद्देश्य राष्ट्र के कल्याण की कामना है। ‘राष्ट्रे’ शब्द का उपयोग यह दर्शाता है कि समाज के पुरोहित या नेता केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। उनका हर निर्णय और क्रिया राष्ट्र की भलाई के लिए होना चाहिए।
  4. सामाजिक सामंजस्य: यह मंत्र सामाजिक सामंजस्य और एकता का प्रतीक है। जब राष्ट्र के नेता जागरूक होंगे, तो वे समाज में शांति, एकता और प्रगति को बढ़ावा देंगे। यह मंत्र इस बात पर जोर देता है कि नेतृत्व का कार्य केवल सत्ता या अधिकार का नहीं है, बल्कि यह सेवा और समाज को संगठित करने का कार्य है।
  5. आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टिकोण: यह मंत्र केवल बाहरी जागरूकता की बात नहीं करता, बल्कि आंतरिक जागरूकता और नैतिकता की भी बात करता है। पुरोहितों को अपनी आत्मा के प्रति भी सजग रहना चाहिए और अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को भी समझना चाहिए। यह मंत्र हमें आत्मिक शुद्धता और नैतिकता की ओर भी प्रेरित करता है।
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समग्र रूप से, यह मंत्र हमें यह सिखाता है कि समाज के नेता और मार्गदर्शक को हमेशा जागरूक, सतर्क और नैतिक रूप से सुदृढ़ होना चाहिए ताकि वे राष्ट्र को सही दिशा में ले जा सकें और उसका कल्याण कर सकें। इस मंत्र में नेतृत्व की वास्तविक भावना और समाज के प्रति समर्पण का संदेश निहित है।

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