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जय जय जय रविदेव,
जय जय जय रविदेव ।
रजनीपति मदहारी,
शतलद जीवन दाता ॥
पटपद मन मदुकारी,
हे दिनमण दाता ।
जग के हे रविदेव,
जय जय जय स्वदेव ॥

नभ मंडल के वाणी,
ज्योति प्रकाशक देवा ।
निजजन हित सुखराशी,
तेरी हम सब सेवा ॥

करते हैं रविदेव,
जय जय जय रविदेव ।
कनक बदन मन मोहित,
रुचिर प्रभा प्यारी ॥

नित मंडल से मंडित,
अजर अमर छविधारी ।
हे सुरवर रविदेव,
जय जय जय रविदेव ॥

जय जय जय रविदेव,
जय जय जय रविदेव ।
रजनीपति मदहारी,
शतलद जीवन दाता ॥

जय जय जय रविदेव का अर्थ

यह स्तुति सूर्य देवता की महिमा का गुणगान करती है, जहाँ प्रत्येक पंक्ति सूर्य के विभिन्न गुणों और विशेषताओं का वर्णन करती है। इस स्तुति में सूर्य को जीवनदाता, प्रकाशक, और जगत के पालनहार के रूप में पूजा गया है। नीचे दी गई प्रत्येक पंक्ति का हिंदी में विस्तृत अर्थ और विवरण प्रस्तुत किया गया है।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव

इसका अर्थ है – “हे सूर्य देव! आपकी जय हो, आपकी जय हो।” इस पंक्ति में सूर्य देवता की महिमा का गुणगान किया गया है और उनकी विजय के लिए स्तुति की गई है।

रजनीपति मदहारी, शतलद जीवन दाता

  • रजनीपति: इसका अर्थ है “रात्रि का स्वामी”, सूर्य रात के बाद सुबह को लाने वाले हैं।
  • मदहारी: “मदहारी” का अर्थ है “अहंकार या गर्व को नष्ट करने वाले”। सूर्य की उपस्थिति सभी प्रकार के अंधकार और अहंकार को दूर करती है।
  • शतलद जीवन दाता: “शतलद” का अर्थ है “शीतल” और “जीवन दाता” का अर्थ है “जीवन प्रदान करने वाला”। सूर्य देव जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि के लिए अनिवार्य है।

पटपद मन मदुकारी, हे दिनमण दाता

  • पटपद: “पटपद” का अर्थ है “विशाल आकाश”।
  • मन मदुकारी: इसका अर्थ है “मन को मधुर बनाने वाले”। सूर्य की किरणें और प्रकाश मन को शांत और प्रसन्न कर देते हैं।
  • हे दिनमण दाता: “दिनमण” का अर्थ है “दिन का रत्न”। सूर्य दिन के समय का प्रतीक है और अपने प्रकाश से दिन का निर्माण करता है।

जग के हे रविदेव, जय जय जय स्वदेव

इस पंक्ति में, सूर्य को “रविदेव” कहा गया है, जिसका अर्थ है “सूर्य देवता”। “स्वदेव” का अर्थ है “हमारे देवता”। इस पंक्ति में कहा गया है, “हे जगत के सूर्य देवता, आपकी जय हो।”

नभ मंडल के वाणी, ज्योति प्रकाशक देवा

  • नभ मंडल: इसका अर्थ है “आकाशीय क्षेत्र”। सूर्य आकाश में स्थित हैं और अपनी रोशनी फैलाते हैं।
  • वाणी: “वाणी” का अर्थ है “कथन” या “आवाज़”, लेकिन यहाँ यह सूर्य की उपस्थिति के प्रभाव को दर्शाने के लिए प्रयोग किया गया है।
  • ज्योति प्रकाशक देवा: “ज्योति” का अर्थ है “प्रकाश” और “प्रकाशक” का अर्थ है “उजाला फैलाने वाले”। सूर्य देव प्रकाश के स्रोत हैं, जो सम्पूर्ण सृष्टि को प्रकाशित करते हैं।

निजजन हित सुखराशी, तेरी हम सब सेवा

  • निजजन हित: “निजजन” का अर्थ है “अपने भक्त” और “हित” का अर्थ है “कल्याण”। सूर्य अपने भक्तों के कल्याण का ध्यान रखते हैं।
  • सुखराशी: इसका अर्थ है “सुख का खजाना”। सूर्य देव अपने भक्तों के जीवन में सुख और समृद्धि का संचार करते हैं।
  • तेरी हम सब सेवा: इसका अर्थ है “हम सब आपकी सेवा में लगे हुए हैं”। यहाँ भक्त सूर्य देव की सेवा और पूजा का व्रत लेते हैं।

करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव

यह पंक्ति सूर्य देव की स्तुति को पुनः व्यक्त करती है, और उनके महिमामंडन के लिए “जय जय जय रविदेव” का उद्घोष करती है।

कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी

  • कनक बदन: “कनक” का अर्थ है “सोना” और “बदन” का अर्थ है “शरीर”। सूर्य का वर्ण स्वर्णिम होता है, उनकी चमक सोने जैसी है।
  • मन मोहित: इसका अर्थ है “मन को मोह लेने वाला”। सूर्य की रोशनी और उनका स्वरूप ऐसा है कि वह मन को आकर्षित करता है।
  • रुचिर प्रभा प्यारी: “रुचिर” का अर्थ है “सुंदर” और “प्रभा” का अर्थ है “प्रकाश”। सूर्य का प्रकाश अत्यंत प्रिय और सुंदर है।

नित मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी

  • नित मंडल: इसका अर्थ है “सदैव आकाशीय गोले में स्थित”। सूर्य सदैव अपने कक्ष में रहते हैं और अपने नियत स्थान से प्रकाश फैलाते हैं।
  • अजर अमर: “अजर” का अर्थ है “जो कभी बूढ़ा नहीं होता” और “अमर” का अर्थ है “जो कभी नहीं मरता”। सूर्य का तेज और शक्ति सदैव अमर और अविनाशी रहती है।
  • छविधारी: “छविधारी” का अर्थ है “प्रभावशाली रूप रखने वाले”। सूर्य का रूप सदैव प्रभावशाली और तेजस्वी होता है।

हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव

इस अंतिम पंक्ति में सूर्य को “सुरवर” कहा गया है, जिसका अर्थ है “श्रेष्ठ देवता”। यहाँ फिर से उनकी महिमा गाते हुए कहा गया है, “हे श्रेष्ठ देवता, आपकी जय हो।”

समापन

यह स्तुति सूर्य देव की शक्ति, प्रकाश, और उनकी अमरता का वर्णन करती है। भक्तगण सूर्य की महिमा का गुणगान करते हुए उनके प्रति अपनी आस्था और सेवा का प्रकटिकरण करते हैं।

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