धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय जय शनि महाराज ।
कृपा करो हम दीन रंक पर,
दुःख हरियो प्रभु आज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥
सूरज के तुम बालक होकर,
जग में बड़े बलवान ।
सब देवताओं में तुम्हारा,
प्रथम मान है आज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

विक्रमराज को हुआ घमण्ड फिर,
अपने श्रेष्ठन का ।
चकनाचूर किया बुद्धि को,
हिला दिया सरताज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

प्रभु राम और पांडवजी को,
भेज दिया बनवास ।
कृपा होय जब तुम्हारी स्वामी,
बचाई उनकी लॉज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

शुर-संत राजा हरीशचंद्र का,
बेच दिया परिवार ।
पात्र हुए जब सत परीक्षा में,
देकर धन और राज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

गुरुनाथ को शिक्षा फाँसी की,
मन के गरबन को ।
होश में लाया सवा कलाक में,
फेरत निगाह राज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

माखन चोर वो कृष्ण कन्हाइ,
गैयन के रखवार ।
कलंक माथे का धोया उनका,
खड़े रूप विराज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

देखी लीला प्रभु आया चक्कर,
तन को अब न सतावे ।
माया बंधन से कर दो हमें,
भव सागर ज्ञानी राज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

मैं हूँ दीन अनाथ अज्ञानी,
भूल भई हमसे ।
क्षमा शांति दो नारायण को,
प्रणाम लो महाराज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय-जय शनि महाराज ।
कृपा करो हम दीन रंक पर,
दुःख हरियो प्रभु आज ॥
॥ ॐ जय जय शनि महाराज ॥

ॐ जय जय शनि महाराज: अर्थ और महिमा

श्लोक का भावार्थ एवं प्रत्येक पंक्ति का हिंदी में विस्तृत अर्थ

यह भजन शनिदेव की महिमा का बखान करता है, जिसमें उनके अद्वितीय प्रभाव और उनके आशीर्वाद की महत्ता का उल्लेख है। हर श्लोक में शनिदेव की शक्तियों, उनकी कृपा और उनके भक्तों को दुखों से मुक्ति दिलाने की अद्वितीय शक्ति का बखान किया गया है।


ॐ जय जय शनि महाराज, स्वामी जय जय शनि महाराज

यह पंक्ति एक सम्मानपूर्वक आह्वान है जिसमें शनिदेव की स्तुति की जा रही है। “जय जय” शब्द का प्रयोग शनिदेव की महिमा का गान करने के लिए किया गया है।

अर्थ
भजन की शुरुआत में, भक्ति भावना के साथ शनिदेव को प्रणाम करते हुए उनकी जय जयकार की गई है। यह एक भक्त का आह्वान है कि वह शनिदेव की कृपा की अपेक्षा रखता है और उन्हें सम्मानपूर्वक प्रणाम करता है।


कृपा करो हम दीन रंक पर, दुःख हरियो प्रभु आज

यह पंक्ति शनिदेव से उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना है, ताकि वे दुखों को हर सकें।

अर्थ
यहाँ भक्त शनिदेव से विनती कर रहा है कि वे अपनी कृपा दृष्टि दीन-हीन भक्तों पर बनाए रखें और उनके जीवन से सभी दुखों का नाश करें। भक्त शरणागत होकर शनिदेव से करुणा की याचना कर रहा है।


सूरज के तुम बालक होकर, जग में बड़े बलवान

इस पंक्ति में बताया गया है कि शनिदेव, सूर्य देव के पुत्र हैं और अपनी बलशाली शक्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

अर्थ
शनिदेव का परिचय सूर्य देव के पुत्र के रूप में दिया गया है और यह भी बताया गया है कि वे अपने अद्वितीय बल और पराक्रम के लिए जाने जाते हैं। उनका नाम लेते ही कई प्रकार की विपदाओं से मुक्ति मिलती है।


सब देवताओं में तुम्हारा, प्रथम मान है आज

यह पंक्ति शनिदेव की विशिष्टता का उल्लेख करती है।

अर्थ
शनिदेव का स्थान देवताओं में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। उनकी भूमिका सभी देवताओं में महत्वपूर्ण है, और उनके प्रभाव से बड़े-बड़े देवताओं की भी चिंता बढ़ जाती है। शनिदेव के न्यायप्रिय और दंडदायक रूप को देवतागण भी सम्मान देते हैं।


विक्रमराज को हुआ घमण्ड फिर, अपने श्रेष्ठन का

इस पंक्ति में विक्रमादित्य के घमंड की बात की गई है।

अर्थ
इसमें उल्लेख है कि विक्रमराज, यानी राजा विक्रमादित्य, ने अपने श्रेष्ठता के घमंड में आकर शनिदेव को अनदेखा किया था। शनिदेव ने उनके इस घमंड को चूर-चूर करने के लिए उन्हें शिक्षाप्रद अनुभव दिया था, जिससे उनका अहंकार समाप्त हो गया।


चकनाचूर किया बुद्धि को, हिला दिया सरताज

शनिदेव ने विक्रमराज की बुद्धि को चकनाचूर कर दिया और उन्हें सबक सिखाया।

अर्थ
शनिदेव ने विक्रमादित्य की बुद्धि पर ऐसा प्रभाव डाला कि उनकी बुद्धि भ्रमित हो गई। शनिदेव के आघात से विक्रमराज का अभिमान टूट गया, और उनके प्रतिष्ठा को शनिदेव ने झुका दिया।


प्रभु राम और पांडवजी को, भेज दिया बनवास

इस पंक्ति में भगवान राम और पांडवों के बनवास का उल्लेख है, जिसमें शनिदेव की शक्ति का वर्णन है।

अर्थ
यहाँ बताया गया है कि शनिदेव के प्रभाव के कारण भगवान राम और पांडवों को बनवास का कष्ट झेलना पड़ा। शनिदेव के न्याय की गाथा है कि जब समय उचित नहीं हो तो बड़े से बड़े लोग भी कष्ट का सामना करते हैं, जो जीवन का एक अनिवार्य सत्य है।


कृपा होय जब तुम्हारी स्वामी, बचाई उनकी लॉज

इस पंक्ति में शनिदेव की कृपा की बात की गई है कि उनकी कृपा से सबकी इज्जत बचती है।

अर्थ
जब शनिदेव की कृपा होती है, तब वह व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों से सुरक्षित रहता है। शनिदेव ने भगवान राम और पांडवों को बनवास में भी सहारा दिया और उनकी प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण बनाए रखा। यह उनकी अनुकम्पा का प्रमाण है।


शुर-संत राजा हरीशचंद्र का, बेच दिया परिवार

इस पंक्ति में राजा हरिश्चंद्र का उल्लेख है, जिन्होंने सत्य की परीक्षा में अपने परिवार का त्याग किया।

अर्थ
राजा हरिश्चंद्र, जिन्हें सत्यवादी के रूप में जाना जाता है, उन्हें भी शनिदेव ने एक कठिन परीक्षा में डाला था। सत्य की कसौटी पर खरे उतरने के लिए उन्हें अपने परिवार को भी बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो एक परीक्षा थी उनकी सच्चाई की।


पात्र हुए जब सत परीक्षा में, देकर धन और राज

यह पंक्ति बताती है कि राजा हरिश्चंद्र ने अपनी सत्यता साबित की और उनका त्याग अनंतकाल तक अमर हो गया।

अर्थ
राजा हरिश्चंद्र ने सत्य की राह पर चलकर धन और राज्य का त्याग किया, जो शनिदेव द्वारा दी गई एक सख्त परीक्षा थी। इस परीक्षा में खरा उतर कर उन्होंने अमरता प्राप्त की और समाज में एक उच्च आदर्श स्थापित किया।


गुरुनाथ को शिक्षा फाँसी की, मन के गरबन को

शनिदेव ने गुरुनाथ को फांसी की शिक्षा दी, ताकि उनका गर्व नष्ट हो।

अर्थ
शनिदेव ने गुरुनाथ को फांसी का भय दिखाया ताकि उनका मन का अभिमान नष्ट हो सके। यह शनिदेव का न्यायसंगत रूप था कि वह हर किसी के अहंकार को नष्ट करते हैं और उन्हें धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं।


होश में लाया सवा कलाक में, फेरत निगाह राज

यह पंक्ति दर्शाती है कि शनिदेव ने लोगों को बहुत जल्दी होश में लाया।

अर्थ
शनिदेव ने बहुत ही शीघ्र, सवा घंटे के भीतर, गुरुनाथ के अभिमान को तोड़ दिया और उन्हें वास्तविकता का बोध कराया। शनिदेव का प्रभाव ऐसा है कि उनके एक दृष्टिपात से ही व्यक्ति सही राह पर आ जाता है।


माखन चोर वो कृष्ण कन्हाइ, गैयन के रखवार

इस पंक्ति में भगवान कृष्ण का उल्लेख है, जो ग्वालों के रक्षक हैं।

अर्थ
यहाँ भगवान कृष्ण, जो ग्वालों की रक्षा करते हैं और माखन चोर के नाम से प्रसिद्ध हैं, का गुणगान किया गया है। शनिदेव ने कृष्ण के माथे के कलंक को धोने में भी सहायता की।

कलंक माथे का धोया उनका, खड़े रूप विराज

इस पंक्ति में बताया गया है कि शनिदेव ने भगवान कृष्ण के सिर का कलंक मिटाया।

अर्थ
शनिदेव ने कृष्ण के जीवन से उनके माथे पर लगे कलंक को समाप्त कर उन्हें एक आदर्श रूप में खड़ा किया। इसका अर्थ है कि शनिदेव, न्यायप्रियता के साथ व्यक्ति को सही मार्ग पर लाते हैं और उसके जीवन में लगे कलंक को मिटा सकते हैं।


देखी लीला प्रभु आया चक्कर, तन को अब न सतावे

यहाँ भक्त कह रहा है कि शनिदेव की लीला से उन्हें यह आभास हो गया है कि अब तन को कोई कष्ट नहीं सताएगा।

अर्थ
भक्त शनिदेव की लीला का दर्शन करने के बाद यह मानता है कि अब उसके तन को कोई पीड़ा नहीं सताएगी। यह शनिदेव की कृपा का प्रतीक है कि जो भक्त उनकी शरण में आते हैं, वे उनकी सभी परेशानियों का अंत कर देते हैं और उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।


माया बंधन से कर दो हमें, भव सागर ज्ञानी राज

इस पंक्ति में भक्त शनिदेव से माया के बंधनों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहा है।

अर्थ
भक्त यहाँ प्रार्थना करता है कि शनिदेव उसे माया के बंधनों से मुक्त करें ताकि वह सांसारिक मोह से परे होकर भक्ति और ज्ञान की राह पर चल सके। यह भवसागर को पार करने की अभिलाषा का प्रतीक है और शनिदेव को ज्ञान का राजा कहकर, उनसे उद्धार की याचना है।


मैं हूँ दीन अनाथ अज्ञानी, भूल भई हमसे

भक्त स्वयं को दीन, अनाथ और अज्ञानी मानकर शनिदेव से अपने अपराधों की क्षमा मांगता है।

अर्थ
यह पंक्ति एक विनम्र स्वीकारोक्ति है, जिसमें भक्त यह मानता है कि वह अज्ञानी, दीन और अनाथ है और उससे कई भूलें हुई हैं। वह शनिदेव से क्षमा की याचना करता है और अपनी अज्ञानता के लिए उन्हें नमन करता है।


क्षमा शांति दो नारायण को, प्रणाम लो महाराज

यहाँ भक्त शनिदेव से क्षमा और शांति की याचना करता है और उन्हें प्रणाम करता है।

अर्थ
यह पंक्ति भक्ति का चरम रूप है, जिसमें भक्त शनिदेव से अपने मन को शांति देने और सभी गलतियों के लिए क्षमा देने की प्रार्थना करता है। भक्त उनसे आशीर्वाद पाकर उन्हें प्रणाम करता है और अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है।


ॐ जय जय शनि महाराज, स्वामी जय-जय शनि महाराज

यह अंतिम पंक्ति में फिर से शनिदेव की महिमा का गान करते हुए उनके प्रति आभार और भक्ति व्यक्त की गई है।

अर्थ
इस पंक्ति में फिर से शनिदेव की महिमा और उनके आशीर्वाद के लिए प्रशंसा की गई है। यह पूरी भक्ति और समर्पण की भावना को प्रकट करती है, जिसमें भक्त अपने दुखों को हरने और कृपा बरसाने की प्रार्थना करता है। शनिदेव के प्रति पूर्ण आस्था और श्रद्धा के साथ यह स्तुति समाप्त होती है।


संपूर्ण भजन का सार

इस भजन के माध्यम से भक्त शनिदेव से जीवन की परेशानियों, दुखों और गलतियों से मुक्ति की प्रार्थना करता है। शनिदेव के न्यायप्रिय और कठोर रूप की स्तुति करते हुए, यह भजन भक्त को अपने भीतर की कमियों को दूर करने, माया से मुक्ति पाने और सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *