आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो,
जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
जय हो नंदलाल की,
जय यशोदा लाल की ।
गोकुल में आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो,
जय यशोदा लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
गोकुल में आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
जय हो नंदलाल की,
जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो,
जय यशोदा लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के,
अधिपति लाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
गौ चराने आये,
जय हो पशुपाल की ।
गोकुल में आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के,
अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
गौ चराने आये,
जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
पूनम के चाँद जैसी,
शोभी है बाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
गोकुल में आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के,
अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
गौ चराने आये,
जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
भक्तो के आनंदकंद,
जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
जय हो यशोदा लाल की,
जय हो गोपाल की ।
गोकुल में आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के,
अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
गौ चराने आये,
जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद से बोलो सब,
जय हो बृज लाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
जय हो बृज लाल की,
पावन प्रतिपाल की ।
गोकुल में आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के,
अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
गौ चराने आये,
जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की॥
आनंद उमंग भयो,
जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
जय हो नंदलाल की,
जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी,
जय कन्हिया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो,
जय यशोदा लाल की ।
नन्द के आनंद भयो,
जय कन्हिया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की – भजन का अर्थ और भावार्थ
भजन परिचय
यह भजन भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का गुणगान करता है। इसमें गोविंद, नंदलाल, कन्हैया, और यशोदा के लाल के रूप में श्रीकृष्ण का अद्वितीय प्रेम और बालपन का आनंद है, जो उनके आगमन से गोकुल और बृज में खुशी और उल्लास का संचार करता है। यह भजन हमें बताता है कि कैसे उनके आगमन से सारे ब्रजवासी आनंदित हो उठे।
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की
अर्थ: जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो उनके पिता नंद बाबा के घर में खुशी और उमंग का सैलाब उमड़ पड़ा। चारों ओर हर्ष और उल्लास का वातावरण बन गया।
भावार्थ: यह पंक्ति दर्शाती है कि श्रीकृष्ण के जन्म ने पूरे ब्रज में खुशी की लहर दौड़ा दी। नंद बाबा और यशोदा के आँगन में एक दिव्य संतान के रूप में आए श्रीकृष्ण की मस्ती और बाल लीलाओं ने सबका मन मोह लिया।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण के जन्म से नंद बाबा अत्यंत आनंदित हो गए। वे इस खुशी का उत्सव मनाने लगे।
भावार्थ: यह बताता है कि नंद बाबा और यशोदा के जीवन में श्रीकृष्ण का आगमन एक अनमोल सुख लेकर आया। उनका हर दिन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से आनंदित हो उठता है।
बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की
अर्थ: यशोदा माता के पुत्र श्रीकृष्ण के आगमन से पूरे बृज में आनंद छा गया।
भावार्थ: इस पंक्ति में बृज भूमि के लोगों की खुशी का वर्णन किया गया है, जिनकी हर इच्छा श्रीकृष्ण के लीलाओं में पूरी होती है। यशोदा के लाल श्रीकृष्ण ने बृजवासियों को सुखमय बना दिया।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण की खुशी में साज-सज्जा के साथ, हाथी, घोड़े, पालकी आदि का आयोजन किया गया।
भावार्थ: यह पंक्ति दर्शाती है कि कैसे श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को धूमधाम से मनाने के लिए विभिन्न प्रकार के उत्सव और झांकियाँ आयोजित की गईं, जैसे पालकी और हाथियों की सवारी।
कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण केवल बृजवासियों के नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड के अधिपति हैं।
भावार्थ: यह हमें श्रीकृष्ण के महानता का बोध कराता है। वह एक बाल रूप में बृज में आनंद देने वाले हैं, फिर भी समस्त सृष्टि पर उनकी सत्ता और नियंत्रण है।
गौ चराने आये, जय हो पशुपाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण अपने बाल्यकाल में गाएँ चराने वाले ग्वाले के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।
भावार्थ: श्रीकृष्ण का ग्वाला रूप सरलता, प्रेम और प्रकृति के प्रति उनकी सेवा भावना का प्रतीक है। उनके लिए हर जीव प्रिय है और वह गोकुल की गायों को चराकर अपने बालसुलभ प्रेम को व्यक्त करते हैं।
पूनम के चाँद जैसी, शोभी है बाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण के बालों की सुंदरता पूर्णिमा के चाँद जैसी है।
भावार्थ: श्रीकृष्ण की बाल सुलभ मोहकता को इस पंक्ति में दर्शाया गया है। उनकी उपस्थिति इतनी आकर्षक और मनमोहक है कि जैसे चाँदनी रात में चाँद की रोशनी हर किसी को भा जाती है।
भक्तो के आनंदकंद, जय यशोदा लाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण अपने भक्तों के लिए आनंद का स्रोत हैं।
भावार्थ: यशोदा के लाल श्रीकृष्ण, अपने भक्तों के दुःख हरते हैं और उन्हें आनंद से भर देते हैं। उनके नाम से ही भक्तों के मन में संतोष और खुशी का संचार हो जाता है।
जय हो बृज लाल की, पावन प्रतिपाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण बृज के संरक्षक और पोषक हैं, जो सभी के जीवन को पवित्र बनाते हैं।
भावार्थ: यह पंक्ति बृज में श्रीकृष्ण के पवित्र योगदान को दर्शाती है। उनके लीलाओं और उनके प्रेम से बृज की भूमि पवित्र और धन्य हो जाती है।
आनंद से बोलो सब, जय हो बृज लाल की
अर्थ: श्रीकृष्ण की जयकार करने से सभी आनंदित हो उठते हैं।
भावार्थ: यह संदेश देता है कि जब हम हर्ष और आनंद से भगवान का स्मरण करते हैं, तो अपने जीवन में भी प्रेम और शांति का अनुभव करते हैं।
संपूर्ण भजन का भावार्थ
यह भजन श्रीकृष्ण के बाल्य रूप और उनकी लीलाओं का संपूर्ण वर्णन करता है। उनके आगमन से बृज भूमि आनंदित है। नंद बाबा और यशोदा माता के घर का आँगन हर दिन उनकी लीला से भरपूर है। उनके जन्म से लेकर गौचारण और उनके बाल सुलभ सुंदरता की चर्चा में यह भजन है। सभी ब्रजवासी और उनके भक्त भगवान श्रीकृष्ण की जयकार करते हुए खुशी और आनंद का अनुभव करते हैं।