माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटू कितनी दूर,
जयपुर नि वसना,
रिंगस नि वसना,
खाटू तो जाणा जरुर,
माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटु कितनी क दूर ॥
खाटू दी गलियाँ,
सपणे च ओंदी,
अखियां च छाया सुरूर,
माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटु कितनी क दूर ॥
ओदी ही करनी,
हाँ मैं जी हजूरी,
मालिक ओ मेरा हुजूर,
माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटु कितनी क दूर ॥
मैं ता बाबे दे,
मंदर नू जासा,
ओ मेरी अखियाँ दा नूर,
माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटु कितनी क दूर ॥
माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटू कितनी क दूर,
जयपुर नि वसना,
रिंगस नि वसना,
खाटू तो जाणा जरुर,
माये नी मेरीये,
बाबे दी गलियाँ,
खाटु कितनी क दूर ॥
खाटू कितनी दूर: भजन का अर्थ
इस भजन में एक भक्त अपनी मां से बात करते हुए, खाटू के धाम के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करता है। भजन में खाटू धाम की यात्रा की लालसा और संतुष्टि को बड़े भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
माये नी मेरीये, बाबे दी गलियाँ, खाटू कितनी दूर
इस पंक्ति में “माये नी मेरीये” का अर्थ है, “ओ मेरी मां।” यह एक आत्मीय सम्बोधन है, जिसमें एक भक्त अपने दिल की बात मां से साझा कर रहा है।
“बाबे दी गलियाँ” का अर्थ है “बाबा (खाटू श्याम) के धाम की गलियाँ।” भक्त यहां बाबा के निवास स्थान की ओर आकर्षित है।
“खाटू कितनी दूर” का अर्थ है “खाटू कितनी दूर है।” भक्त पूछता है कि खाटू धाम तक पहुंचना कितना कठिन या दूर है।
इसका समग्र अर्थ है कि भक्त खाटू धाम पहुंचने की तीव्र अभिलाषा रखता है और मां से इसका मार्गदर्शन मांग रहा है।
जयपुर नि वसना, रिंगस नि वसना, खाटू तो जाणा जरुर
- “जयपुर नि वसना” का अर्थ है कि “मुझे जयपुर में नहीं रुकना।”
- “रिंगस नि वसना” का मतलब है कि “मुझे रिंगस में भी नहीं रुकना।”
इन पंक्तियों का अर्थ है कि भक्त का उद्देश्य केवल खाटू धाम पहुंचना है। जयपुर या रिंगस उसके रास्ते में आने वाले शहर हैं, लेकिन वह किसी भी अन्य जगह पर रुकना नहीं चाहता। “खाटू तो जाणा जरुर” का मतलब है कि खाटू जाना निश्चित है। भक्त ने खाटू तक पहुंचने का दृढ़ निश्चय किया है।
माये नी मेरीये, बाबे दी गलियाँ, खाटु कितनी क दूर
यह पंक्तियाँ बार-बार दोहराई जाती हैं और एक भावपूर्ण राग का संचार करती हैं। यह भक्ति की गहराई को दर्शाता है जिसमें भक्त का हृदय केवल बाबा के चरणों में बसना चाहता है।
खाटू दी गलियाँ, सपणे च ओंदी, अखियां च छाया सुरूर
- “खाटू दी गलियाँ” का अर्थ है “खाटू की गलियाँ।”
- “सपणे च ओंदी” का मतलब है “वो मुझे सपनों में आती हैं।”
- “अखियां च छाया सुरूर” का मतलब है “मेरी आंखों में एक सुरूर सा छा जाता है।”
इसका अर्थ यह है कि खाटू की गलियाँ इतनी प्रिय हैं कि भक्त को वो सपनों में भी दिखाई देती हैं और उन्हें देखकर उसकी आंखों में आनंद की एक विशेष चमक आ जाती है।
ओदी ही करनी, हाँ मैं जी हजूरी, मालिक ओ मेरा हुजूर
- “ओदी ही करनी” का अर्थ है “मुझे वही कार्य करना है।”
- “हाँ मैं जी हजूरी” का मतलब है “हाँ, मैं उसके प्रति पूरी तरह समर्पित हूं।”
- “मालिक ओ मेरा हुजूर” का मतलब है “वह मेरे मालिक और मेरे स्वामी हैं।”
यहां भक्त का समर्पण चरम पर है। वह बाबा के प्रति अपनी भक्ति में इतना खो चुका है कि बाबा के प्रति समर्पण उसकी जीवन की सबसे बड़ी साधना बन गई है।
मैं ता बाबे दे, मंदर नू जासा, ओ मेरी अखियाँ दा नूर
- “मैं ता बाबे दे, मंदर नू जासा” का मतलब है “मैं तो बाबा के मंदिर में जाऊंगा।”
- “ओ मेरी अखियाँ दा नूर” का अर्थ है “वह मेरी आंखों का प्रकाश हैं।”
इसका अभिप्राय है कि भक्त के लिए बाबा श्याम उसकी आस्था का केन्द्र हैं, उसकी आंखों का तारा हैं। वह बाबा के मंदिर में जाना अपने जीवन का सबसे पवित्र कार्य मानता है।
समापन भाव
इस भजन के माध्यम से एक भक्त का अपने ईष्ट देव बाबा खाटू श्याम के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण व्यक्त होता है। भजन में श्रद्धा और भक्ति के विभिन्न भाव अभिव्यक्त होते हैं, जैसे कि खाटू धाम की यात्रा, बाबा की गलियों के प्रति आत्मीयता, सपनों में उनके दर्शन की चाह, और उनके प्रति असीम श्रद्धा।