दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है,
दुनिया वाले नमक है छिड़कते,
कोई मरहम लगाता नहीं है ।
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है ॥
किसको बैरी कहूं किसको अपना,
झूठे वादे है सारे ये सपना,
अब तो कहने में आती शरम है,
रिश्ते नाते ये सारे भरम है,
देख खुशियां मेरी ज़िंदगी की,
रास अपनों को आती नहीं है ।
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है ॥
ठोकरों पर है ठोकर खाया,
जब भी दिल दुसरो से लगाया,
हर कदम पे है सबने गिराया,
सबने स्वारथ का रिश्ता निभाया,
तुझसे नैना लड़ाना कन्हैया,
दुनिया वालो को भाता नहीं है ।
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है ॥
दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है,
दुनिया वाले नमक है छिड़कते,
कोई मरहम लगाता नहीं है ।
दर्द किसकों दिखाऊँ कन्हैया,
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है ॥
दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया – अर्थ
यह भजन मानव हृदय की गहरी पीड़ा, संसार की कठोरता और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है। हर पंक्ति जीवन के किसी विशेष पहलू और संघर्ष को दर्शाती है। अब इसे पंक्ति दर पंक्ति अधिक गहराई से समझते हैं।
दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया
अर्थ और भावार्थ
यह पहली पंक्ति मानव जीवन के उस क्षण को दर्शाती है, जब व्यक्ति अपने दर्द और संघर्षों को लेकर अकेला महसूस करता है। भक्त यहाँ भगवान से संवाद कर रहा है, क्योंकि उसे लगता है कि इस संसार में कोई उसकी पीड़ा को समझने वाला नहीं है।
गहराई से विश्लेषण
- दर्द: यहाँ केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पीड़ा की बात हो रही है।
- कन्हैया: श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि सहायक, मार्गदर्शक और सखा के रूप में प्रस्तुत हैं।
- दिखाऊं: यह शब्द उस मनोदशा को प्रकट करता है, जिसमें व्यक्ति अपनी वेदना किसी को बताने में भी असमर्थ हो जाता है।
यह पंक्ति यह भी इंगित करती है कि भक्त की पीड़ा इतनी गहरी है कि वह सिर्फ भगवान जैसे सहृदय और सर्वज्ञ से साझा की जा सकती है।
कोई हमदर्द तुमसा नहीं है
अर्थ और भावार्थ
भक्त मानता है कि संसार में श्रीकृष्ण के समान कोई भी ऐसा नहीं, जो उसकी व्यथा को समझ सके।
गहराई से विश्लेषण
- हमदर्द: जो दूसरों के कष्ट को महसूस करे और उस पर सहानुभूति रखे।
- तुमसा: भक्त यहाँ भगवान के अनंत प्रेम और दया का उल्लेख करता है।
यह पंक्ति यह संदेश देती है कि भगवान का सान्निध्य ही सच्ची शरण है। जब संसार से विश्वास उठ जाता है, तो भगवान ही एकमात्र सहारा बनते हैं।
दुनिया वाले नमक हैं छिड़कते
अर्थ और भावार्थ
भक्त यहाँ संसार की स्वार्थी और संवेदनहीन प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। जब भी कोई कष्ट में होता है, लोग उसकी मदद करने के बजाय उसका उपहास करते हैं या उसे और चोट पहुँचाते हैं।
गहराई से विश्लेषण
- नमक छिड़कना: इसका अर्थ है, दुखी व्यक्ति के दर्द को और बढ़ाना। यह किसी की भावनाओं को न समझने और उसकी समस्याओं को अनदेखा करने का प्रतीक है।
- दुनिया वाले: यह समाज और उसके स्वार्थी रवैये की आलोचना है।
यह दिखाता है कि कठिन समय में अधिकांश लोग सहानुभूति के बजाय आलोचना करते हैं, जिससे व्यक्ति और अधिक आहत होता है।
कोई मरहम लगाता नहीं है
अर्थ और भावार्थ
भक्त को लगता है कि संसार में कोई भी उसकी पीड़ा को कम करने या उसे सांत्वना देने की चेष्टा नहीं करता।
गहराई से विश्लेषण
- मरहम: प्रतीकात्मक रूप से यह शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक सांत्वना है।
यह पंक्ति यह भी बताती है कि समाज में अधिकतर लोग स्वार्थी होते हैं और दूसरों की समस्याओं को नजरअंदाज करते हैं।
किसको बैरी कहूं, किसको अपना
अर्थ और भावार्थ
यह पंक्ति एक गहरी दुविधा को दर्शाती है। भक्त के लिए यह पहचान पाना मुश्किल है कि कौन सच्चा है और कौन झूठा।
गहराई से विश्लेषण
- बैरी: शत्रु, जो हानि पहुँचाने की इच्छा रखता है।
- अपना: सच्चा साथी, जो जीवन के हर पड़ाव पर साथ दे।
यह पंक्ति यह उजागर करती है कि संसार में रिश्ते स्वार्थ और धोखे पर आधारित हो गए हैं। भक्त को यह समझने में कठिनाई हो रही है कि किस पर विश्वास किया जाए।
झूठे वादे हैं, सारे ये सपना
अर्थ और भावार्थ
भक्त ने अपने अनुभवों से यह महसूस किया है कि संसार के रिश्ते और उनके वादे असत्य और क्षणभंगुर होते हैं।
गहराई से विश्लेषण
- झूठे वादे: यहां समाज की बनावट और दिखावे को इंगित किया गया है।
- सपना: यह संसार के अस्थायी और माया-जाल की ओर संकेत करता है।
यह पंक्ति यह भी सिखाती है कि सांसारिक सुख और संबंध स्थायी नहीं होते।
अब तो कहने में आती शरम है
अर्थ और भावार्थ
भक्त को अपनी स्थिति और संसार की सच्चाई को स्वीकार करने में भी झिझक महसूस हो रही है।
गहराई से विश्लेषण
- शरम: आत्म-सम्मान और सामाजिक स्थिति का ध्यान।
यह पंक्ति यह भी बताती है कि संसार के स्वार्थ और धोखे ने भक्त को इतनी पीड़ा दी है कि वह अपनी स्थिति को व्यक्त करने में असमर्थ है।
रिश्ते-नाते ये सारे भरम हैं
अर्थ और भावार्थ
भक्त ने अनुभव किया है कि रिश्ते और नाते केवल भ्रम और माया हैं।
गहराई से विश्लेषण
- भरम: मिथ्या विश्वास, जो वास्तविक नहीं है।
यह पंक्ति समाज के अस्थायी और स्वार्थपूर्ण रिश्तों की ओर इशारा करती है। भक्त महसूस करता है कि इनसे जुड़ाव केवल कष्ट देता है।
तुझसे नैना लड़ाना कन्हैया
अर्थ और भावार्थ
भक्त श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को प्रकट करता है। वह कहता है कि भगवान के साथ संबंध ही सबसे सच्चा और स्थायी है।
गहराई से विश्लेषण
- नैना लड़ाना: यह भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
यह पंक्ति भक्ति मार्ग की ओर संकेत करती है, जिसमें भक्त भगवान को अपना सब कुछ मानकर उनसे संबंध स्थापित करता है।
दुनिया वालों को भाता नहीं है
अर्थ और भावार्थ
भक्त कहता है कि उसका भगवान से यह सच्चा और गहरा संबंध लोगों को पसंद नहीं आता।
गहराई से विश्लेषण
- भाता नहीं है: समाज के लिए असामान्य लगना।
यह पंक्ति दिखाती है कि भक्त को संसार के ताने और आलोचना की परवाह नहीं है, क्योंकि उसका विश्वास भगवान पर है।
भजन का समग्र संदेश
इस भजन में भक्त की पीड़ा और संसार की कठोरता का मार्मिक वर्णन किया गया है। इसका मुख्य संदेश है:
- भगवान में विश्वास: संसार में जब कोई साथ न दे, तब भगवान ही शरण हैं।
- संसार की अस्थिरता: यह भजन रिश्तों की क्षणभंगुरता और स्वार्थ की ओर इशारा करता है।
- भक्ति का महत्व: संसार के कष्टों से बचने का मार्ग केवल भक्ति और भगवान की शरणागति है।
यदि आपको भजन के किसी और पहलू पर और गहराई से चर्चा चाहिए, तो बताएं।