1. आद्य लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,
चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि,
मंजुल भाषिणी वेदनुते ।
पंकजवासिनी देव सुपूजित,
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ॥1॥
2. धान्यलक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि,
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते ।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि,
देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्॥2॥
3. धैर्यलक्ष्मी
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि,
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद,
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी,
साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥3॥
4. गजलक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि,
सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत,
परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,
ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम् ॥4॥
5. संतानलक्ष्मी
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि,
राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,
मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥5॥
6. विजयलक्ष्मी
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि,
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर,
भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,
शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥6॥
7. विद्यालक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि,
शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि,
कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥7॥
8. धनलक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम,
शंख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित,
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ॥8॥
फ़लशृति
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय: ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥
अष्टलक्ष्मी का परिचय
अष्टलक्ष्मी देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं, जो भिन्न-भिन्न रूपों में संसार के कल्याण के लिए प्रकट होती हैं। ये आठ स्वरूप भक्तों को विभिन्न प्रकार के आशीर्वाद और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। आइए इन आठ स्वरूपों का संपूर्ण विवरण जानें:
1. आद्य लक्ष्मी
आद्य लक्ष्मी का स्वरूप
आद्य लक्ष्मी देवी लक्ष्मी का आदि स्वरूप है, जो सभी देवियों में सबसे प्रमुख मानी जाती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत सुन्दर और मोहक है। चंद्रमा की तरह उज्ज्वल और स्वर्ण के समान देदीप्यमान इनकी छवि है।
स्तुति
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,
चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि,
मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पंकजवासिनी देव सुपूजित,
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ॥1॥
गुण और विशेषताएँ
आद्य लक्ष्मी मोक्ष प्रदान करने वाली देवी हैं। वेदों में इनकी स्तुति की गई है। ये पवित्रता, सद्गुण और शांति का प्रतीक हैं।
2. धान्यलक्ष्मी
धान्यलक्ष्मी का स्वरूप
धान्यलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह रूप हैं, जो अन्न, धान्य और खाद्य सामग्री का भंडार प्रदान करती हैं। यह स्वरूप विशेष रूप से किसानों और गृहस्थों के लिए पूजनीय है।
स्तुति
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि,
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि,
देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥2॥
गुण और विशेषताएँ
धान्यलक्ष्मी की पूजा से घर में अन्न-धन की कमी नहीं होती। ये गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि का संचार करती हैं।
3. धैर्यलक्ष्मी
धैर्यलक्ष्मी का स्वरूप
धैर्यलक्ष्मी, देवी लक्ष्मी का धैर्य और साहस प्रदान करने वाला स्वरूप है। वे विपरीत परिस्थितियों में साहस और आत्मविश्वास को बनाए रखने की शक्ति देती हैं।
स्तुति
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि,
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद,
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी,
साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥3॥
गुण और विशेषताएँ
धैर्यलक्ष्मी भय और पापों का नाश करती हैं। साधुजनों और भक्तों के लिए वे शीघ्र फलप्रद हैं।
4. गजलक्ष्मी
गजलक्ष्मी का स्वरूप
गजलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है, जिसमें वे गज (हाथी) के साथ आती हैं। यह स्वरूप समृद्धि, ऐश्वर्य और प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
स्तुति
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि,
सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत,
परिजन मण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,
ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेण लक्ष्मी परिपालय माम् ॥4॥
गुण और विशेषताएँ
गजलक्ष्मी प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य और सम्मान प्रदान करती हैं। हरिहर और ब्रह्मा द्वारा पूजित यह रूप सभी बाधाओं का नाश करने वाला है।
5. संतानलक्ष्मी
संतानलक्ष्मी का स्वरूप
संतानलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो संतान सुख और परिवार की समृद्धि का प्रतीक है। यह रूप विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए पूजनीय है जो संतान सुख की कामना रखते हैं।
स्तुति
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि,
राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,
मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥5॥
गुण और विशेषताएँ
संतानलक्ष्मी संतान सुख और परिवार की खुशहाली प्रदान करती हैं। वे गुणों की खान और ज्ञान की सागर हैं।
6. विजयलक्ष्मी
विजयलक्ष्मी का स्वरूप
विजयलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो विजय और सफलता का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से उन लोगों के लिए पूजनीय है जो अपने जीवन में सफलता और विजय की कामना रखते हैं।
स्तुति
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि,
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर,
भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,
शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥6॥
गुण और विशेषताएँ
विजयलक्ष्मी जीवन में सफलता, मान-सम्मान और वैभव प्रदान करती हैं। वे ज्ञान का विकास करती हैं और सद्गति की ओर प्रेरित करती हैं।
7. विद्यालक्ष्मी
विद्यालक्ष्मी का स्वरूप
विद्यालक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो ज्ञान, शिक्षा और विद्या का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से छात्रों और विद्वानों के लिए पूजनीय है।
स्तुति
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि,
शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि,
कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥7॥
गुण और विशेषताएँ
विद्यालक्ष्मी शिक्षा, ज्ञान और बुद्धि प्रदान करती हैं। वे शोक और अज्ञान का नाश करती हैं और शांति की ओर प्रेरित करती हैं।
8. धनलक्ष्मी
धनलक्ष्मी का स्वरूप
धनलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो धन, वैभव और ऐश्वर्य का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से उन लोगों के लिए पूजनीय है जो आर्थिक समृद्धि की कामना रखते हैं।
स्तुति
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम,
शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित,
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ॥8॥
गुण और विशेषताएँ
धनलक्ष्मी आर्थिक समृद्धि और वैभव का प्रतीक हैं। वेद और पुराणों में इनकी महिमा का वर्णन किया गया है।
फलशृति
अष्टलक्ष्मी के आशीर्वाद का फल
अष्टलक्ष्मी की उपासना से भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान, ये देवी भक्तों को सभी इच्छित फल और मोक्ष प्रदान करती हैं।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥
इस प्रकार, अष्टलक्ष्मी देवी के इन आठ स्वरूपों की आराधना
करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, ज्ञान, धैर्य, सफलता, संतान, और धन की प्राप्ति होती है।
अष्टलक्ष्मी: देवी लक्ष्मी के आठ रूपों का विस्तृत विवरण
अष्टलक्ष्मी देवी लक्ष्मी के आठ प्रमुख स्वरूपों का एक समूह है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समृद्ध करने के लिए प्रकट होती हैं। ये सभी रूप मिलकर जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि लाते हैं। आइए इन सभी स्वरूपों का विस्तृत विवरण जानें:
1. आद्य लक्ष्मी (आदि लक्ष्मी)
आद्य लक्ष्मी का महत्व
आद्य लक्ष्मी, जिन्हें आदि लक्ष्मी भी कहा जाता है, देवी लक्ष्मी का सबसे प्रारंभिक रूप है। यह स्वरूप शाश्वत सुख, शांति और मोक्ष प्रदान करता है। आद्य लक्ष्मी के आशीर्वाद से व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन मिलता है, जो आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
उपासना विधि
आद्य लक्ष्मी की उपासना में श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए और सफेद पुष्पों से पूजा करनी चाहिए। श्रीसूक्त का पाठ और आद्य लक्ष्मी स्तोत्र का जाप करना लाभकारी होता है।
2. धान्यलक्ष्मी
धान्यलक्ष्मी का महत्व
धान्यलक्ष्मी देवी का वह रूप है जो अन्न, धन और पोषण का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से किसानों और गृहस्थों के लिए पूजनीय है, क्योंकि यह कृषि और खाद्य भंडार में समृद्धि लाता है।
उपासना विधि
धान्यलक्ष्मी की पूजा में लाल वस्त्र धारण करना चाहिए और अन्न (चावल, गेहूं) और हरे पत्तों की माला अर्पित करनी चाहिए। अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से घर में अन्न-धन की वृद्धि होती है।
3. धैर्यलक्ष्मी
धैर्यलक्ष्मी का महत्व
धैर्यलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह रूप है जो धैर्य, साहस और मानसिक शक्ति का प्रतीक है। जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने के लिए धैर्यलक्ष्मी का आशीर्वाद आवश्यक होता है।
उपासना विधि
धैर्यलक्ष्मी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करें और पीले पुष्पों से पूजा करें। श्री लक्ष्मी धैर्य स्तोत्र का पाठ विशेष लाभकारी होता है।
4. गजलक्ष्मी
गजलक्ष्मी का महत्व
गजलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जिसमें वे दो गजों (हाथियों) के साथ दिखाई देती हैं। यह स्वरूप शक्ति, ऐश्वर्य, और समृद्धि का प्रतीक है।
उपासना विधि
गजलक्ष्मी की पूजा में सफेद वस्त्र धारण करें और सफेद पुष्प, विशेषकर चमेली, अर्पित करें। गजलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें और चावल, दूध और घी का नैवेद्य अर्पित करें।
5. संतानलक्ष्मी
संतानलक्ष्मी का महत्व
संतानलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो संतान सुख और परिवार की समृद्धि का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से उन लोगों के लिए पूजनीय है जो संतान की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।
उपासना विधि
संतानलक्ष्मी की पूजा में हरे वस्त्र धारण करें और हरे पत्तों की माला अर्पित करें। संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें और दूध, दही, और घी का नैवेद्य अर्पित करें।
6. विजयलक्ष्मी
विजयलक्ष्मी का महत्व
विजयलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो विजय, सफलता, और आत्म-विश्वास का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से उन लोगों के लिए पूजनीय है जो अपने कार्यक्षेत्र में सफलता की कामना करते हैं।
उपासना विधि
विजयलक्ष्मी की पूजा में लाल वस्त्र धारण करें और लाल पुष्प, विशेषकर गुलाब, अर्पित करें। श्री विजयलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें और मिश्री और लाल फल का नैवेद्य अर्पित करें।
7. विद्यालक्ष्मी
विद्यालक्ष्मी का महत्व
विद्यालक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो ज्ञान, शिक्षा और विद्या का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से छात्रों, विद्वानों और शिक्षकों के लिए पूजनीय है।
उपासना विधि
विद्यालक्ष्मी की पूजा में सफेद या पीले वस्त्र धारण करें और पीले पुष्प, विशेषकर सूर्यमुखी, अर्पित करें। श्री सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें और शहद तथा घी का नैवेद्य अर्पित करें।
8. धनलक्ष्मी
धनलक्ष्मी का महत्व
धनलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो धन, संपत्ति, और वैभव का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से व्यापारियों और गृहस्थों के लिए पूजनीय है।
उपासना विधि
धनलक्ष्मी की पूजा में लाल या पीले वस्त्र धारण करें और कमल के पुष्प अर्पित करें। श्रीसूक्त और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। खीर और मिष्ठान का नैवेद्य अर्पित करें।
फलशृति
अष्टलक्ष्मी की उपासना का फल
अष्टलक्ष्मी की उपासना से मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में सुख-समृद्धि और उन्नति प्राप्त होती है। ये सभी रूप मिलकर जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥
इस प्रकार, अष्टलक्ष्मी की उपासना से व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, समृद्धि और संतुष्टि प्राप्त करता है। वे व्यक्ति को सभी प्रकार की बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्ति प्रदान करती हैं और उसे धन, संतान, शिक्षा, धैर्य, और विजय का वरदान देती हैं।
अष्टलक्ष्मी: देवी लक्ष्मी के आठ रूपों का विस्तृत विवरण
अष्टलक्ष्मी देवी लक्ष्मी के आठ प्रमुख स्वरूपों का एक समूह है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समृद्ध करने के लिए प्रकट होती हैं। ये सभी रूप मिलकर जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि लाते हैं। आइए इन सभी स्वरूपों का विस्तृत विवरण जानें:
1. आद्य लक्ष्मी (आदि लक्ष्मी)
आद्य लक्ष्मी का महत्व
आद्य लक्ष्मी, जिन्हें आदि लक्ष्मी भी कहा जाता है, देवी लक्ष्मी का सबसे प्रारंभिक रूप है। यह स्वरूप शाश्वत सुख, शांति और मोक्ष प्रदान करता है। आद्य लक्ष्मी के आशीर्वाद से व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन मिलता है, जो आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
उपासना विधि
आद्य लक्ष्मी की उपासना में श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए और सफेद पुष्पों से पूजा करनी चाहिए। श्रीसूक्त का पाठ और आद्य लक्ष्मी स्तोत्र का जाप करना लाभकारी होता है।
2. धान्यलक्ष्मी
धान्यलक्ष्मी का महत्व
धान्यलक्ष्मी देवी का वह रूप है जो अन्न, धन और पोषण का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से किसानों और गृहस्थों के लिए पूजनीय है, क्योंकि यह कृषि और खाद्य भंडार में समृद्धि लाता है।
उपासना विधि
धान्यलक्ष्मी की पूजा में लाल वस्त्र धारण करना चाहिए और अन्न (चावल, गेहूं) और हरे पत्तों की माला अर्पित करनी चाहिए। अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से घर में अन्न-धन की वृद्धि होती है।
3. धैर्यलक्ष्मी
धैर्यलक्ष्मी का महत्व
धैर्यलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह रूप है जो धैर्य, साहस और मानसिक शक्ति का प्रतीक है। जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने के लिए धैर्यलक्ष्मी का आशीर्वाद आवश्यक होता है।
उपासना विधि
धैर्यलक्ष्मी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करें और पीले पुष्पों से पूजा करें। श्री लक्ष्मी धैर्य स्तोत्र का पाठ विशेष लाभकारी होता है।
4. गजलक्ष्मी
गजलक्ष्मी का महत्व
गजलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जिसमें वे दो गजों (हाथियों) के साथ दिखाई देती हैं। यह स्वरूप शक्ति, ऐश्वर्य, और समृद्धि का प्रतीक है।
उपासना विधि
गजलक्ष्मी की पूजा में सफेद वस्त्र धारण करें और सफेद पुष्प, विशेषकर चमेली, अर्पित करें। गजलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें और चावल, दूध और घी का नैवेद्य अर्पित करें।
5. संतानलक्ष्मी
संतानलक्ष्मी का महत्व
संतानलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो संतान सुख और परिवार की समृद्धि का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से उन लोगों के लिए पूजनीय है जो संतान की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।
उपासना विधि
संतानलक्ष्मी की पूजा में हरे वस्त्र धारण करें और हरे पत्तों की माला अर्पित करें। संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें और दूध, दही, और घी का नैवेद्य अर्पित करें।
6. विजयलक्ष्मी
विजयलक्ष्मी का महत्व
विजयलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो विजय, सफलता, और आत्म-विश्वास का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से उन लोगों के लिए पूजनीय है जो अपने कार्यक्षेत्र में सफलता की कामना करते हैं।
उपासना विधि
विजयलक्ष्मी की पूजा में लाल वस्त्र धारण करें और लाल पुष्प, विशेषकर गुलाब, अर्पित करें। श्री विजयलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें और मिश्री और लाल फल का नैवेद्य अर्पित करें।
7. विद्यालक्ष्मी
विद्यालक्ष्मी का महत्व
विद्यालक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो ज्ञान, शिक्षा और विद्या का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से छात्रों, विद्वानों और शिक्षकों के लिए पूजनीय है।
उपासना विधि
विद्यालक्ष्मी की पूजा में सफेद या पीले वस्त्र धारण करें और पीले पुष्प, विशेषकर सूर्यमुखी, अर्पित करें। श्री सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें और शहद तथा घी का नैवेद्य अर्पित करें।
8. धनलक्ष्मी
धनलक्ष्मी का महत्व
धनलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का वह स्वरूप है जो धन, संपत्ति, और वैभव का प्रतीक है। यह स्वरूप विशेष रूप से व्यापारियों और गृहस्थों के लिए पूजनीय है।
उपासना विधि
धनलक्ष्मी की पूजा में लाल या पीले वस्त्र धारण करें और कमल के पुष्प अर्पित करें। श्रीसूक्त और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। खीर और मिष्ठान का नैवेद्य अर्पित करें।
फलशृति
अष्टलक्ष्मी की उपासना का फल
अष्टलक्ष्मी की उपासना से मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में सुख-समृद्धि और उन्नति प्राप्त होती है। ये सभी रूप मिलकर जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥
इस प्रकार, अष्टलक्ष्मी की उपासना से व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, समृद्धि और संतुष्टि प्राप्त करता है। वे व्यक्ति को सभी प्रकार की बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्ति प्रदान करती हैं और उसे धन, संतान, शिक्षा, धैर्य, और विजय का वरदान देती हैं।