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भजन: स्वर्ण स्वर भारत – Bhajan: Swarn Swar Bharat

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है नया ओज है नया तेज,
आरंभ हुआ नव चिंतन
विराट भारत विशाल भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदनहर-हर में घर-घर में स्वर्ण स्वर भारत
हर-हर में घर-घर में स्वर्ण स्वर भारत

सतयुग त्रेता द्वापर के बाद,
प्रारंभ हुआ परिवर्तन
सतयुग त्रेता द्वापर के बाद,
प्रारंभ हुआ परिवर्तन
दिव्य अलौकिक अखंड भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन
दिव्य अलौकिक अखंड भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन

कण-कण में मन-मन में स्वर्ण स्वर भारत
कण-कण में मन-मन में स्वर्ण स्वर भारत

अंतरनाद बजा
जल थल नभ गूंज उठा
देवलोक में उत्सव से
ब्रम्हांड झूम उठा

कोश-कोश तृण-तृण हर जीवन
हो रहा नादब्रह्म से पावन

कोश-कोश तृण-तृण हर जीवन
हो रहा नादब्रह्म से पावन

दिव्य अलौकिक अखंड भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन
BhaktiBharat Lyrics

हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत

चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत

हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत

भजन: स्वर्ण स्वर भारत (गहन विश्लेषण)

है नया ओज है नया तेज, आरंभ हुआ नव चिंतन

यह पंक्ति उस ऊर्जा और चेतना की बात करती है जो भारतीय समाज में नवजागरण की लहर लेकर आई है।

  • है नया ओज: ओज का अर्थ केवल बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मबल और आत्मविश्वास है। यह बताता है कि एक नया जोश और नई प्रेरणा का संचार हो रहा है। यह शक्ति व्यक्तिगत स्तर से लेकर सामूहिक स्तर तक हर जगह महसूस की जा रही है।
  • है नया तेज: तेज का अर्थ है प्रकाश और प्रभाव। यह एक ऐसा प्रकाश है जो केवल बाहरी दृष्टि को प्रकाशित नहीं करता, बल्कि अंदरूनी अंधकार को भी समाप्त करता है। यह नवप्रेरणा के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का प्रतीक है।
  • आरंभ हुआ नव चिंतन: नव चिंतन का अर्थ केवल विचारधारा में बदलाव नहीं है, बल्कि यह उन मूलभूत सिद्धांतों पर भी पुनः विचार है जो प्राचीन समय से आज तक समाज को गढ़ते रहे हैं। यह चिंतन केवल दर्शन तक सीमित नहीं, बल्कि व्यावहारिक स्तर पर बदलाव की दिशा में प्रेरित करता है।
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विराट भारत विशाल भारत, कर रहा नवयुग का अभिनंदन

इस पंक्ति में भारत के विशाल और विराट स्वरूप का वर्णन है।

  • विराट भारत विशाल भारत: “विराट” और “विशाल” का तात्पर्य केवल भौगोलिक या जनसंख्या के स्तर पर नहीं है। यह भारत के सांस्कृतिक, दार्शनिक, और ऐतिहासिक विरासत की महत्ता को भी दर्शाता है। भारत का विराट रूप उसकी विविधता में एकता, सहिष्णुता, और आध्यात्मिक गहराई में झलकता है।
  • कर रहा नवयुग का अभिनंदन: भारत अपनी पुरानी परंपराओं को सहेजते हुए नवाचार और प्रगति को आत्मसात कर रहा है। यह पंक्ति भारत के भविष्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को व्यक्त करती है, जो संतुलन बनाए रखते हुए नए युग का स्वागत करता है।

हर-हर में घर-घर में स्वर्ण स्वर भारत

यह भारत की उपस्थिति को हर व्यक्ति, हर घर, और हर कोने में दर्शाती है।

  • हर-हर में: “हर-हर” का दार्शनिक अर्थ यह है कि ईश्वर और उनकी दिव्यता हर जगह विद्यमान है। यह भारत के आध्यात्मिक दर्शन का सार है, जो कहता है कि हर व्यक्ति, हर स्थान में ईश्वर का निवास है।
  • घर-घर में: यह पंक्ति केवल भौतिक घरों की बात नहीं करती, बल्कि हर हृदय और हर जीवन के केंद्र में भारतीयता की जड़ें गहरी हैं। यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं।
  • स्वर्ण स्वर भारत: “स्वर्ण स्वर” का अर्थ है एक ऐसा भारत जो अपनी आवाज़ और पहचान से दुनिया को प्रेरित करता है। यह भारत के उस स्वर्णिम युग की ओर संकेत करता है जब यह ज्ञान, विज्ञान, और संस्कृति में अग्रणी था।

सतयुग त्रेता द्वापर के बाद, प्रारंभ हुआ परिवर्तन

यह पंक्ति युगों के प्रवाह और उनके प्रभाव को गहराई से समझने का संकेत देती है।

  • सतयुग त्रेता द्वापर के बाद: यहाँ सतयुग, त्रेता, और द्वापर का उल्लेख केवल पौराणिक कथा के रूप में नहीं, बल्कि उनके प्रतीकात्मक महत्व के रूप में है।
  • सतयुग: धर्म और सत्य का युग, जहाँ मानवीय मूल्यों की प्रधानता थी।
  • त्रेता: कर्तव्य और आदर्श का युग, जहाँ रामायण और मर्यादाओं की शिक्षाएँ केंद्र में थीं।
  • द्वापर: कर्म और धर्म के बीच संघर्ष का युग, जहाँ महाभारत की शिक्षा ने मानवता को दिशा दी।
  • प्रारंभ हुआ परिवर्तन: यह दर्शाता है कि इन युगों के बाद मानवता एक ऐसे दौर में आई जहाँ आत्ममंथन और बदलाव की आवश्यकता थी। यह परिवर्तन केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक जागृति का परिणाम है।

दिव्य अलौकिक अखंड भारत, कर रहा नवयुग का अभिनंदन

यह पंक्ति भारत के उस स्वरूप को उजागर करती है, जो समय और सीमाओं से परे है।

  • दिव्य अलौकिक अखंड भारत: भारत की अखंडता केवल उसकी भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं, बल्कि यह उसकी सांस्कृतिक, दार्शनिक, और आध्यात्मिक समग्रता को भी शामिल करती है।
  • कर रहा नवयुग का अभिनंदन: नवयुग का स्वागत केवल वर्तमान युग की घटनाओं का स्वीकार नहीं है। यह नवयुग की संभावनाओं, इसके साथ आने वाले परिवर्तनों, और इन्हें सकारात्मक दृष्टिकोण से अपनाने की प्रेरणा है।
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कण-कण में मन-मन में स्वर्ण स्वर भारत

यह पंक्ति भारत की गहराई और हर जगह उसकी उपस्थिति को उजागर करती है।

  • कण-कण में: भारत की संस्कृति, परंपरा, और आध्यात्मिकता केवल बड़े आयामों तक सीमित नहीं है। यह हर छोटे कण में मौजूद है। इसका अर्थ यह है कि भारत की विरासत इतनी व्यापक है कि इसे हर स्तर पर अनुभव किया जा सकता है।
  • मन-मन में: हर व्यक्ति के हृदय और आत्मा में भारत की छवि बसी हुई है। यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गहराई को दर्शाता है।
  • स्वर्ण स्वर भारत: भारत की वह पहचान, जो विश्व को प्रेरित करती है और एक नई दिशा में ले जाती है।

अंतरनाद बजा, जल थल नभ गूंज उठा

यह भारत की उस आंतरिक शक्ति और चेतना की बात करता है, जो सम्पूर्ण सृष्टि को प्रभावित करती है।

  • अंतरनाद बजा: यह पंक्ति आत्मा के आंतरिक स्वर को व्यक्त करती है। यह एक दिव्य संगीत है जो केवल सुना नहीं जा सकता, बल्कि अनुभव किया जा सकता है।
  • जल थल नभ गूंज उठा: भारत की चेतना केवल भूमि तक सीमित नहीं है। यह जल, थल, और नभ – सृष्टि के हर स्तर में व्याप्त है। यह सार्वभौमिकता और सर्वव्यापकता का प्रतीक है।

देवलोक में उत्सव से, ब्रह्मांड झूम उठा

यह भारत के प्रभाव को स्वर्ग और ब्रह्मांड तक पहुँचाने का संकेत देता है।

  • देवलोक में उत्सव: यह भारत के महान कार्यों और उपलब्धियों का प्रभाव है, जो देवताओं के लोक में भी उत्सव का कारण बनता है।
  • ब्रह्मांड झूम उठा: यह भारत की महानता को पूरे ब्रह्मांड तक विस्तारित करता है। यह पंक्ति केवल एक कल्पना नहीं, बल्कि यह भारत की सार्वभौमिक मान्यता और उसके प्रभाव को दर्शाती है।

कोश-कोश तृण-तृण हर जीवन, हो रहा नादब्रह्म से पावन

यह पंक्ति हर कोशिका, हर कण, और हर जीव में नादब्रह्म (दिव्य ध्वनि) की पवित्रता को व्यक्त करती है।

  • कोश-कोश तृण-तृण: “कोश” का अर्थ है शरीर की हर कोशिका। “तृण” का अर्थ है घास का हर तिनका। यह बताता है कि सृष्टि के हर कण में एक पवित्र ऊर्जा और चेतना है।
  • हर जीवन हो रहा नादब्रह्म से पावन: नादब्रह्म, जो सृष्टि की मूल ध्वनि है, हर जीव और हर जीवन को पवित्र बना रहा है। यह भारतीय संस्कृति के उस विश्वास को प्रकट करता है कि ध्वनि, विशेष रूप से ओंकार, सृष्टि का आधार है।

दिव्य अलौकिक अखंड भारत, कर रहा नवयुग का अभिनंदन

यह पंक्ति भारत की निरंतरता और उसके आध्यात्मिक प्रभाव का गहराई से वर्णन करती है।

  • दिव्य और अलौकिक: यह बताता है कि भारत की पहचान केवल भौतिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दिव्यता और अलौकिकता में निहित है।
  • अखंड भारत: “अखंड” का मतलब है न टूटने वाला। यह केवल भारत के भौगोलिक एकता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अखंडता की भी बात करता है।
  • नवयुग का अभिनंदन: भारत नए युग का स्वागत करता है, यह स्वीकार करते हुए कि आधुनिकता और परंपरा साथ-साथ चल सकते हैं।
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हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत

यह पंक्ति व्यक्तिगत और सामूहिक जागृति को रेखांकित करती है।

  • हृदय-हृदय: हर हृदय में भारत की चेतना की उपस्थिति है। यह केवल भौतिक प्रेम नहीं, बल्कि एक गहरी आत्मीयता और जुड़ाव को दर्शाता है।
  • उदय-उदय: उदय का अर्थ है उन्नति और प्रकाश। यह पंक्ति भारत के हर क्षेत्र में हो रहे सकारात्मक बदलाव और विकास को इंगित करती है।
  • स्वर्ण स्वर भारत: यह उस भारत की परिकल्पना है जो अपनी संस्कृति, मूल्यों, और आध्यात्मिकता के कारण एक स्वर्णिम युग की ओर बढ़ रहा है।

चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत

यह पंक्ति भारत के दार्शनिक और बौद्धिक योगदान की ओर संकेत करती है।

  • चिंतन में मंथन में: भारत की परंपरा में चिंतन और मंथन का गहरा महत्व है। चिंतन का मतलब है गहरी सोच, और मंथन का मतलब है उस सोच को परखना और सही निष्कर्ष निकालना। यह प्रक्रिया वेदों और उपनिषदों से लेकर आधुनिक विज्ञान तक हर क्षेत्र में देखने को मिलती है।
  • स्वर्ण स्वर भारत: यह दर्शाता है कि यह गहन चिंतन और मंथन भारत को एक स्वर्णिम युग की ओर ले जा रहा है।

हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत

यह पंक्ति भारत की कालजयीता और उसकी प्रासंगिकता को दर्शाती है।

  • हरयुग में: भारत केवल एक विशेष युग में प्रासंगिक नहीं था। यह सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग – हर युग में अपनी अद्वितीयता बनाए रखता है।
  • नवयुग में: यह पंक्ति यह दिखाती है कि आधुनिक युग में भी भारत अपने सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक मूल्यों के कारण प्रासंगिक है।
  • स्वर्ण स्वर भारत: यह भविष्य के लिए एक संदेश है कि भारत न केवल अपनी विरासत के कारण, बल्कि अपनी नई सोच और नवाचार के कारण भी दुनिया में प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

समापन: “स्वर्ण स्वर भारत” का संदेश

भजन “स्वर्ण स्वर भारत” केवल एक गीत नहीं है; यह भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, और ऐतिहासिक विरासत का महाकाव्य है।

  • प्राचीन गौरव और आधुनिक प्रासंगिकता: यह भजन हमें याद दिलाता है कि भारत का अतीत गौरवशाली था, वर्तमान समृद्ध है, और भविष्य उज्ज्वल रहेगा।
  • विविधता में एकता: भजन के हर शब्द में भारत की विविधता और उसमें छिपी एकता की गहरी समझ है।
  • नवयुग की प्रेरणा: यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने देश की प्रगति में योगदान दें, अपनी परंपराओं को सहेजें, और आधुनिकता को खुले दिल से अपनाएँ।

“स्वर्ण स्वर भारत” एक ऐसा मंत्र है जो हर भारतीय को गर्व और जिम्मेदारी का अनुभव कराता है। यह भजन हमें अपने देश की महानता का स्मरण कराता है और उसे भविष्य की ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रेरित करता है।

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