भोजन मन्त्र: ॐ सह नाववतु in Hindi/Sanskrit
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
Bhojan Mantra Om Sah Naavavatu in English
Brahmārpaṇam Brahmahavirbrahmāgnau Brahmaṇā Hutam।
Brahmaiva Tena Gantavyaṁ Brahmakarma Samādhinā॥
Om Saha Nāavavatu।
Saha Nau Bhunaktu।
Saha Vīryaṁ Karavāvahai।
Tejasvināvadhītamastu।
Mā Vidviṣāvahai॥
Om Shāntiḥ Shāntiḥ Shāntiḥ॥
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भोजन मन्त्र: ॐ सह नाववतु का अर्थ
1. ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
अनुवाद और व्याख्या:
यह श्लोक भगवद्गीता के अध्याय 4, श्लोक 24 से लिया गया है। इस श्लोक में बताया गया है कि योगी व्यक्ति सभी कार्यों को ईश्वर (ब्रह्म) को अर्पित करता है। यहाँ पर यज्ञ के प्रतीक के माध्यम से यह समझाया गया है:
- ब्रह्मार्पणं: यहाँ ‘अर्पण’ का अर्थ है अर्पित करना। ‘ब्रह्मार्पणं’ का अर्थ है कि जो सामग्री यज्ञ में अर्पित की जाती है वह भी ब्रह्म (ईश्वर) है।
- ब्रह्महविः: यज्ञ में जो हवन सामग्री अर्पित की जाती है वह भी ब्रह्म (ईश्वर) है।
- ब्रह्माग्नौ: यज्ञ में जो अग्नि है वह भी ब्रह्म (ईश्वर) है।
- ब्रह्मणा हुतम्: यज्ञकर्ता भी ब्रह्म (ईश्वर) है, जो हवन कर रहा है।
- ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं: इस प्रकार से यज्ञ करने वाले को अंत में ब्रह्म (ईश्वर) की प्राप्ति होती है।
- ब्रह्मकर्म समाधिना: जो व्यक्ति इस भावना से कार्य करता है, वह ब्रह्म में एकाकार हो जाता है।
सारांश:
इस श्लोक का सार यह है कि जिस व्यक्ति की चेतना में ब्रह्म है, उसके लिए सभी कार्य ब्रह्म में समर्पित होते हैं। वह व्यक्ति सभी कर्मों को भगवान के प्रति समर्पित मानकर करता है, और अंत में वह भी ब्रह्म (ईश्वर) में एकाकार हो जाता है।
2. ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
अनुवाद और व्याख्या:
यह शांति मंत्र है जो उपनिषदों से लिया गया है। इसे शिक्षक और शिष्य के बीच की एकता और सामंजस्य को बनाए रखने के लिए प्रार्थना के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र का अर्थ है:
- ॐ सह नाववतु: ओम, हम दोनों की (शिक्षक और शिष्य) रक्षा करें।
- सह नौ भुनक्तु: हम दोनों को (शिक्षक और शिष्य को) एक साथ पोषण दें।
- सह वीर्यं करवावहै: हम दोनों मिलकर एक साथ प्रयास करें और हमारे प्रयासों में शक्ति प्राप्त करें।
- तेजस्विनावधीतमस्तु: हमारा अध्ययन तेजस्वी हो और हमें ज्ञान की चमक मिले।
- मा विद्विषावहै: हम दोनों के बीच किसी प्रकार का द्वेष या मतभेद न हो।
- ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ओम, तीन प्रकार की शांति की कामना करते हैं – आध्यात्मिक शांति, मानसिक शांति, और शारीरिक शांति।
सारांश:
यह शांति मंत्र शिक्षक और शिष्य के बीच की एकता, सहयोग, और सद्भावना की प्रार्थना है। इसमें शांति और ज्ञान के साथ अध्ययन करने की कामना की गई है, जिसमें किसी भी प्रकार के द्वेष या मतभेद का स्थान नहीं हो। अंतिम शांति मंत्र तीन बार “शांति” बोलकर सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति की कामना करता है।