श्री ब्रह्मा चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा ॥
जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू,चतुरानन सुखमूल।
करहु कृपा निज दास पै,रहहु सदा अनुकूल॥
तुम सृजक ब्रह्माण्ड के,अज विधि घाता नाम।
विश्वविधाता कीजिये,जन पै कृपा ललाम॥
॥ चौपाई ॥
जय जय कमलासान जगमूला।रहहु सदा जनपै अनुकूला॥
रुप चतुर्भुज परम सुहावन।तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन॥
रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा।मस्तक जटाजुट गंभीरा॥
ताके ऊपर मुकुट बिराजै।दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै॥
श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर।है यज्ञोपवीत अति मनहर॥
कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं।गल मोतिन की माला राजहिं॥
चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये।दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये॥
ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा।अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा॥
अर्द्धांगिनि तव है सावित्री।अपर नाम हिये गायत्री॥
सरस्वती तब सुता मनोहर।वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर॥
कमलासन पर रहे बिराजे।तुम हरिभक्ति साज सब साजे॥
क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा।नाभि कमल भो प्रगट अनूपा॥
तेहि पर तुम आसीन कृपाला।सदा करहु सन्तन प्रतिपाला॥
एक बार की कथा प्रचारी।तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी॥
कमलासन लखि कीन्ह बिचारा।और न कोउ अहै संसारा॥
तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा।अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा॥
कोटिक वर्ष गये यहि भांती।भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती॥
पै तुम ताकर अन्त न पाये।ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये॥
पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा।महापघ यह अति प्राचीन॥
याको जन्म भयो को कारन।तबहीं मोहि करयो यह धारन॥
अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं।सब कुछ अहै निहित मो माहीं॥
यह निश्चय करि गरब बढ़ायो।निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये॥
गगन गिरा तब भई गंभीरा।ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा॥
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई।ब्रह्म अनादि अलख है सोई॥
निज इच्छा इन सब निरमाये।ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये॥
सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा।सब जग इनकी करिहै सेवा॥
महापघ जो तुम्हरो आसन।ता पै अहै विष्णु को शासन॥
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई।तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई॥
भ्ौटहु जाई विष्णु हितमानी।यह कहि बन्द भई नभवानी॥
ताहि श्रवण कहि अचरज माना।पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना॥
कमल नाल धरि नीचे आवा।तहां विष्णु के दर्शन पावा॥
शयन करत देखे सुरभूपा।श्यायमवर्ण तनु परम अनूपा॥
सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर।क्रीटमुकट राजत मस्तक पर॥
गल बैजन्ती माल बिराजै।कोटि सूर्य की शोभा लाजै॥
शंख चक्र अरु गदा मनोहर।शेष नाग शय्या अति मनहर॥
दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू।हर्षित भे श्रीपति सुख धामू॥
बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन।तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन॥
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना।ब्रह्मारुप हम दोउ समाना॥
तीजे श्री शिवशंकर आहीं।ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही॥
तुम सों होई सृष्टि विस्तारा।हम पालन करिहैं संसारा॥
शिव संहार करहिं सब केरा।हम तीनहुं कहँ काज धनेरा॥
अगुणरुप श्री ब्रह्मा बखानहु।निराकार तिनकहँ तुम जानहु॥
हम साकार रुप त्रयदेवा।करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा॥
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये।परब्रह्म के यश अति गाये॥
सो सब विदित वेद के नामा।मुक्ति रुप सो परम ललामा॥
यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा।पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा॥
नाम पितामह सुन्दर पायेउ।जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ॥
लीन्ह अनेक बार अवतारा।सुन्दर सुयश जगत विस्तारा॥
देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं।मनवांछित तुम सन सब पावहिं॥
जो कोउ ध्यान धरै नर नारी।ताकी आस पुजावहु सारी॥
पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई।तहँ तुम बसहु सदा सुरराई॥
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन।ता कर दूर होई सब दूषण॥
Shri Brahma Chalisa in English
Doha
Jai Brahma, Jai Swayambhu, Chaturanan Sukhmool.
Karahu Kripa Nij Daas Pai, Rahahu Sada Anukool.
Tum Srijak Brahmand Ke, Aj Vidhi Ghaata Naam.
Vishwavidhaata Kijiye, Jan Pai Kripa Lalaam.
Chaupai
Jai Jai Kamlasan Jagmoola. Rahahu Sada Janpai Anukoola.
Roop Chaturbhuj Param Suhaavan. Tumhen Ahain Chaturdik Aanan.
Raktvarn Tav Subhag Shareera. Mastak Jataajoot Gambheera.
Take Upar Mukut Birajai. Daadhi Shwet Mahachhavi Chhaajai.
Shwetvastra Dhaare Tum Sundar. Hai Yagyopaveet Ati Manahar.
Kanan Kundal Subhag Birajahin. Gal Motin Ki Mala Raajahin.
Charihu Ved Tumheen Pragataaye. Divya Gyaan Tribhuvanahin Sikhaaye.
Brahmalok Shubh Dhaam Tumhaara. Akhil Bhuvan Mahin Yash Bistaara.
Ardhangini Tav Hai Savitri. Apar Naam Hiye Gayatri.
Saraswati Tab Suta Manohar. Veena Vadini Sab Vidhi Sundar.
Kamlasan Par Rahe Biraje. Tum Haribhakti Saaj Sab Saaje.
Ksheer Sindhu Sovat Surabhoopa. Naabhi Kamal Bho Pragat Anoopa.
Tehi Par Tum Aaseen Kripaala. Sada Karahu Santan Pratipaala.
Ek Baar Ki Katha Prachaari. Tum Kahan Moh Bhayeu Man Bhaari.
Kamlasan Lakhi Keen Bichaara. Aur Na Kou Ahai Sansaara.
Tab Tum Kamalanaal Gahi Leenha. Ant Bilokan Kar Pran Keenha.
Kotik Varsh Gaye Yahi Bhaanti. Bhramat Bhramat Beete Din Raati.
Pai Tum Takar Ant Na Paaye. Hvai Nirash Atishay Dukhiyaye.
Puni Bichar Man Mahin Yah Keenha. Mahapagh Yah Ati Praachin.
Yaako Janm Bhayo Ko Kaaran. Tabahin Mohi Karayo Yah Dhaarana.
Akhil Bhuvan Mahin Kahan Koi Naahin. Sab Kuchh Ahai Nihit Mo Maahin.
Yah Nishchay Kari Garab Badhayo. Nij Kahan Brahma Mani Sukh Paayo.
Gagan Gira Tab Bhai Gambheera. Brahma Vachan Sunahu Dhari Dheera.
Sakal Srishti Kar Swami Joi. Brahma Anaadi Alakh Hai Soi.
Nij Ichchha In Sab Nirmaaye. Brahma Vishnu Mahesh Banaaye.
Srishti Lagi Pragate Trayadeva. Sab Jag Inki Karihai Seva.
Mahapagh Jo Tumharo Aasan. Ta Pai Ahai Vishnu Ko Shaasan.
Vishnu Naabhiten Pragatyo Aai. Tum Kahan Satya Deenh Samujhaai.
Bhauthu Jaaee Vishnu Hitmaani. Yah Kahi Band Bhai Nabhaavaani.
Taahi Shravan Kahi Acharaj Maana. Puni Chaturanan Keen Payana.
Kamalanal Dhari Neeche Aava. Tahan Vishnu Ke Darshan Paava.
Shayan Karat Dekhe Surabhoopa. Shyaayamvarn Tanu Param Anoopa.
Sohat Chaturbhuja Ati Sundar. Kreetmukut Rajat Mastak Par.
Gal Baijanti Maal Birajai. Koti Surya Ki Shobha Laajai.
Shankh Chakra Aru Gada Manohar. Shesh Naag Shayya Ati Manohar.
Divyarup Lakhi Keen Pranaamu. Harshit Bhe Shripati Sukh Dhaamu.
Bahu Vidhi Vinay Keen Chaturanan. Tab Lakshmi Pati Kaha Mudit Man.
Brahma Duri Karahu Abhimaana. Brahmarup Hum Dou Samaana.
Teeje Shri Shivshankar Aahin. Brahmarup Sab Tribhuvan Maahin.
Tum Son Hoi Srishti Vistara. Hum Palan Karihain Sansaara.
Shiv Sanhaar Karahin Sab Kera. Hum Teenhuan Kahan Kaaj Dhaneera.
Agunaroop Shri Brahma Bakhaanahu. Niraakar Tinkahan Tum Jaanahu.
Hum Saakaar Roop Trayadeva. Karihain Sada Brahma Ki Seva.
Yah Suni Brahma Param Sihaye. Parabrahma Ke Yash Ati Gaaye.
So Sab Vidit Ved Ke Naama. Mukti Roop So Param Lalaama.
Yahi Vidhi Prabhu Bho Janam Tumhaara. Puni Tum Pragata Keen Sansaara.
Naam Pitaamah Sundar Paayeu. Jad Chetan Sab Kahan Niramaayeu.
Leenh Anek Baar Avataara. Sundar Suyash Jagat Vistara.
Devdanuj Sab Tum Kahan Dhyaavahin. Manvaanchhit Tum San Sab Paavahin.
Jo Kou Dhyan Dharai Nar Naari. Taaki Aas Pujavahu Saari.
Pushkar Teerth Param Sukhadaai. Tahan Tum Basahu Sada Suraraai.
Kund Nahaai Karahi Jo Poojan. Ta Kar Door Hoee Sab Dooshan.
श्री ब्रह्मा चालीसा PDF Download
श्री ब्रह्मा चालीसा का अर्थ
ब्रह्मा स्तुति का अर्थ और महत्व
दोहा
जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल। करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल॥
अर्थ:
- जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू: हे ब्रह्मा जी! आपकी जय हो। आप स्वयं उत्पन्न हुए हैं, किसी के द्वारा रचित नहीं।
- चतुरानन सुखमूल: आप चतुर्मुखी हैं (चार मुख वाले) और समस्त सुखों के मूल हैं।
- करहु कृपा निज दास पै: अपने भक्तों पर कृपा कीजिए।
- रहहु सदा अनुकूल: सदा अपने भक्तों के प्रति अनुकूल रहिए।
चौपाई
1. ब्रह्मा जी के स्वरूप का वर्णन
जय जय कमलासान जगमूला। रहहु सदा जनपै अनुकूला॥ रुप चतुर्भुज परम सुहावन। तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन॥
- जय जय कमलासान जगमूला: ब्रह्मा जी कमल के आसन पर विराजमान हैं और समस्त संसार के मूल कारण हैं।
- रहहु सदा जनपै अनुकूला: सदा अपने भक्तों पर कृपालु बने रहें।
- रुप चतुर्भुज परम सुहावन: उनका चार भुजाओं वाला रूप अत्यंत मनोहारी है।
- तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन: उनके चार मुख चारों दिशाओं की ओर हैं।
2. वस्त्र और आभूषण का वर्णन
रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा। मस्तक जटाजुट गंभीरा॥ ताके ऊपर मुकुट बिराजै। दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै॥
- रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा: ब्रह्मा जी का शरीर लाल रंग का है, जो अत्यंत आकर्षक है।
- मस्तक जटाजुट गंभीरा: उनके सिर पर जटाओं का गूढ़ और गंभीर स्वरूप है।
- ताके ऊपर मुकुट बिराजै: उनके सिर पर एक दिव्य मुकुट शोभायमान है।
- दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै: उनकी सफेद दाढ़ी अत्यधिक गरिमामय और प्रभावशाली है।
श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर। है यज्ञोपवीत अति मनहर॥ कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं। गल मोतिन की माला राजहिं॥
- श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर: उन्होंने सुंदर सफेद वस्त्र धारण किए हैं।
- है यज्ञोपवीत अति मनहर: उनका यज्ञोपवीत (पवित्र धागा) अत्यंत मनोहारी है।
- कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं: उनके कानों में दिव्य कुंडल (झुमके) शोभायमान हैं।
- गल मोतिन की माला राजहिं: उनके गले में मोतियों की माला सुशोभित है।
3. चार वेदों की उत्पत्ति
चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये। दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये॥ ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा। अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा॥
- चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये: ब्रह्मा जी ने ही चारों वेदों की रचना की।
- दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये: उन्होंने तीनों लोकों को दिव्य ज्ञान सिखाया।
- ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा: उनका निवास स्थान ब्रह्मलोक अत्यंत पवित्र है।
- अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा: उनके यश का विस्तार समस्त ब्रह्मांड में है।
4. ब्रह्मा जी की पत्नी और पुत्री
अर्द्धांगिनि तव है सावित्री। अपर नाम हिये गायत्री॥ सरस्वती तब सुता मनोहर। वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर॥
- अर्द्धांगिनि तव है सावित्री: ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री (गायत्री) हैं।
- अपर नाम हिये गायत्री: उन्हें गायत्री भी कहा जाता है।
- सरस्वती तब सुता मनोहर: उनकी पुत्री सरस्वती अत्यंत सुंदर हैं।
- वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर: सरस्वती जी वीणा वादन करती हैं और समस्त कलाओं की अधिष्ठात्री देवी हैं।
5. सृष्टि का निर्माण
कमलासन पर रहे बिराजे। तुम हरिभक्ति साज सब साजे॥ क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा। नाभि कमल भो प्रगट अनूपा॥
- कमलासन पर रहे बिराजे: ब्रह्मा जी कमल के आसन पर सदा विराजमान रहते हैं।
- तुम हरिभक्ति साज सब साजे: वे हरि की भक्ति में संलग्न रहते हैं।
- क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा: क्षीरसागर में सोए हुए विष्णु जी की नाभि से कमल का प्रादुर्भाव हुआ।
- नाभि कमल भो प्रगट अनूपा: उसी कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए।
6. ब्रह्मा जी का भ्रम और शिक्षा
तेहि पर तुम आसीन कृपाला। सदा करहु सन्तन प्रतिपाला॥ एक बार की कथा प्रचारी। तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी॥
- तेहि पर तुम आसीन कृपाला: उस कमल पर ब्रह्मा जी विराजमान हुए और सृष्टि का संचालन किया।
- सदा करहु सन्तन प्रतिपाला: वे सदा संतों की रक्षा करते हैं।
- तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी: एक बार उन्हें मोह ने घेर लिया, और उनका मन भ्रमित हो गया।
7. ब्रह्मा जी का भ्रम और ज्ञान की प्राप्ति
कमलासन लखि कीन्ह बिचारा। और न कोउ अहै संसारा॥ तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा। अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा॥
- कमलासन लखि कीन्ह बिचारा: ब्रह्मा जी ने कमल के आसन को देखकर विचार किया कि संसार में और कोई नहीं है।
- और न कोउ अहै संसारा: उन्हें लगा कि वे ही सृष्टि के एकमात्र निर्माता और संचालक हैं।
- तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा: उन्होंने कमल के डंठल को पकड़ लिया।
- अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा: कमल के डंठल के अंतिम छोर को देखने का प्रण किया।
कोटिक वर्ष गये यहि भांती। भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती॥ पै तुम ताकर अन्त न पाये। ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये॥
- कोटिक वर्ष गये यहि भांती: लाखों वर्षों तक ब्रह्मा जी डंठल के अंतिम छोर की खोज में भ्रमण करते रहे।
- भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती: भटकते-भटकते उनका समय बीत गया।
- पै तुम ताकर अन्त न पाये: लेकिन उन्हें डंठल का अंत नहीं मिला।
- ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये: वे निराश हो गए और अत्यंत दुखी हो गए।
8. स्वयं का अहंकार और उसकी समाप्ति
पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा। महापघ यह अति प्राचीन॥ याको जन्म भयो को कारन। तबहीं मोहि करयो यह धारन॥
- पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा: ब्रह्मा जी ने मन में यह विचार किया।
- महापघ यह अति प्राचीन: यह कमल अत्यंत प्राचीन और दिव्य प्रतीत होता है।
- याको जन्म भयो को कारन: इस कमल का जन्म किस कारण से हुआ है?
- तबहीं मोहि करयो यह धारन: मुझे इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं। सब कुछ अहै निहित मो माहीं॥ यह निश्चय करि गरब बढ़ायो। निज कहँ ब्रह्म मानि सुख पायो॥
- अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं: ब्रह्मा जी को लगा कि संपूर्ण ब्रह्मांड में उनके अलावा कोई और नहीं है।
- सब कुछ अहै निहित मो माहीं: उन्हें लगा कि सारी सृष्टि उनके भीतर ही निहित है।
- यह निश्चय करि गरब बढ़ायो: उन्होंने इस विचार से अपना अहंकार बढ़ा लिया।
- निज कहँ ब्रह्म मानि सुख पायो: स्वयं को ब्रह्म मानकर सुख का अनुभव किया।
9. परम शक्ति का प्रकट होना
गगन गिरा तब भई गंभीरा। ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा॥ सकल सृष्टि कर स्वामी जोई। ब्रह्म अनादि अलख है सोई॥
- गगन गिरा तब भई गंभीरा: आकाशवाणी हुई, जो अत्यंत गंभीर थी।
- ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा: आकाशवाणी ने ब्रह्मा जी को संबोधित करते हुए कहा।
- सकल सृष्टि कर स्वामी जोई: जो इस समस्त सृष्टि का स्वामी है।
- ब्रह्म अनादि अलख है सोई: वह ब्रह्म अनादि और अदृश्य है।
निज इच्छा इन सब निरमाये। ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये॥ सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा। सब जग इनकी करिहै सेवा॥
- निज इच्छा इन सब निरमाये: उस परम शक्ति ने अपनी इच्छा से यह सब सृष्टि बनाई।
- ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये: और सृष्टि के संचालन के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रकट किया।
- सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा: सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार के लिए त्रिदेव प्रकट हुए।
- सब जग इनकी करिहै सेवा: समस्त संसार इनकी सेवा करता है।
10. ब्रह्मा जी की शिक्षा
महापघ जो तुम्हरो आसन। ता पै अहै विष्णु को शासन॥ विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई। तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई॥
- महापघ जो तुम्हरो आसन: जिस दिव्य कमल पर ब्रह्मा जी विराजमान हैं।
- ता पै अहै विष्णु को शासन: वह विष्णु जी की नाभि से प्रकट हुआ है।
- विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई: विष्णु जी की नाभि से ही कमल प्रकट हुआ।
- तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई: आकाशवाणी ने ब्रह्मा जी को यह सत्य समझाया।
11. विष्णु जी के दर्शन और ज्ञान
भ्ौटहु जाई विष्णु हितमानी। यह कहि बन्द भई नभवानी॥ ताहि श्रवण कहि अचरज माना। पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना॥
- भ्ौटहु जाई विष्णु हितमानी: ब्रह्मा जी को निर्देश दिया गया कि वे विष्णु जी से जाकर मिलें।
- यह कहि बन्द भई नभवानी: इतना कहकर आकाशवाणी शांत हो गई।
- ताहि श्रवण कहि अचरज माना: ब्रह्मा जी ने यह सुनकर बड़ा आश्चर्य किया।
- पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना: फिर उन्होंने विष्णु जी के पास जाने का निश्चय किया।
12. विष्णु जी के दर्शन
कमल नाल धरि नीचे आवा। तहां विष्णु के दर्शन पावा॥ शयन करत देखे सुरभूपा। श्यायमवर्ण तनु परम अनूपा॥
- कमल नाल धरि नीचे आवा: ब्रह्मा जी कमल की नाल से नीचे उतरे।
- तहां विष्णु के दर्शन पावा: वहां उन्होंने भगवान विष्णु के दर्शन किए।
- शयन करत देखे सुरभूपा: विष्णु जी को शेषनाग पर विश्राम करते हुए देखा।
- श्यायमवर्ण तनु परम अनूपा: उनका श्यामवर्ण शरीर अत्यंत अद्भुत था।
13. विष्णु जी का स्वरूप
सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर। क्रीटमुकट राजत मस्तक पर॥ गल बैजन्ती माल बिराजै। कोटि सूर्य की शोभा लाजै॥
- सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर: भगवान विष्णु का चार भुजाओं वाला स्वरूप अत्यंत सुंदर था।
- क्रीटमुकट राजत मस्तक पर: उनके सिर पर दिव्य मुकुट शोभायमान था।
- गल बैजन्ती माल बिराजै: उनके गले में वैजयन्ती माला सुशोभित थी।
- कोटि सूर्य की शोभा लाजै: उनकी चमक करोड़ों सूर्यों के समान थी।
14. विष्णु जी का संदेश
शंख चक्र अरु गदा मनोहर। शेष नाग शय्या अति मनहर॥ दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू। हर्षित भे श्रीपति सुख धामू॥
- शंख चक्र अरु गदा मनोहर: उनके हाथों में शंख, चक्र और गदा सुशोभित थे।
- शेष नाग शय्या अति मनहर: शेषनाग की शय्या अत्यंत सुंदर थी।
- दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू: ब्रह्मा जी ने उनका दिव्य रूप देखकर प्रणाम किया।
- हर्षित भे श्रीपति सुख धामू: विष्णु जी, जो आनंद के सागर हैं, प्रसन्न हो गए।
15. विष्णु जी का संदेश और ब्रह्मा जी का अहंकार दूर होना
बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन। तब लक्ष्मीपति कहेउ मुदित मन॥ ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना। ब्रह्मारुप हम दोउ समाना॥
- बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन: ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के सामने विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की।
- तब लक्ष्मीपति कहेउ मुदित मन: लक्ष्मीपति विष्णु जी ने प्रसन्न मन से कहा।
- ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना: हे ब्रह्मा! अपने अहंकार को त्याग दो।
- ब्रह्मारुप हम दोउ समाना: हम दोनों ब्रह्म के समान रूप हैं।
तीजे श्री शिवशंकर आहीं। ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही॥ तुम सों होई सृष्टि विस्तारा। हम पालन करिहैं संसारा॥
- तीजे श्री शिवशंकर आहीं: तीसरे रूप में भगवान शिव भी हैं।
- ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही: त्रिभुवन में ब्रह्म का यही रूप व्याप्त है।
- तुम सों होई सृष्टि विस्तारा: तुम्हारे द्वारा सृष्टि का विस्तार होगा।
- हम पालन करिहैं संसारा: मैं संसार का पालन करूंगा।
16. त्रिदेवों का कार्य विभाजन
शिव संहार करहिं सब केरा। हम तीनहुं कहँ काज धनेरा॥ अगुणरुप श्री ब्रह्मा बखानहु। निराकार तिनकहँ तुम जानहु॥
- शिव संहार करहिं सब केरा: भगवान शिव सृष्टि के संहार का कार्य करेंगे।
- हम तीनहुं कहँ काज धनेरा: त्रिदेवों के लिए यह कार्य विभाजित किया गया है।
- अगुणरुप श्री ब्रह्मा बखानहु: ब्रह्म का निराकार रूप सबसे श्रेष्ठ है।
- निराकार तिनकहँ तुम जानहु: तुम निराकार ब्रह्म को पहचानो।
हम साकार रुप त्रयदेवा। करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा॥ यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये। परब्रह्म के यश अति गाये॥
- हम साकार रुप त्रयदेवा: त्रिदेव ब्रह्म के साकार रूप हैं।
- करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा: और सदा ब्रह्म की सेवा करेंगे।
- यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये: यह सुनकर ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए।
- परब्रह्म के यश अति गाये: उन्होंने परब्रह्म का यश गाना आरंभ किया।
17. सृष्टि की रचना का आदेश
सो सब विदित वेद के नामा। मुक्ति रुप सो परम ललामा॥ यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा। पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा॥
- सो सब विदित वेद के नामा: वेदों में सब कुछ पहले से विदित है।
- मुक्ति रुप सो परम ललामा: ब्रह्म ही मुक्ति का स्वरूप हैं।
- यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा: इस प्रकार, हे ब्रह्मा, तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ।
- पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा: और तुमने सृष्टि की रचना आरंभ की।
नाम पितामह सुन्दर पायेउ। जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ॥ लीन्ह अनेक बार अवतारा। सुन्दर सुयश जगत विस्तारा॥
- नाम पितामह सुन्दर पायेउ: तुम्हें पितामह का सुंदर नाम मिला।
- जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ: जड़ (निर्जीव) और चेतन (सजीव) सब तुम्हारे द्वारा निर्मित हुए।
- लीन्ह अनेक बार अवतारा: तुमने अनेक बार अवतार धारण किए।
- सुन्दर सुयश जगत विस्तारा: और तुम्हारा यश समस्त संसार में फैला।
18. ब्रह्मा जी की पूजा का फल
देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं। मनवांछित तुम सन सब पावहिं॥ जो कोउ ध्यान धरै नर नारी। ताकी आस पुजावहु सारी॥
- देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं: देवता और दानव सभी तुम्हारी आराधना करते हैं।
- मनवांछित तुम सन सब पावहिं: जो भी इच्छा होती है, वह तुमसे प्राप्त करते हैं।
- जो कोउ ध्यान धरै नर नारी: जो भी स्त्री या पुरुष तुम्हारा ध्यान करता है।
- ताकी आस पुजावहु सारी: उनकी सभी इच्छाओं को तुम पूरा करते हो।
19. पुष्कर तीर्थ का महत्त्व
पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई। तहँ तुम बसहु सदा सुरराई॥ कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन। ता कर दूर होई सब दूषण॥
- पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई: पुष्कर तीर्थ को ब्रह्मा जी का निवास स्थान माना गया है। यह तीर्थ परम सुख प्रदान करने वाला है।
- तहँ तुम बसहु सदा सुरराई: तुम सदा वहाँ निवास करते हो।
- कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन: जो पुष्कर के कुंड में स्नान करके तुम्हारी पूजा करता है।
- ता कर दूर होई सब दूषण: उसके सारे पाप और दोष दूर हो जाते हैं।
उपसंहार
ब्रह्मा जी की स्तुति यह सिखाती है कि सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार का प्रबंधन त्रिदेव करते हैं। ब्रह्मा जी को समर्पित यह भजन उनके स्वरूप, कर्तव्य, और उनकी दिव्य महिमा का वर्णन करता है। इसके पाठ से व्यक्ति में ज्ञान, श्रद्धा और अहंकार त्याग की भावना जाग्रत होती है।
नोट: यदि आप और विस्तार से जानना चाहते हैं या आगे कोई विशिष्ट व्याख्या चाहते हैं, तो कृपया बताएं।