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दोहा ॥
सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥
करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥

॥ चौपाई ॥
जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर।
जय यमेश दिगंत उजागर॥

अज सहाय अवतरेउ गुसांई।
कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥

श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा।
भांति-भांति के जीवन राचा॥

अज की रचना मानव संदर।
मानव मति अज होइ निरूत्तर॥ ४ ॥

भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई।
धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥

राचेउ धरम धरम जग मांही।
धर्म अवतार लेत तुम पांही॥

अहम विवेकइ तुमहि विधाता।
निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥

श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी।
त्रय देवन कर शक्ति समानी॥ ८ ॥

पाप मृत्यु जग में तुम लाए।
भयका भूत सकल जग छाए॥

महाकाल के तुम हो साक्षी।
ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥

धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो।
कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥

राम धर्म हित जग पगु धारे।
मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥ १२ ॥

विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें।
पालन धर्म करम शुचि साजे॥

महादेव के तुम त्रय लोचन।
प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥

सावित्री पर कृपा निराली।
विद्यानिधि माँ सब जग आली॥

रमा भाल पर कर अति दाया।
श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥ २० ॥

ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो।
जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥

गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा।
जाके कर्म गहइ तव हाथा॥

रावण कंस सकल मतवारे।
तव प्रताप सब सरग सिधारे॥

प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा।
सोउ करत तुम्हारी सेवा॥ २४ ॥

रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी।
विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥

व्यास चहइ रच वेद पुराना।
गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥

पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा।
असवर देय जगत कृत कीन्हा॥

लेखनि मसि सह कागद कोरा।
तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥ २८ ॥

विद्या विनय पराक्रम भारी।
तुम आधार जगत आभारी॥

द्वादस पूत जगत अस लाए।
राशी चक्र आधार सुहाए॥

जस पूता तस राशि रचाना।
ज्योतिष केतुम जनक महाना॥

तिथी लगन होरा दिग्दर्शन।
चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥ ३२ ॥

राशी नखत जो जातक धारे।
धरम करम फल तुमहि अधारे॥

राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई।
प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥

श्री गणेश तव बंदन कीना।
कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥

देववृत जप तप वृत कीन्हा।
इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥ ३६ ॥

धर्महीन सौदास कुराजा।
तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥

हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा।
कायथ परिजन परम पितामा॥

शुर शुयशमा बन जामाता।
क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥

जय जय चित्रगुप्त गुसांई।
गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥ ४० ॥

जो शत पाठ करइ चालीसा।
जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥

विनय करैं कुलदीप शुवेशा।
राख पिता सम नेह हमेशा॥

॥ दोहा ॥
ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥
पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥

चित्रगुप्त चालीसा की विस्तृत व्याख्या

दोहा

सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।

ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥

इस चौपाई में वाणी चित्रगुप्त जी की महिमा का गुणगान करती है। उन्हें याद करते हुए कहा जाता है कि हम हमेशा उनका स्मरण करते हैं और उनके सामने सिर झुकाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ, जगत के स्वामी (जगदीश) भी चित्रगुप्त के ऋणी हो गए हैं। यहाँ यह बताया गया है कि चित्रगुप्त के पास ज्ञान और कर्मों का लेखा-जोखा होता है, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।

चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥

यहां भगवान चित्रगुप्त से प्रार्थना की जाती है कि वे कृपा करें और सरस्वती जी का साथ प्राप्त कर ज्ञान और न्याय का आशीर्वाद दें। उनकी महिमा और यश को वाणी से सम्मानित किया जा रहा है और गुरु पद को वंदन करने का संदेश दिया जा रहा है।

चौपाई

जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर।

जय यमेश दिगंत उजागर॥

चित्रगुप्त जी को ज्ञान का भंडार कहा गया है। यहां उनका स्वागत किया जा रहा है और उन्हें यमराज के सहायक के रूप में भी जाना जाता है। वह धर्मराज के रूप में संसार में न्याय का प्रकाश फैलाते हैं। उनके कार्य न्याय से संबंधित हैं, जो समस्त संसार में धर्म का संतुलन बनाए रखते हैं।

अज सहाय अवतरेउ गुसांई।

कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥

यहाँ बताया गया है कि चित्रगुप्त ब्रह्मा जी के आदेश से उत्पन्न हुए और उन्होंने ब्रह्मा के कार्य को पूरा करने के लिए जन्म लिया। यह उस महत्वपूर्ण कार्य को दर्शाता है जो उन्होंने ब्रह्मा की सृष्टि की रक्षा और समृद्धि के लिए किया।

श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा।

भांति-भांति के जीवन राचा॥

चित्रगुप्त जी ने सृष्टि के निर्माण के लिए अलग-अलग प्रकार के जीवन बनाए, जिनमें विभिन्न प्राणियों और जीवों को रचा गया। यह उनके सृजनात्मक और न्यायपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने संसार के संतुलन को बनाए रखा।

अज की रचना मानव संदर।

मानव मति अज होइ निरूत्तर॥

मानव जीवन को सुंदर और विविधतापूर्ण तरीके से चित्रगुप्त जी ने रचा। यह उनके ज्ञान और विवेक का प्रतीक है, जिससे मानव मस्तिष्क को उनके निर्णयों के सामने प्रश्न करने की स्थिति नहीं रहती। वे सभी कर्मों का हिसाब रखने वाले हैं और इस आधार पर धर्म और अधर्म का निर्णय करते हैं।

भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई।

धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥

जब चित्रगुप्त प्रकट होते हैं, तो धर्म और अधर्म का ज्ञान फैलाते हैं। वे संसार में न्याय और धर्म की स्थापना करते हैं और सभी प्राणियों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। उनकी सहायता से लोग धर्म और ज्ञान का मार्ग अपनाते हैं।

राचेउ धरम धरम जग मांही।

धर्म अवतार लेत तुम पांही॥

यहाँ बताया गया है कि चित्रगुप्त जी ने धर्म की स्थापना की और जब-जब संसार में अधर्म बढ़ा, तब-तब उन्होंने धर्म के अवतार के रूप में प्रकट होकर संसार का संतुलन बनाए रखा। वे धर्म के रक्षक और उसका पालन करने वाले हैं।

अहम विवेकइ तुमहि विधाता।

निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥

इस चौपाई में चित्रगुप्त जी के महत्व को बताया गया है। वे अहंकार और विवेक के मध्य संतुलन बनाए रखते हैं। उनकी सत्ता के बिना कोई भी कुकार्य या बुराई संभव नहीं हो सकती। वे संसार के कर्मों के लेखा-जोखा के स्वामी हैं और सभी प्राणियों के कर्मों पर नज़र रखते हैं।

श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी।

त्रय देवन कर शक्ति समानी॥

चित्रगुप्त जी सृष्टि के संतुलन के स्वामी हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति को समेटते हैं और इन तीनों देवताओं के साथ मिलकर संसार में धर्म और न्याय का संतुलन बनाए रखते हैं।

पाप मृत्यु जग में तुम लाए।

भयका भूत सकल जग छाए॥

चित्रगुप्त जी पाप और मृत्यु को इस संसार में लेकर आए। उनके द्वारा पाप और अधर्म करने वालों को दंडित किया जाता है। इस कारण से संसार में पाप के भय का व्यापक प्रभाव है। सभी लोग अपने कर्मों के प्रति जागरूक रहते हैं और धर्म के मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं।

महाकाल के तुम हो साक्षी।

ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥

चित्रगुप्त जी महाकाल के साक्षी हैं, यानी वे समय और मृत्यु के सभी घटनाओं के साक्षी होते हैं। यहाँ मीनाक्षी से तात्पर्य उस शक्ति से है जो जन्म और मृत्यु के बीच संतुलन बनाए रखती है। चित्रगुप्त जी मृत्यु के बाद के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं, और ब्रह्मा स्वयं भी उनकी इस शक्ति से अनजान होते हैं कि मृत्यु के बाद क्या होता है। यह चित्रगुप्त की अनोखी क्षमता को दर्शाता है।

धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो।

कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥

इस चौपाई में चित्रगुप्त जी को धर्म और ज्ञान का जनक कहा गया है। उन्होंने संसार में धर्म और कर्म का प्रसार किया। उन्होंने मनुष्यों को सिखाया कि उनका जीवन कर्म क्षेत्र है, जहाँ धर्म और ज्ञान के अनुसार कर्म करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके द्वारा ज्ञान का प्रसार और कर्मों का लेखा-जोखा ही व्यक्ति के जीवन का आधार है।

राम धर्म हित जग पगु धारे।

मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥

भगवान राम ने धर्म की स्थापना के लिए इस संसार में कदम रखा। राम जी के जीवन में चित्रगुप्त जी का महत्वपूर्ण स्थान है, जिन्होंने धर्म के अनुसार न्याय और सत्य का मार्ग दिखाया। उनके आदर्शों ने मानवगुण और सदगुणों को सबसे प्रिय बनाया। चित्रगुप्त के निर्देशन में ही राम जी ने धर्म की नींव पर समाज का निर्माण किया।

विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें।

पालन धर्म करम शुचि साजे॥

यहाँ चित्रगुप्त जी को विष्णु चक्र पर विराजमान बताया गया है, जो यह दर्शाता है कि वे संसार में पालनकर्ता के रूप में धर्म और कर्म का संतुलन बनाए रखते हैं। विष्णु का चक्र न्याय और धर्म का प्रतीक है, और चित्रगुप्त जी इसे धारण कर संसार के कर्मों का लेखा-जोखा करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।

महादेव के तुम त्रय लोचन।

प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥

चित्रगुप्त जी को महादेव के त्रिनेत्र (तीन आंखों) का प्रतीक बताया गया है। महादेव का तांडव नृत्य संसार में न्याय और विनाश का प्रतीक है, जिसे प्रेरित करने वाले चित्रगुप्त जी ही हैं। वे शिव के न्यायपूर्ण क्रोध और तांडव को संचालित करते हैं, जिससे संसार में अधर्म का नाश होता है और धर्म का पालन होता है।

सावित्री पर कृपा निराली।

विद्यानिधि माँ सब जग आली॥

सावित्री, जो ज्ञान की देवी हैं, उन पर चित्रगुप्त जी की विशेष कृपा है। वे संसार में विद्या और ज्ञान का प्रसार करते हैं और सभी को शिक्षा का मार्ग दिखाते हैं। चित्रगुप्त जी विद्या के खजाने की तरह हैं, जो संसार को ज्ञान और बुद्धि का उपहार देते हैं।

रमा भाल पर कर अति दाया।

श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥

रमा, जो लक्ष्मी देवी हैं, उनके माथे पर चित्रगुप्त जी का विशेष आशीर्वाद है। वे धन और समृद्धि की देवी हैं, और चित्रगुप्त जी उनके साथ अपने कार्यों को अंजाम देते हैं। उनके द्वारा दी गई समृद्धि और शक्ति अगम्य और असीमित है, जिससे संसार में संतुलन बना रहता है।

ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो।

जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥

ऊमा यानी पार्वती के भीतर की शक्ति को चित्रगुप्त जी ने धारण किया है। शिव की पत्नी पार्वती के बिना शिव का अस्तित्व शव जैसा है, और चित्रगुप्त जी इस शक्ति के द्वारा संसार के संतुलन को बनाए रखते हैं। यह चौपाई पार्वती और शिव के बीच की अटूट शक्ति और न्याय के प्रतीक को दर्शाती है।

गुरू बृहस्पति सुरपति नाथा।

जाके कर्म गहइ तव हाथा॥

गुरु बृहस्पति, जो देवताओं के गुरु माने जाते हैं, उनकी भी चित्रगुप्त जी ने प्रेरणा ली। उनका कर्म और कार्य भी चित्रगुप्त जी के निर्देशन में संचालित होता है। यह दर्शाता है कि चित्रगुप्त केवल मानव जाति ही नहीं, बल्कि देवताओं के भी कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।

रावण कंस सकल मतवारे।

तव प्रताप सब सरग सिधारे॥

रावण और कंस जैसे शक्तिशाली असुर, जिन्होंने अधर्म का मार्ग अपनाया, वे भी चित्रगुप्त जी के प्रताप से पराजित होकर स्वर्ग चले गए। उनका कर्म उनके अधर्म के कारण नष्ट हुआ, और चित्रगुप्त जी ने न्याय की स्थापना की। उनके प्रभाव से संसार में अधर्म का अंत होता है और धर्म की विजय होती है।

प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा।

सोउ करत तुम्हारी सेवा॥

गणपति, जो प्रथम पूज्य माने जाते हैं, वे भी चित्रगुप्त जी की सेवा करते हैं। गणपति को हर शुभ कार्य की शुरुआत में पूजा जाता है, और यहाँ यह बताया गया है कि चित्रगुप्त जी के प्रताप से ही गणपति भी अपनी सेवा अर्पित करते हैं।

रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी।

विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥

गणपति ने रिद्धि और सिद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया और वे भी चित्रगुप्त जी की कृपा से ही संसार के विघ्नों को दूर कर शुभ कार्यों को सफल बनाते हैं।

व्यास चहइ रच वेद पुराना।

गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥

यहाँ व्यास जी की बात की गई है, जिन्होंने वेद और पुराणों की रचना की। गणपति जी की कृपा से वे इस कार्य को करने में सक्षम हुए। लेकिन यह कार्य तभी संभव हुआ जब चित्रगुप्त जी के आशीर्वाद से गणपति ने लेखनी उठाई और इस महान कार्य को लिपिबद्ध किया। चित्रगुप्त जी की कृपा से ही व्यास जी ने ज्ञान का यह विशाल खजाना सृष्टि को दिया।

पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा।

असवर देय जगत कृत कीन्हा॥

चित्रगुप्त जी ने पवित्र पोथी, स्याही और लेखनी दी, जिनसे ज्ञान का प्रसार हुआ। उनके द्वारा दी गई ये सामग्री ने वेद और पुराण जैसे ग्रंथों को साकार किया। इससे यह पता चलता है कि चित्रगुप्त न केवल कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं, बल्कि ज्ञान के प्रसार में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

लेखनि मसि सह कागद कोरा।

तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥

चित्रगुप्त जी के प्रताप से ही लेखनी, स्याही और कागज का उपयोग करके संसार के महान कार्य लिखे जा सकते हैं। उनकी शक्ति के बिना ये सब अधूरे हैं। उनके प्रताप से ही संसार में ज्ञान का भंडार फैला हुआ है और उनका महत्व हर जगह है।

विद्या विनय पराक्रम भारी।

तुम आधार जगत आभारी॥

चित्रगुप्त जी विद्या, विनय (नम्रता) और पराक्रम के प्रतीक हैं। वे संसार के आधार हैं और उनका आभारी हर जीवित प्राणी है। उनके बिना संसार में न ज्ञान का प्रसार हो सकता है और न ही कर्मों का लेखा-जोखा किया जा सकता है। वे हर ज्ञान और शक्ति का मूल हैं।

द्वादस पूत जगत अस लाए।

राशी चक्र आधार सुहाए॥

चित्रगुप्त जी ने संसार में बारह पुत्र उत्पन्न किए, जो राशिचक्र के आधार बने। इन बारह राशियों के माध्यम से संसार का संतुलन और कर्म का लेखा-जोखा किया जाता है। राशियों के आधार पर ही मनुष्य के जीवन का मार्ग निर्धारित होता है और चित्रगुप्त जी ने इन्हें सृष्टि को संतुलित करने के लिए रचा।

जस पूता तस राशि रचाना।

ज्योतिष केतुम जनक महाना॥

यहाँ कहा गया है कि चित्रगुप्त जी के पुत्रों के आधार पर ही राशियों का निर्माण हुआ। वे ज्योतिष के महान जनक हैं। उनके द्वारा ही संसार के ज्योतिष शास्त्र का निर्माण हुआ, जिससे मानव जीवन को दिशा और मार्गदर्शन मिला। उनके ज्ञान के बिना ज्योतिष और राशियों का अस्तित्व नहीं हो सकता था।

तिथी लगन होरा दिग्दर्शन।

चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥

चित्रगुप्त जी तिथि, लग्न और होरा के ज्ञाता हैं। वे इन सभी का विस्तृत ज्ञान रखते हैं और संसार को दिशा प्रदान करते हैं। उनके द्वारा चार और आठ हिस्सों में चित्रांश (कर्म के अंश) विभाजित किए गए हैं, जो कि सुदर्शन के रूप में सृष्टि का संचालन करते हैं। यह कर्म और समय के सही समन्वय को दर्शाता है।

राशी नखत जो जातक धारे।

धरम करम फल तुमहि अधारे॥

मनुष्य के कर्म और भाग्य उनके राशियों और नक्षत्रों पर आधारित होते हैं, और ये सभी चित्रगुप्त जी के नियंत्रण में हैं। वे हर व्यक्ति के धर्म और कर्म का फल निर्धारित करते हैं। वे ही हैं जो प्रत्येक जीव के कर्मों का हिसाब रखते हैं और उसी के अनुसार उन्हें उनके जीवन में सुख-दुख प्राप्त होते हैं।

राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई।

प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥

चित्रगुप्त जी को राम और कृष्ण के साथ-साथ गुरु का भी प्रतीक माना गया है। वे ही गुरु के रूप में संसार को ज्ञान और धर्म की दिशा दिखाते हैं। उनका गुणगान करना, उनका स्मरण करना ही जीवन के प्रथम गुरु की महिमा को गाने के बराबर है। वे सबसे पहले गुरु के रूप में पूजे जाते हैं।

श्री गणेश तव बंदन कीना।

कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥

गणेश जी ने भी चित्रगुप्त जी का वंदन किया, क्योंकि वे कर्म और अकर्म के अधिपति हैं। उनके द्वारा ही संसार में कर्मों का लेखा-जोखा होता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्राप्त हो। गणेश जी स्वयं चित्रगुप्त जी की महिमा का गुणगान करते हैं।

देववृत जप तप वृत कीन्हा।

इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥

यहाँ बताया गया है कि देवताओं ने भी तपस्या और व्रत करके चित्रगुप्त जी की कृपा प्राप्त की। उनके आशीर्वाद से देवताओं को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला, यानी वे अपनी मर्जी से अपनी मृत्यु चुन सकते थे। यह चित्रगुप्त जी की असीम कृपा और शक्ति को दर्शाता है, जिससे देवताओं तक को लाभ हुआ।

धर्महीन सौदास कुराजा।

तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥

सौदास जैसे धर्महीन राजा, जिन्होंने अधर्म का मार्ग चुना था, वे भी चित्रगुप्त जी की तपस्या से बैकुंठ में स्थान पा गए। चित्रगुप्त जी की कृपा से ही धर्महीन व्यक्ति भी धर्म के मार्ग पर आ सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा।

कायथ परिजन परम पितामा॥

चित्रगुप्त जी को हरि (विष्णु) के परमपद का अधिकारी माना गया है। वे धर्म का पालन करने वाले हैं और हरि नाम के उच्चारण से संसार को धर्म की दिशा में अग्रसर करते हैं। चित्रगुप्त जी कायस्थ समाज के परम पितामह माने जाते हैं, जिनका सम्मान और आदर हर व्यक्ति करता है।

शुर शुयशमा बन जामाता।

क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥

चित्रगुप्त जी को शुरवीर और यशस्वी बनाकर उनका सम्मान किया गया है। वे क्षत्रिय और ब्राह्मणों दोनों के आदाता हैं, यानी वे सभी वर्णों के संरक्षक और मार्गदर्शक हैं। उनके बिना धर्म और न्याय का संतुलन असंभव है।

जय जय चित्रगुप्त गुसांई।

गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥

यह चौपाई चित्रगुप्त जी के जयकार के रूप में है। उन्हें गुरु के रूप में मान्यता दी गई है और उनकी सेवा करने का संदेश दिया गया है। वे गुरु हैं, जो कर्म और धर्म का ज्ञान देते हैं और संसार के प्रत्येक प्राणी का मार्गदर्शन करते हैं।

जो शत पाठ करइ चालीसा।

जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥

जो व्यक्ति चित्रगुप्त चालीसा का सौ बार पाठ करता है, उसके जन्म और मरण के सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं। यह चालीसा व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि लाती है और उसके सभी पापों का अंत करती है।

विनय करैं कुलदीप शुवेशा।

राख पिता सम नेह हमेशा॥

यह चौपाई विनम्रता का पाठ सिखाती है। यहाँ कुलदीप (संतान) से आग्रह किया जा रहा है कि वे चित्रगुप्त जी की सेवा करें और हमेशा अपने पिता के समान उनका स्नेह और सम्मान बनाए रखें। यह समाज में संतुलन और स्नेह का संदेश देता है।

दोहा

ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।

कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥

यह दोहा चित्रगुप्त जी की शक्ति और उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली सामग्री का वर्णन करता है। उनके पास ज्ञान की कलम, सरस्वती का आशीर्वाद, और आकाश जैसा विशाल मसिपात्र (स्याही का पात्र) है। वे कालचक्र की पुस्तिका रखते हैं, जिसमें हर व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा होता है। उनके पास दंडास्त्र (दंड का हथियार) भी है, जिससे वे न्याय और दंड का निर्धारण करते हैं।

पाप पुण्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।

श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥

चित्रगुप्त जी पाप और पुण्य का लेखा-जोखा करने वाले हैं। वे चित्र स्वरूप धारण करते हैं, जिससे हर व्यक्ति के कर्म उनके सामने स्पष्ट होते हैं। वे सृष्टि के संतुलन के स्वामी हैं और स्वर्ग और नरक के निर्णायक हैं। उनके द्वारा ही यह तय होता है कि किसे स्वर्ग का सुख मिलेगा और किसे नरक का दंड।

चित्रगुप्त जी का धार्मिक महत्व

चित्रगुप्त जी को हिंदू धर्म में कर्मों के लेखा-जोखा रखने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। वे प्रत्येक जीवित प्राणी के हर छोटे-बड़े कर्मों को दर्ज करते हैं और उनके आधार पर उन्हें न्याय प्रदान करते हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से कायस्थ समाज द्वारा की जाती है, लेकिन उनका महत्व पूरे हिंदू समाज में समान रूप से है। हर व्यक्ति के जीवन में किए गए कर्मों के आधार पर चित्रगुप्त जी यह निर्धारित करते हैं कि उसे मोक्ष प्राप्त होगा या नहीं।

कर्म का महत्व और चित्रगुप्त जी की भूमिका

हिंदू धर्म में कर्म की अवधारणा बेहद महत्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि हर व्यक्ति अपने कर्मों का फल भुगतता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। इस पूरे कर्मफल प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने का कार्य चित्रगुप्त जी के जिम्मे है। वे इस सृष्टि में धर्म और अधर्म के आधार पर निर्णय लेते हैं और उस आधार पर व्यक्ति को स्वर्ग या नरक की यात्रा तय करते हैं। चित्रगुप्त चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को अपने कर्मों का एहसास होता है और वह धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है।

चित्रगुप्त पूजा की प्रथा

चित्रगुप्त पूजा विशेष रूप से दीपावली के अगले दिन यानी यम द्वितीया या भैया दूज पर की जाती है। इस दिन विशेष रूप से कायस्थ समुदाय के लोग चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं और उनसे जीवन में धर्म और न्याय की दिशा में मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं। इस दिन लोग अपने खाते-बही (बहीखाता) को नए सिरे से शुरू करते हैं और चित्रगुप्त जी से अपने कर्मों का सही लेखा-जोखा करने का आशीर्वाद मांगते हैं।

चित्रगुप्त जी की सत्तात्मक भूमिका

चित्रगुप्त जी की सत्ता का वर्णन यह बताता है कि वे केवल व्यक्ति के कर्मों का हिसाब रखने वाले ही नहीं हैं, बल्कि वे कर्म, धर्म और ज्ञान के प्रतीक हैं। वे संसार के संतुलन को बनाए रखने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों को भी अपने अंदर समाहित किए हुए हैं। उनके बिना संसार में न्याय की कोई संभावना नहीं है। उनके द्वारा ही व्यक्ति के कर्मों का न्याय किया जाता है और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है।

पाप और पुण्य का लेखा-जोखा

चित्रगुप्त जी का मुख्य कार्य पाप और पुण्य का लेखा-जोखा करना है। जब व्यक्ति मरता है, तब उसके जीवन के हर छोटे-बड़े कर्म का हिसाब चित्रगुप्त जी के पास होता है। इस आधार पर वे यह निर्णय लेते हैं कि व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान मिलेगा या नरक में। इस पूरी प्रक्रिया में वे हर समय निष्पक्ष रहते हैं और सिर्फ कर्मों के आधार पर निर्णय लेते हैं। उनके पास ज्ञान की कलम, सृष्टि की पुस्तिका, और दंडास्त्र होते हैं, जिनसे वे कर्मों का लेखा-जोखा और निर्णय करते हैं।

चित्रगुप्त चालीसा का पाठ और उसके लाभ

चित्रगुप्त चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में कई लाभ हो सकते हैं। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति के जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने की संभावना बढ़ती है। यह चालीसा व्यक्ति को धर्म और न्याय का महत्व समझने में मदद करती है और उसे सही कर्मों की दिशा में प्रेरित करती है। यह न केवल कायस्थ समाज के लिए, बल्कि हर व्यक्ति के लिए लाभकारी है, जो धर्म और न्याय के मार्ग पर चलना चाहता है।

कर्म और मोक्ष की प्राप्ति

चित्रगुप्त जी के बिना कर्म और मोक्ष का कोई अस्तित्व नहीं है। उनके द्वारा किए गए कर्मों के लेखा-जोखा के आधार पर ही व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है। उनकी कृपा से ही व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होकर धर्म का पालन करने में सक्षम हो सकता है। चित्रगुप्त चालीसा का पाठ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

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