जय दुर्गे जय दुर्गे,
महिषविमर्दिनी जय दुर्गे ।
जय दुर्गे जय दुर्गे,
महिषविमर्दिनी जय दुर्गे ।
मंगलकारिणी जय दुर्गे,
जगज्जननी जय जय दुर्गे ।
मंगलकारिणी जय दुर्गे,
जगज्जननी जय जय दुर्गे ॥
वीणापाणिनी पुस्तकधारिणी,
अम्बा जय जय वाणी ।
जगदम्बा जय जय वाणी ॥
वीणापाणिनी पुस्तकधारिणी,
अम्बा जय जय वाणी ।
जगदम्बा जय जय वाणी ॥
वेदरूपिणी सामगायनी,
अम्बा जय जय वाणी ।
जगदम्बा जय जय वाणी ॥
जय दुर्गे जय दुर्गे स्तुति का अर्थ
यह स्तुति माँ दुर्गा की महिमा और उनकी शक्ति का गुणगान करती है। इसमें माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों और उनके द्वारा की गई महत्तवपूर्ण कार्यों का उल्लेख किया गया है। आइए इस स्तुति के प्रत्येक पंक्ति के अर्थ को विस्तार से समझते हैं।
जय दुर्गे जय दुर्गे, महिषविमर्दिनी जय दुर्गे
जय दुर्गे जय दुर्गे:
यह पंक्ति माँ दुर्गा की जयकार करती है। ‘जय’ का अर्थ होता है विजय या सफलता। यहाँ माँ दुर्गा को उनके असीम साहस और शक्ति के लिए नमन किया जा रहा है।
महिषविमर्दिनी जय दुर्गे:
महिषासुर, जो कि एक अत्याचारी राक्षस था, उसे माँ दुर्गा ने अपने दिव्य शक्ति से मारा था। इस पंक्ति में माँ दुर्गा को ‘महिषविमर्दिनी’ कहा गया है, जिसका अर्थ है महिषासुर का नाश करने वाली। यह शक्ति और साहस का प्रतीक है, जो अधर्म और बुराई को समाप्त करने के लिए आवश्यक है।
मंगलकारिणी जय दुर्गे, जगज्जननी जय जय दुर्गे
मंगलकारिणी जय दुर्गे:
माँ दुर्गा को ‘मंगलकारिणी’ कहा जा रहा है, जिसका अर्थ होता है ‘मंगल करने वाली’। माँ दुर्गा समस्त संसार के लिए कल्याणकारी और शुभफलदायिनी हैं। वे अपने भक्तों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाती हैं।
जगज्जननी जय जय दुर्गे:
यह पंक्ति माँ दुर्गा को ‘जगज्जननी’ कहकर संबोधित करती है, जिसका अर्थ है ‘संसार की जननी’। वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं और समस्त प्राणियों की रचना और पालन-पोषण करती हैं। इस रूप में माँ दुर्गा के मातृत्व और करुणा की महिमा का बखान है।
वीणापाणिनी पुस्तकधारिणी, अम्बा जय जय वाणी
वीणापाणिनी पुस्तकधारिणी:
यह पंक्ति माँ दुर्गा को सरस्वती के रूप में चित्रित करती है, जहाँ उन्हें ‘वीणापाणिनी’ यानी वीणा धारण करने वाली कहा गया है। वीणा ज्ञान और संगीत का प्रतीक है। ‘पुस्तकधारिणी’ से यह इंगित होता है कि माँ दुर्गा ज्ञान और विद्या की दाता हैं।
अम्बा जय जय वाणी:
अम्बा का अर्थ है माता, और वाणी का अर्थ है वाक् शक्ति या बोलने की शक्ति। इस पंक्ति में माँ दुर्गा को सरस्वती रूप में वाणी और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में महिमामंडित किया गया है।
वेदरूपिणी सामगायनी, अम्बा जय जय वाणी
वेदारूपिणी सामगायनी:
यहाँ माँ दुर्गा को ‘वेदारूपिणी’ कहा गया है, जिसका अर्थ है वेदों के स्वरूप वाली। वेद ज्ञान और सत्य का स्त्रोत हैं, और माँ दुर्गा इस पंक्ति में ज्ञान की देवी के रूप में प्रतिष्ठित की जा रही हैं। ‘सामगायनी’ का अर्थ है सामवेद का गायन करने वाली, जो कि संगीत और भक्ति का प्रतीक है।
अम्बा जय जय वाणी:
इस पंक्ति में पुनः माँ दुर्गा को अम्बा (माता) और वाणी (ज्ञान और वाक् शक्ति) के रूप में महिमामंडित किया गया है। यहाँ माँ दुर्गा की स्तुति की जा रही है कि वे समस्त संसार को ज्ञान, संगीत और वाणी प्रदान करती हैं।
निष्कर्ष
इस स्तुति में माँ दुर्गा की विभिन्न शक्तियों, गुणों और रूपों का उल्लेख किया गया है। वे महिषासुर का नाश करने वाली हैं, मंगल और कल्याण करने वाली हैं, और सम्पूर्ण संसार की जननी हैं। साथ ही, वे ज्ञान, वाणी, संगीत और वेदों की संरक्षिका भी हैं।